सत्येंद्रनाथ बोस का जीवन परिचय, Satyendra Nath Boss Biography in Hindi
सत्येंद्रनाथ बोस का जीवन परिचय, सत्येंद्रनाथ बोस कौन थे
सत्येंद्रनाथ बोस का जन्म 1 जनवरी, 1894 को हुआ था, बोसॉन एक उप-परमाण्विक कण (Subatomic
Particles) है
जिसका नाम सत्येंद्रनाथ बोस के नाम पर पड़ा था। वे भारतीय मैथेमैटिशियन और ओरिटिकल
फिजिक्स में वैज्ञानिक थे। बोस की भौतिकी, गणित, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, खनिज विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य और संगीत सहित विभिन्न क्षेत्रों में
व्यापक रुचि थी। उन्हें 1920 के दशक में क्वांटम मैकेनिक्स के क्षेत्र में उनके द्वारा दिये गए
योगदान के लिये भी याद किया जाता है।उन्होंने बोस स्टैटिस्टिक्स और बोस कंडेंसेट
की स्थापना की थी। बोस तथा आइंस्टीन ने मिलकर बोस-आइंस्टीन स्टैटिस्टिक्स की खोज
की। 1924 में
बोस ने शास्त्रीय भौतिकी के संदर्भ के बिना प्लैंक के क्वांटम विकिरण नियम पर एक
पेपर लिखा। उन्हें भारत सरकार द्वारा 1954 में पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया
था।
सत्येंद्रनाथ बोस जीवन घटना क्रम
1894: कोलकाता में जन्म हुआ
1915: गणित में एम.एस.सी. परीक्षा प्रथम श्रेणी में
सर्वप्रथम आकर उत्तीर्ण की
1916: कोलकाता विश्वविद्यालय में फिजिक्स के
प्राध्यापक के पद पर नियुक्त
1921: ढाका विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग में रीडर
पद पर कार्य किया
1924: “प्लैंक’स लॉ एण्ड लाइट क्वांटम” शोधपत्र लिखा
और आइंस्टीन को भेजा
1924-1926: यूरोप दौरे पर रहे जहाँ उन्होंने क्यूरी, पौली, हाइज़ेन्बर्ग
और प्लैंक जैसे वैज्ञानिकों के साथ कार्य किया
1926-1945: ढाका विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर पद
पर कार्यरत
1945-1956: विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर पद पर
कार्यरत
1956-1958: शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के
कुलपति रहे
1958: रॉयल सोसायटी का फैलो और राष्ट्रीय प्रोफेसर
नियुक्त किया गया
1974: 4 फ़रवरी 1974 को
कोलकाता में उनका निधन हो गया\
सत्येंद्रनाथ बोस का प्रारंभिक जीवन
सत्येन्द्र नाथ बोस का जन्म 1 जनवरी 1894 को
कोलकाता में हुआ था। उनके पिता सुरेन्द्र नाथ बोस ईस्ट इंडिया रेलवे के इंजीनियरिंग
विभाग में कार्यरत थे। सत्येन्द्र अपने सात भाइयों-बहनों में सबसे बड़े थे। उनकी
प्रारंभिक शिक्षा उनके घर के पास ही एक सामान्य स्कूल में हुई थी। उसके बाद
उन्होंने न्यू इंडियन स्कूल और फिर हिंदू स्कूल में दाखिला लिया। अपनी स्कूली
शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कोलकाता के प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज में
दाखिला लिया। उनके बारे में एक दिलचस्प बात ये है की वो अपनी सभी परीक्षाओं में
सर्वाधिक अंक पाते रहे और उन्हें प्रथम स्थान मिलता रहा। उनकी इस प्रतिभा को देख
लोग अक्सर ये कहते थे की वो आगे जाकर बड़े गणितज्ञ या वैज्ञानिक बनेंगे।
सत्येंद्रनाथ बोस की शिक्षा
बोस ने अपनी स्कूली शिक्षा ‘हिन्दू हाईस्कूल’
कोलकाता से पूरी की उसके बाद ‘प्रेसिडेंसी कॉलेज’ में प्रवेश लिया जहाँ पर उस समय
श्री ‘जगदीश चंद्र बोस’ और ‘आचार्य प्रफुल्ल चंद्र राय’ जैसे महान शिक्षक अध्यापन
करते थे। सत्येंद्र नाथ बोस ने सन् 1913
में बी. एस. सी. और सन् 1915 में एम. एस. सी. प्रथम श्रेणी में
उत्तीर्ण किया। मेघनाथ साहा और प्रशांत चंद्र महालनोविस बोस के सहपाठी थे। मेघनाथ
साहा और सत्येंद्र नाथ बोस ने बी. एस. सी. तथा एम. एस. सी. की पढ़ाई साथ-साथ की।
बोस सदैव कक्षा में प्रथम स्थान पर और साहा द्वितीय स्थान पर रहते थे। उस समय भारत
में विश्वविद्यालय और कॉलेज बहुत कम होते थे। अतः विज्ञान शिक्षा प्राप्त छात्रों
का भविष्य बहुत निश्चित नहीं होता था। इसलिए बहुत सारे छात्र विज्ञान की बजाय
दूसरे विषय को चुनते थे। परंतु कुछ छात्रों ने ऐसा नहीं किया। और ये वही लोग
हैंजिन्होंने भारतीय विज्ञान में नये अध्याय जोड़े। सी. वी. रामन का जीवन इसका
बहुत अच्छा उदाहरण है जो विज्ञान शिक्षा प्राप्त करने के बाद सरकारी नौकरी करने
लगे, किंतु विज्ञान के लगाव के कारण नौकरी
के साथ-साथ दस वर्षों तक शोधकार्य में भी लगे रहे और अवसर मिलने पर जमी जमायी
सरकारी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से विज्ञान की साधना में लग गये। सर आशुतोष मुखर्जी
ने रामन को यह अवसर प्रदान किया और बोस एवं साहा की सहायता की। आशुतोष मुखर्जी
पेशे से वकील थे जो आगे चलकर कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने। उस समय बहुत
कम भारतीय इतने ऊँचे पद पर पहुँच पाते थे। आशुतोष मुखर्जी अपने विषय में पारंगत थे
और साथ ही वह विज्ञान में भी बहुत रुचि रखते थे तथा अपने अतिरिक्त समय में वे
भौतिक-गणित पर व्याख्यान भी देते थे।
सत्येंद्रनाथ बोस ने अपना कार्य क्षेत्र विज्ञान को चुना। जब बोस और साहा कोलकाता विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे, उस समय बोस ने सोचा कि विज्ञान में कुछ नया करना चाहिए। बोस और साहा ने निश्चय किया कि पढ़ाने के साथ-साथ कुछ समय शोधकार्य में भी लगायेंगे। शोध के लिए नए-नए विचारों की आवश्यकता होती है इसलिए बोस ने गिब्बस और प्लांक की पुस्तकें पढ़ना शुरू किया। उस समय विज्ञान सामग्री अधिकांशत: फ़्रांसीसी या जर्मन भाषा में होती थी। अतः व्यक्ति को इन भाषाओं का ज्ञान होना आवश्यक था। बोस ने इन भाषाओं को न केवल बहुत जल्दी सीखा बल्कि उन्होंने इन भाषाओं में लिखी कविताओं का बांग्ला भाषा में अनुवाद भी करना प्रारंभ कर दिया था।
सत्येंद्रनाथ बोस और ढाका विश्वविद्यालय
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ
सत्येंद्रनाथ बोस, शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ
सत्येंद्रनाथ बोस, शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल
सन 1921 में ढाका विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। कुलपति डॉ. हारटॉग ढाका विश्वविद्यालय में अच्छे विभागों की स्थापना करना चाहते थे। उन्होंने भौतिकी विभाग में रीडर पद के लिए सत्येन्द्र नाथ बोस को चुना। सन् 1924 में साहा ढाका आए, जो कि उनका गृहनगर था और अपने मित्र बोस से भेंट की। बोस ने साहा को बताया कि वह कक्षा में प्लांक के विकिरण नियम को पढ़ा रहे हैं, परंतु इस नियम के लिए पुस्तकों में दी गई व्युत्पत्ति से वे सहमत नहीं हैं। इस पर साहा ने आइंस्टाइन और प्लांक के द्वारा हाल ही में किए गए कार्यो के प्रति बोस का ध्यान आकर्षित किया।
बोस ने वर्ष 1924 की शुरुआत में ढाका विश्वविद्यालय में 2 वर्ष के अवकाश के लिए आवेदन किया था ताकि वे
यूरोप जाकर नवीनतम विकास कार्यों की जानकारी ले सकें परंतु महीनों तक ढाका
विश्वविद्यालय से कोई उत्तर नहीं आया और इसी दौरान बोस ने अपना सबसे प्रसिद्ध
शोधपत्र लिखा जो उन्होंने आइंस्टाइन को भेजा और उनसे प्रशंसा-पत्र भी प्राप्त किया
था। आइंस्टाइन जैसे महान वैज्ञानिक से प्रशंसा-पत्र प्राप्त करना ही अपने आप में
बड़ी बात थी। जब बोस ने यह प्रशंसा-पत्र विश्वविद्यालय के कुलपति को दिखाया तब
कहीं बोस को 2 वर्ष के अवकाश की अनुमति मिली। यूरोप
में लगभग दो वर्ष रहने के बाद सन् 1926
में बोस ढाका विश्विद्यालय वापस लौट आए। ढाका लौटने के पश्चात बोस से उनके कुछ
साथियों ने ढाका विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद के लिए आवेदन करने हेतु प्रेरित
किया। किंतु प्रोफेसर के लिए पी-एच. डी. होना आवश्यक थी और बोस केवल स्नातकोत्तर
थे। उनके मित्रों ने कहा कि आपको चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि अब आप विख्यात हो
गए हैं और आप आइंस्टाइन को भी जानते है आप आइंस्टाइन से एक प्रशंसा-पत्र ले लीजिए।
आइंस्टाइन ने तुरंत प्रशंसा-पत्र दे दिया परंतु उन्हें इस बात पर बड़ा अश्चर्य हुआ
कि भारत में व्यक्ति को उसके द्वारा किए गए काम के बजाय डिग्री के आधार पर नौकरी
मिलती है।
आइंस्टाइन और बोस
अब बोस ने अपने तरीक़े से प्लांक के नियम की
नयी व्युत्पत्ति दी। बोस के इस तरीक़े ने भौतिक विज्ञान को एक बिलकुल ही नयी
अवधारणा से परिचित कराया। बोस ने इस शोधपत्र को ‘फिलासॉफिकल मैगजीन’ में प्रकाशन
के लिए भेजा परंतु इस बार उनके शोधपत्र को अस्वीकार कर दिया गया, जिससे बोस हतोत्साहित हुए क्योंकि उनका मानना
था कि यह व्युत्पत्ति उनके पहले के कार्यों से कहीं ज़्यादा तार्किक थी। फिर बोस
ने साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने इस शोधपत्र को आइंस्टाइन के पास बर्लिन भेजा, इस अनुरोध के साथ कि वे इस शोधपत्र को पढ़ें
एवं अपनी टिप्पणी दें और यदि वे इसे प्रकाशन योग्य समझें तो जर्मन जर्नल ‘Zeitschrift fur Physik’ में प्रकाशन की व्यवस्था करें। इस
शोधपत्र को आइंस्टाइन ने स्वयं जर्मन भाषा में अनुदित किया तथा अपनी टिप्पणी के
साथ ‘Zeitschrift fur
Physik’ में
अगस्त 1924 में प्रकाशित करवाया। आइंस्टाइन ने इस
शोधपत्र के सम्बंध में एक पोस्टकार्ड भी भेजा था जो बोस के लिए बहुत अधिक उपयोगी
सिद्ध हुआ।
बोस-आइंसटाइन साँख्यिकी सिद्धांत
ग्रहों और उनके सम्बंधों को समझने के लिए न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत की आवश्यकता होती है। उसके अनुसार संसार की हर वस्तु अपने आस-पास पाई जाने वाली दूसरी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है। जैसे सूर्य ग्रहों को, पृथ्वी चंद्रमा को। यह सिद्धांत ज्यादातर जगहों पर तो लागू होता है, लेकिन बहुत सी ऐसी जगहें हैं, जहाँ पर यह काम नहीं आता। यदि हम गैसों के अणुओं की गति की बात करें, तो वहाँ पर यह नियम असहाय हो जाता है। गैसों में असंख्य प्रकार के अणु पाए जाते हैं, जो सदैव गतिशील रहते हैं। इनकी गतिशीलता का गैस के दाब और ताप से एक ख़ास सम्बंध होता है। गैसों के इन अणुओं की गति को समझने के लिए गणित के औसत के नियम का सहारा लिया जाता है। इसे समझने के लिए मैक्सवेल और बोल्ट्जमैन ने जिस गणितीय सिद्धांत की व्युत्पत्ति की, उसे साँख्यिकी के नाम से जाना जाता है। साँख्यिकी औसत के गणित की बात करती है। आधुनिक भौतिक विज्ञान में इसकी आवश्यकता कदम-कदम पर पाई जाती है।
क्सवेल तथा वोल्ट्जमैन द्वारा आविष्कृत ये नियम तब तक सही से काम करते रहे, जब तक वैज्ञानिकों को सिर्फ परमाणुओं के बारे में जानकारी थी। लेकिन जैसे ही वैज्ञानिकों को यह पता चला कि परमाणु के भीतर भी अनेक प्रकार के परमाणु-कण पाए जाते हैं और उनकी गतियाँ बहुत अनोखी होती हैं, उनका यह नियम फेल हो गया। ऐसे में डॉ. सत्येंद्रनाथ बोस ने नये नियमों की खोज की, जो आगे चलकर ‘बोस-आइंसटाइन साँख्यिकी’ के नाम से जाने गये। इस नियम के सामने आने के बाद वैज्ञानिकों ने परमाणु-कणों का गहन अध्ययन किया और पाया कि ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। इनमें से एक का नामकरण डॉ. बोस के नाम पर ‘बोसॉन’ रखा गया और दूसरे का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक एनरिको फर्मी के नाम पर ‘फर्मिऑन’।
जिस व्यक्ति की मेधा को आइंसटाइन जैसे
वैज्ञानिक ने न सिर्फ स्वीकारा बल्कि उसके साथ अपना नाम भी जोड़ा, उस व्यक्ति को नोबेल पुरस्कार न मिलना काफ़ी
सवाल खड़े करता है। यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ज्यादातर वैज्ञानिकों का
मानना है कि भौतिक विज्ञान पर जितना असर ‘बोस-आइंस्टाइन साँख्यिकी’ का पड़ा है, उतना असर तो शायद आने वाले समय में हिग्स बोसॉन
का भी न हो।
प्लांक के नियम से प्रतिवाद
सत्येंद्र नाथ बोस ने Planck’s black body radiation law का गहन अध्यन्न किया और ब्लैक बॉडी
रेडिएशन की फोटोन गैस के रूप में पहचान की। उन्होंने मेक्स प्लांक जिन्होंने
क्वान्टम मेकेनिक्स की रचना की, के
ब्लैक बॉडी रेडीयेशन नियम में लाइट क्वांटा या फोटोन गैस को लेकर प्रतिवाद था
जिसको लेकर आइन्सटाइन भी असहमत थे। यह समय था 1920 का
जब क्वान्टम मेकेनिक्स में यह गुत्थी की तरह थी, क्वान्टम मेकेनिक्स के विकास हो तो रहा था लेकिन गति बेहद धीमी थी
क्योंकि कहीं न कहीं प्लांक्स के नियम को अगले चरण तक ले जाना था। उसी समय भारत
में ढाका विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर सत्येद्र नाथ बोस, क्वान्टम मेकेनिक्स के अध्यन्न में आए और
उन्होंने 1924 को एक चार पृष्ठ के रिसेर्च पेपर लिखा
जिसका शीर्षक था ‘Planck’s
Law and the Hypothesis of Light Quanta (1924)’ जो आज मॉडर्न क्वान्टम मेकेनिक्स और कणों से
जुड़ी किसी भी खोज, अध्ययन का आधार है। सत्येंद्र नाथ का
यह रिसेर्च पेपर आगे चलकर बोस–आइंस्टीन स्टेटिक्स और बोस–आइंस्टीन कनडेनसेट (एक
तरह की स्टेट ऑफ मैटर) के रूप में बदला जिसकी खोज सत्येंद्र नाथ बोस और आइंस्टीन
ने खुद मिलकर की। उनके बारे में लिखा गया कि
“Bose entered the quantum arena and
set out to derive Plancks law treating radiation as a gas consisting of
photons. What Bose had essentially introduced was a new counting rule for the
states of a gas of photons – or the quanta of light – that explained Plancks
law of thermal radiation at one stroke.”
सत्येंद्रनाथ बोस का निधन
सन 1974 में
बोस के सम्मान में कलकत्ता विश्वविद्यालय ने एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
किया। जिसमें देश-विदेश के कई वैज्ञानिक सम्मिलित हुए। इस अवसर उन्होंने कहा “यदि
एक व्यक्ति अपने जीवन के अनेक वर्ष संघर्ष में व्यतीत कर देता है और अंत में उसे
लगता है कि उसके कार्य को सराहा जा रहा है तो फिर वह व्यक्ति सोचता है कि अब उसे
और अधिक जीने की आवश्यकता नहीं है।” और कुछ ही दिनों के बाद 4 फ़रवरी 1974 को
सत्येन्द्र नाथ बोस सचमुच हमारे बीच से हमेशा के लिए चले गए।