राजस्थान में ऊर्जा स्त्रोत
राजस्थान में ऊर्जा स्त्रोत
- ऊर्जा महत्वपूर्ण आधारभूत संरचना है। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र जैसे कृषि, उद्योग, परिवहन, सामाजिक विकास क्षेत्र आदि विकास के लिए ऊर्जा पर निर्भर है। क्षेत्र विशेष का विकास ऊर्जा बिना संभव नहीं है। ऊर्जा के लिए परम्परागत और गैर परम्परागत स्त्रोत होते हैं। परम्परागत स्त्रोतों में जल विद्युत, थर्मल विद्युत एवं अणु ऊर्जा सम्मिलित की जाती है । ऊर्जा के गैर परम्परागत स्त्रोतों में बायोगैस, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि प्रमुख है।
- राजस्थान सरकार अर्थव्यवस्था में ऊर्जा की महत्ता और उदारीकरण के कारण औद्योगिक विकास वृद्धि की संभावना को दृष्टि में रखकर ऊर्जा विकास के लिए प्रयत्नशील है। राजस्थान की गिनती ऊर्जा क्षेत्र में आर्थिक सुधारों को लागू करने के मामले में देश के अग्रणी राज्यों में होती है। राजस्थान विद्युत क्षेत्र सुधार अधिनियम, 1999 लागू किया गया। घाटे से ग्रसित राजस्थान राज्य विद्युत मण्डल' को 1999 में समाप्त किया गया। राजस्थान जून 2000 में पांच स्वतन्त्र कम्पनियां गठित की गई। नई कम्पनियों में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड राज्य में विद्युत उत्पादन योजनाओं का क्रियान्वयन, संचालन एवं रख- रखाव का कार्य करती है।
- एक अन्य कम्पनी 'राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड' राज्य में प्रसारण तंत्र का निर्माण, संचालन एवं संधारण करती । बिजली वितरण के लिए तीन कम्पनियां यथा जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड तथा जोधपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड है। ये तीनों कम्पनियां अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से विद्युत वितरण का कार्य संचालित करती है।
- विद्युत विकास पर योजना परिव्यय राजस्थान में ऊर्जा की कमी और आर्थिक विकास में विद्युत की महत्ता को ध्यान में रखते हुए पंचवर्षीय योजनाओं में ऊर्जा पर भारी वित्तीय संसाधन आवंटित किये गये। पंचवर्षीय योजनाओं की प्राथमिकताओं में ऊर्जा विकास को सर्वोच्च स्थान दिया गया।
राजस्थान में ऊर्जा स्त्रोत पर पंचवर्षीय योजनाओं में सार्वजनिक व्यय
विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में ऊर्जा पर सार्वजनिक व्यय इस प्रकार रहा -
- पहली योजना 1.24 करोड रूपये, दूसरी योजना 15.2 करोड़ रूपए, तीसरी योजना 39.4 करोड़ रूपए, चौथी योजना 94 करोड़ रूपये, पांचवी योजना 249 करोड़ रूपये, छठी योजना 566 करोड़ रूपए, सातवीं योजना 922 करोड़ रूपए, आठवीं योजना 3255 करोड़ रूपये, नौवीं योजना 5261 करोड़ रूपये, दसवी योजना 10461 करोड़ रूपये । ग्यारहवी पंचवर्षीय योजना में ऊर्जा विकास पर 25607 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है। पहली पंचवर्षीय योजना के कुल योजना व्यय का 2.3 प्रतिशत भाग ऊर्जा विकास पर खर्च किया था। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में कुल योजना व्यय का ऊर्जा विकास पर व्यय बढ़कर 36 प्रतिशत पहुंच गया। स्थापित विद्युत क्षमता राजस्थान में स्थापित विद्युत क्षमता 1950-51 में 13 मेगावट थी जो 2003-04 में बढ़कर 5167.43 मेगावाट हो गई। विद्युत स्थापित क्षमता बढ़कर 2006-07 में 6089 मेगावाट तथा 2011-12 में दिसम्बर 2011 तक 9831 मेगावाट (अग्रिम अनुमान) हो गई ।
राजस्थान की प्रमुख विद्युत परियोजनाएं
- योजनाबद्ध विकास में राजस्थान में कई विद्युत परियोजनाओं की स्थापना की गई। राजस्थान में दो प्रकार की विद्युत परियोजनाएं है। एक राज्य के स्वयं की स्वामित्व वाली परियोजनाएं हैं इनमें सुपर थर्मल तापीय विद्युत परियोजना कोटा, सूरतगढ़ ताप बिजली परियोजना, छबड़ा तापीय विद्युत परियोजना, माही जल विद्युत परियोजना है तथा अन्य आंशिक स्वामित्व वाली परियोजनाएं जिनसे राजस्थान को विद्युत प्राप्त होती है। इनमें चम्बल परियोजना, व्यास परियोजना, भाखड़ा परियोजना, सतपुड़ा परियोजना प्रमुख है।
- राजस्थान परमाणु शक्ति परियोजना' एक महत्त्वपूर्ण योजना है जिसके अन्तर्गत रावतभाटा में परमाणु संयन्त्र स्थापित किया गया है। अन्य ऊर्जा परियोजना में अन्ता विद्युत परियोजना (गैस आधारित), सिंगरोली, रिहन्द आदि है। ऊर्जा उत्पादन के प्रति सरकार अत्यधिक प्रयत्नशील है।
विद्युतीकृत कस्बें और गांव
- योजनाबद्ध विकास में विद्युतीकृत कस्बों और गांवों की संख्या में वृद्धि हुई है। वर्ष 1950-51 में राज्य में विद्युतीकृत बस्तियों की संख्या केवल 42 थी। राजस्थान में 2002-03 तक 97.40 प्रतिशत ग्राम विद्युतीकृत हो चुके थे। ग्रामीण विद्युतीकरण कार्यक्रम के अन्तर्गत मार्च 2009 तक 37288 गाँवों को विद्युतीकृत एवं 8.96 लाख कुओं को ऊर्जीकृत किया गया ।
राजस्थान में ऊर्जा के गैर परम्परागत स्त्रोत -
- राजस्थान में गैर परम्परागत ऊर्जा के स्त्रोतों का विकास करने के लिए 21 जनवरी 1985 को राजस्थान ऊर्जा विकास एजेन्सी (रेडा ) की स्थापना की गई। रेडा का उद्देश्य सौर ऊर्जा, वायु ऊर्जा, गोबर गैस से विद्युत उत्पादन करना है। रेडा का अगस्त 2002 में राजस्थान अक्षय ऊर्जा विकास निगम में विलय हो गया ।
- सौर ऊर्जा से गैस और ईधन की बचत होती है। इनका उपयोग सोलर कूलर चलाना, सोलर पम्प चलाना, वाटर हीटर्स, स्ट्रीट ट्यूब लाईटे, टी.वी. सेट्स आदि में किया जाता सकता है। जोधपुर जिले के उच्चीकृत प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र बालेसर में सौर ऊर्जा का उपयोग किया गया केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण ने 27 अगस्त 1999 को जोधपुर जिले के मथानिया गांव में स्थापित होने वाली 140 मेगावाट के एकीकृत सौर मिश्रित चक्रीय विद्युत परियोजना को मंजूरी दी। मथानिया परियोजना में 35 मेगावाट बिजली का उत्पादन सौर तापीय तकनीक तथा शेष 105 मेगावट बिजली पारम्परिक नेफ्ता या गैस मिश्रित चक्रीय तकनीक से बनेगी। यह परियोजना विश्व में अपनी तरह की पहली परियोजना होगी जिसमें सौर तापीय तकनीक परम्परागत मिश्रित चक्रीय तकनीक के साथ जोड़ा जायेगा ।
- पवन ऊर्जा और बायो गैस भी ऊर्जा के गैर परम्परागत स्त्रोत है। राजस्थान में वायु का वेग 20 से 40 कि.मी. प्रति घन्टा है। इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना क्षेत्र में चारे और चरागाह विकास के लिए पवन ऊर्जा उपयोगी है। भारत में 1980-81 में प्रारम्भ की गई राष्ट्रीय बायोगैस योजना के माध्यम से राजस्थान में बायोगैस का विस्तार किया जा रहा है।
- राजस्थान में इन सब प्रयत्नों के बावजूद विद्युत की मांग और आपूर्ति में अन्तर बना हुआ है। राजस्थान में योजनाबद्ध विकास में विद्युत का उत्पादन बढ़ा है किन्तु बढ़ते औद्योगिक विकास और लोगों के सुधरते जीवन स्तर के कारण विद्युत की मांग अधिक बढ़ गई है। आर्थिक उदारीकरण लागू करने के बाद भविष्य में आर्थिक विकास अधिक गति पकड़ेगा। उत्तरोत्तर बढ़ते विकास के साथ ऊर्जा की मांग बढ़ना निश्चित है। राजस्थान सरकार को ऊर्जा विकास के और अधिक प्रयत्न करने होंगे। राजस्थान में ऊर्जा विकास की विपुल संभावनाएं हैं।