शेखावटी किसान आन्दोलन का इतिहास विकास एवं प्रभाव | Shekhavati Kisan aandolan - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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रविवार, 26 नवंबर 2023

शेखावटी किसान आन्दोलन का इतिहास विकास एवं प्रभाव | Shekhavati Kisan aandolan

शेखावटी किसान आन्दोलन

शेखावटी किसान आन्दोलन का इतिहास  विकास एवं प्रभाव | Shekhavati Kisan aandolan

 

शेखावटी किसान आन्दोलन

  • बिजौलिया किसान आन्दोलन के बाद राजस्थान में दूसरा महत्वपूर्ण किसान आन्दोलन जयपुर राज्य के शेखावटी क्षेत्र में हुआ जो अन्य सभी आन्दोलनों की तुलना में अधिक तीव्र था। शेखावटी का भू-भाग वर्तमान में मुख्य रूप से राजस्थान के सीकर एवं झुंझुनू जिलों में विभाजित है। पूर्व में यह क्षेत्र तत्कालीन जयपुर राज्य का अंग था। शेखावटी का सम्पूर्ण भू-भाग विभिन्न ठिकानों एय जागीरों के अन्तर्गत था । इनमें सीकर एवं खेतड़ी के बड़े ठिकाने थेमध्यम स्तर के ठिकानों में मण्डाया डुंडलोदबिसाऊसूरजगढ़नवलगढ़खण्डेलापाटनमलसीसरइस्माइलपुरहिरवा आदि थे तथा छोटी जागीरों उदयपुरवाटी एवं अन्य क्षेत्रों के भौमिया जागीरदार थे। शेखावटी के किसान प्रशासन के तिहरे भार क्रमश: अंग्रेजी राजजयपुर राज्य एवं जागीरदार से दबे हुए थे। जहां एक ओर तिहरे प्रशासन के दम एवं शोषण से कृषक वर्ग दबा हुआ था वही दूसरी और भौगोलिक तथा प्राकृतिक स्थितियों भी उनके अनुकूल नहीं थी । शेखावटी के किसानों को भू-स्वामित्व सचन्दी कोई अधिकार प्राप्त नहीं थे तथा राजस्व का निर्धारण जागीरदारों की इच्छानुसार दोषपूर्ण 'लाटाएवं 'कूतापद्धति द्वारा किया जाता था । संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र के किसान अत्यधिक शोषणदमनकारी औपनिवेशिक एवं सामन्ती व्यवस्था के तहत अभाव स्प कष्टपूर्ण जीवन यापन कर रहे थे। यही कारण है कि शेखावटी के किसानों में भारी असन्तोष बाज था. 

 

  • शेखावटी के किसान आनदोलन के सन्दर्भ में एक बात महत्वपूर्ण थी कि यहां के आन्दोलन के पीछे पूंजीपतियों की शक्ति एक महत्वपूर्ण कारण थी। इस समय तक शेखावटी के मूल निवासी पूंजीपति घराने बजाजबिडलाडालमियापोद्दारकानोडियामोदीतोदीचमडियासिंघानिया आदि ब्रिटिश भारत में अपनी पूंजी एवं शक्ति का बहुत विकास कर चुके थे। इनमें से अधिकांश पूंजीपति घराने अपने मूल स्थानों से सकिय रूप से जुड़े हुए थे। इन लोगों के पास अपार धन था किन्तु शेखावटी इनको कोई विशेष सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। यह वर्ग सामन्तवाद विरोधी वर्ग का अगुआ था क्योंकि सामन्तवाद एवं पूंजीवाद में मौलिक अन्तविरोध होता है । पूंजीपति वर्ग सामन्त विरोधी शक्ति के रूप में किसानों का उपयोग करना चाहते थे । अतः शेखावटी के किसान आन्दोलन को पूंजीपति वर्ग का नैतिक एवं आर्थिक समर्थन प्राप्त था । 

शेखावटी किसान आन्दोलन का उदय (1922-1930) 

  • शेखावटी के किसान आन्दोलन का आरम्भ सीकर ठिकाने से हुआ था। 28जून, 1922 को रावराजा माधोसिंह की मृत्यु के उपरान्त उनका भतीजा कल्याणसिंह सीकर के रावराजा पद पर आसीन हुआ। नये राजा ने मृत रावराजा के मृत्यु संस्कार एवं अपनी गद्दी नशीनी के समारोहों में अधिक राशि के खर्च होने के वहाने प्रचलित भू-राजस्व दर से 25 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक अधिक भू-राजस्व वसूल करना आरम्भ कर दिया था। किसानों ने इस बस्ती के विरोध में जयपुर के महाराजा के समुख अपनी शिकायतें पेश की। महाराजा के कहने पर सीकर के रावराजा ने अगले वर्ष छूट देने का आश्वासन दे दिया लेकिन 1924 में पुनः अपने आशवासन को नही माना और कृषकों से 25 प्रतिशत अधिक लगान मांगा गयाइससे सीकर के किसानों में असंतोष बढ़ता गया ।

 

  • राजस्थान सेवा संघ जिसकी स्थापना 1920 में अजमेर में हुई थी ने सम्पूर्ण राजस्थान की शोषित एवं उत्पीडित जनता को उपनिवेशवाद तथा सामन्तवाद के विरुद्ध संगठित करना आरम्भ कर दिया था। 1922 में बिजौलिया किसान आन्दोलन में समझौता हो जाने के कारण रामनारायण चौधरी ने अब सीकर को अपना कार्य क्षेत्र वनाया। रामनारायण चौधरी ने तरुण राजस्थान समाचार पत्र के माध्यम से सीकर के किसानों की समस्याओं को प्रचारित करना आरम्भ किया। उन्होने इंग्लैण्ड से प्रकाशित होने वाले 'डेली हैराल्डसमाचार पत्र में भी सीकर के किसानों की समस्याओं के सन्दर्भ में लेख लिखे तथा इंग्लैण्ड में भी सीकर के किसानों के समर्थन में वातावरण तैयार करने का महत्वपूर्ण कार्य किया रामनारायण चौधरी के प्रयासों से मई, 1925 में इंग्लैण्ड के 'हाउस ऑफ कामन्स के सदस्य पथिक लारेन्स ने सीकर के किसानों की समस्याओं के सन्दर्भ में प्रश्न पूछे। लन्दन स्थित भारत सचिव ने मजबूर होकर भारत सरकार के राजनीतिक सचिब को सीकर के किसानों की समस्याओं के सन्दर्भ में जांच पडताल के आदेश दिये भारत सरकार ने इस प्रश्न के जवाब में यह आश्वासन दिया था कि सीकर में भू-राजस्व की गैर सैद्धान्तिक वृद्धि नहीं होगी एवं नियमित भूमि की पैमाइश एवं बन्दोबस्त होता रहेगा। यह निर्णय किसानों के पक्ष में था। सीकर के रावराजा ने 1925 में एक जांच आयोग गठित किया इस आयोग ने लगान की मात्रा उत्पादन पर निर्धारित कर दी। इस आयोग की सिफारिश पर सीकर में भूमि बन्दोबस्त आरम्भ हुआ जो 1928 तक चलता रहा. 

 

  • सीकर के रावराजा को यह विश्वास था कि एक स्थायी बन्दोबस्त हो जाने पर कृषक असंतोष कम हो जायेगा उसने बड़ी चालाकी से पहले सर्वेक्षण करवाया और जरीब को छोटा करवा दियाताकि बीघों की संख्या बढ़ जाए। ऐसी स्थिति में स्थायी लगान निश्चित हो जाना ठिकाने के लिए लाभदायक रहेगा । 1928 तक यह व्यापक रूप से मालूम हो गया कि जरीब में बेईमानी की गई थी। किसानों ने जयपुर महाराजा तथा अंग्रेज रेजिडेन्ट से सर्वेक्षण के खिलाफ विरोध प्रकट किया और अनुरोध किया कि जरीब निर्धारित लम्बाई की होनी चाहिए। सीकर ठिकाने ने 1929 में पुनः बढ़ा हुआ लगान वसूलना आरम्भ कर दिया । जब कृषि उत्पादनों का मूल्य विश्व भर में गिर रहा थाअंग्रेज रेजीडेन्ट और जयपुर के राजस्व मंत्री के परामर्श पर भी सीकर ठिकाने को कृषकों की कठिनाई समझ में नहीं आयी । जयपुर महाराजा का परामर्श व्यर्थ हो गया । अब कृषकों के समक्ष संगठित होकर कुछ करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रहा। शेखावटी किसान आन्दोलन के प्रथम चरण में किसानों की उपलखियां विशेष नहीं थी किन्तु किसान चेतना की दृष्टि से यह काल महत्वपूर्ण था इस दौरान किसानों के स्वतः स्फूर्त आन्दोलन ने संगठन का रूप धारण कर लिया था । राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शेखावटी के किसानों की समस्याओं का प्रचारित होना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी. 

 

शेखावटी किसान का विकास (1930-1938) 

  • वर्ष 1928-1930 के मध्य भारतीय राजनीति में क्रान्तिकारी एवं समाजवादी विचारधाराएं एक शक्ति के रूप में उभरकर सामने आ रही थी। कांग्रेस ने भी इन नये सन्दभों में मार्च, 1930 में सश्निय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ किया थाजो 1920-22 के असहयोग आन्दोलन के बाद दूसरा बड़ा राष्ट्रष्पापी जन आन्दोलन था। शेखावटी के किसानों पर इन स्थितियों का प्रभाव पडना स्वाभाविक ही था दिसम्बर, 1930 में सीकर के किसानों ने जयपुर के महाराजा को सीकर के ठिकाने की दमनात्मक नीति के एक ज्ञापन प्रस्तुत किया और अपनी मांगे नहीं मानने तक वहां सत्याग्रह आरम्भ कर दिया. 
  • अप्रैल 1931 में जयपुर राज्य कौंसिल के राजस्व सदस्य सी. एल. अलेस्वेण्डर जिसे सीकर के किसानों की समस्याएं सुलझाने का कार्य सौंपा थाउन्होंने अपनी राय प्रकट की कि सीकर का रावराजा प्रतिवर्ष राजस्व निर्धारित करने का एक मनमाना ढंग अपनाता हैं। यह स्पष्ट दिखाई देता हैं कि 287 गांबवों में से 220 गांवों में रावराजा ने पिछले वर्षा के सामान्य राजस्व से अधिक राजस्व वसूला। यह कार्य ऐसे दर्श में किया गया जब कम वर्षा हुई तथा कृषि मूल्यों में गिरावट आयी थी। जयपुर राज्य एवं अन्य सभी राज्य सामान्य राजस्व वसूल करने में कठिनाई अनुभव कर रहे है। 16 अप्रैल 1931 को सीकर के रावराजा डी जयपुर के महाराणा के साथ बैठक हुई और यह निर्णय हुआ कि किसानों के राजस्व में रुपये में दो आना की छूट दी जाय। इस छूट की घोषणा सीकर के रावराजा ने जून, 1931 में कर दी थीकिन्तु इसकी कार्यायति नहीं की गई अत: कृषक असंतोष पुनः बढ़ने लगा ।

 

  • शेखावटी के जाट किसानों की मांग पर अखिल भारतीय जाट महासभा एवं राजस्थान जाट सभा के प्रतिनिधि मण्डल ने अक्टूबर 1931 में शेखावटी के गांवों का दौरा किया। इसने किसानों की समस्याओं की जांच की एवं विभिन्न सभाओं के द्वारा किसानों को अपना संघर्ष तेज करने की सलाह दी। इस प्रकार शेखावटी के जाट किसानों ने जातीय आधार पर संगठित होना आरम किया। इसी क्रम में 11 फरवरी से 13 फरवरी 1932 के बीच बसन्त पंचमी के अवसर पर झुंझुनू में अखिल भारतीय जाट महासभा का 23वां अधिवेशन आयोजित हुआ था। इसमें लगभग 60 हजार स्त्री-पुरुषों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में जाटों की एकताबच्चों की शिक्षाबाल-विवाह पर रोक एवं सामाजिक उत्सवों पर धन के अपव्यय को रोकने सम्बन्धी प्रस्ताव पास किये गये थे। इसके अतिरिक्त एक आर्थिक प्रस्ताव पास करके जयपुर के महाराजा के पास भेजा जिसमें निम्न प्रस्ताव थे:

 

1. सभा महाराज द्वारा राजस्व में दी गयी छूट के लिए महाराजा को धन्यवाद ज्ञापित करती है । 

2. सभा महाराज से निवेदन करती है कि वह अपने जमीदारों को आदेश दे कि वे भू-राजस्व पुरानी दरों के आधार पर ही ले । 

3. समा सभी ठिकानेदारों से आग्रह करती है कि हे प्रतिवर्ष अपने राजस्व की 5 प्रतिशत राशि शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर खर्च करें। 

4. सभा जयपुर महाराज से प्रार्थना करती है कि पिछले दो वर्षा से अकाल की मार एवं अनाज के मूल्यों में गिरावट को ध्यान में रखते हुए सभी दीवानी मुकदमों की कुर्की समाप्त करें । 

5. सभा जयपुर महाराज से सहकारी बैंकों की स्थापना का निवेदन करती हैजिससे किसान ब्याज की भारी दरों से बच सकें ।

 

  • जाट महासभा के उपर्युक्त सम्मेलन से शेखावटी के किसानों में नई चेतना का संचार हुआ । इस सम्मेलन से प्रेरणा प्राप्त कर सीकर के किसानों ने सितम्बर, 1993 में पलथाना में जाट सभा का आयोजन किया । इस सभा ने 20 जनवरी से 26 जनवरी 1934 तक सीकर में जाट महायज्ञ का आयोजन किया । महायज्ञ के आयोजकों ने ठिकाने के प्रति कटुता दिखाते हुए उत्तेजनापूर्ण भाषण दिये । समाज सुधार के जयघोष में वर्ग कटुता एवं वर्ग घृणा को बढ़ावा मिला जिससे किसान आन्दोलन अधिक तीव्र हो गया। किसानों की बढ़ती हुई शक्ति को कुचलने के उद्धेश्य से ठिकानें ने महायज्ञ समिति के सचिव मास्टर चन्द्रभानसिंह को गिरफ्तार कर लिया तथा छः सप्ताह की साधारण कैद एवं 51 रूपये जुर्माना लगाया गया । जाट किसानों ने सीकर ठिकाने की इस कार्यवाही के विरोध में करबन्दीअभियान आरम्भ कर दिया सैकड़ों की संख्या में किसानों ने भाग लिया । 18 फरवरी, 1934 ले जयपुर राज्य कौन्सिल के उपाध्यक्ष ने सीकर रावराजा से इन मांगों पर विचार करके किसानों की समस्याओं के समाधान हेतु एक अधिकारी नियुक्त किया। सीकर ठिकाने ने अगस्त, 1934 के किसानों की मांगों को स्वीकार करते हुए लाग-बागों की समाप्तिआन्तरिक चुंगी समाप्तिभू-राजस्व कम करने एवं भूमि का वर्गीकरण करनेसीकर जाट पंचायत को मान्यता देनेलैगर समाप्त करनेगोचर भूमि का निःशुल्क उपयोग करने तथा शिक्षा एवं स्वास्थ सुविधाएं प्रदान करने समबंधी घोषणा की। किसानों ने इस घोषणा के आधार पर समझौता कर लिया थाकिन्तु ठिकाने एवं जाट किसानों के बीच तनाव समाप्त नहीं हुआ ।

 

  • अगस्त, 1934 में सीकर के किसानों की सफलता से प्रेरित होकर शेखावटी के अन्य ठिकानों विशेषकर खेतडीइंडलोदनवलगढबिसाउ सूरजगढ़ खण्डेलामलसीसर आदि के किसानों ने भी अपने आन्दोलन तेज कर दिये। 15 सितम्बर, 1934 को इन किसानों ने भू-राजस्व एवं अन्य लाग-बागों भुगतान न करने का निर्णय लिया एवं धमकी दी गयी कि यदि कोई किसान भुगतान करेगा तो उसे जाति से बाहर कर दिया जायेगा। जयपुर राज्य कौन्सिल ने किसानों एवं ठिकानों के मध्य विवादों को निपटाने हेतु सीकर के सीनियर अधिकारी कैप्टन वेबजिसने अगस्त, 1934 में सीकर ठिकाने का समझौता करवाया थाको नियुक्त किया। दिसम्बर, 1934 में एक समझौता हुआ जिसके अनुसार ठिकानों ने रुपयों में चार आना भू-राजस्व में कमी करने पर अपनी सहमति दी। जनवरी, 1935 में किसानों ने इस घटी हुई दर पर भूराजस्व की अदायगी स्वीकार कर ली। किन्तु वास्तव में भू-राजस्व की बस्ती का कार्य पुरानी दरों पर ही किया जा रहा था। अतः किसानों ने ठिकानों का विरोध आरम्भ कर दिया । जयपुर राज्य कौन्सिल के पुनः प्रयासों से 14 मार्च, 1935 को एक समझौता हुआ जिसके अनुसार राजस्व निर्धारण का कार्य ठिकानों के स्थान पर राज्य के अधिकारियों द्वारा किये जाने पर सहमति हुई। दिसम्बर, 1935 में भू-राजस्व की दर कुल उत्पादन के 1/2 भाग के स्थान पर 2/5 भाग निर्धारित की गयी 1936 में ठिकानों में भूमि सर्वेक्षण और भूमि बन्दोबस्त की प्रकिया आरम्भ हो गयी ।

 

शेखावटी किसान आन्दोलन का चरमोत्कर्ष (1938- 1947ई.) 

वर्ष 1938 तक शेखावटी के किसानों में शान्ति बनी रही। शेखावटी जाट सभा ने कोई व्यापक रूप से जन आन्दोलन नहीं चलाया । किन्तु स्मरण-पत्रोंपंचायत पत्रिका आदि के माध्यम से वह ठिकानों व सरकार का ध्यान किसानों की मांगों के प्रति निरन्तर आकर्षित करती रही। किसान नेताओं को भी विश्वास हो गया कि उनकी शिकायतों का समाधान उत्तरदायी सरकार की स्थापना के बाद ही सम्भव हो सकेगा। 1938 में राज्य प्रजा मण्डल के तत्वावधान में उत्तरदायी सरकार की स्थापना के लिए आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। प्रजा मण्डल ने किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रयास किये । 1939 में हिंडोन और तोरावाटी निजामत के खालसा क्षेत्र में प्रजा मण्डल के नेतृत्व में किसानों को अकाल से राहत दिलाने के लिए आन्दोलन हुआ। उनियारा ठिकाने में बैरवा जाति के लोगों ने जातीय भेदभाव के विरोध में आन्दोलन किया किन्तु इनके कोई विशेष परिणाम नहीं निकले । जयपुर राज्य प्रजा मण्डल ने अपना दायरा विगत करने के उद्धेश्य से ही किसानों को समर्थन करना आरम्भ किया था जयपुर राज्य प्रजा मण्डल ने 8 मार्च, 1938 को अपने प्रथम सम्मेलन में ठिकानों के सफल में निम्नलिखित प्रस्ताव पास किये :

 

"जयपुर रियासत के अधिकांश ठिकानों में बसने वाली जनता के प्रति ठिकानेदारों का जो व्यवहार है वहअधिकांश में गैर-कानूनी कष्टदायक और विकास कार्यों के विरूद्ध हैं। इससे न केवल जनता को बल्कि ठिकानों और ठिकानेदारों को भी बहुत हानि हैं जयपुर राज्य प्रजा मण्डल की यह निश्चित राय है कि ठिकानों की जनता को भी वही कानूनीआर्थिकसामाजिक और व्यक्तिगत अधिकार व सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए जो राज्य की जनता के लिए आकांक्षित है ।"

 

  • इन बदलती परिस्थितियों में सीकर के किसानों में अपनी शक्ति को संगठित करना आरम्भ कर दिया था । इसके लिए 11-12 सितम्बर, 1938 को सीकर के गोढरा नामक गांव में जाट क्षत्रिय किसान पंचायत का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में दस से ग्यारह हजार लोगों ने भाग लिया । इस सम्मेलन में पारित प्रस्तावों का ज्ञापन 15 सितम्बर, 1938 को किसानों ने जयपुर राज्य के प्रधानमंत्री समक्ष प्रस्तुत किया गया। प्रधानमंत्री ने किसानों को उनकी समस्याओं के शीघ्र समाधान का आश्वासन देते हुए सूचित किया कि मिस्टर ब्राउन को बन्दोबस्त आयुक्त नियुक्त किया गया है । यह नया अधिकारी लखे समय से चले आ रहे विवादों को सुलझा देगा। जयपुर राज्य सभी प्रकार के राजनीतिक एवं जन आन्दोलनों का समाधान भूमि बन्दोबस्त में देख रहा था। दिसचर, 1939 तक सीकर के खालसा क्षेत्रों का बन्दोबस्त पूरा हो गया था जिससे किसानों को कुछ भूमि अधिकार प्रदान कर दिये गये थे । अब सीकर के जागीर क्षेत्रों का मुद्दा किसान आन्दोलन का आधार रह गया था । शेखावटी के अन्य ठिकानों के किसानों ने प्रजामण्डल के सहयोग से जुलाई, 1939 में सत्याग्रह आरम्भ किया था अक्टूबर, 1939 तक हजारों किसान गिरफ्तारी के लिए पहुंचे। आन्दोलनों को बढ़ता हुआ देख जनवरी, 1940 में शेखावटी किसान जाट पंचायत के गिरफ्तार नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा कर दिया गया था किन्तु इसके बावजूद भी किसान आन्दोलन समाज नहीं हुआ। जागीरदारों द्वारा किसानों को निरन्तर उत्पीडित किया जा रहा था। 10 जनवरी, 1941 को जयपुर पुलिस महानिरीक्षक ने जयपुर के प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि "ठिकानों और उनके कर्मचारियों के किसानों पर अत्याचार के कई उदाहरण देखने को मिल रहे है। हत्याएं भी हो रही है। मैं सरकार से प्रार्थना करता हूए कि ठिकानेदारों एवं उनके लोगों के उपयुक्त व्यवहार हेतु समझाने के लिए ठोस कदम उठाये जावे।" जयपुर राज्य प्रजा मण्डल अभी तक अपनी मान्यता के लिए संघर्षरत था। सरकार जयपुर पब्लिक सोसयटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत प्रजा मण्डल का पंजीकरण करने में आना-कानी कर रही थी। अप्रैल 15- 16, 1941 को जयपुर राज्य प्रजामण्डल का तीसरा वार्षिक अधिवेशन झुंझुनू में आयोजित हुआ । इसमें एक ही प्रस्ताव पास झा था कि अब धैर्य की सीमा टूट गयी है एवं प्रजामण्डल को मजबूर होकर अपनी मांगों के समर्थन में सत्याग्रह की योजना बनानी पड़ रही है । प्रजा मण्डल के इस निर्णय के दबाव में जयपुर भूमि बन्दोबस्त के कार्यों को अन्तिम रूप देने के लिए 12 अप्रैल, 1941 को जयपुर राज्य कौन्सिल ने एक समिति का गठन किया जिसमें 7 व्यक्तियों में से दो राजस्व विभाग के उच्चाधिकारी एवं 5 ठिकानेदारों को सदस्य बनाया गया । यह समिति कोई विशेष कार्य नहीं कर सकी क्योंकि इसके अधिकांश ठिकानेदार सदस्य किसानों को किसी भी प्रकार के अधिकार देने के पक्ष में नही थे। अगस्त, 1942 में अखिल भारतीय कांग्रेस के भारत छोड़ो आन्दोलन प्रस्ताव के साथ जयपुर राज्य में भी इस आन्दोलन के आरम्भ होने की सम्भावना थी । शेखावटी के किसानों को इससे अलग रखने के उद्देश्य से जयपुर सरकार ने जल्दबाजी में लम्बे समय से चले आ रहे शेखावटी भूमि बन्दोबस्त को पूर्ण कर लेने की घोषणा कर दी। 15 अगस्त, 1942 को भूमि बन्दोबस्त के प्रावधानों को भी घोषित कर दिया गया । किन्तु 1942 में बन्दोबस्त की घोषणा केवल एक घोषणा ही बनकर रही गयी थी ।

 

  • 12 फरवरी, 1943 को किसान नेता हरलाल सिंह ने इस समय में जयपुर के प्रधानमंत्री से शिकायत भी की थी जयपुर राज्य ने 3 दिसम्बर, 1943 को विशेष भूमि बन्दोबस्त आयुका को यह कार्य सौंपा किन्तु कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई ।

 

  • जयपुर राज्य की शेखावटी के किसानों के प्रति कठोर नीति अपनाने के दो प्रमुख कारण थेकिसानो का प्रजामण्डल के साथ सहयोग तथा शेखावटी के जागीरदारों द्वारा किसानों का संगठित विरोध । वास्तविकता यह थी कि किसानों की बढ़ती हुई शक्ति से सामन्त तथा शासक वर्ग एकजुट हो गये जयपुर सरकार ने एक आदेश जारी किया जिसके अनुसार बिना अनुमति के शेखावटी में जुलुस निकालनेसभा करने तथा एकत्रित होने पर पाबन्दी लगा दी गई। 1945 के अन्त तक सीकर तथा शेखावटी का किसान आन्दोलन पुनः शक्तिशाली रूप से आरम्भ हो गया था। इस समय आन्दोलन का नेतृत्व पूर्णत: प्रजामण्डल के हाथों में था । 20 नवम्बर, 1945 से 10 दिसम्बर, 1945 तक जयपुर राज्य प्रजामण्डल के नेता हीरालाल शास्त्रीलादूराम जोशीनरोत्तमदास वकीलहरलाल सिंह जाट एवं लादूराम जाट ने झुंझुनू में रहकर किसान आन्दोलन का नेतृत्व किया। किसानों ने करबन्दी आन्दोलन को सफल बनाने के उद्धेश्य से ठिकानों के राजस्व अधिकारियों को भू-राजस्व वसूल करने से रोकना आरम्भ कर दिया किसानों और ठिकाना कर्मचारियों के बीच जबरदस्त हिंसक वारदातें हुई । किसान जागीरदारी यदस्था को समूल नष्ट कर सदैव के लिए सामन्ती शोषण से मुक्ति प्राप्त करने के लिए लालायित थे । 23 दिसम्बर, 1946 को जयपुर राज्य महकमाखास परिसर में प्रजाण्डल एवं किसाम नेताओं ने शेखावटी के किसानों की सभा का आयोजन किया । इस सभा में जागीरदारी व्यवस्था की पूर्ण समाप्ति की मांग की गयी । अन्ततः जयपुर महाराजा ने 30 दिसम्बर, 1946 को प्रजामण्डल के नेताओं के साथ समझौता किया। जनवरी, 1947 को जयपुर प्रजामण्डल ने महाराजा की छत्रछाया में उत्तरदायी सरकार गठित की। इससे किसानों को जागीरदारों के अत्याचारों से मुक्ति एवं भूमि बन्दोबस्त की व्यवस्था स्थापित होने की आशा बंधी