मैहर के मंदिर की कहानी। आल्हा ऊदल और मैहर माता की कहानी
आल्हा ऊदल और मैहर माता की कहानी
बुंदेलखंड
में आल्हा और ऊदल नाम के दो भाईयों की वीरगाथा सदियों से सुनाई जा रही है। आल्हा
शक्ति स्वरूपा जगत जननी को शारदा माई कहकर पुकारा करते थे। आल्हा ने मैहर स्थित
मंदिर में 12 बरसों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न
कर दिया था। शारदा मां ने आल्हा को अमरत्व प्रदान किया था। मैहर की शारदा देवी को
मध्यप्रदेश की वैष्णो देवी का दर्जा प्राप्त है।
मैहर के मंदिर की कहानी Story of Maihar Mandir
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्माजी के मानस पुत्र राजा दक्ष प्रजापति की सोलह कन्याएं थीं। सती नामक कन्या का विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ था। कहा जाता है कि सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी।
राजा दक्ष भगवान शिव को भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे। पिता की मर्जी के खिलाफ सती ने भगवान शिव से विवाह कर लिया। एक बार राजा दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में बृहस्पति सर्व नामक यज्ञ कराया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र एवं अन्य देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया।
राजा दक्ष ने दामाद भगवान शिव को नहीं बुलाया। यज्ञ स्थल पर सती ने पिता दक्ष से शंकरजी को आमंत्रित नहीं करने का कारण पूछा। राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से दु:खी होकर सती ने यज्ञ अग्नि कुंड में कूदकर प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से भगवान शिव का तीसरा नेत्र खुल गया।
भगवान शंकर ने यक्ष कुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव नृत्य करने लगे। मां काली ने भगवान शिव का क्रोध कम करने के लिए भू शरण ली। भूमि पर मां काली को देखकर मर्यादा स्वरूप भगवान शिव ने नृत्य रोक दिया। भगवान विष्णु ने सती के अंग को 52 भागों में विभाजित कर दिया।
पुराणों के अनुसार सती के शव के विभिन्न अंगों से बावन शक्ति पीठों का निर्माण हुआ। जहाँ-जहाँ सती के शव के अंग और आभूषण गिरे वहाँ 52 शक्ति पीठों का निर्माण हुआ। मैहर में सती देवी के गले का हार गिरा था। मैहर को शक्ति पीठ में स्थान नहीं दिया गया है।
मैहर मंदिर किस पर्वत पर हैं एवं मैहर मंदिर मे कितनी सीढ़ी हैं
मैहर रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर दूर स्थित त्रिकूट पर्वत पर शारदा मां विराजी हैं। शक्ति पीठ नहीं होने के बाद भी साल भर श्रद्धालुओं का यहाँ रेला लगा रहता है। विशालकाय पर्वत पर बने मंदिर है । मैहर के मंदिर में सीढ़ियों की संख्या 1063 है । मंदिर पर पहुंचने के लिए 1063 सीढ़ियां चढ़ना पड़ती हैं। यहाँ रोपवे को भी व्यवस्था की गई है।
संपूर्ण भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। मंदिर परिसर में श्री कालभैरव, हनुमानजी, काली देवी दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेषनाग, फूलमति माता, ब्रह्मदेव और जालपा देवी के मंदिरों की श्रृंखला है।
शारदा देवी के मंदिर के पीछे एक तालाब दिखाई देता है। किंवदंती है कि
इस तालाब में स्नान कर आल्हा ब्रह्म मुहूर्त में सबसे पहले माँ शारदा के दर्शन कर
रक्त पुष्प चढ़ाता था। उस तालाब के पास एक अखाड़ा भी दिखता है जो आल्हा का अखाड़ा
है।
कहा
जाता है कि आल्हा और ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था। पृथ्वीराज चौहान
भी शारदा माता के बड़े भक्त थे। आल्हा और ऊदल ने घने जंगल के बीच मंदिर की खोज की
थी। आल्हा ने 12 वर्ष कठोर तपस्या कर शारदा देवी को
प्रसन्न किया था। आल्हा के शारदामाई कहने के कारण यह स्थान माता शारदामाई के नाम
से प्रसिद्ध हो गया। धार्मिक मान्यता यह भी है कि एवं 10वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने
सर्वप्रथम पूजा-अर्चना की थी।
मध्य प्रदेश का वैष्णो देवी धाम
ऐतिहासिक
महत्व वाले मैहर के शारदामाई के मंदिर की स्थापना विक्रम संवत् 559 में की गई। वैष्णो देवी की तरह ऊंचे
पर्वत पर मॉदर होने से शारदामाई के मंदिर को प्रदेश के वैष्णो देवी धाम की तरह मान्यता
प्राप्त है। माना जाता है कि शारदा देवी के दर्शन से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती
हैं। हवाई मार्ग से पहुंचने के लिए इलाहाबाद, जबलपुर
विमान तल की सेवाएं उपलब्ध हैं। मध्य रेलवे के मुम्बई-हावड़ा रेल मार्ग पर होने के
कारण सतना, जबलपुर, कटनी, इलाहाबाद से सीधी रेल सेवा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग से पहुंचने के लिए पन्ना, सतना, जबलपुर, छतरपुर, कटनी, शहडोल से बस सेवा उपलब्ध है।