डॉ राजेंद्र प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय |Dr. Rajendra Prasad Short Biography in Hindi - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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रविवार, 27 फ़रवरी 2022

डॉ राजेंद्र प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय |Dr. Rajendra Prasad Short Biography in Hindi

 
डॉ राजेंद्र प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय Dr. Rajendra Prasad Short Biography in Hindi

डॉ राजेंद्र प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय |Dr. Rajendra Prasad Short Biography in Hindi


डॉ राजेंद्र प्रसाद के बारे में जानकारी 

  • जन्म - 3 दिसंबर 1884
  • मृत्यु - 28 फरवरी 1963 


आधुनिक भारत के इतिहास में कई महापुरुष पैदा हुए जिन्होंने न केवल भारत को आजादी दिलाई बल्कि आजादी के उपरांत उन्होंने भारत के निर्माण में भी अपना सक्रिय योगदान दिया। ऐसे ही महापुरुषों में से एक डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद थे जिन्होंने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया बल्कि स्वतंत्रता उपरांत भी भारत के पुनर्निर्माण में अपना सक्रिय योगदान दिया। गांधीवादी विचारधारा एवं आदर्शों को मानने वाले डॉ राजेंद्र प्रसाद का व्यक्तित्व नम्रता, सरलता और सादगी से धनी था जिसके कारण उन्हें जो प्रतिष्ठा प्राप्त थी वह बहुत कम लोगों को प्राप्त होता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपति पद पर नियुक्त होने के बाद भी उन्होंने कभी भी इन गुणों का त्याग नहीं किया। आज डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के जयंती विशेष पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ घटनाओं को जानने की कोशिश करते हैं-

 

डॉ राजेंद्र प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय 


3 दिसंबर 1884 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म सिवान जिले के जीरादेई नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। मात्र 12 साल की उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से करवा दिया गया।

इन्होंने छपरा जिले से ही मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की एवं इन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया।

डॉ राजेंद्र प्रसाद एक बहुत ही मेधावी छात्र थे जिसके कारण वे अमूमन हर कक्षा में प्रथम आते थे। उल्लेखनीय है कि डॉ राजेंद्र प्रसाद के शैक्षणिक जीवन की यह घटना उल्लेखनीय हो जाती है जब उनकी परीक्षा की कॉपी पर परीक्षक ने लिख दिया था- द एक्जामिनी इज बेटर दैन द एक्जामिनर! (examinee is better than examiner)

1905 के बंगाल विभाजन का प्रभाव डॉ राजेंद्र प्रसाद पर भी पड़ा एवं उन्होंने भी स्वदेशी वस्तुओं के समर्थन में विदेशी वस्तुओं को जला दिया। इसके साथ ही इन्होंने 1906 के कांग्रेस अधिवेशन में एक स्वयंसेवक के रूप में भाग लेते हुए बाल गंगाधर तिलक, दादाभाई नौरोजी और गोपाल कृष्ण गोखले का भाषण सुना जिसमें वह गोपाल कृष्ण गोखले के विचारों से काफी प्रभावित हुए।

मुजफ्फरनगर में कुछ समय तक अध्यापन कार्य करने के बाद 1909 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कानून की परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए वकालत को अपना पेशा बनाया। बंगाल से बिहार के अलग हो जाने पर वह पटना उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे जहां पर वह एक प्रतिष्ठित वकील के रूप में काबिज हो गए। एक प्रतिष्ठित वकील के रूप में उनकी ख्याति का इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब उनके द्वारा लिए गए केस की पैरवी के दौरान विपक्ष के वकील दलील पेश नहीं कर पाते थे तो जज डॉ राजेंद्र प्रसाद से कहते थे कि आप ही कुछ दलील पेश कर दीजिए।

1915 में डॉ राजेंद्र प्रसाद की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई जिसके उपरांत वह उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए।

1917 में महात्मा गांधी के द्वारा बिहार के चंपारण में नील की खेती करने वाले किसानों को ब्रिटिश शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए चलाए गए चंपारण सत्याग्रह में डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। उनकी सहभागिता को देखते हुए महात्मा गांधी डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को अपना दाया हाथ मानने लगे। उल्लेखनीय है कि चंपारण सत्याग्रह के घटनाक्रमों की स्मृति में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने चंपारण में महात्मा गांधीशीर्षक से एक पुस्तक लिखी।

मुंबई में आयोजित हुए 1934 के कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई।

1942 में आयोजित हुए भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य थे। भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव पास होते ही तमाम कांग्रेसी नेताओं के साथ डॉ राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया एवं इन्हें अहमदनगर की जेल में बंद कर दिया गया जहां से उन्हें 1945 में रिहा किया गया। जेल में रहते हुए डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इंडिया डिवाइडेड नामक पुस्तक लिखी जो तात्कालिक भारतीय राजनीति स्थिति का बड़ा ही वृहद् वर्णन करती है।

1946 में गठित हुई अंतरिम सरकार में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को खाद्य मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई।

भारत के संविधान के लिए गठित संविधान समिति का स्थाई अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को बनाया गया।

भारत की आजादी के उपरांत जब 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ तो भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने का गौरव डॉ राजेंद्र प्रसाद को प्राप्त हुआ। 5 वर्ष के सफल कार्यकाल को पूरा करने के बाद पुनः डॉ राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति पद के द्वितीय कार्यकाल के लिए चुना गया।

भारत के राष्ट्रपति जैसे प्रतिष्ठित पद पर आसीन होने के बावजूद उन्होंने अपना कार्यकाल सादगी से गुजारा। उन्होंने राष्ट्रपति भवन से अंग्रेजों के सारे साजो सामान को हटवा दिया एवं अपने एक कमरे में चटाइयां बिछवाई जहां बैठकर वे चरखा काटा करते थे। राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद राजेंद्र बाबू पटना के सदाकत आश्रममें जाकर रहने लगे थे।

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को 1962 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्नसे अलंकृत किया गया।

अन्तोगत्वा भारत माता की इस महान विभूति ने 28 फरवरी 1963 को इस दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दिया।