चाणक्य के अनुसार उनके लिए उत्सव का क्या अर्थ है
चाणक्य के अनुसार उनके लिए उत्सव का क्या अर्थ है
आमन्त्रणोत्सवा विप्रा गावो नवतृणोत्सवाः । पत्युत्साहयुता नार्यः अहं कृष्ण-रणोत्सवः ॥
शब्दार्थ-
ब्राह्मणों के लिए भोजन के लिए निमन्त्रण मिलना ही उत्सव होता है। गौओं के लिए नवीन घास की प्राप्ति ही उत्सव है। पति का उत्साह से युक्त होना ही स्त्रियों के लिए उत्सव है । चाणक्य जी कहते हैं, मेरे लिए तो भयंकर मार-काट वाला युद्ध ही उत्सव है।
भावार्थ-
भोजन के लिए निमंत्रण ब्राह्मणों के लिए उत्सव' के लिए नई-नई घास की प्राप्ति होना गौओं के लिए उत्सव के समान है। पति का ' उत्साह से युक्त रहना ही स्त्रियों के लिए उत्सव के समान है और मेरे (चाणक्य के लिए भयंकर मार-काट वाला युद्ध ही उत्सव के समान है। समान है। चरने
विमर्श -
आचार्य चाणक्य उपरोक्त श्लोक में अपने विषय में कहते हैं, "मेरे लिए तो भयंकर मार-काट वाला युद्ध ही उत्सव है।"