काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का इतिहास
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की जानकारी
- अपने सपनों एवं उद्देश्यों को साकार रूप देने के लिए तथा शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए महामना ने काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। 1 अक्टूबर, 1915 को बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी एक्ट पास हुआ और 4 फरवरी, 1916 को भारत के वायसराय लार्ड हार्डिंग ने इसका शिलान्यास किया ।
- यह विश्वविद्यालय अपने में कई महत्वपूर्ण विशेषतायें समाहित किये ये है । अंग्रेजी साहित्य तथा आधुनिक मानविकी और विज्ञान के साथ-साथ हिन्दू धर्म एवं विज्ञान, भारतीय इतिहास एवं संस्कृति एवं विभिन्न प्राच्य विधाओं का अध्ययन इस विश्वविद्यालय की विशेषता है।
- कला संकाय में विभिन्न विषयों के पाठ्यक्रम में आधुनिक पाश्चात्य विद्वानों के साथ ही साथ प्राचीन भारतीय विद्वानों के विचारों और सिद्धान्तों का ज्ञान भी शामिल था। दर्शनशास्त्र के विद्यार्थियों को कांट और हीगल के साथ अनिवार्यतः कपिल और शंकर के सिद्धान्तों का भी अध्ययन करना होता था । राजनीति के विद्यार्थियों को भारतीय राजनीतिक विचारों और संस्थाओं का अध्ययन करना होता था ।
- महामना स्वतंत्र विचारों के निर्भीक व्यक्ति थे। उनके योग्य संरक्षण में विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र विभाग में स्वतंत्रता प्राप्ति के डेढ़ दशक पूर्व ही भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का इतिहास, आधुनिक भारतीय सामाजिक और राजनीतिक विचार तथा समाजवादी सिद्धान्तों का इतिहास आदि विषयों का अध्यापन स्वतंत्रता के वातावरण में पूरी निष्ठा के साथ किया जाता था । दूसरे विश्वविद्यालयों के लिए यह अकल्पनीय बात थी ।
- महामना आर्थिक विकास में आधुनिक विज्ञान और तकनीक की भूमिका से भली भाँति परिचित थे। धन की कमी होने के बावजूद महामना ने विश्वविद्यालय में धातु विज्ञान, खनन विज्ञान, भू विज्ञान, विद्युत इंजीनियरिंग, यांत्रिक इंजीनियरिंग, रसायन विज्ञान, शिल्प, औषधि निर्माण, चिकित्सा की शिक्षा आदि की समुचित व्यवस्था करायी ।
- विश्वविद्यालय का निरन्तर विकास हो रहा है। इसके तीन संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज और इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज काफी प्रसिद्ध है। विश्वविद्यालय में वर्त्तमान में चौदह संकाय और सौ से भी अधिक विभाग है। मुख्य परिसर से लगभग साठ किलोमीटर दूर मिर्जापुर के समीप एक नवीन परिसर, राजीव गाँधी परिसर' ने काम करना प्रारम्भ कर दिया है । भय यह है कि विकास की इस रफ्तार में कहीं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय महामना के उद्देश्यों को विस्मृत न कर बैठे।