मध्यकालीन राजस्थान स्थापत्य कला- रिहायशी महल एवं हवेलियां |Rajasthan - Residential Palaces and Haveli - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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रविवार, 16 अक्तूबर 2022

मध्यकालीन राजस्थान स्थापत्य कला- रिहायशी महल एवं हवेलियां |Rajasthan - Residential Palaces and Haveli

मध्यकालीन राजस्थान स्थापत्य कला- रिहायशी महल एवं हवेलियां

मध्यकालीन राजस्थान स्थापत्य कला- रिहायशी महल एवं हवेलियां |Rajasthan - Residential Palaces and Haveli

 

राजस्थान - रिहायशी महल एवं हवेलियां

रिहायशी भवनों में महल एवं हवेलियां आती हैं जो उनमें रहने वालों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के अनुसार बनाई जाती थीं । सामाजिक स्तर ही परिवार और व्यक्ति की आवश्यकताएं भी निश्चित करती हैउदाहरण के लिए राजा को दरबार के लिए दीवान खाना अर्थात बडे बैठक की आवश्यकता होती थी जबकि उसके मंत्री एवं अधीनस्थ अधिकारी छोटी बैठक खाने से ही काम चला सकते थे । दूसरा महत्वपूर्ण उपादान था भवन निर्माण सामग्री का जिस क्षेत्र में जो सामग्री आसानी से उपलब्ध थीलोग उसी का उपयोग करते थे उदाहरणार्थ पश्चिमी  राजस्थान में भवन निर्माण के लिए पत्थर का उपयोग अधिक होता है जबकि पूर्वी राजस्थान में ईट व मिट्टी कायहां तक कि भरतपुर के प्राचीन किले की दीवार ही मिट्टी की है।

 

  मध्यकालीन राजस्थान के महलों की योजना प्राचीन भारतीय पद्धति पर ही आधारित थीपहले हर्षचरित में वर्णित महलों की योजना के बहुत निकट रही बाद में वह भी विशेषकर मुगल सम्पर्क में आने पर कुछ परिवर्तन अवश्य आए महलों के साथ उद्यान पहले भी होते थेपर अब उसकी योजना 'चार बागप्रकार की हो गई । इसी प्रकार जालियों में ज्यामितिक अलंकरणों की भरमार हो गई और मेहराब भी कटावदार प्रकार का हो गया। शाहजहाँ काल में 16वी शती के भारी स्तम्भ और हाथियों तथा मयूरों वाले घुडियों के स्थान पर लम्बे खम्भे बनने लगे जिनपर लम्बी पत्तियों वाला अलंकरण होता था शृंगारिक अभिप्रायों में फूल-पत्तियों वाले पौधों का संयोजन होने लगा इसी पृष्ठभूमि के साथ कुछ प्रमुख उदाहरणों की जानकारी आगे के पृष्ठों में दी जाएगी ।

 

  महलों में सात 'पोलया दरवाजे बनाये जाते थे जो सुविधानुसार कम भी कर दिए जाते थेयहीं हम आंबेर के महलों का उदाहरण देंगेसूरजपोल से अन्दर जाते ही जलेब चौक है जहां जलेबदार रक्षकों का पहरा रहता था। सूरजपोल के ठीक सामने चन्द्रपोल है जिससे आंबेर नगर में जाने का रास्ता है । जलेब चौक की सीढ़ियों से चढ़ कर एक बड़े चौक में पहुंचते ही सामने बाई ओर दीवानखाना है और उससे लगे कार्यालयदाई ओर गणेशपोल है जो महलों का प्रदेश द्वार हैइस दरवाजे से अन्दर जाने पर सामने उद्यान है और दोनों ओर रिहायशी बडे कमरे जिन्हें सुख मन्दिर व जस मन्दिर कहते हैंराजस्थानी शब्दाबली में 'दरीखानाभी कहा जा सकता है। उसके बाद जनाना महल और चौक इत्यादि । बाहर की ओर गणेशपोल के दाई ओर भोजनशाला और बाई ओर हमाम है। राजमहलों से ही लगा हुआ अस्तबल और हस्तिशाला भी होती थी इन राजभवनों में कुछ हिस्सों के नाम उनकी बनावट व उपयोगिता पर आधारित होते थे जैसे बादल महलजहां बैठ कर वर्षा ऋतु का आनंद लिया जा सके, 'हवामहलजहां खूब हवा आए अर्थात् हवादार स्थान. 

 

  कुछ हिस्सों के नाम उनके निर्माताओं अथवा रहने वालों पर भी रखे जाते थे जैसे जयपुर नग प्रसाद का प्रताप मन्दिरमहाराजा प्रतापसिंह ने बनवाया था और उदयपुर में जगतसिंह की चित्रशालामहाराणा जगतसिंह ने बनवायी थी। विशिष्ट व्यक्तियोंपुरोहितों एवं प्रमुख उमरावों व सरदारों के निवासराजमहलों के छोटे संस्करण ही थेयहाँ भी जनाने एवं मरदाने हिस्से पृथक-पृथक होते थेबड़ी-बड़ी बैठकें होती थी और सुन्दर भित्ति चित्रों से युक्त शयनकक्ष सहित घोडेहाथियों और बहीलयों के रखने की जगह सहित ये हवेलियां कभी-कभी राजमहलों से भी मथ होती थी ।

 

  जयपुर में छोटी चौपड़ स्थित नाटाणी की हवेली जिसमें आजकल बालिका विद्यालय हैइसी प्रकार की है। तीन चौकों वाली इस हवेली में घोड़ोंरथों व बहीलयों के खड़े करने के स्थान भी हैं । ब्रह्मपुरी स्थित सवाई जयसिंह के गुरु रत्नाकर पुण्डरीक की हवेली और गणगौरी बाजार में पुरोहित प्रतापनारायण जी की हवेली अपने भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं। जैसलमेर एवं बीकानेर की हवेलियां पत्थर की खुदाई के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां के घरों में पानी के टांके बनाने की भी प्रथा थी और हर घर में पालर (बरसाती पानी के लिए टांके बने होते थे। जैसलमेर में सालिमीसंह व नथमल की हवेलीकोटा में बुधसिंह बाफना की हवेली मध्यकालीन हवेली स्थापत्य के अच्छे उदाहरण है ।

 

  महलों एवं हवेलियों के दो भाग होते थेजनाना एवं मरदानाजो अपने आप में स्वतंत्र होते थे महलों में प्रत्येक रानी राजमाता वगैरह का अपना 'रावलाहोता था जो आज के अपार्टमेंट की तरह ही थाअपने आप में पूरा निवासएक चौक चारों और बरामदे और कमरे साथ ही स्नानघर और रसोई भी होती थी। जनाना में  जो जनानी ड्योढ़ी कहलाती थीएक सरकारी चौक भी होता थाजब राजा अपने किसी निकट के रिश्तेदार की मेजबानी करता जिसमें महिलाओं के कार्यक्रम भी होते या महारानी या राजमाता किसी उत्सव का आयोजन करती तो वह कार्यक्रम यही होता था । इसके स्थापत्य में बड़ा चौक और उसमें बहुत बड़ी खुली बारहदरी होतीजयपुर जनानी ड्योढ़ी में संगमरमर का बहुत अच्छा काम हुआ है ।