चाणक्य के अनुसार मनुष्य को कैसे स्वाभाव का नही होना चाहिए
नाऽत्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम् । छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः ॥ ॥ अध्याय 7 श्लोक 1201
शब्दार्थ - अत्यधिक सीधे स्वभाव का नहीं होना चाहिए। वन में जाकर देखो वहाँ सीधे वृक्ष काट दिये जाते हैं और टेढ़े-मेढ़े वृक्ष खड़े रहते हैं।
भावार्थ - मनुष्य को अत्यंत सरल और सीधे स्वभाव का नहीं बनना चाहिए। वन में जाकर देखो, वहाँ सीधे वृक्ष काट डाले जाते हैं और टेढ़े-मेढ़े वृक्ष खड़े रहते हैं, उन्हें कोई नहीं काटता ।
विमर्श - मनुष्य को इतना सरल-सीधा-सादा नहीं बनना चाहिए कि जो देखे वही मुख में डाल लें। मनुष्य में कोमलता हो, परन्तु साथ ही उसमें तीक्ष्णता भी होनी चाहिए, दुष्टों को दण्ड देने की शक्ति भी होनी चाहिए।