कबीरा खड़ा बाजार में दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या
कबीरा खड़ा बाजार में , मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती , ना काहू से बैर। ।
निहित शब्द –
खैर – सलामती ,
काहू – किसी से ,
बैर – शत्रुता।
कबीरा खड़ा बाजार में दोहे का हिन्दी अर्थ एवं व्याख्या
इस दोहे में कबीरदास कहते हैं कि कबीर
का किसी से ना प्रेम है न द्वेष है। कबीर को इन सब चीजों से क्या लेना वह तो ईश्वर
की आराधना में निकला है ईश्वर की आराधना इन सब से परे है। कबीर सबकी खैर सबकी
सलामती मांगता है। सभी सलामत रहे सभी सुखी रहें कबीर का किसी से दोस्ती नहीं है और
ना ही किसी से बैर है।