मध्यकालीन राजस्थान स्थापत्य कला- रिहायशी महल एवं हवेलियां
राजस्थान - रिहायशी महल एवं हवेलियां
➽ रिहायशी भवनों में महल एवं हवेलियां आती हैं जो उनमें रहने वालों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के अनुसार बनाई जाती थीं । सामाजिक स्तर ही परिवार और व्यक्ति की आवश्यकताएं भी निश्चित करती है, उदाहरण के लिए राजा को दरबार के लिए दीवान खाना अर्थात बडे बैठक की आवश्यकता होती थी जबकि उसके मंत्री एवं अधीनस्थ अधिकारी छोटी बैठक खाने से ही काम चला सकते थे । दूसरा महत्वपूर्ण उपादान था भवन निर्माण सामग्री का जिस क्षेत्र में जो सामग्री आसानी से उपलब्ध थी, लोग उसी का उपयोग करते थे उदाहरणार्थ पश्चिमी राजस्थान में भवन निर्माण के लिए पत्थर का उपयोग अधिक होता है जबकि पूर्वी राजस्थान में ईट व मिट्टी का, यहां तक कि भरतपुर के प्राचीन किले की दीवार ही मिट्टी की है।
➽ मध्यकालीन राजस्थान के महलों की योजना प्राचीन भारतीय पद्धति पर ही आधारित थी, पहले हर्षचरित में वर्णित महलों की योजना के बहुत निकट रही बाद में वह भी विशेषकर मुगल सम्पर्क में आने पर कुछ परिवर्तन अवश्य आए महलों के साथ उद्यान पहले भी होते थे, पर अब उसकी योजना 'चार बाग' प्रकार की हो गई । इसी प्रकार जालियों में ज्यामितिक अलंकरणों की भरमार हो गई और मेहराब भी कटावदार प्रकार का हो गया। शाहजहाँ काल में 16वी शती के भारी स्तम्भ और हाथियों तथा मयूरों वाले घुडियों के स्थान पर लम्बे खम्भे बनने लगे जिनपर लम्बी पत्तियों वाला अलंकरण होता था शृंगारिक अभिप्रायों में फूल-पत्तियों वाले पौधों का संयोजन होने लगा इसी पृष्ठभूमि के साथ कुछ प्रमुख उदाहरणों की जानकारी आगे के पृष्ठों में दी जाएगी ।
➽ महलों में सात 'पोल' या दरवाजे बनाये जाते थे जो सुविधानुसार कम भी कर दिए जाते थे, यहीं हम आंबेर के महलों का उदाहरण देंगे, सूरजपोल से अन्दर जाते ही जलेब चौक है जहां जलेबदार रक्षकों का पहरा रहता था। सूरजपोल के ठीक सामने चन्द्रपोल है जिससे आंबेर नगर में जाने का रास्ता है । जलेब चौक की सीढ़ियों से चढ़ कर एक बड़े चौक में पहुंचते ही सामने बाई ओर दीवानखाना है और उससे लगे कार्यालय, दाई ओर गणेशपोल है जो महलों का प्रदेश द्वार है, इस दरवाजे से अन्दर जाने पर सामने उद्यान है और दोनों ओर रिहायशी बडे कमरे जिन्हें सुख मन्दिर व जस मन्दिर कहते हैं, राजस्थानी शब्दाबली में 'दरीखाना' भी कहा जा सकता है। उसके बाद जनाना महल और चौक इत्यादि । बाहर की ओर गणेशपोल के दाई ओर भोजनशाला और बाई ओर हमाम है। राजमहलों से ही लगा हुआ अस्तबल और हस्तिशाला भी होती थी इन राजभवनों में कुछ हिस्सों के नाम उनकी बनावट व उपयोगिता पर आधारित होते थे जैसे बादल महल, जहां बैठ कर वर्षा ऋतु का आनंद लिया जा सके, 'हवामहल' जहां खूब हवा आए अर्थात् हवादार स्थान.
➽ कुछ हिस्सों के नाम उनके निर्माताओं अथवा रहने वालों पर भी रखे जाते थे जैसे जयपुर नग प्रसाद का प्रताप मन्दिर, महाराजा प्रतापसिंह ने बनवाया था और उदयपुर में जगतसिंह की चित्रशाला, महाराणा जगतसिंह ने बनवायी थी। विशिष्ट व्यक्तियों, पुरोहितों एवं प्रमुख उमरावों व सरदारों के निवास, राजमहलों के छोटे संस्करण ही थे, यहाँ भी जनाने एवं मरदाने हिस्से पृथक-पृथक होते थे, बड़ी-बड़ी बैठकें होती थी और सुन्दर भित्ति चित्रों से युक्त शयनकक्ष सहित घोडे, हाथियों और बहीलयों के रखने की जगह सहित ये हवेलियां कभी-कभी राजमहलों से भी मथ होती थी ।
➽ जयपुर में छोटी चौपड़ स्थित नाटाणी की हवेली जिसमें आजकल बालिका विद्यालय है, इसी प्रकार की है। तीन चौकों वाली इस हवेली में घोड़ों, रथों व बहीलयों के खड़े करने के स्थान भी हैं । ब्रह्मपुरी स्थित सवाई जयसिंह के गुरु रत्नाकर पुण्डरीक की हवेली और गणगौरी बाजार में पुरोहित प्रतापनारायण जी की हवेली अपने भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं। जैसलमेर एवं बीकानेर की हवेलियां पत्थर की खुदाई के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां के घरों में पानी के टांके बनाने की भी प्रथा थी और हर घर में पालर (बरसाती पानी के लिए टांके बने होते थे। जैसलमेर में सालिमीसंह व नथमल की हवेली, कोटा में बुधसिंह बाफना की हवेली मध्यकालीन हवेली स्थापत्य के अच्छे उदाहरण है ।
➽ महलों एवं हवेलियों के दो भाग होते थे, जनाना एवं मरदाना, जो अपने आप में स्वतंत्र होते थे महलों में प्रत्येक रानी राजमाता वगैरह का अपना 'रावला' होता था जो आज के अपार्टमेंट की तरह ही था, अपने आप में पूरा निवास, एक चौक चारों और बरामदे और कमरे साथ ही स्नानघर और रसोई भी होती थी। जनाना में जो जनानी ड्योढ़ी कहलाती थी, एक सरकारी चौक भी होता था, जब राजा अपने किसी निकट के रिश्तेदार की मेजबानी करता जिसमें महिलाओं के कार्यक्रम भी होते या महारानी या राजमाता किसी उत्सव का आयोजन करती तो वह कार्यक्रम यही होता था । इसके स्थापत्य में बड़ा चौक और उसमें बहुत बड़ी खुली बारहदरी होती, जयपुर जनानी ड्योढ़ी में संगमरमर का बहुत अच्छा काम हुआ है ।