चौहानों के समय राजस्थान व उत्तर भारत की स्थिति। मुहम्मद गोरी व भारत पर उसके आक्रमण । Chouhan and Rajsthan History - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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बुधवार, 17 नवंबर 2021

चौहानों के समय राजस्थान व उत्तर भारत की स्थिति। मुहम्मद गोरी व भारत पर उसके आक्रमण । Chouhan and Rajsthan History

चौहानों के समय राजस्थान व उत्तर भारत की स्थिति 

  • तत्कालीन राजस्थान में उस समय जैसलमेर के भाटी चौहानों के सहयोगी नहीं रहे। मेवाड के गुहिलोत चौहानों के सहयोगी रहे। आमेर के कछवाहे पृथ्वीराज के झंडे के नीचे लड़े, जालोर, नाडोल व पाली के शासक गुजरात के राजा के सहयोगी होने के कारण चौहान विरोधी ही रहे। 

 

  • उत्तर भारत में दिल्ली के शासक पृथ्वीराज के सामन्त थे। कन्नौज का जयचंद गहड़वाल, बुंदेलखंढ का चंदेल परमादीदेव, गुजरात के चालुक्य पृथ्वीराज के विरोधी थे । जम्मु का हिन्दू राजा चन्द्रदेव व विजयदेव गोरी के सहयोगी रहे। बंगाल के सेन राजा लक्षण सेन को उत्तर पश्चिमी सीमा पर आने वाले शत्रु से कोई लेना देना नहीं था। ऐसी स्थिति में चौहानों को ही तुर्क आक्रमणकारी का सामना करना पड़ा, जो दे ग्यारहवी सदी से ही करते रहे थे। 

 

तुर्क शक्ति का परिचय मुहम्मद गोरी के सन्दर्भ में

 

  • मुहम्मद गोरी के पूर्वज गजनवी वंश के शासकों के अधीन रहे थे। गोरी का वंश शंसवनी वंश कहलाता है मुहम्मद गोरी के बड़े भाई गयासुद्दीन गोरी ने 1163 ई. में गोरी पर अधिकार किया व अपने छोटे भाई शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी को उसने गजनी भेजा, जिस पर उसने गिज तुर्कों को परास्त कर अधिकार कर लिया गयासुद्दीन ने 1173 ई. में गजनी का शासन मुहम्मद गोरी को सौंप दिया किन्तु वह अपने भाई को ही अपना संप्रभु मानता रहा, भले ही वह अपने मामलों में पूर्णतया स्वतंत्र था।

चौहानों के समय राजस्थान व उत्तर भारत की स्थिति, मुहम्मद गोरी व भारत पर उसके आक्रमण 

चौहानों के समय राजस्थान व उत्तर भारत की स्थिति। मुहम्मद गोरी व भारत पर उसके आक्रमण । Chouhan and Rajsthan History


 मुहम्मद गोरी के भारत अभियानों के कारण

 

1. साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाः 

स्वयं को श्रेष्ठ, शक्ति सम्पन्न व प्रसिद्ध बनाने हेतु मोहम्मद गोरी जो प्रारम्भ से ही महत्वाकांक्षी था, भारत में इस्लामी साम्राज्य स्थापित करने में जुट गया । 


2. गजनवी दंश व गोरी दंश में शत्रुताः- 

  • उस समय पंजाब में गजनही वंश का खुसरो मलिक का शासन था, वंशानुगत शत्रुता जो परम्परा से चली आ रही थी, के कारण मोहम्मद गोरी, खुसरो मालिक गजनवी से पंजाब छीनना चाहता था।

 

3. अफगानिस्तान में विस्तार पर विरोध: 

  • गजनी शासन रहते हुए मुहम्मद गोरी पश्चिमी अफगानिस्तान में ख्वारिज्म के शक्ति सम्पन्न शासकों के कारण अपना विस्तार करने की स्थिति में नहीं था। पश्चिमी अफगानिस्तान में विस्तार का भार गयासुद्दीन पर था। अतः मुहम्मद गोरी का विस्तार दक्षिणी पूर्व में ही सम्भव था।

 

4. धन प्राप्ति व इस्लाम का प्रसार:- 

मुहम्मद गोरी को ज्ञात था उसके पूर्व महमूद गजनवी भारत से अपार धन संपदा लूट कर लाया था, अतः वह भी भारत की धन संपदा को लालच भरी निगाह से देख रहा था, साथ ही स्वयं को कट्टर मुसलमान सिद्ध करने हेतु व भारत में इस्लाम के प्रचार प्रसार हेतु अपनी सत्ता स्थापित करना चाहता था। 


मुहम्मद गोरी व भारत पर उसके आक्रमण 

भारत पर इस्लाम की वास्तविक सत्ता स्थापित करने का प्रयास मोहम्मद गोरी ने ही आरम्भ किया । मिन्हाज-उस-सिराज के अनुसार 1173 ई. गजनी पर अधिकार करने के बाद उसने हिन्द व सिन्ध के विभिन्न भागों पर अधिकार करने हेतु प्रतिवर्ष अभियान चलाने का निश्चय किया । 


1. मुल्तान व उच्छ पर अधिकार

 

  • गोमल दर्रे से भारत में सेना सहित प्रविष्ठा हो कर मुहम्मद गोरी ने सर्वप्रथम मुल्तान के करमाथी मुस्लिम शासक पर आक्रमण कर 1175 ई. में मुल्तान पर अधिकार कर लिया, ततश्चात वह उच्छ की ओर बढ़ा जहाँ डॉ. आर. बी. सिंह डॉ. दशरथ शर्मा व डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार भट्टी शासक व उसकी रानी के परस्पर विरोध का लाभ उठाते हुए रानी को वचन दिया कि यदि वह अपने पति को सौप देगी तो वह उससे विवाह कर लेगा। रानी ने कहलाया कि यदि वह धन संपदा उसी को दे दे तो, अपनी पुत्री का विवाह उससे कर देगी गोरी ने स्वीकृति दे दी, कुछ दिनों बाद रानी ने राजा का वध करा दिया व उच्छ गोरी को सौंप दिया। प्रो. हबीबुल्ला उच्छ में भट्टी सत्ता को स्वीकार नहीं करते, उसके अनुसार यहां भी करमाथी शासक ही थे ।

 

2. गोरी की भारत में प्रथम पराजय

 

  • अब गोरी ने महमूद गजनवी का अनुसरण करते हुए भारत के पश्चिमी भाग में दूरी पर स्थित गुजरात पर आक्रमण करने का निश्चय किया ताकि इस समृद्ध प्रदेश से प्राप्त धन से वह उत्तर भारत पर विजय के अपने स्वपन को साकार कर सके। अफगानिस्तान से विशाल सेनाओं के साथ वह मुल्तान आया, जहाँ पूरी तैयारी कर वह राजस्थान की पश्चिमी सीमाओं में होते हुए रेगिस्तान के मार्ग से नेहखाला (गुजरात) की ओर किराडू के मार्ग से आगे बढ़ा जहाँ तुर्कों ने कार्तिक 1235 वि. (1178 ई) सोमेश्वर की मूर्ति को खण्डित किया। इसके बाद नाडोल में उसका सामान्य व असफल मुकाबला हुआ। इस सफलता से उत्साहित हो वह गुजरात की ओर बढ़ा। 

 

  • गुजरात के अवयस्क शासक मूलराज द्वितीय की संरक्षिका नावकी देवी ने चौहानों से मदद मांगी किन्तु डॉ. दशरथ शर्मा के अनुसार अवयस्क पृथ्वीराज ब उसकी संरक्षिक कर्पूरी देवी जो प्रधानमंत्री कैमास पर आश्रित थी चाहकर भी सहायता नहीं दे सकी। डॉ. गागुली के अनुसार नाडोल के चौहानों की पराजय का समाचार सुनकर पृथ्वीराज सेना भेजना चाहता था पर वह कैमास के कारण ऐसा नहीं कर सका। 

 

  • गोरी ने इसी अभियान के दौरान पृथ्वीराज के दरबार में अपना दूत भेजकर पृथ्वीराज से अधीनता स्वीकार करने की मांग की जिसे उसने ठुकरा दिया। तुर्क सेनाएं माउन्ट आबू के समीप गादरघाट तक पहुँच गईचालुक्या सेनाएं अपने सभी साधनों व सामन्तों के साथ राजमाता नावकी देवी जिसने मूलराज द्वितीय को पीठ पर बांध रखा था के नेतृत्व में भूखे शेरों की भांति तुर्कों पर टूट पडी व तुर्कों को भागने के लिए मजबूर कर दिया। 

  • मुस्लिम लेखक मूलराज के स्थान पर भीमदेव द्वितीय के नाम का उल्लेख करते हैं। डॉ.ए. के. मजूमदार के अनुसार मुइजुद्दीन मोहम्मद गोरी पर चालुक्यों की विजय इस युग का एक चमत्कार है ।


 मुहम्मद गोरी की पंजाब व सिंध विजय

 

  • चालुक्यों के हाथों भीषण पराजय में भले ही कुछ समय के लिए गोरी को निराशा से भर दिया किन्तु अब उसने अपनी भारत विजय योजना में परिवर्तन करते हुए पहले पंजाब जीतने का निश्चय किया। भारत विजय हेतु वह पंजाब के गजनवी शासक खुसरो मलिक ताजुद्दौली को समाप्त करने हेतु गजनी से रवाना होकर उसने पेशावर पर 1179 ई. में वीजय प्राप्त की। 
  • 1181 ई. में गोरी लाहोर की ओर बढ़ा। कहा जाता है कि जग के शासक चन्द्रदेव ने गोरी को पूर्ण सहायता का वचन दिया, क्योंकि खोखरों के प्रश्न पर खुसरो मलिक व जम्बू के चक्रदेव में शत्रुता थी गोरी लाहोर जीतने में असफल रहा, अतः उसने खुसरो मलिक से सजि कर ली व खुसरो ने चार वर्षीय पुत्र व एक हाथी जमानत के रूप में गोरी को सौंप दिया । 
  • 1182 ई. में गोरी ने सिन्ध पर देवल तक धावा मारा व लूटपाट कर वापस लौट गया ।
  • 1184 ई. में गोरी ने पुनः लाहौर लेने का असफल प्रयास किया। 
  • आखिर 1186 ई. में लाहोर पर अधिकार कर लिया। खुसरो मलिक को सपरिवार कैद कर अपने भाई गयासुद्दीन गोरी के पास बलार-वन के दुर्ग में भेज दिया, जहाँ उनकी हत्या कर दी गई इसी के साथ पंजाब से यामिनी या गजनवी वंश समाप्त हो गया.