चलती चक्की देख कर दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या
चलती चक्की देख कर , दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बिच में , साबुत बचा न कोय। ।
निहित शब्द – चक्की – अन्न पीसने का यंत्र , पाटन – पत्थर
, कोय
– कोई।
चलती चक्की देख कर दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या
कबीरदास स्पष्ट तौर पर समाज में व्याप्त
बुराइयों पर कटाक्ष करते हैं। वह कहते हैं कि अज्ञानता के कारण समाज में व्याप्त कुरीतियों आदि में फंसकर एक
सभ्य व्यक्ति भी पिस्ता जा रहा है। वह व्यक्ति उसी प्रकार पिस्ता जा रहा है जिस
प्रकार चक्की के दो पाटों के बीच अन्न।
कबीरदास कहना चाहते हैं यह दुनिया मायाजाल है इस मायाजाल में पड़कर सभी
प्रकार के मानुष पिस्ते जा रहे हैं।
चाहे छोटा हो चाहे बड़ा हो कोई भी इस मायाजाल से नहीं बच पा रहा है।