राजस्थानी चित्रकला शैली की विशेषताएँ विषय प्रकार। Rajsthan Painting GK in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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रविवार, 19 दिसंबर 2021

राजस्थानी चित्रकला शैली की विशेषताएँ विषय प्रकार। Rajsthan Painting GK in Hindi

राजस्थानी चित्रकला शैली की विशेषताएँ विषय प्रकार 

राजस्थानी चित्रकला शैली की विशेषताएँ विषय प्रकार । Rajsthan Painting GK in Hindi

राजस्थानी चित्रकला शैली की विशेषताएँ 


  • राजस्थानी चित्रकला शैली का प्रारंभ 15 वीं से 16 वी शताब्दी के मध्य माना जाता है.  
  •  राजस्थानी चित्रकला में चटकीले-भड़कीले रंगों का प्रयोग किया गया है। विशेषतः पीले व लाल रंग का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है। राजस्थान की चित्रकला शैली में अजंता व मुग़ल शैली का सम्मिलित मिश्रण पाया जाता है।
  • मुग़ल प्रभाव के फलस्वरूप राजस्थानी चित्रकला में व्यक्ति चित्र बनाने की परम्परा शुरू हुई, जिन्हें सबीह कहा गया। इस प्रकार के चित्र जयपुर शैली में सबसे अधिक बनाये गये है। राजस्थान की चित्रकला शैली पर गुजरात तथा कश्मीर की शैलियों का प्रभाव रहा है। 
  • राजस्थानी चित्र शैली विशुद्ध रूप से भारतीय है ऐसा मत विलियम लारेन्स ने प्रकट किया। 
  • राजस्थानी चित्रकला शैलियों की मूल शैली मेवाड़ी शैली है । 
  • सर्वप्रथम आनन्द कुमार स्वामी ने सन् 1916 में अपनी पुस्तक राजपुताना पेन्टिग्स में राजस्थानी चित्रकला का वैज्ञानिक वर्गीकरण प्रस्तुत किया।  
  • राजस्थान में प्राचीनतम चित्रण के अवशेष कोटा के आसपास चंबल नदी के किनारे की चट्टानों पर मुकन्दरा एवं दर्रा की पहाड़ियों, आलनियां नदी के किनार की चट्टानों आदि स्थानों पर मिले हैं। 
  • राजस्थान में उपलब्ध सर्वाधिक प्राचिनतम चित्रित ग्रंथ जैसलमेर भंडार में 1060 ई. के ' ओध नियुक्ति वृत्ति' एवं' दस वैकालिका सूत्र चूर्णी' मिले हैं। इन चित्रों को भारतीय कला का दीप स्तंभ माना जाता है।  
  • राजस्थान की चित्रकला में पट चित्र बनाये गये। इस प्रकार के चित्र अधिकतर कृष्ण-भक्ति से सम्बंधित है। 
  • यहाँ के चित्र प्राकृतिक अलंकरणों से सुसज्जित है। 
  • राजस्थानी चित्र कला को राजपूत चित्रकला शैली भी कहा जाता है।

 

राजस्थानी चित्रकला के विषय

 

  • पशु-पक्षियों का चित्रण 
  • शिकारी दृश्य 
  • दरबार के दृश्य 
  •  नारी सौन्दर्य 
  • धार्मिक ग्रन्थों का चित्रण आदि

 

भित्ति चित्र व भूमि चित्र

आकारद चित्र 

  • भरतपुर जिले के दर, कोटा जिले के दर्रा व आलणियाँ, जयपुर जिले के बैराठ आदि स्थानों के शैलाश्रयों में आदि मानव द्वारा उकेरे  गये रेखांकित चित्र मिले है। 

भराड़ी 

  • भील युवती के विवाह पर घर की भीत यानी दीवार पर भराड़ी का बड़ा ही आकर्षक और मांगलिक चित्र बनाया जाता है। भराड़ी भीलों की लोक देवी है जो गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर रहे लाडा लाड़ी (वर-वधू) के जीवन को सब प्रकार से भरा पूरा रखती है।

 

सांझी 

  • लोक चित्रकला में गोबर से बनाया गया पूजा स्थल, चबूतरे अथवा आँगन पर बनाने की परम्परा 

संझपा कोट 

  • सांझी का एक रूप 

मांडणा 

  • शाब्दिक अर्थ / उद्देश्य - अलंकृत करना । यह अर्भूत व ज्यामितीय शैली का अपूर्व मिश्रण होता है, स्त्री के हृदय में छिपी भावनाओं, आकांक्षाओं व भय के भी दर्शाता है। 

कागज पर निर्मित चित्र 

पाने 

  • कागज पर बने विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र जो शुभ, समृद्ध व प्रसन्नता के घोतक है। 
  • श्रीनाथ जी के पाने सर्वाधिक कलात्मक होते है जिन पर 24 श्रृंगारों का चित्रण पाया जाता है।

 

लकड़ी पर निर्मित चित्र 

कावड़

  •  मंदिरनुमा लाल रंग की काष्ठाकृति होती है जिसमे कई द्वार होते है, सभी कपाटो पर राम, सीता, लक्ष्मण, विष्णुजी व पौराणिक कथाओं के चित्र अंकित रहते है, कथावाचक के साथ-साथ ये कपाट भी खुलते जाते है। चारण जाति के लोगो द्वारा बनाया जाता है।  

खिलौनें 

  • चित्तोडगढ़ का बस्सी नामक स्थान कलात्मक वस्तुओं (खिलौनों) के लिये प्रसिद्ध है। इसके अलावा खिलौनों के लिए उदयपुर' भी प्रसिद्ध है

 

मानव शरीर पर निर्मित चित्र

 

गोदना (टेटू ) 

  • विभिन्न जाति के स्त्री-पुरुषों में प्रचलित, इनमें सुई, बबूल के कांटे या किसी तेज औजार से चमड़ी को खोदकर उसमें काला रंग भरकर पक्का निशान बनाया जाता है। गोदना सौन्दर्य का प्रतीक है

 

मेहन्दी 

  • मेहन्दी का हरा रंग कुशलता व समृद्धि का तथा लाल रंग प्रेम का प्रतीक है। मेहन्दी से हथेली का अलंकरण बनाया जाता है। 

 

महावर ( मेहन्दी)

 

  • राजस्थान की मांगलिक लोक कला है जो सौभाग्य या सुहाग का चिन्ह मानी जाती है।
  • सोजत (पाली) की मेहन्दी विश्व प्रसिद्ध है।

 

कपड़े पर निर्मित चित्र 

वातिक 

  • कपड़े पर मोम की परत चढ़ाकर चित्र बनाना 

पिछवाई 

  • मंदिरों में श्रीकृष्ण की प्रतिमा के पीछे दिवार को कपड़े से ढ़ककर उस पर सुन्दर चित्रकारी करना । 
  • यह वल्लभ सम्प्रदाय के मंदिरों में विशेष रूप से प्रचलित है।