राजस्थान की गण जाति -यौधेयों-गण |यौधेयो का शासन का विस्तार | Rajsthan Ke Gan Jati Yodheyon - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2024

राजस्थान की गण जाति -यौधेयों-गण |यौधेयो का शासन का विस्तार | Rajsthan Ke Gan Jati Yodheyon

 राजस्थान की गण जाति -यौधेयों-गण 

राजस्थान की गण जाति -यौधेयों-गण  |यौधेयो का शासन का विस्तार | Rajsthan Ke Gan Jati Yodheyon


यौधेयों-गण 

  • मालवों की तरह यौधेय भी एक स्वतन्त्रता प्रिय जाति थी । 
  • पाणिनि की अष्टाध्यायी के अनुसार यौधेयों एक कुलीन तन्त्रीय गण था। इस आधार पर यौधेयों की प्राचीनता छठी शताब्दी ई. पू तक सिद्ध होती है। 
  • पाणिनि ने यौधेयो का उल्लेख त्रिगतां के साथ किया है तथा लिखा है कि आयुधजीवी संघ थे अर्थात् यह संघ आयुधों पर निर्भर था । 
  • पुराणों में उन्हें उशी नरों का उत्तराधिकारी बताया गया है। पर्जीटर के अनुसार उशीनर ने पंजाब में कई जातियों को बसाया था । 
  • वायुपुराण और विष्णु पुराण में यौधेयो का उशीनरों के संदर्भ में उल्लेख मिलता है। मजूमदार तथा पुसालकर के अनुसार यौधेयों 'योध' शब्द से बना है। महाभारत में यौधेयों युधिष्ठिर का पुत्र बतलाया गया है। इस प्रकार दे युधिष्ठिर की संतान थे। 
  • बुद्ध प्रकाश इस मत के समर्थक है जबकि स्वामी ओमानन्द ने इस मत को भ्रान्तिपूर्ण बतलाया है। उनका विचार है कि महाभारत में द्रोण एवं कर्णपर्व में अर्जुन द्वारा यौधेयो को पराजित करने का उल्लेख आता है। साथ ही उन्हें युधिष्ठिर को कर देने वाला भी कहा गया है । यौधेयों का उल्लेख पुराणों के अलावा शकटायन व्याकरण, जैमिनीय ब्राह्मण में भी मिलता है । 
  • जैमिनीय ब्राह्मण में यौधेयों राजा शैब्य पुण्यकेश द्वारा यज्ञ करने का विवरण मिलता है। समुद्रगुप्त की प्रयाग-प्रशस्ति तथा रुद्रदामा प्रथम के जूनागढ़ अभिलेख तथा नवीं शताब्दी के सोमदेव सूरि के ग्रन्थ यशस तिलक चम्पू महाकाव्य में यौधेयों की चर्चा मिलती है। 
  • दसवीं शताब्दी के अपभ्रंश ग्रन्थों में भी यौधेयों का वर्णन आता है। इस प्रकार यौधेयों गण जाति का 600 ई. पू. से 1000 ई.पू. तक का निरन्तर विवरण मिलता है ।

 

  • एरियन के अनुसार जब सिकन्दर व्यास नदी पर पहुँचा तो उसेव्यास नदी के पार एक उपजाऊ देश की जानकारी मिली जहाँ के लोग साहसी और योद्धा थे। जायसवाल के अनुसार एरियन द्वारा जिस जाति का विवरण दिया गया है वह यौधेयों जाति थी।
  • यौधेयों का राज्य सहारनपुर पश्चिमी उत्तरप्रदेश तक विस्तृत था जहाँ से उनकी मुद्राएँ मिली हैं। यौधेयों का साम्राज्य पूर्व की ओर मगध साम्राज्य की सीमा तक फैला हुआ था। सिकन्दर के आक्रमण के समय कुछ गणों का नाम न मिलने का कारण यह था कि वह ऐसे कई गणों को जीत भी नहीं पाया था। 
  • यौधेयो ने सिकन्दर के आक्रमण का सामना नहीं किया था इसलिये यूनानी लेखकों ने उनका उल्लेख नहीं किया है। संभवतः चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक के समय यौधेयों से उनके सच मैत्रीपूर्ण रहे होंगे। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में गण के साथ सन्धि करने का उल्लेख किया है ।


यौधेयो का शासन का विस्तार    

  • यौधेयो शुंगकाल में विशेष रूप से अवतरित हुए। मालव यौधेयों गण ऐसे थे जो सम्भवतः मौर्य शुंग काल में भी जीवित रहे और शक कुषाणों से भी संघर्ष करके अपना अस्तित्व बनाए रखा। अ.स. अल्तेकर के अनुसार यौधेयो का शासन का विस्तार तथा क्षेत्र पूर्व में सहारनपुर से पश्चिम में बहावलपुर तक तथा उत्तर पश्चिम में लुधियाना से दक्षिण पूर्व में दिल्ली तक था जहाँ से उनकी मुद्राएँ मिली हैं। 


  • यौधेयों तीन गणों का एक संघ था। इनमें से एक की राजधानी पंजाब में रोहतक, द्वितीय गण उत्तरी पांचाल में था जो बहुधान्यक कहा जाता था तथा तृतीय गण उत्तरी राजपूताना का क्षेत्र था । अष्टम शती के महाकवि स्वंयभू का विचार था कि मरुभूमि के निकट शूरसेन यौधेयों का ही भाग क्षेत्र था। 
  • जायसवाल का मत है कि सतलज के किनारे पर रहने वाले जोहिया राजपूत यौधेयों से ही सम्बन्धित थे। कंनिघम ने यौधेयों का मूल राज्य जोहियाबार माना था जो मुलान जिले में स्थित था। यौधेयों की कांस्य ताम्र धातु मुद्राएँ बहुधान्यक से मिली हैं जिन पर यौधेयोंनां बहु धान्यके या बहु धन यौधेयों लिखा है। इनकी एक मुद्रा पर यौधेयोनां भूधान्यके लेख उत्कीर्ण है।

 

राजस्थान में यौधेयों का विस्तार 

 

  • राजस्थान विस्तार बीकानेर राज्य के उत्तरी प्रदेश गंगानगर आदि पर बतलाया जाता है। संभवतः यौधेयों का वर्चस्व द्वितीय शताब्दी ई पू. से समुद्रगुप्त के राज्यकाल तक बना रहा। साँचों में ढली हुई उनकी मुद्राएँ रोहतक, हरियाणा से प्राप्त हुई हैं जिन पर बीरबल साहनी ने पूरा ग्रन्थ ही लिख डाला था ।
  • यौधेयो को समुद्रगुप्त से पूर्व शकों से पराजित होना पड़ा था। उस समय भी वे उत्तरी राजस्थान में राज्य कर रहे थे। लेकिन बाद में कुषाणों ने अहाने राज्य का विस्तार कर लिया जब यौधेयो का क्षेत्र उत्तरी राजस्थान उनके हाथ से चला गया। द्वितीय शती ई. से राजस्थान के सूरतगढ़ और हनुमानगढ़ में कुषाण मुद्राएँ प्राप्त होने लगती हैं। उनके सिक्के रंगमहल तथा सांभर से भी मिले हैं। सुई विहार अभिलेख से ज्ञात होता है कि कुषाणों का उत्तरी राजस्थान पर अधिकार था।
  • रुद्रदामा प्रथम के उत्कर्ष के बाद कुषाण राजस्थान पर अपना प्रभुत्व बनाये न रख सके । रुद्रदामा प्रथम की विजयों के फलस्वरूप मतन्त्रता प्रेमी यौधेयो को कुचल दिया गया और उन्हें अपने अधीन कर लिया लेकिन उन्होंने द्वितीय शताब्दी ई. में अपनी स्वतन्त्रता के लिये फिर प्रयास किया जिसमें वे सफल रहे उन्होंने कुषाणों को सतलज के पार भगा दिया ।


यौधेयों राजतन्त्र शासन पद्धति 

  • अल्तेकर का मत है कि कुषाणकाल तक यौधेयों राजतन्त्र शासन पद्धति अपना चुके थे। वे वीरता में अग्रणी और कार्तिकेय के उपासक थे। महाभारत में उन्हें मत्त मयूरक कहा गया है। 
  • कुषाणों के पतन के बाद उनका फिर उत्तरी राजस्थान पर अधिकार हो गया था। समुद्रगुप्त के राज्यकाल तक बे अपने अस्तित्व को बनाये रहे। यौधेयो का एक अभिलेख राजस्थान के भरतपुर जिले से प्राप्त हुआ है जिससे ज्ञात होता है कि दे अपने नेता का चुनाव करते थे। इस लेख को अभिलेख शास्त्री गुप्तकाल का मानते हैं । इस लेख में यौधेयोंगण के नेता के लिए महाराज तथा महासेनापति उपाधियों का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार यौधेयो का शासन शुंगकाल से चौथी शताब्दी ईस्वी तक पूर्वी पंजाब, सतलज तथा यमुना नदी के मध्य के क्षेत्र, पश्चिम उत्तर प्रदेश एवं उत्तरी राजस्थान तक विस्तृत था । 
  • इनकी मुद्रा निधियाँ दिल्ली एवं करनाल के मध्य स्थित सोनपत से प्राप्त हुई हैं। सम्भवतः यौधेयों राजस्थान में द्वितीय शताब्दी ईस्वी के मध्य तक अवश्य आ गये थे। उनकी मुद्राएँ तीन प्रकार की हैं- प्रथम शुंगकालीन मुद्राएँ जिन पर चलता हुआ हाथी तथा वृषभ अंकित हैं। द्वितीय दे मुद्राएँ जिन पर कार्तिकेय अंकित हैं। तृतीय वे मुद्राएँ जिन पर यौधेयों गणस्य जयः उत्कीर्ण है। इन पर एक योद्धा का अंकन है, जो हाथ में भाला लिये हुए है इसकी त्रिभंगी मुद्रा है। कुछ सिक्कों पर द्वि तथा त्रि लिखा है जिसका तात्पर्य कुषाणों से दो या तीन बार संघर्ष करना माना जाता है। 
  • अलेक्लजेण्डर को उनका मुद्रांक मिला था जिस पर "यौधेयगेना जय मन्त्रधराणाम उत्कीर्ण था। मुद्रांक के नीचे चलता हुआ ननिद प्रदर्शित है। अग्रोहा से भी यौधेयो का मुद्रांक मिला है । 
  • पुराणों में यौधेयों का राजतन्त्र की तरह वर्णन किया गया है लेकिन कालान्तर में यह कुलीन तन्त्र में परिवर्तित हो गया तथा इस गण में 5000 सदस्यों की सभा होती थी। जबकि उनके अभिलेख तथा अग्रोहा मुद्रांक लेख से संकेतित होता है कि उनके नेता का चुनाव होता था शासन व्यवस्था गणतान्त्रिक थी कहा जाता है कि यौधेयो ने युद्धक प्रकार के सिक्के कुषाण मुद्रा माला से प्रभावित होकर जारी किये थे । 
  • बी. स्मिथ का मत हैं कि यौधेयो के युद्धक सिक्के चन्द्रगुपत विक्रमादित्य की उत्तरी विजय पूर्ण होने तक अर्थात् 360 ई. तक विद्यमान थे। 


अतः निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि यौधेयो का राजनीतिक वर्चस्व चौथी शताब्दी ईस्वी तक विद्यमान रहा। विजयगढ लेख समुद्रगुप्त की प्रयाग-प्रशस्ति तथा अन्य परवर्ती साहित्य से यौधेयों के अस्तित्व की पूर्ण जानकारी मिलती है ।