चाणक्य के अनुसार इनके बीच पड़ने से हमेशा हानि होती है
चाणक्य के अनुसार इनके बीच पड़ने से हमेशा हानि होती है
विप्रयोर्विप्रवह्नयोश्च दम्पत्योः स्वामिभृत्ययोः ।
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च ॥
शब्दार्थ-
दो ब्राह्मणों के तथा ब्राह्मण और अग्नि के, पति-पत्नी के स्वामी और सेवक तथा हल के और बैल के बीच में होकर नहीं जाना चाहिए ।
भावार्थ-
दो ब्राह्मण, ब्राह्मण और अग्नि, पति और पत्नी, स्वामी और सेवक तथा हल और बैल - इनके बीच में से होकर नहीं निकलना चाहिए ।
विमर्श - उपरोक्त श्लोक में बताए प्राणियों के मध्य से कभी नहीं गुजरना चाहिए अन्यथा हानि ही होगी ।