शान्तिनिकेतन क्या है इसका इतिहास (Shanti Niketan History in Hindi)
शान्तिनिकेतन क्या है इसका इतिहास
1901 मे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्मचर्य आश्रम की स्थापना बोलपुर के पास की। बाद में इसका नाम उन्होंने शान्तिनिकेतन रखा। यह एक दिलचस्प तथ्य है कि जिस समय ब्रह्मचर्य विद्यालय की स्थापना की गई उस समय टैगोर नेवैद्य नामक कविताएं लिख रहे थे। जिस पर उपनिषद् के आर्दशों का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। उसी समय ब्रह्मबांधव उपाध्याय ने टैगोर को 'गुरुदेव' कहा और वे अंत तक गुरूदेव बने रहे। टैगोर विद्यालयों के नियमों को संहिता पर आधारित करना चाहते थे ताकि भारतीय परम्परा के अनुसार विद्यालय का संचालन किया जा सके।
प्रारंभ में शान्तिनिकेतन को रवीन्द्रनाथ टैगोर के दो पुत्रों रतिन्द्रनाथ तथा समिन्द्रनाथ के साथ प्रारंभ किया गया। बाद में छात्रों तथा अध्यापकों की संख्या बढ़ती गई। 1913 तक गुरूदेव ने स्वंय ही इस संस्था का व्यय वहन किया। 1913 में नोबेल पुरस्कार मिलने के उपरांत आर्थिक संकट कम हुआ । अमेरिका, यूरोप, चीन, जापान आदि देशों के भ्रमण करने से गुरूदेव के शैक्षिक विचारों में परिपक्वता आई शान्तिनिकेतन विश्वभर की संस्कृतियों का मिलन स्थल बन गया जहाँ कोई भी बिना धर्म, देश या संस्कृति के भेदभाव के सम्मानपूर्वक शिक्षा ग्रहण कर सकता था ।
टैगोर शान्तिनिकेतन से कुछ हद तक निराश हुए। उन्हें लगा कि उसमें उनके विचारो पर अमल नहीं किया जा रहा है। वे कहते हैं "अभिभावकों की अवसरवादिता परीक्षा प्रणाली लागू करने के लिए जिम्मेवार है। इसने एक प्रकार से आजादी और स्वतः स्फूर्तता का वातावरण कमजोर किया ।"