जनपद युग में राजस्थान,मत्स्य जनपद
मत्स्य जनपद के बारे में जानकारी
- बौद्ध ग्रन्थ अंगुतरनिकाय में 16 महाजनपदों की सूची मिलती है उसमें राजस्थान के केवल एक राज्य का उल्लेख आया है। मत्स्य जनपद का उल्लेख प्रायः सूरसेनों के साथ हुआ है। उस लोकप्रिय राज्य का नाम मत्स्य था । मत्स्य जनपद कुरु जनपद के दक्षिण में और सूरसेन के पश्चिम में था । दक्षिण में इसका विस्तार समहतः चम्बल नदी तक था और पश्चिम में सरस्वती नदी तक ।
- मत्स्य जनपद में आधुनिक अलवर प्रदेश, धौलपुर, करौली, जयपुर, भरतपुर के कुछ भाग सम्मिलित थे। इसकी राजधानी विराट नगर (आधुनिक बैराट) थी। महाभारत के अनुसार पाँच पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का समय यहीं पर व्यतीत किया था। इसके समीप उपलब्ध नाम का कस्बा था ।
- पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने अपने ग्रन्थ राजपूताने का इतिहास खण्ड प्रथम में महाभारतकालीन मत्स्य राज्य की चर्चा करने के बाद लिखा है कि चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा साम्राज्य स्थापना तक राजस्थान का इतिहास बिल्कुल अन्धकार में है। डॉ. दशरथ शर्मा ने इस विषय पर केवल कुछ पृष्ठों में प्रकाश डाला है ।
- मत्स्य एक प्राचीन राज्य था जिसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। शतपथ ब्राह्मण में मत्स्य राजा ध्वसन द्वैतवन का नाम आया है, उसने सरस्वती के निकट अश्वमेघ यज्ञ किया था। गोपथ ब्राह्मण में शाल्व, कौशीतकि उपनिषद् में कुरु-पंचाल तथा महाभारत में जालन्धर दोआब के त्रिगर्त और मध्य भारत के चेदिवंश के साथ मत्स्य का उल्लेख मिलता है । यद्यपि विदेह के समकालीन मत्स्य नरेश का नाम ज्ञात नहीं है लेकिन इतना अवश्य है कि यह राज्य जनपद युग में अत्यन्त महत्वपूर्ण था ।
महाभारत के अनुसार मत्स्य राज्य
- महाभारत के अनुसार मत्स्य राज्य गौधन से सम्पन्न था इसलिये इस पर अधिकार करने हेतु त्रिगर्त और कुरु राज्य आक्रमण किया करते थे। मनुस्मृति में तो कुरु, मत्स्य, पंचाल और शूरसेन भूमि को ब्रह्मर्षि देश कहा गया है ।
- मत्स्य प्रदेश के लोग ब्राह्मणवाद के अन्य भक्त माने जाते थे । मनुस्मृति में तो यहाँ तक कहा गया है कि मस्त, कुरुक्षेत्र पंचाल तथा शूरसेन में निवास करने वाले लोग युद्ध क्षेत्र में अपना शौर्य प्रदर्शन करने में निपुण थे। इस प्रकार अपनी वीरता, पवित्र आचरण और परम्पराओं का पालन करने के विशिष्ट गुण के कारण मत्स्य राज्य के निवासियों का समाज में आदरपूर्ण स्थान था ।
- महाभारत के अनुसार मत्स्य नरेश विराट पाण्डवों का मित्र एवं रिश्तेदार था । महाभारत में राजा विराट के वीर पुत्र उत्तर का उल्लेख भी मिलता है ।
- महाभारत के युद्ध में विराट युधिष्ठिर की तरफ से लड़कर वीरगति को प्राप्त हुआ था । द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वस्थामा ने विराट की सेना का संहार किया था ।
- विराट के भाई शतानीक, मदिराज, सूर्यदत्त, श्रुतानीक श्रुतध्वज, बलानीक जयानीक जयाश्व, रथवाहन चन्द्रोदय, समस्थ तथा रानियाँ सुरथा, सुदेष्णा और तीन पुत्र उत्तर, शंख और श्वेत थे । शंख द्रोणाचार्य और श्वेत भीष्मपितामह के हाथों मारे गये थे। उत्तर ने भी शल्य के हाथों वीर गीत प्राप्त की थी ।
चीनी यात्री युवान च्वांग मत्स्य जनपद विवरण
- चीनी यात्री युवान च्वांग ने अपने यात्रा विवरण में वैराट का उल्लेख किया है। उसने सातवीं शताब्दी के मध्य में यहाँ यात्रा की थी। उसने लिखा है कि बैराट 14 या 15 ली अर्थात 25 मील के घेरे में फैला हुआ था । यहाँ के लोग वीर और पुष्ट होते थे, यहाँ के राजा फी-शे (वैश्य) जाति का था और युद्ध में अपनी बहादुरी के लिये प्रसिद्ध था । कनिंघम फी-शे का तात्पर्य बैस राजपूतों से लेते हैं.
मत्स्य जनपद अन्य तथ्य
- मत्स्यों के एक अन्य नगर उपलब्ध का नाम महाभारत में मिलता है । जहाँ पाण्डवों ने वैराट में अपना वनवास समाप्त किया था। उपलब्ध की भौगोलिक स्थिति के सम्बन्ध में निश्चित रूप से कहा कठिन है ।
- पाली साहित्य में मत्स्यों को शूरसेन तथा कुरु से सम्बन्धित बतलाया गया है । लेकिन मत्स्य राज्य का उन दिनों राजनीतिक वर्चस्व समाप्त हो गया था क्योंकि उसके पड़ौसी राज्य अवन्ति, शूरसेन तथा गन्धार अत्यन्त शक्तिशाली थे ।
- जनपद काल में राजस्थान अवन्ति तथा गन्धार को जोड़ने वाली कड़ी मात्र था । एक परम्परा के अनुसार गन्धार नरेश पुक्कुसाती ने अवन्ति के प्रद्योत पर आक्रमण कर उसे पराजित किया था। ऐसी परिस्थिति में प्रद्योत द्वारा अपना राज्य विस्तार करते हुए राजस्थान के बड़े भू-भाग को भी अधिकृत करने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उन दिनों जनपदों में अपने पडौसी राज्यों पर आक्रमण करके राज्य का विस्तार करने की होड़ मची हुई थी तत्पश्चात् उत्तर बुद्ध युग में भारत को विदेशी आक्रमणों का सामना करना पड़ा ।
- छठी शती ई. पू. उत्तर पश्चिमी भारत पर ईरानी शासक साइरस (558-530 ई.पू.) के नेतृत्व में आक्रमण हुआ था । भारतीय सीमान्त पर ईरानियों का प्रभुत्व डेरियस तृतीय के काल में 330 ई.पू. तक रहा । तत्पश्चात् भारत पर सिकन्दर का (330-326 ई.पू.) आक्रमण हो गया।
- राजस्थान पर ईरानी एवं यूनानी आक्रमण का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। पूर्वी भारत में यह समय मगध साम्राज्य उत्कर्ष का था। मगध के शासकों का ध्यान कोसल और वत्स राज्य को अधिकृत करने में लगा रहा । इसलिये मध्यदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित राजस्थान मगध साम्राज्य के दबाव से बचा रहा ।
- हेमचन्द रायचौधरी की मान्यता है कि राजस्थान का नाम कौटिल्य द्वारा गिनाये गये संघ राज्यों या गैर राजतन्त्रात्मक राज्यों की सूची में नही मिलता । इसलिये यह सम्भावना है कि मत्स्य राज्य स्वाधीनता खोने तक राजतन्त्रात्मक ही बना रहा। उन्होंने यह सम्भावना व्यक्त की है कि किसी समय चेदि राज्य ने मत्स्य राज्य पर आक्रमण किया था। महाभारत में भी चेदि और मत्स्य के राजा सहज का उल्लेख मिलता है। डॉ. डी.सी. शुक्ल ने रायचौधरी की इस मान्यता को अस्वीकार किया है कि राजस्थान पर चेदि नरेश ने कभी अधिकार किया था ।