अजीर्णे भेषजं वारि का अर्थ ( शब्दार्थ भावार्थ)
अजीर्णे भेषजं वारि का अर्थ ( शब्दार्थ भावार्थ)
शब्दार्थ-
अपच होने पर जल पीना औषध है, भोजन के पच जाने पर जल का सेवन बल देने वाला है और भोजन के मध्य में जल का पीना अमृत के समान गुणकारी है, परन्तु भोजन के अन्त में जल का सेवन विष के समान हानिकारक होता है।
भावार्थ-
अपच में जल पीना औषध के समान है, भोजन पचने पर पानी पीना वलप्रद है, भोजन के मध्य में जल का सेवन अमृत के समान गुणकारी है और भोजन के अन्त में पानी पीना विष के समान हानिकारक है ।
विमर्श -
अजीर्ण में भोजन न करके केवल जल पीना औषध का काम करता है, भोजन पच जाने पर अर्थात् भोजन करने के तीन घण्टे बाद जल का सेवन करने से पाचन में बाधा उत्पन्न न करने के कारण वह बलदायक होता है। भोजन के बीच में घूंट-घूंट करके पिया हुआ जल भोजन में रुचि उत्पन्न करने के कारण अमृत के समान गुणकारी होता है और भोजन करके तुरन्त सेवन किया हुआ जल पाचक रसों को पतला तथा भोजन को बहुत शीघ्र महास्रोत में नीचे जाने के कारण विष के समान हानिकारक है।