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सोमवार, 14 जून 2021

राजस्थान के प्रमुख अभिलेख | Rajsthan Ke Pramukh Abhilekh

राजस्थान के प्रमुख अभिलेख | Rajsthan Ke Pramukh Abhilekh

राजस्थान के प्रमुख अभिलेख | Rajsthan Ke Pramukh Abhilekh


 

नगरी का लेख 

  • (200 बी सी 150 बी-सी) -
  • यह चित्तौड़गढ़ जिले के प्राचीनत नगर माध्यमिक या नगरी से प्राप्त शिलालेख हैजो जैन या बौद्धों से संबंधित है।
  • यह बहुत छोटा शिलालेख है।

 

घोसुण्डी शिलालेख चित्तौड़गढ) 

  • दूसरी सदी ई.पू-, की संस्कृत भाषा की ब्राह्मी लिपि प्रयुक्त है। 
  • इसमें गजवंश के सर्वनाम द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करने का उल्लेख ( भागवत धर्म का प्रचार) मिलता है।

 

बसन्तगढ़ का लेखसिरोही (625ई.) 

  • यह कोटा के पास कणसवा गांव में स्थित है। 
  • इस अभिलेख में मौर्यवंशी राजा धवल का उल्लेख मिलता है। 


कणसवा का लेख (738 ई.)

  • यह कोटा के पास कणवसा गांव में स्थित है। 
  • इस अभिलेख में मौर्यवंशी राजा धवल का उल्लेख मिलता है।

 

घटियाला के शिलालेख ( 837 ई ) 

  • जोधपुर जिले के गांव घटियाला के एक जैन मंदिर जिसे माता की साल कहते है जिससे गद्य पद्य संस्कृतभाषा में उत्कीर्ण की गयी है।

 

नाथ-प्रशस्ति-एकलिंग जी ( 971 ई.)

  • यह उदयपुर के पास स्थित कैलाशपुरी (एकलिंग जी) के लकुलीश मंदिर में नरवाहनं के समय का संस्कृत भाषा व देवनागरी लिपि का अभिलेख है।

 

बिजोलिया का लेख (1170 ई.)

 

  • भीलवाड़ा जिले के गांव बिजोलिया के पार्श्वनाथ मंदिर के पास जैन लोलाक ने मंदिर बनवाया जिसकी याद में उसने यह लेख उत्कीर्ण करवाया था। 
  • इसमें सांभर व अजमेर के चौहानों को वत्स गोत्रीय ब्राह्मण बताया गया। 
  • इसमें उस समय के भूमिदान के डोहली कहा गया है। 
  • रचयिता- गुणभ्रद ।

 

जैन कीर्ति स्तम्भ लेख ( 13 वीं सदी )

  • चित्तौड़ दुर्ग में स्थित रणकपुर के चौमुखा मंदिर ( आदिनाथ मंदिर) में संस्कृत भाषा व नागरी लिपि में उत्कीर्ण। इसमें कुम्भा के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। 


विजयस्तम्भ प्रशस्ति ( 1460 ई.)

 

  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित विजय स्तम्भ पर उत्कीर्ण। 
  • इसका प्रशस्तिकार कवि अत्रि व उसका पुत्र महेश भट्ट था।
  • इसमे बाणहम्मीर मोकल का उल्लेख मिलता है।
  • गणेशशिव स्तुति मिलती है। 
  • इसमें कुम्भा द्वारा रचित ग्रन्थोंविरूदों (दानगुरू राजगुरूशैलगुरू) का उल्लेख तथा मालवा व गुजरात की सम्मिलित सेना को हराने का उल्लेख मिलता है।

 

कुम्भलगड़ शिलालेख (1460 ई.)

  • यह लेख राजसमंद जिले के कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित कुम्भस्याम मंदिर (मामादेव का मंदिर वर्तमान नाम) में संस्कृत भाषा एवं नागरी लिपि में पांच शिलाओं पर उत्कीर्ण है।
  • इसमें भौगोलिक स्थिति काजनजीवन काएकलिंग मंदिर का वर्णनचित्तौड़ का वर्णन (चित्रांग तालदुर्गवैष्णव तीर्थ के रूप में) किया गया है। 
  • इसमें मुख्यतया कुम्भा के विजयों का विस्तार से वर्णन मिलता है।
  • इसका रचयिता कान्ह व्यास है। जबकि डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द औझा के अनुसार इसका रचयिता महेश भट्ट है । 


बीकानेर की प्रशस्ति (1594)

 

  • बीकानेर दुर्ग में बीका से रायसिंह तक की उपलब्धियांजूनागढ़ दुर्ग के निर्माण व कर्मचंद द्वारा निरीक्षण का वर्णन मिलता है। 
  • इसका रचयिता 'जइतानामक जैन मुनि था। 
  • इसकी भाषा संस्कृत है।

 

जगन्नाथराय प्रशस्ति (1676 ) :

 

  • यह जगदीश मंदिरउदयपुर में उत्कीर्ण है। 
  • इसमें बाप्पा से सांगा तक की उपलब्धियों का वर्णन है। 
  • यह मंदिर जगतसिंह प्रथम द्वारा बनाया गया। 
  • यह पंचायतन शैली का लेख है। जिसे अर्जुन की निगरानी में तथा सूत्रकार भाणा व उसके पुत्र मुकन्द की अध्यक्षता में बनवाया गया।

 

राजप्रशस्ति (1676) 

 

  • यह प्रशस्ति राजसंमद झील के तट पर नौ चौकी स्थान के ताकों में 27 काली पाषाण शिलाओं पर पद्य संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है।
  • इसका रचयिता तेलंग ब्राह्मण रणछोड़ भट्ट था। 
  • इस प्रशस्ति के उत्कीर्ण कर्ता गजधर मुकुन्दरअर्जुनसुखदेवकेशवसुन्दरलालोंलखों आदि थे। मेवाड़ के शासकों की उपलब्धियों का वर्णन मिलता है। 
  • यह प्रशस्ति जगतसिंह प्रथम तथा राजसिंह के काल की उपलब्धियाँ जानने के लिए महत्वपूर्ण स्त्रोत हैयह विश्व की सबसे बड़ी पाषाण उत्कीर्ण प्रशस्ति है।