24 Feb 2021 Current Affairs in Hindi
असम इंट्रा-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम एनहांसमेंट प्रोजेक्ट
- केंद्र सरकार और एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक (AIIB) ने असम में विद्युत ट्रांसमिशन तंत्र की विश्वसनीयता, क्षमता और सुरक्षा में सुधार के लिये 365 मिलियन डॉलर के ‘असम इंट्रा-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम एनहांसमेंट प्रोजेक्ट’ हेतु एक ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत तकरीबन 365 मिलियन डॉलर है, जिसमें से 304 मिलियन डॉलर एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक (AIIB) द्वारा प्रदान किया जाएगा। परियोजना का लक्ष्य 10 ट्रांसमिशन सब-स्टेशनों का निर्माण और ट्रांसमिशन लाइनों को बिछाने, 15 मौजूदा सब-स्टेशनों को उन्नत करने एवं परियोजना के कार्यान्वयन में तकनीकी सहायता प्रदान कर असम की विद्युत ट्रांसमिशन प्रणाली को मज़बूत करना है। यह कार्यक्रम असम के मौजूदा विद्युत नेटवर्क को मज़बूत करेगा जिससे सस्ती, सुरक्षित, कुशल और विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी। इस परियोजना से ट्रांसमिशन नेटवर्क में सुधार होगा और ट्रांसमिशन नुकसान में भी कमी आएगी। जनवरी 2016 में स्थापित AIIB एशिया में सामाजिक और आर्थिक परिणामों को बेहतर बनाने के मिशन के साथ एक बहुपक्षीय विकास बैंक है। इसका मुख्यालय बीजिंग (चीन) में स्थित है।
केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस
- प्रत्येक वर्ष 24 फरवरी को संपूर्ण भारत में केंद्रीय उत्पाद शुल्क दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य उत्पाद शुल्क विभाग के कर्मचारियों को पूरे भारत में केंद्रीय उत्पाद शुल्क को बेहतर तरीके से लागू करने हेतु प्रोत्साहित करना है ताकि माल निर्माण व्यवसाय में भ्रष्टाचार को रोकने के साथ-साथ उत्पाद शुल्क सेवाओं से संबंधित सर्वोत्तम प्रथाओं को लागू किया जा सके। यह दिवस 24 फरवरी, 1944 को केंद्रीय उत्पाद शुल्क तथा नमक कानून लागू किये जाने के उपलक्ष में आयोजित किया जाता है। भारत में केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) सीमा शुल्क, वस्तु एवं सेवा कर (GST), केंद्रीय उत्पाद शुल्क तथा सेवा कर आदि के लिये उत्तरदायी है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क एक अप्रत्यक्ष कर है जिसका उद्ग्रहण भारत में विनिर्मित माल से किया जाता है। 'केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड', 'केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम, 1963’ के माध्यम से केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन गठित सांविधिक निकाय (Statutory Body) हैं।
कर्नाटक में फूल प्रसंस्करण केंद्र
- कर्नाटक सरकार का बागवानी विभाग जल्द ही राज्य में ‘इंटरनेशनल फ्लावर ऑक्शन बंगलूरू (IFAB) के सहयोग से न बिके हुए फूलों को विभिन्न उपयोगी उत्पादों में बदलने के लिये एक फूल प्रसंस्करण केंद्र स्थापित करेगा। यह केंद्र फूलों को प्रसंस्करित कर उन्हें प्राकृतिक रंगों, फूलों से निर्मित कागज़, अगरबत्ती, कॉस्मेटिक उपयोग हेतु पाउडर और पुष्प कला जैसे मूल्य-वर्द्धित उत्पादों में परिवर्तित कर देगा। यह केंद्र सभी प्रकार के फूलों को प्रसंस्करित करने में सक्षम होगा। यह केंद्र इस लिहाज से काफी महत्त्वपूर्ण है कि राज्य में फूलों का उत्पादन काफी अधिक होने अथवा किसी अन्य बाज़ार व्यवधान के कारण किसानों को नुकसान का सामना नहीं करना पड़ेगा। ज्ञात हो कि कोरोना वायरस महामारी और उसके कारण लागू लॉकडाउन के कारण फूल उत्पादकों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था तथा हज़ारों टन चमेली, गेंदा, रजनीगंधा, कनकंबरा और गुलाब आदि को फेंकना पड़ा था। कर्नाटक जहाँ तकरीबन 18,000 हेक्टेयर भूमि पर फूलों का उत्पादन किया जाता है, भारत में फूलों के कुल उत्पादन हेतु प्रयोग किये जाने वाले क्षेत्र का कुल 14 प्रतिशत हिस्सा कवर करता है।
भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार: चीन
- भारत के द्विपक्षीय व्यापार से संबंधित हालिया आँकड़ों के मुताबिक, चीन ने वर्ष 2020 में एक बार पुनः भारत के शीर्ष व्यापार भागीदार के रूप में अपना स्थान प्राप्त कर लिया है। भारत-चीन सीमा पर चल रहे संघर्ष के मद्देनज़र चीन के साथ वाणिज्यिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने के भारत के प्रयासों के बावजूद आयातित मशीनों पर भारत की निर्भरता ने चीन को यह स्थान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। आँकड़ों के मुताबिक, एशिया की दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच वर्ष 2020 में कुल 77.7 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। यद्यपि यह आँकड़ा वर्ष 2019 (85.5 बिलियन डॉलर) की तुलना में काफी कम है, किंतु यह चीन द्वारा प्रमुख वाणिज्यिक भागीदार के रूप में अमेरिका को विस्थापित करने के लिये पर्याप्त है, विदित हो कि वर्ष 2020 में भारत और अमेरिका के बीच कुल 75.9 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था।
पारंपरिक उद्योगों के उन्नयन एवं पुनर्निर्माण
के लिये कोष की योजना (SFURTI)
- हाल ही में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने MSME क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये 18 राज्यों में विस्तृत 50 कारीगर आधारित स्फूर्ति (SFURTI) क्लस्टर्स का उद्घाटन किया।
- MSME मंत्रालय पारंपरिक उद्योगों और कारीगरों को समूहों में संगठित करने और उनकी आय को बढ़ाने के लिये ‘स्कीम ऑफ फंड फॉर रिजनरेशन ऑफ ट्रेडिशनल इंडस्ट्रीज़’ (Scheme of Fund for Regeneration of Traditional Industries- SFURTI) को लागू कर रहा है।
- MSME मंत्रालय ने क्लस्टर विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 2005 में इस योजना को प्रारंभ किया।
- खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) खादी के साथ-साथ ग्रामोद्योग उत्पादों के क्लस्टर विकास को बढ़ावा देने हेतु नोडल एजेंसी है।
- SFURTI क्लस्टर दो प्रकार के होते हैं- नियमित क्लस्टर (500 कारीगर), जिनको 2.5 करोड़ रुपए तक की सरकारी सहायता दी जाती है। मेजर (Major) क्लस्टर (500 से अधिक कारीगर) जिनको 5 करोड़ रुपए तक की सरकारी सहायता प्रदान की जाती है।
- मंत्रालय कॉमन सुविधा केंद्र (Common Facility Centers- CFCs) के माध्यम से बुनियादी ढाँचे की स्थापना, नई मशीनरी की खरीद, कच्चे माल के बैंक, डिज़ाइन हस्तक्षेप, बेहतर पैकेजिंग, बेहतर कौशल और क्षमता विकास आदि सहित विभिन्न प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है।
- इसके अतिरिक्त यह योजना हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ ‘क्लस्टर गवर्नेंस सिस्टम’ को मज़बूत करने पर केंद्रित है, ताकि वे उभरती चुनौतियों और अवसरों का आकलन करने में सक्षम हों और प्रतिक्रिया दे सकें।
- इसे नवीन और पारंपरिक कौशल, उन्नत प्रौद्योगिकियों, उन्नत प्रक्रियाओं, बाज़ार समझ और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के नए मॉडल के निर्माण के माध्यम से शुरू किया जाता है, ताकि धीरे-धीरे क्लस्टर-आधारित पारंपरिक उद्योगों के समान मॉडल को दोहराया जा सके।
MSME क्षेत्र
को बढ़ावा देने के लिये अन्य नवीन पहलें:
उद्योग आधार ज्ञापन (UAM): यह भारत में MSMEs के लिये व्यवसाय करने में आसानी प्रदान
हेतु सरल एक-पृष्ठ का पंजीकरण फॉर्म है।
नवाचार, ग्रामीण
उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा हेतु एक योजना (ASPIRE): यह योजना ‘कृषि आधारित उद्योग में स्टार्ट अप के
लिये फंड ऑफ फंड्स’, ग्रामीण आजीविका बिज़नेस इनक्यूबेटर (LBI), प्रौद्योगिकी व्यवसाय इनक्यूबेटर (TBI) के माध्यम से नवाचार और ग्रामीण
उद्यमिता को बढ़ावा देती है।
क्रेडिट गारंटी फंड योजना: ऋण के आसान प्रवाह
की सुविधा के लिये MSMEs को दिये गए संपार्श्विक मुक्त ऋण हेतु
गारंटी कवर प्रदान किया जाता है।
प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह नए सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना और
ग्रामीण एवं देश के शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये एक
क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना है।
प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिये क्रेडिट लिंक्ड
कैपिटल सब्सिडी स्कीम (CLCSS):
CLCSS का उद्देश्य
संयंत्र और मशीनरी की खरीद के लिये 15% पूंजी
सब्सिडी प्रदान करके सूक्ष्म और लघु उद्यमों (MSE) को
प्रौद्योगिकी उन्नयन की सुविधा प्रदान करना है।
पशुपालन
हाल ही में उत्पन्न विभिन्न प्रकार की नीतिगत चिंताओं और कृषि कानूनों पर चल रही चर्चाओं ने उत्पादकता स्तरों को बढ़ावा देने तथा उत्पादन क्षेत्र (विशेष रूप से पशुपालन क्षेत्र) में व्याप्त अंतराल को भरने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे में निवेश की तरफ ध्यान आकर्षित किया है।
इस क्षेत्र के अधिकांश प्रतिष्ठान ग्रामीण भारत
में केंद्रित हैं, इसलिये इस क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक
प्रासंगिकता को कम नहीं माना जा सकता है।
पशुपालन के विषय में:
- पशुपालन से तात्पर्य पशुधन को बढ़ाने और इनके चयनात्मक प्रजनन से है। यह एक प्रकार का पशु प्रबंधन तथा देखभाल है, जिसमें लाभ के लिये पशुओं के आनुवंशिक गुणों एवं व्यवहारों को विकसित किया जाता है।
- बड़ी संख्या में किसान अपनी आजीविका के लिये पशुपालन पर निर्भर हैं। इससे ग्रामीण आबादी के लगभग 55% लोगों को आजीविका मिलती है।
- आर्थिक सर्वेक्षण-2021 के अनुसार सकल मूल्य वर्द्धन (निरंतर कीमतों पर) के संदर्भ में कुल कृषि और संबद्ध क्षेत्र में पशुधन का योगदान 24.32% (2014-15) से बढ़कर 28.63% (2018-19) हो गया है।
भारत में विश्व का सबसे अधिक पशुधन है।
- भारत में 20वीं पशुधन जनगणना (20th Livestock Census) के अनुसार, देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है। इस पशुधन जनगणना में वर्ष 2018 की जनगणना की तुलना में 4.6% की वृद्धि हुई है।
- पशुपालन से बहुआयामी लाभ होता है।
- उदाहरण के लिये डेयरी किसानों के विकास के साथ वर्ष 1970 में शुरू हुए ऑपरेशन फ्लड (Operation Flood) ने दूध उत्पादन और ग्रामीण आय में वृद्धि की तथा उपभोक्ताओं के लिये एक उचित मूल्य सुनिश्चित किया।
महत्त्व:
- इसने महिलाओं के सशक्तीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है और समाज में उनकी आय तथा भूमिका बढ़ी है।
- यह छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका के जोखिम को कम करता है, विशेष रूप से भारत के वर्षा-आधारित क्षेत्रों में।
- यह गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में समानता और आजीविका के दृष्टिकोण पर केंद्रित है।
- सरकार का लक्ष्य वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना है, जिसके अंतर्गत अंतर-मंत्रालयी समिति ने आय के सात स्रोतों में से एक के रूप में पशुधन की पहचान की है।
चुनौतियाँ:
- बेहतर प्रजनन गुणवत्ता वाले साँड़ों (Bull) की अनुपलब्धता।
- कई प्रयोगशालाओं द्वारा उत्पादित वीर्य की खराब गुणवत्ता।
- चारे की कमी और पशु रोगों का अप्रभावी नियंत्रण।
- स्वदेशी नस्लों के लिये क्षेत्र उन्मुख संरक्षण रणनीति की अनुपस्थिति।
- किसानों के पास उत्पादकता में सुधार के लिये आवश्यक कौशल, गुणवत्ता युक्त सेवाओं और अवसंरचना ढाँचे की कमी।
इस क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु सरकार की
पहलें:
पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF):
- AHIDF के विषय में: यह सरकार द्वारा जारी किया गया पहला बड़ा फंड है, जिसमें किसान उत्पादक संगठन (Farmer Producer Organization), निजी डेयरी उद्यमी, व्यक्तिगत उद्यमी और इसके दायरे में आने वाले अन्य हितधारक शामिल हैं।
- लॉन्च: जून 2020
- फंड: इसे 15,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ स्थापित किया गया है।
- उद्देश्य: डेयरी प्रसंस्करण, मूल्य संवर्द्धन और पशु चारा, बुनियादी ढाँचा में निजी निवेश को बढ़ावा देना।
- आला उत्पादों (Niche Product) के निर्यात को बढ़ाने के लिये संयंत्र (Plant) स्थापित करने हेतु प्रोत्साहन दिया जाएगा।
- एक आला उत्पाद का उपयोग विशिष्ट उद्देश्य के लिये किया जाता है। सामान्य उत्पादों की तुलना में आला उत्पाद अक्सर ( हमेशा नहीं) महँगे होते हैं।
- यह विभिन्न क्षमताओं के पशुचारा संयंत्रों के स्थापना में भी सहयोग करेगा, जिसमें खनिज मिश्रण संयंत्र, सिलेज मेकिंग इकाइयाँ और पशुचारा परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना शामिल है।
:राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य 500 मिलियन से अधिक पशुओं, जिनमें भैंस, भेड़, बकरी और सूअर शामिल हैं, का 100% टीकाकरण करना है।
राष्ट्रीय गोकुल मिशन:
- यह मिशन देश में वैज्ञानिक और समेकित तरीके से स्वदेशी गोवंश (Domestic Bovines) नस्लों के संरक्षण तथा संवर्द्धन हेतु प्रारंभ किया गया है।
- इसके अंतर्गत देशी गोवंश के दुग्ध उत्पादन को बढ़ाकर इन्हें किसानों हेतु और अधिक लाभदायक बनाना है।
राष्ट्रीय पशुधन मिशन:
- इस मिशन को वर्ष 2014-15 में लॉन्च किया गया।
- इस मिशन का उद्देश्य पशुधन उत्पादन प्रणालियों में मात्रात्मक और गुणात्मक सुधार सुनिश्चित करना तथा सभी हितधारकों की क्षमता में सुधार करना है।
राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम:
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत मादा नस्लों में गर्भधारण के नए तरीकों का सुझाव दिया जाएगा।
- इसमें कुछ लैंगिक बीमारियों के प्रसार को रोकना भी शामिल है, ताकि नस्ल की दक्षता में वृद्धि की जा सके।
कार्बन वाॅच एप: चंडीगढ़
हाल ही में चंडीगढ़ ने ‘कार्बन वाॅच’ नाम से एक मोबाइल एप्लीकेशन लॉन्च किया है, इसका उद्देश्य एक व्यक्ति के कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करना है। इसके साथ ही चंडीगढ़ इस तरह की पहल शुरू करने वाला पहला केंद्रशासित प्रदेश/राज्य बन गया है।
कार्बन फुटप्रिंट का आशय किसी विशेष मानवीय गतिविधि द्वारा वातावरण में जारी ग्रीनहाउस गैसों, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा से है।
कार्बन वाॅच प्लीकेशन के बारे में
- यह उत्सर्जन के राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय औसत स्तर एवं व्यक्तिगत उत्सर्जन से संबंधित सूचना प्रदान करेगा।
- यह आम लोगों को उनके कार्बन फुटप्रिंट से संबंधित सूचनाएँ प्रदान करने के साथ-साथ कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के तरीकों पर भी सुझाव देगा।
- यह लोगों को उनकी विशिष्ट जीवनशैली के कारण होने वाले उत्सर्जन, प्रभाव और उससे निपटने के लिये संभावित उपायों के बारे में भी जागरूक करेगा।
कार्बन फुटप्रिंट
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कार्बन फुटप्रिंट जीवाश्म ईंधन के कारण उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पर आम लोगों की गतिविधियों के प्रभाव को मापने का एक उपाय है, इसे CO2 उत्सर्जन के भार के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- आमतौर पर इसे प्रतिवर्ष उत्सर्जित CO2 (टन में) के रूप में मापा जाता है। यह एक ऐसी मात्रा है जिसके लिये CO2 समतुल्य गैसें (मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें) पूरक के रूप में कार्य कर सकती हैं।
- इस अवधारणा को किसी एक व्यक्ति, एक परिवार, एक घटना, एक संगठन, यहाँ तक कि एक संपूर्ण राष्ट्र पर लागू किया जा सकता है।
कार्बन फुटप्रिंट बनाम इकोलॉजिकल फुटप्रिंट
- कार्बन फुटप्रिंट, इकोलॉजिकल फुटप्रिंट से अलग होता है। जहाँ एक ओर कार्बन फुटप्रिंट उन गैसों के उत्सर्जन को मापता है, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देती हैं, वहीं इकोलॉजिकल फुटप्रिंट ‘बायो-प्रोडक्टिव स्पेस’ के उपयोग को मापने पर केंद्रित है।
उच्च कार्बन फुटप्रिंट का प्रभाव
- जलवायु परिवर्तन को उच्च कार्बन फुटप्रिंट का महत्त्वपूर्ण प्रभाव माना जा सकता है। ग्रीनहाउस गैसें, चाहे वे प्राकृतिक हों अथवा मानव निर्मित, पृथ्वी को और अधिक गर्म करने में योगदान देती हैं।
- वर्ष 1990 से वर्ष 2005 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 31 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि वर्ष 2008 से उत्सर्जन ने विकिरण वार्मिंग में 35 प्रतिशत की वृद्धि की है।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से 2011-2020 अब तक का सबसे गर्म दशक था।
- संसाधनों का ह्रास: वनों की कटाई से लेकर एयर कंडीशनिंग के उपयोग तक अत्यधिक कार्बन फुटप्रिंट व्यापक पैमाने पर संसाधनों के ह्रास में योगदान देते हैं।
कार्बन फुटप्रिंट कम करने के उपाय
- 4A [उपयोग के लिये मना करना (Refuse) कम करना (Reduce), पुन: उपयोग (Reuse) तथा पुनर्चक्रण (Recycle)] की अवधारणा को अपनाना इस दिशा में महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
- सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना, अधिक कुशलता से वाहन चलाना अथवा यह सुनिश्चित करना कि वर्तमान वाहन ठीक स्थिति में रहें।
- व्यक्ति और कंपनियाँ द्वारा कार्बन क्रेडिट खरीदकर अपने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कुछ कमी की जा सकती है, उनके द्वारा खरीदे गए कार्बन क्रेडिट का उपयोग वृक्षारोपण या नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित परियोजनाओं में निवेश के लिये किया जा सकता है।
- पेरिस समझौते जैसे जलवायु परिवर्तन कन्वेंशनों के कार्यान्वयन और जलवायु परिवर्तन से संबंधित भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही पहलों में और तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
- भारत द्वारा शुरू की गई पहलों में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) और राष्ट्रीय वेटलैंड संरक्षण कार्यक्रम आदि शामिल हैं।
परमाणु निरीक्षण पर IAEA - ईरान समझौता
- ईरान ने एक समझौते के तहत अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को अपने परमाणु कार्यक्रम तक सीमित पहुँच की इजाज़त दे दी है।
- दिसंबर 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों में ढील न दिये जाने पर ईरान की संसद ने कुछ निरीक्षणों को निलंबित करने की मांग करते हुए एक कानून पारित किया।
- व्यापक सुरक्षा उपायों के तहत IAEA का अधिकार और दायित्व यह सुनिश्चित करना है कि इस क्षेत्र में सभी परमाणु सामग्री पर सुरक्षा उपायों को लागू किया गया है तथा वह पुष्टि करे कि यह सामग्री अनन्य उद्देश्य के लिये राज्य के अधिकार क्षेत्र या नियंत्रण में है और ऐसी सामग्री को परमाणु हथियारों या अन्य नाभिकीय विस्फोटकों के निर्माण में प्रयोग नहीं किया जाएगा।
- परमाणु अप्रसार संधि के तहत सुरक्षा उपायों के अतिरिक्त IAEA को कोई अनुमति नहीं दी जाएगी।
- ईरान कुछ स्थलों पर स्थापित निगरानी कैमरों की फुटेज की ‘रियल टाइम एक्सेस’ देने से इनकार कर देगा और अगर तीन महीने के भीतर प्रतिबंध नहीं हटाया जाता है तो वह इन्हें डिलीट कर देगा।
समझौते का महत्त्व:
- यह निश्चित रूप से ईरान की परमाणु गतिविधियों और वर्ष 2015 के परमाणु समझौते को नए प्रकार से लागू करने के प्रयासों पर बढ़ते संकट को कम करेगा।
- यह वर्ष 2020 में पारित एक नए ईरानी कानून के प्रभाव को काफी कम कर देता है, जिससे IAEA की कार्य करने की क्षमता में गंभीर बाधा उत्पन्न हो रही थी।
वर्ष 2015 का परमाणु समझौता:
- वर्ष 2015 में ईरान ने वैश्विक शक्तियों P5 + 1 के समूह (संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, रूस और जर्मनी) के साथ अपने परमाणु कार्यक्रम से संबंधित दीर्घकालिक समझौते पर सहमति व्यक्त की।
- इसे संयुक्त व्यापक कार्रवाई योजना (Joint Comprehensive Plan Of Action-JCPOA) और सामान्यतः 'ईरान परमाणु समझौता' के नाम से जाना जाता है।
- इस समझौते के तहत ईरान ने प्रतिबंधों को हटाने और वैश्विक व्यापार तक पहुँच स्थापित करने के बदले अपनी परमाणु गतिविधियों पर अंकुश लगाने की सहमति व्यक्त की।
- इस समझौते के तहत ईरान को शोध के लिये थोड़ी मात्रा में यूरेनियम जमा करने की अनुमति दी गई लेकिन यूरेनियम के संवर्द्धन पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जिसका उपयोग रिएक्टर ईंधन और परमाणु हथियार बनाने के लिये किया जाता है।
- ईरान को एक भारी जल-रिएक्टर (Heavy-Water Reactor) के निर्माण की भी आवश्यकता थी, जिसमें ईंधन के रूप में प्रयोग करने हेतु भारी मात्रा में प्लूटोनियम (Plutonium) की आवश्यकता के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण की अनुमति देना भी आवश्यक था।
वर्ष 2018
में समझौते से अमेरिका का अलग होना:
- मई 2018 में अमेरिका ने इस समझौते को दोषपूर्ण बताते हुए इससे अलग हो गया और ईरान पर प्रतिबंध बढ़ाने शुरू कर दिये।
- प्रतिबंधों को कड़ा कर दिये जाने के बाद से ईरान प्रतिबंधों में राहत का रास्ता खोजने के लिये शेष हस्ताक्षरकर्त्ताओं पर दबाव बनाने हेतु अपनी कुछ प्रतिबद्धताओं का लगातार उल्लंघन कर रहा है।
- अमेरिका ने कहा कि वह सभी देशों को ईरान से तेल खरीदने से रोकने और नए परमाणु समझौते हेतु दबाव बनाने के लिये ईरान को मजबूर करने का प्रयास करेगा।
IAEA का पक्ष:
- वर्ष 2018 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के यूरेनियम और भारी जल के भंडार के साथ-साथ इसके द्वारा अतिरिक्त प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन, समझौते के अनुरूप था।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी
इसे संयुक्त राष्ट्र के अंदर व्यापक रूप से
दुनिया में ‘शांति और विकास हेतु संगठन’ के रूप में जाना जाता है, IAEA परमाणु क्षेत्र में सहयोग के लिये एक
अंतर्राष्ट्रीय केंद्र है।
स्थापना:
IAEA की स्थापना वर्ष 1957 में परमाणु प्रौद्योगिकी के विविध उपयोगों से उत्पन्न आशंकाओं और खोजों की प्रतिक्रिया में की गई थी।
मुख्यालय: वियना (ऑस्ट्रिया)
उद्देश्य:
- यह एजेंसी अपने सदस्य राज्यों और कई भागीदारों के साथ परमाणु प्रौद्योगिकियों के सुरक्षित, निश्चिंत और शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिये काम करती है।
- वर्ष 2005 में एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण दुनिया के निर्माण में इसके योगदान के लिये IAEA को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
कार्य:
- यह एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो संयुक्त राष्ट्र महासभा को वार्षिक रूप से रिपोर्ट करता है।
- जब भी आवश्यक हो IAEA सदस्यों की सुरक्षा और सुरक्षा दायित्वों के अनुपालन मामलों के संबंध में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को रिपोर्ट करता है।