आचार्य चाणक्य के राजनीति नियम , Chankya Politic Rules With Explanation - Part 01
तदहं सम्प्रवक्ष्यामि लोकाना हितकाम्यया का अर्थ भावार्थ व्याख्या
तदहं सम्प्रवक्ष्यामि लोकाना हितकाम्यया ।
येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रपद्यते ॥ ॥ अध्याय-1 श्लोक - 3॥
शब्दार्थ -
आचार्य चाणक्य यहाँ मानव मात्र की कल्याण की कामना से लोगों के भले के लिये राजनीति को गूढ़ रहस्यों के वर्णन बात करते हैं- जिसको जानकर मनुष्य सर्वज्ञ हो जाता है।
सर्वज्ञ का अर्थ भूत, वर्तमान एवं भविष्यत् का ज्ञाता हो जाना अथवा जानने में काफी समर्थ हो जाता है ।
आचार्य चाणक्य ने यह अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही है कि मनुष्य को यदि राजनीति के सूक्ष्म रहस्यों का ज्ञान हो जाये तो केवल इतने ज्ञान से ही वह अपने सर्वत्र होने का मार्ग तैयार कर सकता है। कहा जाता है कि कोई व्यक्ति सम्पूर्ण वातें नहीं जान सकता अर्थात् उसे सभी बातों का ज्ञान नहीं हो सकता; पर अनेक बातों और विषयों की उसे अच्छी जानकारी तो हो ही सकती है। चाणक्य ने कहा है कि जो उनके ग्रन्थ को अथवा राजनीति से सम्बद्ध उनकी बातों को जान लेगा, वह राजनीति शास्त्र का पण्डित हो जायेगा ।
भावार्थ-
आचार्य चाणक्य ने इस ग्रंथ को पढ़कर पढ़ने वाले के लिए जीवन में सफलता प्राप्त करने के साथ-साथ सर्वज्ञ होने की बात भी की है।
विमर्श -
आचार्य चाणक्य कामना करते हैं कि उनके इस ग्रन्थ को पढ़ने वाला - व्यक्ति सभी कालों का ज्ञाता बन जाये !