बिजौलीय किसान आंदोलन | Bijoliya Kisan Aandolan - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शनिवार, 18 नवंबर 2023

बिजौलीय किसान आंदोलन | Bijoliya Kisan Aandolan

बिजौलीय किसान आंदोलन

बिजौलीय किसान आंदोलन | Bijoliya Kisan Aandolan
 

बिजौलीय किसान आंदोलन

  • राजस्थान के किसान आन्दोलन के इतिहास में पहला संगठित किसान आन्दोलन उदयपुर राज्य की रिजौलिया जागीर में हुआजिससे प्रभावित होकर राजस्थान के अन्य राज्यों के किसानों ने भी आन्दोलन आरम्भ किये। बिजौलिया जो वर्तमान भीलवाडा जिले में स्थित हैमेवाड राज्य में प्रथम श्रेणी की जागीर थी । इसका क्षेत्रफल लगभग एक सौ वर्ग मील था। इसके अन्तर्गत 40 गाँव थे । 1891 में बिजौलिया कस्बे की जनसंख्या 4000 तथा सम्पूर्ण जागीर की जनसंख्या 12000 थी। धाकड जाति के किसानों का यहां बाहुल्य था । वे अपने परिश्रम तथा दक्षता के लिए प्रसिद्ध थे और जातिगत आधार पर संगठित थे तथा पंचायत व्यवस्था में उनकी दृढ़ निष्ठा थी। रिजौलिया जागीर क्षेत्र के पूर्ति में कोटा बूंदी के राज्य थेदक्षिण ग्वालियर राज्य की सीमा थी और उत्तर-पश्चिम में राज्य के क्षेत्र थे। इस जागीर की भौगोलिक बनावट इस प्रकार थी कि यहां के कृषक आन्दोलन के समय बड़ी आसानी से पड़ौसी सीमावर्ती राज्यों में पलायन कर सकते थे। यहां के अधिकांश लोगों का जीवन निर्वाह कृषि पर आधारित था ।

 

बिजौलिया किसान आन्दोलन का चरणबद्ध विकास 

  • बिजौलीय किसान आंदोलन को तीन प्रमुख चरणों में बांटा जा सकता हैं। पहला चरण 1897- 1915, जिसे स्वतः स्फूर्त आन्दोलन की संज्ञा दी जा सकती हैजिसे स्थानीय नेतृत्व ने आगे बढ़ाया । दूसरा चरण 1915-1923 तक रहा जिसे किसानों की नई चेतना का काल कहा जा सकता हैजिसका नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षित एवं परिपक्व नेताओं ने कियाजिससे यह आन्दोलन राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ गया । तीसरा चरण 1923-1941 तक चला। इस आन्दोलन के मुख्य मुद्दे भूराजस्व प्रणालीलाग-बागकिसानों की कर्जदारीनिर्धनताबेगारशिक्षा व्यवस्थाओं की सुविधाओं से संबन्धित थे कुल मिलाकर सामन्ती शोषण से किसानों की मुक्ति प्राप्त करने की उत्कंठा इस आन्दोलन के मुख्य कारण थे. 

 

1 बिजौलीय किसान आंदोलन का प्रथम चरण (1897-1915 ई.) 

  • वर्ष 1987 में बिजौलिया ठिकाने के हजारों धाकड जाति के किसान एक मृत्यु भोज के अवसर पर गिरधरपुरा गाँव में एकत्रित हुए । शोषित एवं उत्पीडित किसानों ने अपने-अपने कष्टों एवं दुर्दशा के बारे में एक-दूसरे से चर्चा की और निर्णय लिया कि उनके प्रतिनिधि उदयपुर जाकर महाराणा फतेहसिंह सेनेट कर न्याय की मांग करेंगे। इस निर्णय के अनुसार उन्होने बैरीवाल पाद के निवासी नानजी पटेल और गोपाल निवास के ठाकरी पटेल को महाराणा से मिलने के लिए उदयपुर भेजा। इस प्रतिनिधि मण्डल की शिकायत पर महाराणा ने जांच करवायी और यह पाया कि किसानों की शिकायत सही थी. महाराणा ने बिजौलिया के जागीरदार को किसानों के प्रति अपने व्यवहार एवं प्रशासन में परिवर्तन करने की सलाह दी। जागीरदार ने इस सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया तथा प्रतिनिधि मण्डल के सदस्यों को जागीर क्षेत्र से निष्कासित कर दिया ।

 

  • वर्ष 1899 1900 के अकाल के दौरान किसानों की आर्थिक स्थिति अत्यधिक दयनीय हो गयी थी 1903 की एक घटना से किसानों को खुले आम जागीरदार की सज्ञा को चुनौती देने के लिए मजबूर होना पड़ा । इस वर्ष 'चंवरी नामक एक नई लाग किसानों पर थोंप दी गयी थीजिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पुत्री की शादी के समय 13 रूपये चंवरी लाग देना निर्धारित किया गया था । इस नई लगान का विरोध करने हेतु लगभग 200 विवाह योग्य कुंवारी लडकियों के साथ भारी संख्या में किसान जागीरदार के समक्ष प्रस्तुत हुए। जागीरदार ने किसानों के साथ अपमानजनक व्यवहार किया और यहां तक कह दिया कि इन लड़कियों को बाजार में बेच दो तथा चंवरी लाग जमा करा दो। इस बात पर किसानों ने निर्णय लिया कि वे ऐसे स्थान पर नहीं रहेंगे जहां जागीरदार हमारी लड़कियों को बिकवाना चाहता है। उसी रात को अनेक गांवों के किसान सीमावर्ती ग्वालियर राज्य के लिए प्रस्थान कर गये। किसानों के निष्ठमण से जागीरदार का चिन्तित होना स्वाभाविक था । अतः जागीरदार ने निष्ठ वाले किसानों को 1904 में वापस बुलवाकर 'चंवरी लागको समाप्त करने के साथ-साथ भू-राजस्व लाग-बाग एवं बेगार सम्बन्धी कई रियायतें देने की घोषणा की। इन रियायतों का किसानों को अधिक समय तक लाभ नहीं मिल पायाक्योंकि 1906 में इन रियायतों को समाप्त कर दिया गया था । 1906 में बिजौलिया के जागीरदार कृष्णीसंह की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी पृथीसिंह ने न केवल उपर्युक्त रियायतों को समाप्त कर दिया बल्कि एक नई लाग 'तलवार बंधाई (उत्तराधिकारी लाग) किसानों पर थोंप दी थी। नये जागीरदार ने निर्दयतापूर्वक अवैध करों की वसूली करना आरम्भ कर दिया था। इसके परिणामस्वरूप किसानों का असंतोष बढ़ता रहा। इस असंतोष को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया गया ।

 

  • वर्ष 1913 में बिजौलिया के किसानों ने पुनः आन्दोलन का रास्ता अपनायाजिसका नेतृत्व सीतारामदास नामक साधु ने किया। अभी तक किसान स्वयं अपना नेतृत्व कर रहे थेकिन्तु अब एक धार्मिक व्यक्ति उसका नेतृत्व कर रहा थाइससे किसानों में नई शक्ति एवं साहस का संचार हुआ । मार्च 1913 में साधु सीतारामदास के नेतृत्व में लगभग एक हजार किसान जागीरदार के महल में सामने अपनी शिकायतें प्रस्तुत करने के लिए एकत्रित हुए। जागीरदार ने इनसे मिलने से इन्कार कर दिया जागीरदार के इस अशिष्ट व्यवहार से किसान नाराज हो गये। किसानों ने 1913-1914 में खेत न जोतने का निर्णय लिया। इससे जागीरदार को बड़ी हानि उठानी पड़ी। किसानों ने ग्वालियरबूंदी एवं उदयपुर की खालसा भूमि पर खेती करके गुजारा किया। जागीरदार ने किसान आन्दोलन से जुड़े व्यक्तियों के विरुद्ध दमनकारी नीति अपनाई । इसी बीच दिसम्बर, 1913 में जागीरदार पृथ्वी सिंह मृत्यु हो गयी तथा उसका अल्प वयस्क पुत्र केसरीसिंह जागीरदार बना । जागीरदार की अल्पवयस्कता के कारण जागीर का नियन्त्रण सीधे उदयपुर राज्य के अन्तर्गत आ गया था । उदयपुर राज्य ने स्थिति से निपटने के लिए जनश्री, 1914 में बिजौलिया के किसानों की समस्याओं की जांच करके 24 जून, 1914 को किसानों के लिए कुछ रियायते देने की घोषणा की। किन्तु इन रियायतों का वास्तविक लाभ किसानों तक नहीं पहुंचा । किसान आन्दोलन के पहले चरण का मूल्यांकन करते हुए निष्कर्षत यह कहा जा सकता है कि इस चरण में किसानों में नई चेतना एवं साहस का संचार हुआ। इसने ऐसी पृष्ठभूमि तैयार की जिस पर सामन्त विरोधी भावनाओं को प्रकाश में लाया जा सका. 

 

2 बिजौलीय किसान आन्दोलन का द्वितीय चरण (1915-1923) 

  • बिजौलिया किसान आन्दोलन के दूसरे चरण का मुख्य नायक विजयसिंह पथिक था। 1915 में साधु सीतारामदास ने विजय सिंह पथिक को इस किसान आन्दोलन का नेतृत्व सम्भालने के लिए आमन्त्रित किया था। विजयसिंह पथिकरासबिहारी तथा शचीन्द्रनाथ सान्याल के क्रान्तिकारी संगठन का सदस्य था । उसका वास्तविक नाम भूपसिंह था तथा वह उत्तरप्रदेश के बुलन्दशहर जिले के गांव गुढावली का रहने वाला था । उन्हे राजस्थान में क्रान्तिकारी गतिविधियों का संगठित करने हेतु भेजा गया था। उनके दल के साथियों ने 23 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में गवर्नर जनरल हॉर्डिंग पर बम फेंका था । इस घटना से क्रान्तिकारी गतिविधियों में गतिरोध पैदा हो गया। रासबिहारी बोस जापान चले गये तथा शचीन्द्रनाथ सान्याल को सजा हो गयी थी। राजस्थान में विजयीसंह पथिक को भी इन घटनाओं से जुड़े होने के संदेह में गिरफ्तार कर लिया गया तथा टाडगढ की जैल में रखा गया । कुछ समय पश्चात ही दे जैल से भाग गये तथा अपना नाम विजयीसंह पथिक रखकर राजस्थान में ही सामाजिक कार्य करने लगे.

 

  • विजयीसंह पथिक ने चित्तौड़गढ़ के समीप ओछरी नामक गांव में किसानों के बीच विद्या प्रचारणी सभा स्थापित की। 1 जनवरी, 1915 में इस सभा का एक समारोह आयोजित किया गया जिसमें साधु सीतारामदास भी सम्मिलित हुए। साधु सीतारामदास विजयीसिंह पथिक के कार्यों से बहुत प्रभावित हुए तथा उन्होने पथिक से बिजौलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व संभालने के लिए कहा पथिक 1916 में बिजौलिया पहुंचे तथा आन्दोलन का नेतृत्व सम्भाला। उन्होने वही पर विद्या प्रचारणी सभा स्थापित की जिसके अनतर्गत एक स्कूलएक पुस्तकालय एवं एक अखाड़ा स्थापित किया वे संस्थान किसान आन्दोलन के केन्द्र बन गये। इस समय माणिक्यलाल वर्मा जो जागीर के कर्मचारी थेवे अपनी जागीर सेवा से त्याग पत्र देकर विजयसिंह पथिक के साथ कार्य करने लगे । अब तक बिजौलिया का किसान आन्दोलन सामाजिक आधार पर धाकड जाति के किसानों की जाति पंचायत द्वारा चलाया जा रहा था। 1916 में विजयसिंह पथिक ने बिजौलिया किसान पंचायत की स्थापना की तथा प्रत्येक गांव में इसकी शाखाएं खोली। एक केन्द्रीय पंचायत कोष भी स्थापित किया गया थाजिसमें पंचायत के सदस्यों से धनराशि एकत्रित की गयी थी। मन्नालाल पटेल को बिजौलिया किसान पंचायत का अध्यक्ष (सरपंच) बनाया गया तथा उसके अधीन आन्दोलन संचालन हेतु 13 सदस्यीय समिति गठित की गयी । 1918 में जागीरदार द्वारा किसानों पर थोंपे गये युद्धकर (बोल्ड) ने किसान पंचायत को आन्दोलन के लिए प्रेरित किया। पंचायत ने गांब गांब जाकर सभाएं आयोजित की एवं किसानों से उनकी शिकायतों के बारे में मांग पत्र एकत्रित किये। 1917 में हजारों किसानों के हस्ताक्षरों से युक्त शिकायते एवं निवेदन पत्र जागीरदार एवं उदयपुर के महाराणा के पास भिजवाये । राज्य एवं जागीरदार की अनदेखी पर किसान पंचायत ने अगस्त, 1918 में असहयोग आन्दोलन के साथ-साथ बन्दी आन्दोलन की घोषणा कर दी पंचायत के निर्णयानुसार किसानों ने भू-राजस्व अदा न करनेठिकाने के आदेश कौन मानने तथा ठिकाने की पुलिस एवं न्यायालयों के बहिष्कार का निर्णय लिया । इन सब बातों के अतिरिक्त किसानों ने अपने दूसरे शोषक महाजनों का भी बहिष्कार कियाजिसमें किसानों ने कस्वे में खरीददारी के लिए नहीं जाने तथा विवाह एवं मृत्युभोज न करने का निर्णय लिया ।

 

  • उदयपुर के महाराणा इस आन्दोलन को कुचलने के पक्ष में थेक्योंकि यदि इस प्रकार के किसान आन्दोलन सम्पूर्ण मेवाड़ राज्य में फैलते तो इससे राज्य में अशान्ति फैल सकती थी अतः जागीरदार की मदद से किसान आन्दोलन के नेता माणिक्यलाल वर्मा एवं साधु सीतारमदास सहित पचास लोगों थे गिरफ्तार कर लिया गया। विजयसिंह पथिक इसी बीच भूमिगत होकर आन्दोलन का संचालन करने लगे। किसानों ने सत्याग्रह आरम्भ करते हुए जैल भरना आरम्भ किया। मजदूर होकर उदयपुर राज्य एक जांच आयोग गठित किया। यह आयोग अप्रैल 1919 में बिजौलिया पहुंचा। इस जांच आयोग ने सबसे पहले माणिक्यलाल वर्मा तथा साधु सीतारामदास को जैल से मुक्त किया तथा 51 अन्य बन्दियों को छोड़ दिया गया। इस आयोग ने पाया कि वास्तव में किसानों की हालत दयनीय हैं और औसतन 13 या 14 रूपयों की बारिक आय साधारण किसान की हैं इस आयोग ने सिफारिश कीकि रिजौलिया के किसानों की शिकायते न्याय संगत हैकिन्तु इस आयोग की सिफारिशों का ठिकानों पर कोई असर नहीं हुआ ।

 

  • बिजौलिया का किसान आन्दोलन अपने दूसरे चरण में जाति एवं क्षेत्र की संकीर्णताओं को लांघकर राष्ट्रीय धारा के साथ जुड़ने की प्रकिया में था। विजयीसंह पथिक ने 1919 में "राजस्थान सेवा संघ नामक संस्था स्थापित कीजिसका मुख्यालय अजमेर में स्थापित किया गया। पथिक अब अजमेर से बिजौलिया आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे। पथिक राष्ट्रीय नेता गणेश शंकर विद्यार्थी के अत्यधिक समीप थे। अतः पथिक विद्यार्थी के कानपुर से निकलने वाले समाचार पत्र "प्रताप" के माध्यम से बिजौलिया किसान आन्दोलन को राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करके जनसमर्थन जुटाने का प्रयास कर रहे थे बिजौलिया के किसानों ने अपनी मांगे न माने जाने तक अपनी भूमि न जीतने का निर्णय लिया। इस आन्दोलन के नेताओं ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास कियाकिन्तु उसे कोई सफलता नहीं मिलीक्योंकि कांग्रेस इस समय तक देशी राज्यों में आन्दोलनफैलाने के पक्ष में नहीं थी क्योंकि इससे कांग्रेस को स्थानीय राजाओ से भी संघर्ष में उलझना पड़ सकता था ।

 

बिजौलिया किसान आन्दोलन के बढ़ते प्रभाव एवं लोकप्रियता के कारण मजबूर होकर फरवरी, 1920 में उदयपुर राज्य ने दूसरा जांच आयोग नियुक्त किया। किसानों ने इस आयोग का स्वागत करते हुए घोषणा की कि दें तब तक आन्दोलन जारी रखेंगे जव तक कि उनकी मांगें स्वीकार नहीं कर ली जाती । इस आयोग के समक्ष किसानों की मांगों को प्रस्तुत करने के लिए एक 15 सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल माणिक्यलाल वर्मा के गेल में उदयपुर गया जांच आयोग ने सम्पूर्ण जांच पडताल उपरान्त आन्दोलन के कारणों को सही मानते हुए अनुशंसा की कि किसानों की समस्याओं का समाधान किया चाय किन्तु राज्य की अनुशंसा पर भी जागीरदार ने कोई कार्यवाही नहीं की । जून, 1920 तक किसानों व जागीरदारो के मध्य समझौते के प्रयास असफल हो गये । अतः किसानों को मजबूर होकर इस आदोलन को तेज करना पड़ा। किसानों ने असहयोग द्वारा जागीर प्रशासन को अव्यवस्थित कर दिया एवं किसान पंचायत की समानान्तर सरकार स्थापित हो गयी थी। दिसम्बर, 1920 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आन्दोलन के आरम्भ हो जाने से बिजौलिया के किसान आन्दोलन को बल मिला ।

 

  • वर्ष 1920 में नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में विजयीसंह पथिकसाधु सीतारामदासरामनारायण चौधरीमाणिक्यलाल वर्माहरिभाई किंकर एवं कई किसान नेता बिजौलिया आन्दोलन के समन्द में महात्मा गांधी से मिले और उनसे असहयोग आन्दोलन के समन्द में आशीर्वाद प्राप्त किया । नागपुर अधिवेशन से लौटकर बिजौलिया आने पर माणिक्यलाल वर्मा एवं अन्य साथियों ने किसान आन्दोलन को और तेज कर दिया। किसानों के लगान लागते और बेगार बन्द कर देने से ठिकाने की आय के सब स्रोत बन्द हो गये। इससे ठिकानों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गयी ।

 

  • अब बिजौलिया के आन्दोलन का असर मेवाड के अन्य किसानों तथा सीमावर्ती राज्यों पर पड़ने लगा । वर्ष 1921 में यह आन्दोलन पारसौलीभिण्डरभैंसरोडूगढ बस्तीबेंगू को आदि ठिकानों में भी फैल गया इससे बिजौलिया किसान आन्दोलन के क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ। ब्रिटिश सरकार इस आन्दोलन से काफी भयभीत थीक्योंकि इस समय बिजौलिया जैसा किसान आन्दोलन सम्पूर्ण उदयपुर में फैल चुका था। इसी समय मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में मेवाड़सिरोहीमारवाड़पालनपुरदांता एवं सूथरामपुर में भी विद्रोही हो गये थे। ब्रिटिश सरकार ने बिजौलीया आन्दोलन को समाज करने के उद्धेश्य से एक 'उच्च क्षमता समिति गठित की जिसमें एजेन्ट टू गवर्नर जनरल इन राजपूताना रॉबर्ट हालैण्डउसका सचिव कर्नल आगाल्वीउदयपुर का रैजीडेन्ट विल्किनसनउदयपुर का दीवान प्रभातचन्द्र चटर्जी एवं उदयपुर का सीमा शुल्क हाकिम बिहारी लाल कौशिक सदस्य थे। यह समिति 4 फरवरी, 1922 को बिजौलिया पहुंची तथा 5 फरवरी को बार्ता आरम्भ हुई। इसमें बिजौलिया किसान पंचायत की ओर से पंत्रायत का सरपंच मोतीचन्द्र तथा मन्त्री नारायण पटेल तथा राम नारायण चौधरी एवं माणिक्यलाल वर्मा सम्मिलित हुए । 11 जून, 1922 को एक समझौता हुआ जिसके अन्तर्गत किसानों की अनेक मांगे स्वीकार कर ली गयी । 35 लागते माफ कर दी गई। ठिकाने के जुली कामदार हटा दिये गये। किसानों पर चलने वाले मुकदमे उठा लिये गये। जिन किसानों की जमीन दूसरों के कस्बे में थीवह उन्हें पुन: सौंप दी गयी। तीन साल के अन्दर बिजौलिया जागीर में जमीन का बन्दोबस्त कर लगान जिन्स की बजाय नकदी में परिणत करने का आश्वासन दिया गया। किसान पंचायत को मान्यता प्रदान की गयी। यह समझौता बिजौलिया के किसानों की भारी सफलता थी। पहली बार किसान प्रतिनिधियों ने राज्य के बडे अधिकारियों के साथ सीधा सम्पर्क किया । 1897 में आरम्भ हुआ किसान आन्दोलन 25 वर्षा की अवधि के बाद सम्मानजनक शर्तो पर समाप्त हुआ ।

 
3 किसान आंदोलन का तीसरा चरण (
1923-1941) 

  • वर्ष 1922 का समझौता किसानों की बड़ी सफलता तो थी किन्तु दुर्भाग्य से ठिकाने की बदनीयति के कारण यह समझौता मात्र छलावा बनकर रह गया था। सर्वप्रथम तो इस समझौते को पूरी तरह से लाग नहीं किया गया था तथा समझौते के बाद जागीरदार एवं उसके अधिकारियों को किसानों के साथ व्यवहार अधिक कठोर हो गया था। फरवरी, 1922 में गांधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन वापस लेने के बाद समपूर्ण भारत में किसान आन्दोलनों के प्रति ब्रिटिश सरकार की नीति में परिवर्तन आ गया । 1923 के अन्त तक भारत के सभी भागों में किसान आन्दोलनों को दमनात्मक साधनों से कुचल दिया गया था। इसी बीच बेंगू किसान आन्दोलन के सिलसिले में विजयसिंह पथिक को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हे पांच वर्ष की सजा दी गयी । साधु सीतारामदास खादी कार्यकम में लग गये और मध्यप्रदेश में रहने लगे। अब बिजौलिया के किसान आन्दोलन की सारी जिम्मेदारी माणिक्यलाल वर्मा के हाथ में थी ।

 

  • वर्ष 1923 से 1926 के मध्य बिजौलिया के किसानों की कठिनाइयों और अधिक बढ़ गयी थी। इन वर्षा में निरन्तर अतिवर्षा अथवा कम वर्षा के फलस्वरूप बिजौलिया में अकाल की स्थिति बनी रही । फसलें प्रायः नष्ट हो गयी। किसानों ने अकाल के कारण लगान में छूट व माफी के लिए बिजौलिया के जागीरदार एवं उदयपुर के महकमा खास में अपने आवेदन पत्र भेजेकिन्तु उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। 1926 में 1922 के समझौते के अनुसार बिजौलिया ठिकाने में भूमि का बन्दोबस्त किया गया । बन्दोबस्त में जो लगान निर्धारित किया गया बह बहुत अधिक था बारानी क्षेत्र (माल भूमि) की लगान दरें बहुत बढ़ा दी गयी और सिंचित क्षेत्र के लिए लगान अपेक्षाकृत कुछ कम रखा गया अतः किसानों में इस भेदभाव के कारण असंतोष था । मार्च, 1927 में किसान पंचायत की बैठक हुई इस बैठक में रामनारायण चौधरी और माणिक्य लाल वर्मा भी उपस्थित थे। इस बैठक में माल भूमि छोडने का प्रश्न उठा अन्तिम निर्णय विजयसिंह पथिक पर छोड दिया जो जैल से मुक्त होने शले थे । जैल से छूटने पर विजय सिंह पथिक को मेवाड़ से निर्वासित कर दिया गयाअतः वे ग्वालियर राज्य में चले गये और वही से बिजौलिया किसान आन्दोलन का नेतृत्व करने लगे । विजयसिंह पथिक का मानना था कि किसानों को माल भूमि तभी छोड़नी चाहिए जबकि उन्हे यह पक्का विश्वास हो जाय कि उनके द्वारा छोड़ी गयी भूमि को और कोई लेने को तैयार नहीं होगा मई 1927 में किसानों ने अपनी-अपनी माल भूमि से इस्तीफे दे दिये । ठिकाने ने इस भूमि को नीलाम किया। किसानों के दुर्भाग्य से इन जमीनों के अन्य खरीददार मिल गये। इस निर्णय पर किसान मात जा गये इस निर्णय को लेकर विजयसिंह पथिक तथा माणिक्यलाल वर्मा के सम्बन्ध बिगड़ गये। अतः विजयसिंह पथिक इस आन्दोलन से अलग हो गया। किसान अपनी-अपनी इस्तीफा शुदा जमीनों को वापस प्राप्त करने के लिए व्यग्र हो गये ।

 

  • अब किसान आन्दोलन का नेतृत्व माणिक्यलाल वर्मा तथा हरिभाऊ उपाध्याय को सौंपा गया । इन नेताओं ने सेटलमेन्ट कमिश्नर ट्रेंच से मिलकर एक समझौता करवाया जिसमें किसानों को भूमि लौटाने का आश्वासन दिया गया । किन्तु वास्तव में कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो सकी । माणिक्यलाल वर्मा ने इस कार्य हेतु सत्याग्रह करने का निर्णय लिया । अक्षय तृतीय वर्ष 1931 को प्रातःकाल 4000 किसानों ने अपनी इस्तीफा शुदा जमीनों पर हल चलाना आरम्भ किया । ठिकानों के कर्मचारियों सहित सेनापुलिस के सिपाही तथा जमीनों के नये मालिकों के मध्य संघर्ष आरम्भ हो गया ठिकाने ने सत्याग्रह को कुचलने के लिए दमनकारी नीति अपनायी । माणिक्यलाल वर्मा तथा अन किसानों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस समय तक हरिभाऊ उपाध्याय के मेवाड प्रदेश पर रोक लग चुकी थी । उपाध्याय ने मेवाड राज्य के अधिकारियों को किसानों की जमीन वापस लौटाने के समय में कई पत्र लिखेकिन्तु उनके प्रयत्न सफल न हुए । अब यह मामला अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद ने अपने हाथ में लिया। महात्मा गांधी को भी बिजौलिया आन्दोलन में किसानों पर होने वाले अत्याचार के समन्ध में बताया गया । महात्मा गांधी की सलाह पर मदनमोहन मालदीव ने मेवाड के प्रधानमंत्री को इस समय में पत्र लिखा । इस पर जमनालाल बजाज को वार्ता के लिए उदयपुर बुलाया गया । मनालाल बजाज ने उदयपुर के महाराणा एवं उनके प्रधानमंत्री सुखदेव प्रसाद से वार्ता कर एक समझौते पर हस्ताक्षर किये । इस समझौते के अनुसार मेवाड सरकार ने आश्वासन दिया कि माल की जमीन धीरे-धीरे पुराने कपीदारों को लौटा दी जायेगीसत्याग्रह में गिरफ्तार लोगों को रिहा कर दिया जायेगाऔर 1922 के समझौते का पालन होगा। इस समझौते के अनुसार सत्याग्रही तो जेल से मुक्त हो गयेकिन्तु माल भूमि के समज में कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो सकी । अत: माणिक्यलाल वर्मा पुनः किसानों का एक प्रतिनिधि मण्डल लेकर मेवाड राज्य के प्रधानमंत्री सुखदेव प्रसाद से मिलने उदयपुर गये वहां माणिक्यलाल वर्मा को गिरफ्तार करके कुम्भलगढ़ के किले में नजरबन्द कर दिया। नवंबर, 1933 को माणिक्यलाल वर्मा को नजरबन्दी से मुक्त कर दिया गया तथा मेवाड छोडने को मजबूर कर दिया ।

 

  • बिजौलिया किसान आन्दोलन का पटापेक्ष वर्ष 1941 में हुआजबकि मेवाड में सर टी. विजय राघवाचार्य प्रधानमंत्री बने । उस समय मेवाड प्रजामण्डल से पाबन्दी उठायी जा चुकी थी और माणिक्यलाल वर्मा आदि प्रजामण्डल के नेता मुक्त किये जा चुके थे। प्रधानमंत्री राघवाचार्य के आदेश से तत्कालीन राजस्व मंत्री मोहनसिंह मेहता बिजौलिया गये और माणिक्यलाल वर्मा तथा अन्य किसान नेताओं से बातचीत की। एक समझौता जिसके अनुसार किसानों को अपनी जमीने वापस मिल गयी । माणिक्यलाल वर्मा के जीवन की यह प्रथम बड़ी सफलता थी। भारत के इतिहास में यह अपने ढंग का अनूठा किसान आन्दोलन था जो राज्य की सीमाएं लांघकर पडौसी राज्यों में भी फैला। इस आन्दोलन ने राजस्थान की रियासतों में एक नयी जागति पैदा की । वर्ष 1938 में मेवाडशाहपुराबूंदी आदि रियासतों में प्रजामण्डलों की स्थापना हुई उनकी पृष्ठ भूमि में यही किसान आन्दोलन था । इस आन्दोलन ने माणिक्यलाल वर्मा जैसे तेजस्वी नेता को जन्म दिया जो आगे चलकर राजस्थान के राजनीतिक आन्दोलन के एक प्रमुख कर्णधार बने ।