राजस्थान का इतिहास और मौर्य सम्राट | Rajsthan History and Maurya Empire - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

राजस्थान का इतिहास और मौर्य सम्राट | Rajsthan History and Maurya Empire

राजस्थान का इतिहास और  मौर्य सम्राट

 Rajsthan History and Maurya Empire

राजस्थान का इतिहास और  मौर्य सम्राट | Rajsthan History and Maurya Empire

 राजस्थान का इतिहास और  मौर्य सम्राट 

  • नन्द वंश के पतन के पश्चात् मगध में मौर्य वंश का राज्य 321 ई.पू. स्थापित हुआ। चन्द्रगुप्त मौर्य ने पाटलिपुत्र के सिंहासन पर बैठने के पश्चात सम्पूर्ण आर्यावर्त पर विजय प्राप्त की जिसमें सुदूर पश्चिम तथा पूर्व के प्राप्त सम्मिलित थे। पश्चिम अप्रान्त में सुराष्ट्र प्रान्त चन्द्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में सम्मिलित होने का प्रमाण रुद्रदामा के गिरनार अभिलेख में मिलता है। 


  • विन्ध्य के कुछ प्रदेश भी चन्द्रगुप्त के साम्राज्य में सम्मिलित थे। सिकन्दर के स्वदेश लौट जाने के बाद पंजाब पर भी चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार हो गया था। यूनानी लेखक प्लुटार्क और जस्टिन ने उल्लेख किया है कि चन्द्रगुप्त ने 6 लाख सैनिक लेकर सारे भारत पर अपना अधिकार कर लिया। महावंस में तो चन्द्रगुप्त मौर्य को सम्पूर्ण जम्बू-द्वीप का स्वामी कहा गया है ।

 

  • चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यकाल में सिकन्दर का सेनापति सैल्यूकस निकेटर हुआ। उसने 305) ई. पू. भारत पर आक्रमण किया। किन्तु उत्तरापथ में मौर्य सेनाओं की सशक्त स्थिति देखकर सैल्यूकस को छोटे-मोटे युद्ध के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य से सन्धि करनी पड़ी। इस सन्धि के अनुसार सैल्यूकस द्वारा चन्द्रगुप्त मौर्य को हेरातकन्धारकाबुल और बलूचिस्तान देने पड़े। उसने अपनी पुत्री हेलन का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दियाउपहार स्वरूप चन्द्रगुप्त ने उसे 500 हाथी प्रदान लिये। इसके बाद दूत विनिमय भी हुआ । मेगस्थनीज सैल्यूकस के दूत के रूप में पाटलिपुत्र में रहने लगा। इससे चन्द्रगुप्त मौर्य की पश्चिमोत्तर सीमा हिन्दुकुश तक पहुँच गई ।

 

  • चन्द्रगुप्त मौर्य के समय साम्राज्य सीमा पश्चिमोत्तर में हिन्दुकुश से दक्षिण पूर्व में बंगाल की खाड़ी और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक थीपरन्तु इसमें कश्मीरकलिंग और दक्षिण के कुछ भाग सम्मिलित न थे । साम्राज्य के कुछ भाग ऐसे थे जिन्हे आन्तरिक स्वतन्त्रता प्राप्त थी । इनमें कुछ जीते हुए गणतन्त्र पश्चिमोत्तर में यवनकम्बोजदक्षिण पश्चिम सुराष्ट्र तथा महाराष्ट्र के आसपास की जातियों को आन्तरिक स्वतन्त्रता प्राप्त थी ।

 

चन्द्रगुप्त मौर्य का राजस्थान पर आधिपत्य

चन्द्रगुप्त मौर्य का राजस्थान पर आधिपत्य था जिसकी पुष्टि निम्न प्रमाणों के आधार पर की जा सकती है

 

1. प्लुटार्क के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य ने छः लाख सैनिकों की सेना लेकर सम्पूर्ण भारत पर विजय प्राप्त की थी ।

 

2. वैराट से अशोक का अभिलेख प्राप्त हुआ है। हम जानते हैं कि अशोक ने केवल कलिंग पर ही विजय प्राप्त की थीइसलिये मत्स्य प्रदेश (वैराट) पर विजय प्राप्त करने का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य को दिया जा सकता है ।

 

3. महावंस में चन्द्रगुप्त मौर्य को सम्पूर्ण जम्बू द्वीप का स्वामी कहा गया है जिसमें राजस्थान का प्रदेश भी सम्मिलित था ।

 

4. 7 वी शताब्दी के प्रारम्भ में किसी मौर्य शासक का दक्षिण-पश्चिम राजस्थान तथा पूर्वी मालवा पर अधिकार था। चित्रांग नामक मौर्य राजा ने चित्तौड़ दुर्ग का निर्माण करवाया था।


  • डा. दशरथ शर्मा ने भी चित्तौड़ पर मौर्यों के शासन की पुष्टि करते हुए लिखा है कि चौहान नरेश सम्भरीश ने जब मेवाड पर आक्रमण किया तब चित्तौड़ पर मौर्य शासक शासन कर रहा था यद्यपि चित्तौड़ पर चौहान आक्रमण होना विवाद का विषय है। सम्भवतः चित्तौड़ पर शासन करने वाला चित्रांग साम्राज्यिक मौर्या का ही कोई वंशज था

 

  • डी. सी. शुक्ल का मत है कि मौर्यकाल में राजस्थान के आसपास के क्षेत्र उत्तर प्रदेशसिन्धगुजरात और मालवा पर मगध साम्राज्य का अधिकार था। ऐसी परिस्थिति में यह सम्भव नहीं था कि यह प्रदेश मौर्य साम्राज्य से बाहर रहकर अपनी स्वतन्त्रता का उपभोग करता रहे ।


 राजस्थान पर अधिकार करने वाला प्रथम मौर्य शासक कौनसा था?

  • अब प्रश्न उठता है कि राजस्थान पर अधिकार करने वाला प्रथम मौर्य शासक कौनसा थाहमें जो प्रमाण उपलब्ध होते हैं उनसे संकेतित है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने ही पहली बार राजस्थान पर अधिकार किया था । 
  • इसका प्रमाण यह है कि चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपनी साम्राज्य की सीमा का विस् सौराष्ट्र तथा काठियाबाड़ तक किया था जिसकी पुष्टि रुद्रदामा के जूनागढ़ अभिलेख से होती है जिसमें चन्द्रगुप्त के राष्ट्रीय वैश्य पुष्यगुप्त द्वारा सुदर्शन झील के निर्माण का विवरण मिलता है। 
  • हेमचन्द्र रायचौधरी का मत है कि अवन्ति पर मौर्यो का पूरा प्रभाव था इसलिये इस बात की सम्भावना है कि चन्द्रगुप्त मौर्य जिसका साम्राज्य अवन्ति तथा सुराष्ट्र में फैला हुआ था उसने राजस्थान पर भी अवश्य अधिकार किया होगा ।

 चन्द्रगुप्त मौर्य के निधन के बाद 

  • चन्द्रगुप्त मौर्य के निधन (297 या 300 ई.पू.) के पश्चात् उसका उत्तराधिकारी बिन्दुसार बना यूनानी लेखकों ने उसे अमिट्रोचेटि या अमित्रघाती (शत्रुओं का संहार करने वाला) कहकर पुकारा है । 
  • उसने चन्द्रगुप्त मौर्य से प्राप्त साम्राज्य को सुरक्षित बनाये रखा। सीरिया के शासक एण्टिओकस सोटर ने अपने डिमैक्स को और मिश्र के सम्राट टालमी फिलाडेल्फस ने डायोनिसिअस को उसके दरबार में राजदूत बनाकर भेजा। 
  • बिन्दुसार ने 25 वर्ष तक राज्य किया था । तारानाथ के अनुसार बिन्दुसार और चाणक्य ने लगभग 16 नगरों को नष्ट किया और पूर्वी तथा पश्चिमी समुद्रों के बीच के सारे प्रदेशों को अपने आधिपत्य में ले लिया । सम्भवतः दक्षिण भारत पर विजय उसी ने की थी प्रो. श्रीराम गोयल इस मत से सहमत नहीं है।  
  • बिन्दुसार के समय तक्षशिला में विद्रोह हुआ था जिसे अशोक ने दबाया। अशोक ने तक्षशिला के विद्रोह को दबाकर खसों के प्रदेश पर भी अधिकार कर लिया था। खसों का कश्मीर में राज्य था । लेकिन बिन्दुसार के राज्यकाल में कश्मीर पर विजय की गई। इस मत को प्रायः स्वीकार नहीं किया जाता ।

 

जहाँ तक राजस्थान का प्रश्न है बह बिन्दुसार के राज्यकाल में भी मौर्य साम्राज्य का अंग बना रहा । 

अशोक (273 ई.पू.) और राजस्थान 

  • बिन्दुसार की मृत्यु के पश्चात् अशोक (273 ई.पू.) चार वर्ष बाद मगध का सम्राट बना । उसने अपने पितामह और पिता से प्राप्त साम्राज्य को अखंड  बनाये रखा । अभिलेखों से जात होता है कि अशोक ने अपने राज्यकाल में कलिंग को जीतकर उसे मौर्य साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था । 
  • राजस्थान चन्द्रगुप्त मौर्य के समय से ही मगध साम्राज्य का अंग बनकर देश की मुख्य धारा में समिलित हो गया था। बिन्दुसार के समय भी यही स्थिति बनी रही। अशोक के समय राजस्थान बौद्ध धर्म की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र बन गया जिसकी पुष्टि जयपुर के निकट बैराट नामक स्थल से प्राप्त अशोक के भाब्रू अभिलेख से होती है जो अब कलकत्ता संग्रहालय में सुरक्षित है ।


सम्राट  अशोक और बौद्ध साहित्य

  • अशोक ने एक राजा के रूप में बौद्ध साहित्य के प्रचार में रुचि ली थी। इस विषय में उसके भाब्रु पाषाण शिला फलक लेख का साक्ष्य इस प्रकार है:- " मगध के राजा प्रियदर्शी ने संघ को अभिवादन करके कहा- (मैं आपके) स्वास्थ्य और सुखविहार की कामना करता हूँ) आप लोगों को विदित है (की) बुद्धधम्म और संघ में मेरी कितनी श्रद्धा और अनुरक्ति है। भदन्तो । जो कुछ भी भगवान बुद्ध द्वारा  भाषित है वह सब सुभाशित है। किन्तु भदन्तो जो कुछ मुझे दिखाई देता है (अर्थात् प्रतीत होता है) कि धर्म चिरस्थायी होगा योग्य हूँ मैं उसे कहने को (अर्थात् उसे कहना, उसकी घोषणा करना मेरा कर्त्तव्य है। 
  • भदन्तो! ये धर्म पर्याय है- विनय समुकस, अलयवसानि अनागत भयानि मुनिगाथा मोनेयसुत उपतिसपसिन तथा लाधुलोवाद में मुशावाद का विवेचन करते हुए भगवान् बुद्ध द्वारा जो कुछ कहा गया है । भदन्तो। मैं चाहता हूँ क्या? कि इन धर्म पर्यायों को बहुसंख्यक भिक्षुपाद व भिक्षुणियाँ प्रतिक्षण सुने और उन पर मनन करें। इसी प्रकार उपासक और उपासिकाएँ भी। भदन्तो! इसी प्रयोजन के लिये इसे लिखवाता हूँ कि लोग मेरे अभिप्राय को जान लें।" इस विवरण से स्पष्ट है कि बौद्ध धर्मावलम्बी अशोक ने लोगों से प्रार्थना की कि वे विनय समुत्कर्ष आर्यवंशाः अनागत भयानि मुनिगाथा, मोनेय सूत्रम उप्पलिव्य के प्रश्न तथा राहु लवाद आदि ग्रन्थो का अध्ययन करें । 


बैराट स्थित बीजक की पहाड़ी से प्राप्त बौद्ध अबशेष

 

  • बैराट से 1837 ई. में कैप्टन बर्ट को भाब्रु अभिलेख मिला था। इसके पश्चात् कार्लाइल ( 1871 -72) कनिंघम (1864-65) और डी. आर. भण्डारकर ने इस क्षेत्र का अध्ययन किया था। 
  • अशोक ने बैराट को अति महत्त्वपूर्ण स्थान मानते हुए यहाँ पर शिलालेख उत्कीर्ण करवाया तथा बौद्ध स्तूप, गुहागृह, सौर वक गृह का निर्माण करवाया।
  • अशोक ने बौद्ध स्तूप में बुद्ध के अस्थि अवशेष भी स्थापित करवाये । वर्तमान में बीजक की पहाड़ी पर केवल मौर्यकालीन अवशेष ही बचे हैं जो अपने स्वर्णिम अतीत की कहानी कहते हुए प्रतीत होते हैं। 
  • महावीर प्रसाद शर्मा ने तोरावटी का इतिहास में लिखा है कि बैराट चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म स्थान था लेकिन बौद्ध ग्रन्थों से इस मत की पुष्टि नहीं होती है। बीजक की पहाड़ी पर जो बौद्ध मन्दिर या स्तूप के अवशेष मिलते हैं वे मौर्यकालीन है। 
  • पहाड़ी पर प्लेट फार्म की लम्बाई चौड़ाई 60-70 मीटर है। इस मैदान के बीच में गोलाकार परिक्रमा युक्त ईटों का मन्दिर दृष्टिगोचर होता है । मन्दिर के गोलाकार भीतरी द्वार पर इस समय 27 लकड़ी के खम्भे लगने के स्थान स्पष्ट दिखलाई देते हैं। यहाँ से प्राप्त ईटों पर बुद्ध उपदेशों के अक्षर दृष्टिगोचर होते हैं। 
  • गोलाकार मन्दिर या बौद्ध स्तूप आयताकार चारदीवारी से घिरा हुआ है। यह दीवार 12 इंच मोटी ईटों से बनी है । इसके अन्दर का क्षेत्र 70 फीट उत्तर से दक्षिण तक लम्बा एवं 44 फीट 6 इंच पूर्व से पश्चिम को चौडा है । 
  • इन दीवारों में जिन ईटों का प्रयोग किया गया है उनकी माप 20" x 10.5" x 3" है इस प्लेटफार्म पर भिक्षु-भिक्षुणीयों के श्रवण-मनन करने हेतु श्रावक गृह के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। बार-बार उत्खनन करने से इसका मूल स्वरूप विलुप्त हो गया है।
  • इसके अलावा बहुत बड़ा समतल मैदान बना हुआ है। इस मैदान के सामने पश्चिम की तरफ ऊँचाई पर एक छोटा प्लेट फार्म या चबूतरा बना है। जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ कोई पूजनीय वस्तु रखी गई थी। जिसको लक्ष्य कर साधक उपासना करते थे।
  • इस बौद्ध स्तूप या मन्दिर को देखने से ऐसा लगता है कि इसकी कई बार मरम्मत की गई थी, परन्तु इसके मूल ढाँचे को नहीं बदला गया। यह ढाँचा चूने के बजाय गारे तथा मिट्टी से बनाया गया है तथा उस पर चूने का प्लास्टर किया हुआ है। डॉ. दयाराम साहनी ने इस स्थल का सर्वेक्षण कार्य किया था । 
  • पहाड़ी के नीचे भिक्षु-भिक्षुणियों के निवासगृह के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं जिनकी संख्या 25 हैं। पूर्व की तरफ 12 कोठरियाँ स्पष्ट दिखलाई देती हँ इनमें से 6 बड़े और 6 छोटे आकार की हैं । ये तीन समानान्तर कतारों में बनी हुई थी तथा परस्पर एक बरामदे से जुडी हुई थी । 
  • चीनी यात्री युवान-च्वांग ने यहाँ पर बौद्ध विहार होने की सम्भावना प्रकट की थी। पहाड़ी पर दो गुफाएँ भी देखी जा सकती हैं। पुराविद् आर. सी. अग्रवाल का मत है कि ढूँढने पर बीजक पहाड़ी क्षेत्र में अशोक के कुल 8 अभिलेख मिलने की सम्भावना है। दो अभिलेख तो प्राप्त हो चुके हैं। 
  • विराटनगर में भीमसेन की डूंगरी से भी अशोक का अभिलेख मिला है, इसे कार्लाइल ने 1871-72 ई. में खोज निकाला था । कनिंघम ने इसे पढ़कर विचार प्रकट किया कि यह अशोक का पूरा लेख है जो पाली भाषा में लिखा हुआ था । 
  • इस लेख में कहा गया है कि देवताओं के प्रिय इस प्रकार कहते हैं ढाई वर्ष से अधिक हुए जब मैं उपासक हुआ पर मैंने उद्योग नहीं किया परन्तु एक वर्ष से अधिक हुए जब मैं संघ में आया हूँ तब से मैंने अच्छी तरह उद्योग किया है.....।  
  • बीजक की पहाड़ी से अशोक स्तम्भ के 100 पालिश युक्त चुनार पत्थर के टुकड़े मिले हैं  । दयाराम साहनी का मत है कि यहाँ पर दो अशोक स्तम्भ थे। 
  • बीजक की पहाड़ी से कुछ पंचमाकं मुद्राएँ भी मिली हैं । यहाँ से मिट्टी के बर्तन, मिट्टी की मूर्तियाँ, तश्तरियाँ, थालियाँ आदि प्राप्त हुई हैं। जिससे अब यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि बैराट मौर्यकालीन धर्म एवं संस्कृति का महत्वपूर्ण केन्द्र था । 
  • अशोक के निधन (236 ई.पू) के बाद मौर्य साम्राज्य का विघटन प्रारम्भ हो गया