राजस्थान के प्रमुख अभिलेख | Rajsthan Ke Pramukh Abhilekh
नगरी का लेख
- (200 बी सी 150 बी-सी) -
- यह चित्तौड़गढ़ जिले के प्राचीनत नगर माध्यमिक या नगरी से प्राप्त शिलालेख है, जो जैन या बौद्धों से संबंधित है।
- यह बहुत छोटा शिलालेख है।
घोसुण्डी शिलालेख चित्तौड़गढ)
- दूसरी सदी ई.पू-, की संस्कृत भाषा की ब्राह्मी लिपि प्रयुक्त है।
- इसमें गजवंश के सर्वनाम द्वारा अश्वमेघ यज्ञ करने का उल्लेख ( भागवत धर्म का प्रचार) मिलता है।
बसन्तगढ़ का लेख, सिरोही (625ई.)
- यह कोटा के पास कणसवा गांव में स्थित है।
- इस अभिलेख में मौर्यवंशी राजा धवल का उल्लेख मिलता है।
कणसवा का लेख (738 ई.)
- यह कोटा के पास कणवसा गांव में स्थित है।
- इस अभिलेख में मौर्यवंशी राजा धवल का उल्लेख मिलता है।
घटियाला के शिलालेख ( 837 ई )
- जोधपुर जिले के गांव घटियाला के एक जैन मंदिर जिसे माता की साल कहते है जिससे गद्य पद्य संस्कृतभाषा में उत्कीर्ण की गयी है।
नाथ-प्रशस्ति-एकलिंग जी ( 971 ई.)
- यह उदयपुर के पास स्थित कैलाशपुरी (एकलिंग जी) के लकुलीश मंदिर में नरवाहनं के समय का संस्कृत भाषा व देवनागरी लिपि का अभिलेख है।
बिजोलिया का लेख (1170 ई.)
- भीलवाड़ा जिले के गांव बिजोलिया के पार्श्वनाथ मंदिर के पास जैन लोलाक ने मंदिर बनवाया जिसकी याद में उसने यह लेख उत्कीर्ण करवाया था।
- इसमें सांभर व अजमेर के चौहानों को वत्स गोत्रीय ब्राह्मण बताया गया।
- इसमें उस समय के भूमिदान के डोहली कहा गया है।
- रचयिता- गुणभ्रद ।
जैन कीर्ति स्तम्भ लेख ( 13 वीं सदी )
- चित्तौड़ दुर्ग में स्थित रणकपुर के चौमुखा मंदिर ( आदिनाथ मंदिर) में संस्कृत भाषा व नागरी लिपि में उत्कीर्ण। इसमें कुम्भा के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
विजय, स्तम्भ प्रशस्ति ( 1460 ई.)
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित विजय स्तम्भ पर उत्कीर्ण।
- इसका प्रशस्तिकार कवि अत्रि व उसका पुत्र महेश भट्ट था।
- इसमे बाण, हम्मीर मोकल का उल्लेख मिलता है।
- गणेश, शिव स्तुति मिलती है।
- इसमें कुम्भा द्वारा रचित ग्रन्थों, विरूदों (दानगुरू राजगुरू, शैलगुरू) का उल्लेख तथा मालवा व गुजरात की सम्मिलित सेना को हराने का उल्लेख मिलता है।
कुम्भलगड़ शिलालेख (1460 ई.)
- यह लेख राजसमंद जिले के कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित कुम्भस्याम मंदिर (मामादेव का मंदिर वर्तमान नाम) में संस्कृत भाषा एवं नागरी लिपि में पांच शिलाओं पर उत्कीर्ण है।
- इसमें भौगोलिक स्थिति का, जनजीवन का, एकलिंग मंदिर का वर्णन, चित्तौड़ का वर्णन (चित्रांग ताल, दुर्ग, वैष्णव तीर्थ के रूप में) किया गया है।
- इसमें मुख्यतया कुम्भा के विजयों का विस्तार से वर्णन मिलता है।
- इसका रचयिता कान्ह व्यास है। जबकि डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द औझा के अनुसार इसका रचयिता महेश भट्ट है ।
बीकानेर की प्रशस्ति (1594)
- बीकानेर दुर्ग में बीका से रायसिंह तक की उपलब्धियां, जूनागढ़ दुर्ग के निर्माण व कर्मचंद द्वारा निरीक्षण का वर्णन मिलता है।
- इसका रचयिता 'जइता' नामक जैन मुनि था।
- इसकी भाषा संस्कृत है।
जगन्नाथराय प्रशस्ति (1676 ) :
- यह जगदीश मंदिर, उदयपुर में उत्कीर्ण है।
- इसमें बाप्पा से सांगा तक की उपलब्धियों का वर्णन है।
- यह मंदिर जगतसिंह प्रथम द्वारा बनाया गया।
- यह पंचायतन शैली का लेख है। जिसे अर्जुन की निगरानी में तथा सूत्रकार भाणा व उसके पुत्र मुकन्द की अध्यक्षता में बनवाया गया।
राजप्रशस्ति (1676)
- यह प्रशस्ति राजसंमद झील के तट पर नौ चौकी स्थान के ताकों में 27 काली पाषाण शिलाओं पर पद्य संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है।
- इसका रचयिता तेलंग ब्राह्मण रणछोड़ भट्ट था।
- इस प्रशस्ति के उत्कीर्ण कर्ता गजधर मुकुन्दर, अर्जुन, सुखदेव, केशव, सुन्दरलालों, लखों आदि थे। मेवाड़ के शासकों की उपलब्धियों का वर्णन मिलता है।
- यह प्रशस्ति जगतसिंह प्रथम तथा राजसिंह के काल की उपलब्धियाँ जानने के लिए महत्वपूर्ण स्त्रोत है, यह विश्व की सबसे बड़ी पाषाण उत्कीर्ण प्रशस्ति है।