विश्व के प्रथम ज्ञात गणितज्ञ महात्मा लगध
विश्व के प्रथम ज्ञात गणितज्ञ महात्मा लगध
पुस्तक चर्चा/राजेश्वर त्रिवेदी
वैदिक गणित भारत में कई हजारों वर्षों से जाना जाता है। वैदिक गणित शब्द उस गणित को इंगित करता है जिसका मूल वेदों में है। फिर, वेद क्या है? वेद का अर्थ है ज्ञान, जिसमें आध्यात्मिक ज्ञान और सांसारिक ज्ञान दोनों शामिल हैं। लगभग 1500 ईसा पूर्व के भारत के महान गणितज्ञ लगध ने वेदांग ज्योतिष की अपनी पुस्तक में कहा है कि ‘‘एक मोर की शिखा की तरह और नागों के फण पर रत्नों की तरह, गणित सभी ज्ञान प्रणालियों के शीर्ष पर है।‘‘ महात्मा लगध भारतीय ऋषि परंपरा के एक अग्रगण्य नाम है, जिन्होंने वशिष्ठ, मनु, पौलस्त्य, लोमश मरीचि, अंगिरा, व्यास, नारद, शौनक तथा भृगु आदि की गणितीय परंपरा को प्रशस्त किया है। वेदांग ज्योतिष के प्रथम गणितज्ञ के रूप में लगध को वैश्विक मान्यता प्राप्त है। लगध ऋग्वेदीय वेदांग ज्योतिष के कर्ता के रूप में सर्वमान्य हैं। शोधकर्ता उनका समय कलि सम्वत् 1301, विक्रम संवत् पूर्व 1743, या कहें कि ईसवी पूर्व 1800 निर्धारित करते हैं। लगध लिखित वेदांग ज्योतिष को ज्योतिर्विज्ञान का मूलग्रंथ माना जाता है। लगध के वेदांग ज्योतिष के बाद आगे के वक्त में वराहमिहिर, आर्यभट, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त आदि ने ज्योतिर्विज्ञान को और अधिक विकसित तथा समृद्ध किया। भारत विद्या के अध्येता मैक्समूलर के अनुसार लगध का यह ग्रंथ आकाशीय ग्रहों के बारे में वह ज्ञान प्रदान करता है जो वैदिक यज्ञादि के दिन-मुहूर्त निर्णय के लिए आवश्यक है।
महात्मा लगध का जन्म स्थान के विषय में माना जाता है कि वे कश्मीर के अवंतिपुरा या वर्तमान में प्रचलित नाम अवंतिपोर के निवासी थे। किशोरावस्था में ही विद्यार्जन के लिए महर्षि संदीपनी के आश्रम उज्जैन आए थे। देश के अग्रणी गणितज्ञ-रचनाकार डॉ. घनश्याम पाण्डेय ने लगध को केंद्र में रखकर जिस ऐतिहासिक उपन्यास ‘महात्मा लगध‘ को रचा है वह इस महान गणितज्ञ के जीवन और उनकी अमर कृति ‘वेदांग ज्योतिष‘ का सप्रमाण विवरण प्रस्तुत करता है।
अंक विद्या पृथ्वी तल पर ज्ञान की समस्त शाखाओं में गणित का उद्भव प्राचीनतम है। आदिमानव जब से अपने दो नेत्रों तथा एक हाथ की पाँच अंगुलियों की पहचान करने लगा था, वही गणित का मूल स्रोत है। मानव सभ्यता एवं संस्कृति का प्राचीनतम प्रलेख वेदों में संचित है। चारों वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन एवं वृहत् है। वैदिक काल के ऋषियों द्वारा देवी-देवताओं की प्रशस्ति में विविध प्रकार के छंदों में मंत्रों की रचना की गई थी। प्रसंगवश इन मंत्रों में गणित के कुछ मूल तत्व भी समाहित हैं, जो उस युग में प्रचलित गणित की कतिपय विधाओं को प्रकट करते हैं। यद्यपि ‘गणित‘ शब्द का उल्लेख ऋग्वेद में नहीं है, किन्तु यजुर्वेद की एक ऋचा (सत्यवाणी) में ‘गणक‘ अर्थात् गणितज्ञ को सम्माननीय कहा गया है। यह सुविदित है कि वैदिक युग के गणितीय ज्ञान का बड़ा भाग तिरोहित हो गया था, जिसके नवीकरण में वेदांग ज्योतिष का महान योगदान रहा है, जो विश्व गणित के इतिहास की अमूल्य निधि है। 9 एवं 0 के संकेतों द्वारा वृहत एवं लघु संख्याओं वस्तुतः 1, 2 को व्यक्त करने की विधि ही समस्त गणित, विज्ञान तथा टेक्नालॉजी मूल में अन्तर्निहित है, जिसके नवीकरण का श्रेय महात्मा लगध को दिया जाता है। भारत वर्ष के इस अद्वितीय महान गणितीय योगदान की लाप्लास, हरमन हैंकल, अल्बर्ट आइन्स्टीन, ए.एल. बाशम प्रकृति लोकविश्रुत विद्वानों द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है, जिनके शब्दशः विवरण ग्रन्थ में प्रस्तुत किए गए हैं। लगभग 18 अध्याय वाली इस ऐतिहासिक औपन्यासिक कृति में लेखक घनश्याम पाण्डेय ने अपनी कल्पनाशीलता और शोध से लगध की जीवन यात्रा को बहुत ही विस्तृत ढंग से चित्रित करने का प्रयास किया है।
लगध की सुदूर कश्मीर से उज्जैन तक की यात्रा के सजीव वर्णन से शुरू होने वाली यह कृति महर्षि सांदीपनि के गुरुकुल वहाँ की शिक्षा पद्धति, परिवेश और उन समस्त बातों को उल्लेखित करती है जो ज्ञानार्जन के लिए आवश्यक रही है। वस्तुतः लगध द्वारा विरचित वेदांग ज्योतिष का मूल उद्देश्य गणित के अनुप्रयोग द्वारा एक ऐसी पंचांग पद्धति का विकास करना था जो सरल ढंग से चंद्र वर्ष, सौर वर्ष एवं सावन वर्ष के मध्य सामंजस्य स्थापित कर सके। इस कार्य में लगध पूर्णतः सफल रहे। महान गणितज्ञ वेदांग ज्योतिष के रचयिता महात्मा लगध की जीवन यात्रा को यह कृति बहुत ही विस्तृत रूप से कहती है। महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास लगध के जीवन का इतिवृत्तात्मक वर्णन नहीं है बल्कि इसके माध्यम से लगध के गणित और ज्योतिष सम्बन्धी योगदान को रेखांकित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।