बागोर मध्य पुरापाषाणिक पुरास्थल | मध्य पाषाण Bagore Pura Sthal Ki Jaankari - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

बागोर मध्य पुरापाषाणिक पुरास्थल | मध्य पाषाण Bagore Pura Sthal Ki Jaankari

मध्य पाषाण- राजस्थान के संबंध में

मध्य पाषाण- राजस्थान के संबंध में |बागोर मध्य पुरापाषाणिक पुरास्थल | Bagore Pura Sthal Ki Jaankari


 

मध्य पाषाण किसे कहते हैं 

मध्य पाषाण का मानव इतिहास में एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक क्रम माना जाता हैं। पुराविदो का मानना है कि इस काल में पृथ्वी के धरातल पर नदियों, पहाड़ों व जंगलों का स्थिरीकरण हो गया था तथा अब पुराप्रमाण भी अधिक संख्या में मिलने लगते हैं। 


भारत में मध्य पाषाणकालीन स्थल किन स्थानो से प्राप्त हुये 

1. बाड़मेर में स्थित तिलवाडा 

2. भीलवाड़ा में स्थित बागोर

3. मेहसाणा में स्थित लंघनाज 

4. प्रतापगढ़ मे स्थित सरायनाहर

5. उत्तरप्रदेश में स्थित लेकडुआ

6. मध्य प्रदेश होशंगाबाद में स्थित आदमगढ़ 

7. वर्धमान (बंगाल) जिले ने स्थित वीरभानपुर

8. दक्षिण भारत के वेल्लारी जिले में स्थित संघ कल्लू 

 

  • मध्य पाषाणकालीन सर्वाधिक पुरास्थल गुजरात मारवड़ एवं मेवाड के क्षेत्रों से प्राप्त होते हैं ।
  • इस काल में एक ओर यहां देखने में आता हैं कि मध्यपाषाणकालीन मानवों ने अब अनेक ऐसी बस्तियों की और प्रस्थान किया था जो पुरापाषाणकाल की अपेक्षा नये थे इस कारण यह माना जा सकता है कि इस काल में जनसंख्या की वृद्धि हुई होगी ।


मध्यपाषाणकालीन मानव के निवास

मध्यपाषाणकालीन मानव ने प्रधान रूप से जिन स्थलों को अपने निवास के लिए चुना उनको निम्न भागों में विभक्त किया जा सकता हैं- 

1. रेत के युहे- 

  • मध्यपापाणकालीन मानव ने रेत के हों को अपना निवास स्थान बनाया था। रेगिस्तानी क्षेत्रों में रेत के युहों की बालू अपेक्षाकृत अधिक जमाव वाली होती है इसलिए इन स्थानों में तत्कालीन मानव ने अपना निवास स्थान बनायें जिनके समीप पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहा होगा । 
  • नागौर जिले में स्थित डीडवाना और सांभर झील जो अब नमक के प्रमुख स्रोत हैं दस हजार वर्ष पूर्व मीठे पानी की झीलें थी इससे यह सिद्ध होता हैं कि इन स्थानों में मध्यपाषाणकालीन मानव रहा होगा। 
  • सांभर और डीडवाना से लिये गये मिट्टी के नमूनों से तत्कालीन वनस्पति की सूचना प्राप्त होते हैं जिसके आधार पर यहां कहा जा सकता है कि मध्यपाषाणकालीन मानव झाड़ी और कांटेनुमा वनस्पति से परिचित था। 


2. शैलाश्रय 

  • मध्यभारत के रिमझिम सतपुड़ा और कैमुर पर्वतों में शिलाओं और शैलाश्रयों में मध्यपाषाणकालीन मानव के सर्वाधिक निवास स्थल थे, इन शैलाश्रयों से मध्यपाषाणकालीन मानवों के सर्वाधिक प्रमाण मिलते है। 


3. चट्टानी क्षेत्र 

  • मेवाड मे चट्टानों से संलग्न मैदानी क्षेत्रों में मध्यपाषाणकालीन स्थल मिलते हैं दक्षिण में भी ऐसे स्थल मिलते हैं इन चट्टानी मैदानों के क्षेत्रों से जो मध्य पाषाणकालीन स्थल मिले हैं वह छोटी अवधि के होते थे क्योंकि चट्टानी क्षेत्रों में पानी वर्ष भर मे तीन या चार माह से अधिक नही रहता था। । 


मध्यपाषाणकालीन संस्कृति के अवशेष

  • मध्यपाषाणकालीन संस्कृति के अवशेष ही एवं पश्चिमी राजस्थान में सर्वप्रथम अस्तित्व में आये तिलवाड़ा पुरास्थल बाड़मेर जिले के पूर्वी हिस्से में है, वी. एन. मिश्रा ने इस पुरास्थल पर उत्खन्न कर प्रस्तर निर्मित लघु अष्म उपकरणों को खोजा, इन उपकरणों के निर्माण में प्रेशर तकनीक का प्रयोग किया गया था । उपकरणों को बनाने में प्रयुक्त मुख्य प्रस्तर चर्ट चेल्सीडोनी था। राजस्थान में इस काल की तिथि 8000 B.C. निर्धारित की है ।

बागोर मध्य पुरापाषाणिक पुरास्थल

  • बागोर अक्षांश 25°23 एवं 74°23 पूर्वी देशान्तर पर पूर्वी राजस्थान के अभी तक ज्ञात मध्य पुरा पाषाणिक पुरास्थलों में सबसे महत्वपूर्ण है। जो बनास नदी की सहायक कोठारी नदी के बायें तट पर भीलवाड़ा से पश्चिम में स्थित हैं। 
  • बागोर के लगभग 7 मीटर ऊँचे वायु जनित निक्षेप से निर्मित रेतीले टीले को स्थानीय लोग महासती कहते है। यह टीला पूर्व से पश्चिम 200 मीटर लम्बा और उदर से दक्षिण में 150 मीटर चौड़ा हैं। 
  • बागोर नामक गाँव में एक किमी. पूर्व दिशा में स्थित इस पुरास्थल की खोज सन् 1967 में दकन कॉलेज पूर्ण के वीएन मिश्र एवं साउथ एशिया इंस्टीट्यूट हीडल बर्ग जर्मनी के एल. एस. लेश्निक ने की थी। 
  • सन् 1968-1970 के मध्य डेकन कॉलेज, पूना विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग तथा राजस्थान के पुरातत्व एक संग्रहालय विभाग के संयुक्त तत्वावधान में वी. एन. मिश्रा के निर्देशन में इस पुरास्थल का उत्खनन किया गया । 
  • पाँच स्तरों बाले 1.50 मीटर से 1.75 मीटर मोटे जमाव को प्रारम्भ में तीन सांस्कृतिक कालों में विभाजित किया गया था । 
  • बागोर में दो सांस्कृतिक कालों (1) मध्य पाषाणकाल और (2) लौह पाषाणकाल के पुरावशेष मिले हैं। दोनो के मध्य एक लम्बे समय का अन्तराल रहा होगा। प्रथम सांस्कृतिक काल को पुन: दो उपकालों में विभाजित किया गया हैं।  
  • प्रथम उपकाल बागोर के प्रथम उपकाल का जमाव 50 सेमी से 80 सेमी के बीच मिला है। इस उपकाल के स्तरों से बहुसंख्यक लघु पाषाण उपकरण तथा पशुओं की हड्डियां मिली हैं। लघुपाषाण उपकरणों के निर्माण के लिये क्वार्टजाईट एवं चर्ट का मुख्य रूप से उपयोग किया गया हैं। अधिकांश उपकरण ब्लेड पर बने हुए हैं । 
  • विषम बहु समलम्बचतुर्भुज, चन्द्रिक बाणाग्र तथा स्करेपर आदि उल्लेखनीय हैं । क्रोड तथा फलक पर बने हुए स्करेपर तथा ब्यूरिन अत्यल्प हैं । 
  • इस प्रकार बागोर के प्रथम उपकाल के मध्यपाषाणिक उपकरणों को मृदभाण्ड, पूर्व के ज्यामितिय चरण से सम्बन्धित किया जा सकता हैं। पत्थर के हथौड़े सील लोढ़े आदि यही से प्राप्त अन्य पाषाणिक पुरावशेष हैं। 
  • बागोर के प्रथम उपकाल से चीतल, सांभर, चिंकारा आदि हिरण, खरगोश, लोमड़ी, भेड़, बकरी, सूअर, गाय, बैल तथा भैंस आ पशुओं की हड्डियॉ मिली हैं। इनमें जंगली तथा पालतू दोनों ही प्रकार के पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई हैं। इस प्रकार प्रथम उपकाल के लोगों का आर्थिक जीवन जंगली पशुओं के शिकार तथा पशुपालन पर आधारित रहा प्रतीत होता हैं। लोग रहने के लिए झोंपड़ियां बनाते थे उनके फर्श का निर्माण पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ो से किया जाता था । 
  • झोंपड़ियां बांस बल्ली तथा घास-फूस से बनाई जाती थी । इस उपकाल से एक मानव कंकाल प्राप्त हुआ है। जिसे पश्चिम से पूर्व दिशा में सिर करके चित लैटाकर आवास क्षेत्र के अन्दर ही दफनाया गया था। 
  • यह कंकाल लगभग 17 से 19 वर्ष की महिला का हैं। द्वितीय उपकाल इस उपकाल का सांस्कृतिक जमाव 30 से 59 सेमी के बीच में मिला है यद्यपि लघु पाषाण उपकरण इस उपकाल गे भी चलते रहे किन्तु उनकी संख्या में उलरोलर कमी दृष्टिगोचर होती है । पशुओं की जो हड्डियाँ मिली उनमें से कुछ जंगली पशुओं की और कुछ पालतू पशुओं की, जिनमें भेड़, बकरी, गाय तथा बैल प्रमुख थे। लोगो का जीवन आखेट एवं पशु पालन पर आधारित था, इस उपकाल में उत्कीर्ण अलंकरण से युक्त हस्त निर्मित मृदभाण्ड तथा ताम्र उपकरण प्रचलित हो गये थे । 

द्वितीय उपकाल मे बागोर 

  • द्वितीय उपकाल मे बागोर के लोग सम्भवतः मेवाड तथा मालवा की ताम्र पाषाणिक संस्कृतियों के सम्पर्क में आए ताम्र उपकरणों में एक भाला तथा तीन बाणाग्र उल्लेखनीय हैं।  
  • इस काल के लोग भी घास-फूस की झोपड़ी बनाते थे। जिनके फर्श पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों से निर्मित होते थे पर इस काल में तीन मानव के कंकाल मिले हैं, जिन्हे पूर्व-पश्चिम दिशा में मुड़ी हुई अवस्था में लेटा कर आवास क्षेत्र के अन्दर ही दफनाया गया था। 
  • द्वितीय सांस्कृतिक काल में आवास क्षेत्र बागोर के मध्यवर्ती भाग तक ही सीमित था। इस काल का जमाव 35 से 75 सेमी. के बीच मिला है। इस काल से लघु पाषाण उपकरण तथा पशुओं की हड्डियाँ बहुत कम संख्या में मिलती हैं। इस काल के वर्तन पूर्णत: चाक निर्मित हैं। लौह उपकरण, कांच के मनके, ईंटों से बनी हुई इमारतें इस काल की अन्य प्रमुख विशेषताऐं हैं।
  • इस काल से एक मानव कंकाल मिला हैं । यह कंकाल 40-42 वर्ष की आयु की किसी महिला का हैं। कंकाल के गले में चिपका हुआ एक धातु का मुस्लिम काल का सिक्का हैं ।

बागोर काल निर्धारण 

  • बागोर के प्रथम काल के दोनो उपकालों की तिथि निर्धारण के लिए रेडियो कार्बन तिथियां उपलब्ध हैं । पांच में से 3 तिथियां प्रथम उपकाल तथा 2 तिथियां द्वितीय उपकाल से सम्बन्धित हैं । ये सभी तिथियां हड्डियों के नमूनों पर आधारित हैं । 
  • प्रथम उपकाल 5000 ई.पू. से 2800 ई.पू. के बीच से तथा 
  • द्वितीय उपकाल का समय 2800 ई. पू. से 700 ई.पू के बीच निर्धारित किया है।
  • मध्यपाषाणकालीन संस्कृति के प्रचार-प्रसार के बाद भारत में अन्य स्थानों  में नवपाषाणकाल के कोई प्रमाण नही मिले हैं। राजस्थान मे तत्कालीन मानव मध्यपाषाणकाल से ताम्रपाषाणकाल मे पर्दापण किया ।