राजस्थान में ग्रामीण विकास एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम- राज्य योजनाएँ
राजस्थान में ग्रामीण विकास योजनाएँ
अपना गांव- अपना काम योजना
- यह योजना जनवरी 1991 से राज्य में विकास की प्रक्रिया एवं स्थानीय आयोजना में लोगों की हिस्सेदारी को प्रोत्साहन एवं बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई। इस योजना के अनुसार किसी भी सामुदायिक विकास कार्य के लिए ग्रामीण / दानदाताओं/ गैरसरकारी संथाओं / सामुदायिक समूह को न्यूनतम 30 प्रतिशत राशि जन सहयोग के रूप में देनी होती है तथा 50 प्रतिशत राशि इस योजना के कोष से उपलब्ध करवाई जाती है। यदि प्रस्तावित कार्य इस योजना में स्वीकृत योग्य होते है तो शेष राशि इस योजना से ही उपलब्ध करवाई जाती है।
जिला काम योजना -
- जिलों में उपलब्ध स्थानीय संसाधनों के सर्वोतम उपयोग एवं स्थानीय नियोजन एवं विकास की प्रक्रिया में जन भागीदारी को अधिकतम सीमा तक सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वर्ष 1991-92 से राज्य के सभी जिलों में यह योजना चलाई जा रही है। जिले की स्थानीय आवश्यकताओं को देखते हुए प्रतिवर्ष जिले में एक विशेष प्रकृति के कार्य का चयन कर क्रियान्वयन किया जाता है।
विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम
- यह, शत प्रतिशत राज्य योजना वर्ष 1999-2000 में लागू की गई। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रत्येक विधायक प्रतिवर्ष अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए अपने सुझाव जिला प्रमुख को देता है।
4. डांग क्षेत्र विकास योजना
- चम्बल की लम्बी गहरी घाटियों वाला क्षेत्र एवं इसकी सहायक घाटियों वाले क्षेत्र 'डॉग क्षेत्र' कहलाता है। इस क्षेत्र के विकास के लिए राजस्थान सरकार ने वर्ष 1995-96 में "डॉग क्षेत्र विकास कार्यक्रम" नाम से योजना लागू की.
5. मेवात क्षेत्र विकास कार्यक्रम
- अलवर, भरतपुर में मेव आबादी वाला क्षेत्र मेवात क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र के विकास के लिए राजस्थान सरकार ने 1987-88 में 'मेवात क्षेत्र विकास कार्यक्रम चालू किया.
वानप्रस्थ योजना
- सेवा निवृत लोगों की स्वैच्छिक सेवाओं का उपयोग करने के लिए वानप्रस्थ योजना के नाम से एक योजना तैयार की गई है। जिसके अन्तर्गत सेवा निवृत व्यक्ति अपनी रूचि अनुसार स्वैच्छिक सेवाएं प्रदान कर सकता है।
मगरा क्षेत्र विकास कार्यक्रम
- राज्य के राजसमंद, भीलवाड़ा, अजमेर, पाली जिलों के पहाड़ी एवं पिछड़ी क्षेत्र के समग्र विकास के लिए मगरा क्षेत्र विकास कार्यक्रम शुरू किया गया है। कार्यक्रम का उद्देश्य क्षेत्र में मूल आधारभूत सुविधाओं का विकास और रोजगार अवसरों का सृजन करना है।
राजीव गाँधी पारम्परिक जल स्त्रोत संधारण कार्यक्रम -
- राज्य भूमिगत जल में वृद्धि एवं वर्षा के पानी को संरक्षित करने हेतु यह इनोवेटिव योजना अक्टूबर 1999 से प्रारम्भ की गई। इस योजना के अन्तर्गत जल संरक्षण हेतु परम्परागत जल स्टोरेज के साधनों जैसे कुआं, बावड़ी, टाका, तालाब, जोहड़ा, नाड़ी आदि की मरम्मत की जाती है। प्रस्तावित कार्य में राज्य सरकार एवं जनता का व्यय अनुपात 70:30 का होगा।
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (मनरेगा)
- वर्तमान में भारत विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अग्रणी स्थान बना चुका है। भारत ने आर्थिक विकास की गति को बढ़ाने के लिए एक अप्रैल 1951 से योजनाबद्ध विकास का मार्ग प्रारम्भ किया था। छह दशक के योजनाबद्ध विकास में ग्यारह पंचवर्षीय योजनाएं और छह वार्षिक योजनाऐं पूर्ण हो चुकी है।
- वर्तमान में बारहवीं पंचवर्षीय योजना क्रियान्वयन में है जिसकी समयावधि एक अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 तक है। इस योजनाबद्ध विकास के दौर में वर्ष 1991 से भारत की अर्थव्यवथा को विश्व के बदलते आर्थिक परिवेश के साथ समायोजित करने के लिए आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत की गई। आज आर्थिक उदारीकरण को लागू हुए दो दशक हो चुके हैं। आर्थिक उदारीकरण के कारण आज भारत की गिनती विश्व में चीन के बाद सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में होने लगी है। वैश्विक मंदी 2008 के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था विकास की पटरी पर बनी रही।
- कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। किन्तु योजनाबद्ध विकास की तुलना में आर्थिक उदारीकरण के बाद सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की भूमिका तेजी से घट गई है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र का योगदान 1950-51 में 56.7 प्रतिशत तथा 1990-91 में 34 प्रतिशत था। आर्थिक उदारीकरण के बाद सकल घरेलू उत्पाद में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र का योगदान 2007-08 घटकर 19.8 प्रतिशत रह गया है।
- भारत की अर्थव्यवस्था के संदर्भ में महत्वपूर्ण बात यह हो गई कि अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका तो घट गई, किन्तु कृषि पर निर्भर जनसंख्या में कमी नहीं हुई। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भी कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या 68.84 प्रतिशत थी। अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका के घटने का अर्थ विकास की दौड़ में कृषि के पिछड़ने से है। स्पष्ट है कि कृषि के पिछड़ने से देश की 69 प्रतिशत ग्रामीण आबादी की माली हालत कमजोर होना है। ग्रामीण भारत में गरीबी और बेरोजगारी की समस्या ज्यादा है। कृषि क्षेत्र में 'छिपी हुई बेरोजगारी' अधिक है इसमें जरूरत नहीं होने पर भी आवश्यकता से अधिक लोग काम पर लगे हुए होते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं में गांवों के विकास के लिए सरकार ने समय-समय पर कई ग्रामीण विकास और रोजगार परक योजनाएं चलाई।
- यह भी सत्य है इन योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को अपेक्षित रूप से नहीं मिल सका है।
- भले ही आर्थिक विकास में कृषि की भूमिका घट गई, किन्तु गांवों के विकास बिना भारत का विकास अधूरा है। आर्थिक उदारीकरण में योजनाबद्ध विकास की भांति ग्रामीण विकास पर विशेष रूप से बल दिया गया है। ग्रामीण भारत के विकास के लिए आर्थिक उदारीकरण के दौर में "मनरेगा' की शुरूआत की गई। मनरेगा आर्थिक उदारीकरण का सामाजिक दर्शन है। विशेषज्ञों की माने तो मनरेगा हरित क्रान्ति और बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे उपायों के समान सामाजिक परिवर्तनकारी कार्यक्रम सिद्ध होने जा रहा है।