अशोक के पश्चात् मगध साम्राज्य और राजस्थान |शुंग काल में राजस्थान पर यवन आक्रमण | Magadh and Rajsthan History - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

अशोक के पश्चात् मगध साम्राज्य और राजस्थान |शुंग काल में राजस्थान पर यवन आक्रमण | Magadh and Rajsthan History

 

अशोक के पश्चात् मगध साम्राज्य और राजस्थान

अशोक के पश्चात् मगध साम्राज्य और राजस्थान |शुंग काल में राजस्थान पर यवन आक्रमण | Magadh and Rajsthan History


 

अशोक के पश्चात् मगध साम्राज्य 

  • स्मिथ के अनुसार अशोक की मृत्यु 232 ई.पू. के पश्चात् उसका उत्तराधिकारी कुणाल बना और उसका दूसरा पुत्र जालौक कश्मीर राज्य का अधिपति बना । 
  • कुणाल का पुराणों में सुयश नाम भी मिलता है। उसने आठ वर्ष राज्य किया। उसके पश्चात् दशरथ मगध का शासक बना उसके अभिलेख नागार्जुनी की गुहाओं से मिले हैं जो उसने आजीवकों को दान में दिये थे। 
  • बौद्ध ग्रन्थ परिशिष्ट प में कुणाल के पुत्र का नाम समप्रति मिलता है। 
  • पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का मत है कि मौर्य साम्राज्य के कुणाल के दो पुत्रों दशरथ और सम्प्रति में बँट गया था। सम्प्रति को राज्य का पश्चिमी और दशरथ को पूर्वी भाग मिला । सम्प्रति की राजधानी कहीं पाटलिपुत्र और कहीं उज्जैन बतलाई गयी है। राजस्थान, मालवा गुजरात तथा काठियावाड़ के कई मन्दिर जिनको बनवाने वाले का नाम ज्ञात नहीं है। 
  • जैन लोग उसे राजा सम्पति का बनवाया हुआ मान लेते हैं। रामवल्लभ सोमानी ने लिखा है कि मेवाड की स्थानीय परम्पराओं में मौर्य सम्राट सम्प्रति का सम्बन्ध महत्वपूर्ण स्थलों से जोड़ा जाता है। य
  • द्यपि जिन जैन मन्दिरों का सम्बन्ध सम्प्रति से जोड़ा जाता रहा है उन्हें उसके द्वारा निर्मित नहीं माना जा सकता है। लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि उन क्षेत्रों पर सम्प्रति का राज्य अदृश्य रहा होगा । 
  • पुराणों के अनुसार दशरथ के बाद पाटलिपुत्र के राज सिंहासन पर शालिशुक, देव वर्मा, शतधनुष और बृहद्रथ ने शासन किया। 
  • बृहद्रथ विलासी प्रवृत्ति का व्यक्ति था इसलिये उसके द्वारा सेना का निरीक्षण करते समय सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने उसकी हत्या कर दी। पुराणों से संकेतित है कि यह घटना 185 ई.पू में घटित हुई ।

 

  • बृहद्रथ की हत्या के बाद भी राजस्थान में मौर्यवंशीय शासक विभिन्न स्थानों पर शासन करते रहे । मेवाड के इतिहास से ज्ञातव्य है कि मौर्य राजा चित्रांग (चित्रांगद) ने चित्तौड का दुर्ग बनवाया था। 
  • चित्तौड़ का एक तालाब भी मौर्य का बनवाया हुआ माना जाता है। इसी प्रकार कोटा के कनसुआ के शिलालेख (738 ई.) में मौर्य राजा धवल का नाम मिलता है

 

  • शुंग वंश में पुष्यमित्र शुंग प्रथम शासक था। जो बृहद्रथ के समय उज्जयिनी का गवर्नर रह चुका था। उसने 60 वर्ष शासन किया जबकि जैन ग्रन्थों में उसका राज्यकाल 36 वर्ष बतलाया गया है। शायद उसके 60 वर्ष के राज्यकाल में गवर्नर रहने का कार्यकाल भी जोड़ दिया गया है। इस प्रकार यदि पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य गवर्नर के रूप में पश्चिमी मालदा में शासन किया तब उसके पड़ौस में स्थित राजस्थान पर उसका शासकीय नियन्त्रण अवश्य रहा होगा ।

 

शुंग काल में राजस्थान पर यवन आक्रमण 187-75 ई.पू.

 

  • यह घटना भारत पर यवन आक्रमण है। जिसके परिणामस्वरूप पंजाब की कई जातियाँ राजस्थान में आई और आकर यही पर बस गई ।

 

  • भारत पर यवन आक्रमण का संकट उत्तर मौर्यकालीन सम्राटों के समय उपस्थित हो गया था । पुष्यमित्र शुंग के शासन काल में यवनों (बाख्त्री) ने पूरी तैयारी के साथ भारत पर आक्रमण किया । पतजील ने अपने महाभाष्य में लिखा है कि वतनों ने मध्यमिका (चित्तौड़ के पास नगरी नामक स्थान) और साकेत पर आक्रमण किया और उसे घेर लिया। गार्गी संहिता के अनुसार दुष्ट विक्रान्त यवनों ने मथुरा, पांचाल, (गंगा-यमुना का दोआब), साकेत और कुसुमध्वज को अपने अधीन कर लिया परन्तु उनमें आपस में ही घोर युद्ध छिड़ गया । इसलिये वे मध्यदेश में ठहरे नहीं। 


  • पुष्यमित्र शुंग ने यवनों का घोर प्रतिरोध किया और उनको मध्यदेश से निकाल कर सिन्धु के किनारे तक खदेड़ दिया । मालविकाग्निमित्र के अनुसार पुष्यमित्र की सेना उसके पौत्र वसुमित्र के नेतृत्व में पश्चिमोत्तर भारत में घूम रही थी। इस सेना की मुठभेड़ यवनों से सिन्धु नदी के किनारे पर हुई। इसमें यवन पराजित हुए। इस यवन आक्रमण का नेता कौन था? इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार पुष्यमित्र के समय भारत पर हुए यवन आक्रमण का नेता डिमिट्रियस और कुछ के अनुसार मीनाण्डर था। 


  • कुछ विद्वानों के अनुसार भारत पर यवनों का एक आक्रमण हुआ था जबकि कुछ लोग दो आक्रमणों की कल्पना करते हैं। टार्न ने एक यूनानी आक्रमण के पक्ष में तर्क रखा है। साकल नरेश मीनाण्डर के पाटलिपुत्र के मार्ग में साकेत (अयोध्या) और मध्यमिका दोनो एक सिलसिले में नहीं हो सकते। ऐसी परिस्थिति में डिमिट्रियस और उसके दामाद मीनाण्डर ने एक साथ ही दोनों ओर युद्ध की घोषणा कर आक्रमण किया। डिमिट्रियस स्वयं सिन्धु की सीमाओं को पार करता हुआ चित्तौड के समीपस्थ नगर माध्यमिका को जीतता हुआ पाटलिपुत्र पहुंचा और मीनाण्डर मथुरा, पात्रचाल तथा साकेत होता हुआ ।

 

  • उपर्युक्त वितरण के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत पर यवन आक्रमण पुष्यमित्र शुंग के राज्यारोहण से कुछ पहले या उसके राज्य काल में हुआ। वदनों ने राजस्थान में मध्यमिका पर अधिकार कर लिया लेकिन शुंग सम्राट ने उन्हें पराजित कर दिया और सिन्धु नदी तक के भू-भाग पर अधिकार कर लिया। इसलिये सम्भवतः राजस्थान पुष्यमित्र शुंग के साम्राज्य में सम्मिलित था। लेकिन इसे प्रमाणित करना कुछ कठिन है। हाँ इतना अवश्य है कि राजस्थान यवन आक्रमण की गूंज से प्रभावित अवश्य हुआ. 

 

यवन आक्रमण का प्रभाव और विभिन्न गणजातियों का राजस्थान में अधिवासन

 

  • मौर्य साम्राज्य के विघटन के पश्चात् भारत पर हुए यान आक्रमण का राजस्थान के इतिहास पर विशेष प्रभाव पड़ा। पंजाब की कई गणजातियाँ शुंग कण्व काल में राजस्थान में आई और यहीं पर बस गई। 
  • राजस्थान अपने पड़ौसी राज्यों हेतु शरणस्थली था। जब भी इसके पड़ौसी राज्यों या गंगा घाटी पर आक्रमणकारियों का दबाव पड़ता तो वहाँ के लोग यहाँ पर आकर शरण लिया करते थे । यवनों के आक्रमण से मालव, शिवि, आर्जुनायन, आभीर आदि गणजातियाँ पंजाब से स्थानान्तरित होकर राजस्थान आ गई। 
  • शुंग कण्व काल में पंजाब से राजस्थान आने वाली गणजातियों के इतिहास पर बहुत कम शोध कार्य हुआ है क्योंकि शोध सामग्री स्वरूप उनकीमुद्राएं तथा कुछ शिलालेख मात्र ही उपलब्ध हैं ।

 

  • प्रस्तुत विवेचन में हम पंजाब से राजस्थान आने वाली गणजातियों के इतिहास को रेखांकित करने का प्रयास करेंगे। जिन्होंने राजस्थान के इतिहास को प्रभावित किया है. 

 

  • इण्डो यूनानी आक्रमण के फलस्वरूप भारत के उत्तरी पश्चिमी क्षेत्र में निवास कर रही गणजातियाँ अनुमानतः द्वितीय शताब्दी ई. पू. के प्रारम्भिक दशकों में राजस्थान आई थीं। इन गण अथवा जनजातियों में शिवि, आर्जुनायन, राजन्य तथा मालव प्रमुख थे। इसके अलावा यौधेयों, सम्भवतः पहले से ही पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ साथ उत्तर-पूर्वी राजस्थान में शासन कर रहे थे। इस अवधि में राजस्थान को प्रभावित करने वाली अन्य जनजातियों में आभीर, उत्तमभद्र तथा शुद्रक भी थे । 


  • मत्स्य जनपद राजस्थान में पहिले विद्यमान था तथा यह जनपद मगध के उत्कर्ष के समय उसमें विलीन हो गया था। शूरसेन में मथुरा स्थित था लेकिन इसकी गतिविधियों का राजस्थान के पूर्वी भाग पर प्रभाव पड़ा। इसके अलावा यह तथ्य भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि पूर्वकाल में राजस्थान में आहत सिक्के लोकप्रिय थे। गणजातियों ने पहली बार अपने सिक्के ढलवाये या तथा लगाकर जारी किये। उन सिक्कों पर गणजातियों ने अपने लेख भी उत्कीर्ण करवाये । यह तथ्य सूचित करता है कि ईसा पूर्व की अन्तिम शताब्दी और ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में राजस्थान में व्यापार वाणिज्य का विकास तेजी से हुआ और यहाँ पर संस्कृत भाषा का पर्याप्त उत्थान हुआ।

 

  • राजस्थान में जो जातियाँ इण्डोयूनानी आक्रमण के बाद यहाँ आई थीं उनके लिये अंग्रेजी में ट्राइब शब्द काम में लिया जाता है। जायसवाल ने उनके लिये गण शब्द का प्रयोग किया है। उन्होंने गण को एक विशिष्ट शासन पद्धति मानते हुए संघ शब्द को भी इसका पर्यायवाची माना है। पाणिनि ने संघ अथवा गण को सहकारी समूह की तरह स्वीकार किया है जिसमें उच्च एवं निम्न वर्ग में भेद नहीं होता है। वैदिक साहित्य, महाभारत, अंगुत्तर निकाय और पाणिनि के व्याकरण ग्रन्थ में प्राचीन गणों का उल्लेख मिलता है जो अपनी आवश्यकता के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलायन कर जाते थे। उसी परम्परा के आधार पर ही उत्तरी-पश्चिमी सीमान्त की गणजातियाँ पलायन कर राजस्थान में आ पहुँची थीं।