राजस्थान पर मगध साम्राज्य की राजनीति और उसका प्रभाव
मगध साम्राज्य की राजनीति और उसका राजस्थान पर प्रभाव
- छठी शताब्दी ई. पू. में जो राजतंत्रीय एवं गणतांत्रिक जातियों के राज्य थे उनकी चर्चा पूर्व में की जा चुकी है। उनमें चार राजतन्त्र कोसल, मगध, वत्स और अवन्ति प्रमुख थे। प्रारंभ में कोसल और मगध में तथा वत्स और अवन्ति में संघर्ष था। बाद में मगध ने कोसल, वत्स, और अवन्ति को जीत लिया और एक विशाल साम्राज्य का निर्माण करने में सफल हुआ.
- शताब्दी ई. पू. मगध में हर्यक वंश का शासन था। उसने 543 ई.पू. अपने राजवंश की स्थापना की थी। बुद्ध का समकालीन मगध का राजा बिम्बसार (543-491 ई.पू.) था। उसने बिहार के पूर्वोत्तर अंग राज्य को जीतकर मगध में मिला लिया। उसे काशी का प्राप्त विवाह में कोसल राज्य से मिला था। उसने वज्जिसंघ का विघटन किया और कोसल राज्य को पराजित किया। उसकी राजधानी प्रारम्भ में गिरिव्रज थी लेकिन बाद में उसने राजगह को अपनी राजधानी बनाया । उसने वत्स, मद, गन्धार और कम्बोज से मैत्री पूर्ण सम्बन्ध बनाये।
- 491 ई.पू. बिम्बसार को बन्दीगह में डालकर अजातशत्रु शासक बना उसे काशी प्रान्त हेतु कोसल से संघर्ष करना पड़ा। उसने गणराज्यों के बज्जिसंघ को भी पराजित कर दिया। उसके बाद उदायी (459-443ई.पू) मगध का शासक बना उसने गंगा तथा सोन नदी के संगम पर पाटलिपुत्र नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाया सिंहली ख्यातों के अनुसार उदायी के बाद अनुरुद्ध मुण्ड, नागदासक (443-411 ई.पू.) ने राज्य किया। लेकिन मगध में षड्यन्त्रों से तंग आकर जनता ने काशी प्राप्त के शासक शिशुनाग (411393 ई.पू.) को बुलाकर उसे मगध के सिंहासन पर बैठाया। उसने अवन्ति को जीतकर मगध में मिला लिया। उसने पुनः राजगृह को राजधानी बनाया और वैशाली को अपनी दूसरी राजधानी बनाया ।
- शिशुनाग का अवन्ति पर अधिकार था इसलिये उसके पडौसी राज्य मत्स्य पर भी उसका प्रभाव अवश्य रहा होगा क्योंकि साम्राज्यवाद के युग में स्वतन्त्रता पूर्वक रहना कठिन था.
- शिशुनाग के बाद कालाशोक (393-365 ई.पू.) मगध का शासक बना उसने पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया कालाशोक के 10 पुत्र (365-343ई.पू.) हुए जिन्होंने संयुक्त शासन किया। उनमें नन्दिबर्धन सबसे योग्य था लेकिन विलासी भी था। उसके समय राजपरिवार में व्याभिचार और षड़यन्त्र बढ़ गये थे उसकी शूद्रा स्त्री से उत्पन्न महापद्मनन्द ने लगभग चौथी शती ई.पू. शैशुनाग वंश का अन्त करके मगध में नन्दवंश की स्थापना की ।
- नन्दवंश में नौ राजा हुए जिन्हें नव नन्द ( 343-321 ई.पू.) कहते हैं। महाबोधिवंश के अनुसार उनके नाम थे- उग्रसेन, पण्डुक, पण्डुगति भूतकाल, राष्ट्रपाल, गोविषाणक दशासिद्धक, कैवर्त और धननन्द इनमें उग्रसेन पिता था और शेष पुत्र उग्रसेन को ही पुराणों में महापद्मनन्द कहा गया है। पुराणों में महापद्मनन्द को अत्यन्त बलवान, लोभी और क्षत्रिय राजाओं का विनाश करने वाला कहा गया है।
- पुराणों में कहा गया है कि वह इक्ष्वाकुवंशियो, पात्रचालों, कौरवों, हैहयों, कालको, एकलिंगो, शूरसेनों, मैथिलों और अन्य राजाओं को जीतकर दूसरे परशुराम के समान एकराट और एकछत्र होकर शासन करेगा । हिमालय और विंध्य के बीच सम्पूर्ण दयी के ऊपर सर्वमान्य राजा होगा। इस विवरण से स्पष्ट है कि उसकी विजयों से मगध साम्राज्य का बहुत विस्तार हो गया था.
- हमारा विचार है कि महापद्मनन्द एक विशाल साम्राज्य का स्वामी था और राजस्थान (मत्स्य राज्य) के समीप शूरसेन पर उसने विजय प्राप्त की थी। अतः राजस्थान क्षेत्र को उसके प्रभाव क्षेत्र में अवश्य रखा जा सकता है। लेकिन इस सम्बन्ध में डी. सी. शुक्ल का मत विचारणीय है। उनकी मान्यता है कि महापद्मनन्द द्वारा पराजित राज्यों की सूची में मत्स्य राज्य का नाम नहीं मिलता है । अतः यह माना जा सकता है कि राजस्थान क्षेत्र उस समय स्वतन्त्रता का उपभोग करता रहा ।
- महापद्मनन्द के पुत्रों में धननन्द ही प्रसिद्ध हुआ। यूनानी लेखकों ने उसे अग्रामीज कहा है । उसको अपने पिता से विशाल धनराशि और साम्राज्य तथा विशाल सेना प्राप्त हुई। यूनानी लेखक कर्टियस के शब्दों में गंगा घाटी और प्राची के राजा अग्रामीज ने अपने राज्य में (पश्चिम से) प्रदेश करने बाले मार्गो रक्षा करने के लिये दो लाख पैदल, बीस हजार घुड़सवार दो हजार रथ और तीन हजार हाथी रखे थे लेकिन नन्द सम्राट् जनता के प्रिय न थे उन्होंने ब्राह्मण परम्परा से अपना अभिषेक नहीं करवाया था। उनकी उग्र नीति और लोभी आर्थिक नीति के कारण प्रजा उनसे घृणा करती थी । शूद्र स्त्री की सन्तान होने से समाज में उन्हे विशेष आदर प्राप्त नहीं था इन परिस्थितियों में चन्द्रगुप्त मौर्य और चाणक्य ने मिलकर नन्द साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया और उन्हें पराजित करके मगध में मौर्य वंश की स्थापना की।