अधः पश्यसि किं बाले पतितं का अर्थ
अधः पश्यसि किं बाले पतितं का अर्थ
अधः पश्यसि किं बाले पतितं तव किं भुवि ।
रे रे मूर्ख न जानासि गतं तारुण्यमौक्तिकम् ॥
शब्दार्थ-
किसी अत्यंत वृद्धा को, जिसकी कमर झुक गई है, देखकर कोई युवक व्यंगबाण छोड़ते हुए पूछता है - "हे नव! तरुणी ! नीचे क्या देखती है, खोजती है ? तेरा पृथ्वी पर क्या गिर पड़ा है, तुम्हारा क्या खो गया है?" इस व्यंगबाण को सुनकर वृद्धा बोली - "अरे ओ मूर्ख ! तू नहीं जानता कि मेरा यौवनरूपी मोती खो गया है ( मैं उसी को ढूंढ रही हूँ) ।
भावार्थ - किसी मनचले युवक ने किसी वृद्धा से पूछा - "हे बाले ! तू क्या खोजती फिर रही है, पृथ्वी पर तेरी कौन-सी वस्तु खो गई है?" वृद्धा ने कहा- "अरे मूर्ख ! तुझे पता नहीं है कि मेरा यौवनरूपी मोती खो गया है, मैं उसी को खोजती फिर रही हूँ ।"
विमर्श - वृद्धों का आदर-सम्मान करना चाहिए। उन पर व्यंग नहीं कसने चाहिएँ। एक दिन व्यंगवाण चलाने वालों की भी वही अवस्था हो सकती है