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गुरुवार, 4 मार्च 2021

Daily Current Affair 4 March 2021 | Daily Current Affair in Hindi

 Daily Current Affair 4 March 2021
 Daily Current Affair in Hindi
Daily Current Affair 4 March 2021  Daily Current Affair in Hindi


ब्लैक ब्राउड बैबलर


  • हाल ही में दक्षिण-पश्चिम कालीमंतन जो बोर्नियो का हिस्सा है एवं इंडोनेशिया द्वारा प्रशासित है, में एक ब्लैक-ब्राउड बैबलर (Malacocincla perspicillata) को फिर से खोजा गया है।


इतिहास:

 

  • 1840 के दशक में एक ईस्ट इंडीज़ अभियान के दौरान रहस्यमयी पक्षी पकड़ा गया था। इसे ब्लैक-ब्राउड बैबलर नाम दिया गया था।
  • इस प्रजाति को फिर से जंगलों में नहीं देखा गया था और एक चमकीले पीले काँच का का एक नमूना इसके अस्तित्व का एकमात्र प्रमाण था।
  • कोई भी एशियाई पक्षी इतने वर्षों तक विलुप्त नहीं हुआ है जितने वर्षों तक इंडोनेशिया की ब्लैक-ब्राउड बैबलर विलुप्त हुआ है। यह पिछले 170 वर्षों से गायब है।
  • इस पक्षी को प्रायः 'इंडोनेशियन पक्षी विज्ञान में सबसे बड़ा रहस्य' माना जाता है।


ब्लैक ब्राउड बैबलर:

  • इसकी चोंच मज़बूत, रंग चॉकलेटी और विशिष्ट काली आँखें होती हैं, इसकी आँख की पुतली गहरे मैरून (Maroon) रंग की होती है।
  • इसके पंख भूरे होते हैं जिनके पास एक काली पट्टी होती है।
  • इस तरह की खोजों से उम्मीद की जा रही है कि ऐसी अन्य प्रजातियों को ढूँढना भी संभव है जो दशकों या लंबे समय से विलुप्त हैं।
  • दुनिया भर में पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियों को "विलुप्त" माना जाता है, जिनकी पिछले एक दशक में कोई पुष्टि नहीं हुई है।

सुरक्षा की स्थिति:

 IUCN रेड लिस्ट: आँकड़े अपर्याप्त

 

एक्सरसाइज़ डेज़र्ट फ्लैग-VI’: UAE


पहली बार भारतीय वायु सेना (IAF) संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की वायु सेना द्वारा आयोजित एक्सरसाइज़ डेज़र्ट फ्लैग-VI’ में भाग ले रही है।

एक्सरसाइज़ डेज़र्ट फ्लैगसंयुक्त अरब अमीरात की वायु सेना द्वारा आयोजित एक वार्षिक बहुराष्ट्रीय युद्ध अभ्यास है।

लक्ष्य: एक नियंत्रित वातावरण में भाग लेने वाले बलों को परिचालन संबंधी जोखिम से बचने का प्रशिक्षण प्रदान करना।

अवधि: यह UAE के अल-धफरा एयरबेस पर 3 से 27 मार्च, 2021 तक आयोजित होने वाला तीन सप्ताह का अभ्यास है।

प्रतिभागी: संयुक्त अरब अमीरात, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस, सऊदी अरब, दक्षिण कोरिया और बहरीन की वायु सेना।

भारत की सहभागिता: भारतीय वायुसेना छह सुखोई -30 एमकेआई, दो सी -17 ग्लोबमास्टर्स और एक आईएल -78 टैंकर विमान के साथ भाग ले रही है।


UAE के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास:

 

UAE के साथ भारत ‘In-UAE BILAT’ (द्विपक्षीय नौसेना अभ्यास) के साथ-साथ डेज़र्ट ईगल-II (द्विपक्षीय वायु सेना अभ्यास) में भाग लेता है।


वर्तमान सहयोग:

 

भारत ने NAVDEX 21 (नौसेना रक्षा प्रदर्शनी) और IDEX 21 (अंतर्राष्ट्रीय रक्षा प्रदर्शनी) में भी भाग लिया।

ये प्रदर्शनियाँ वैश्विक रक्षा क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों और नवाचारों का प्रदर्शन, UAE के रक्षा उद्योग में वृद्धि का समर्थन करती हैं और प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के बीच नए संबंधों का निर्माण करती हैं।


अन्य बहुराष्ट्रीय अभ्यास:

 

पिच ब्लैक: ऑस्ट्रेलिया का द्विवार्षिक, बहुपक्षीय वायु युद्ध प्रशिक्षण अभ्यास।

रेड फ्लैग: संयुक्त राज्य अमेरिका का बहुपक्षीय वायु अभ्यास।


हिमालयन सीरो

  • हाल ही में असम में पहली बार हिमालयन सीरो’ (HImalayan Serow) को देखा गया है। हिमालयन सीरोको असम में 950 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले मानस टाइगर रिज़र्व में देखा गया है, जो कि टाइगर रिज़र्व के स्वस्थ पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत देता है। हिमालयन सीरो बकरी, गधा, गाय तथा सुअर के समान दिखता है। यह बड़े सिर, मोटी गर्दन, छोटे अंग, खच्चर जैसे कान, और काले बालों वाला एक मध्यम आकार का स्तनपायी है। हिमालयन सीरोया कैपरीकोर्निस सुमात्रेंसिसथार हिमालयी क्षेत्र तक ही सीमित है और इसे मेनलैंड सीरोया कैपरीकोर्निस सुमात्रेंसिसकी उप-प्रजाति माना जाता है। इससे पूर्व दिसंबर 2020 में हिमाचल प्रदेश के स्पीति के पास एक नदी के किनारे स्थानीय लोगों और वन्यजीव अधिकारियों ने हिमालयन सीरो को देखा था। असम और हिमाचल प्रदेश में सीरोको देखा जाना इस लिहाज से काफी महत्त्वपूर्ण है कि ये आमतौर पर समुद्र की सतह से 4,270 मीटर की ऊँचाई पर नहीं पाए जाते हैं। हिमालयन सीरो को IUCN की रेड लिस्ट में 'सुभेद्यके रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध किया गया है, जो कि इसे पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है।

 

राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस कब मनाया जाता है 

  • राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना को चिह्नित करने के लिये प्रतिवर्ष 4 मार्च को राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। इस दिवस का प्राथमिक उद्देश्य दुर्घटनाओं और किसी अन्य आपात परिस्थिति को रोकने के लिये आवश्यक सुरक्षा उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के स्थापना दिवस पर पहली बार वर्ष 1972 में राष्ट्रीय सुरक्षा दिवस मनाया गया था। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, राष्ट्रीय स्तर पर एक गैर-लाभकारी, स्व-वित्तपोषित, त्रिपक्षीय निकाय है। इसे श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय द्वारा 4 मार्च, 1965 को सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर एक स्वैच्छिक आंदोलन शुरू करने के लिये स्थापित किया गया था। यह एक स्वायत्त निकाय है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का उद्देश्य समाज की रक्षा एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना और लोगों में एक निवारक संस्कृति तथा वैज्ञानिक मानसिकता को बढ़ावा देना है। राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद आम जनता के बीच सुरक्षा से संबंधित संदेश प्रसारित करने वर्ष सड़क दुर्घटनाओं के कारण देश में 1.50 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु होती है और इससे भी अधिक संख्या में लोग शारीरिक रूप से अक्षम हो जाते हैं, जिसके कारण पीड़ित परिवारों के साथ-साथ संपूर्ण देश को भारी क्षति का सामना करना पड़ता है।

 

विश्‍व श्रवण दिवस कब मनाया जाता है 

  • विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 03 मार्च को विश्व श्रवण दिवस का आयोजन किया जाता है। इस दिवस का प्राथमिक लक्ष्य इस संदेश को प्रसारित करना है कि समय पर और प्रभावी देखभाल लोगों को श्रवण बाधिता से मुकाबला करने में मदद कर सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा आयोजित किया  जाने वाला यह दिवस श्रवण तंत्रिकाओं की सुरक्षा और निवारक उपायों को अपनाने के लिये की जाने वाली कार्रवाई के बारे में जागरूकता फैलाने का अवसर प्रदान करता है। विश्व स्तर पर तकरीबन 1.5 बिलियन लोग पूर्ण अथवा आंशिक रूप से श्रवण बाधिता का सामना कर रहे हैं और इसमें से लगभग 430 मिलियन लोगों को जल्द-से-जल्द पुनर्वास सहायता की आवश्यकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2050 तक विश्व भर में लगभग 2.5 मिलियन लोग या 4 में से 1 व्यक्ति पूर्ण अथवा आंशिक रूप से श्रवण बाधिता से प्रभावित होगा।

 

उदयपुर विज्ञान केंद्र

  • त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस ने हाल ही में उदयपुर विज्ञान केंद्र (त्रिपुरा) का उद्घाटन किया है। उदयपुर विज्ञान केंद्र 22वाँ विज्ञान केंद्र है, जिसे राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद (NCSM) द्वारा विकसित करके राज्य सरकार को सौंपा गया है। संस्कृति मंत्रालय की विज्ञान की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये योजना के तहत राज्य सरकारों को विज्ञान केंद्र सौंपे जा रहे हैं। 6 करोड़ रुपए की लागत से विकसित इस केंद्र को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के साथ-साथ त्रिपुरा के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण विभाग द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित किया है। यह विज्ञान केंद्र छात्रों को विज्ञान के बारे में कई अज्ञात तथ्यों को जानने में सक्षम करेगा। राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद (NCSM) द्वारा देश के सभी उत्तर-पूर्वी राज्यों में विज्ञान केंद्र स्थापित किये गए हैं। राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है, जिसकी स्थापना 4 अप्रैल, 1978 को की गई थी।

 

ग्लोबल बायो-इंडिया-2021


हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने वर्चुअल माध्यम से नई दिल्ली में 'ग्लोबल बायो-इंडिया-2021' के दूसरे संस्करण का उद्घाटन किया। 

यह राष्ट्रीय स्तर पर और वैश्विक समुदाय के लिये भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की क्षमता और इस क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों को दर्शाता है।

केंद्रीय मंत्री ने इस अवसर पर "राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी रणनीति" या नेशनल बायोटेक स्ट्रेटजी’ (National Biotech Strategy) का अनावरण किया और 'ग्लोबल बायो-इंडिया' की आभासी प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया।


संक्षिप्त परिचय:

यह जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय निकाय, नियामक निकाय, केंद्रीय और राज्य मंत्रालयों, एसएमई, बड़े उद्योगों, जैव प्रौद्योगिकी, अनुसंधान संस्थानों, निवेशकों तथा स्टार्टअप पारिस्थितिकीतंत्र सहित अन्य हितधारक शामिल हैं।

इसका लक्ष्य भारत को विश्व में एक उभरते हुए नवोन्मेष केंद्र और जैव विनिर्माण केंद्र के रूप में मान्यता प्रदान करना है।

गौरतलब है कि वैश्विक नवाचार सूचकांक (Global Innovation Index-GII), 2020 में भारत को 48वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।


उद्देश्य:

जैव- साझेदारी, नीतिगत चर्चा, भारत के लिये कंपनियों के अधिकारियों की योजनाएँ और भारतीय बायोटेक पारिस्थितिक तंत्र को अंतर्राष्ट्रीय पारिस्थितिक तंत्र के साथ जोड़ना तथा नए विचार मूल्यांकन एवं निवेश के लिये मंच तैयार करना।

राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों, स्टार्टअप और अनुसंधान संस्थानों के प्रमुख जैव प्रौद्योगिकी नवाचारों, उत्पादों, सेवाओं, प्रौद्योगिकियों की पहचान तथा उनका प्रदर्शन करना।

अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की बड़ी अनुबंध परियोजनाओं के साथ-साथ प्रमुख वैश्विक उद्यमों से भारत में वित्तपोषण को आकर्षित करना।

विश्व बैंक की ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत वर्ष 2014 की 6वीं रैंक के विपरीत वर्तमान में दक्षिण-एशियाई देशों में प्रथम स्थान पर है।

 आयोजक:

इसका आयोजन केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा अपने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम 'जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद' (BIRAC) और भारतीय उद्योग परिसंघ (CII), एसोसिएशनऑफ बायोटेक्नोलॉजी लेड एंटरप्राइज़ेज़ (ABLE) तथा इन्वेस्ट इंडिया की साझेदारी में किया गया था।

ABLE एक गैर-लाभकारी अखिल भारतीय मंच है जो भारतीय जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।


जैव प्रौद्योगिकी तकनीक क्या होती है 

  • जैव प्रौद्योगिकी वह तकनीक है जो विभिन्न उत्पादों को विकसित करने या बनाने के लिये जैविक प्रणालियों, जीवित जीवों या इसके कुछ हिस्सों का उपयोग करती है।
  • जैव प्रौद्योगिकी के तहत बायोफार्मास्यूटिकल्स का औद्योगिक पैमाने पर उत्पादन करने हेतु आनुवंशिक रूप से संशोधित रोगाणुओं, कवक, पौधों और जानवरों का उपयोग किया जाता है।
  • जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों में रोग की चिकित्सा, निदान, कृषि के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, प्रसंस्कृत खाद्य, बायोरेमेडिएशन, अपशिष्ट उपचार और ऊर्जा उत्पादन आदि शामिल हैं।


भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र:

परिचय:

  • जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को वर्ष 2024 तक भारत के 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान देने वाले प्रमुख चालकों में से एक माना जाता है।
  • भारत सरकार की नीतिगत पहल जैसे- मेक इन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को एक विश्व स्तरीय जैव प्रौद्योगिकी और जैव-विनिर्माण हब के रूप में विकसित करना है।
  • वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी उद्योग में लगभग 3% हिस्सेदारी के साथ भारत विश्व में जैव प्रौद्योगिकी के लिये प्राथमिकता वाले शीर्ष -12 देशों में से एक है।
  • वर्ष 2020 में भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग की हिस्सेदारी 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई थी और इसके वर्ष 2025 तक बढ़कर 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।


जैव प्रौद्योगिकी पार्क:

  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने आवश्यक अवसंरचना सहायता प्रदान करते हुए जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधानों को उत्पादों और सेवाओं में बदलने के लिये देश भर में जैव प्रौद्योगिकी पार्क/ इन्क्यूबेटरों की स्थापना की है।
  • ये जैव प्रौद्योगिकी पार्क जैव प्रौद्योगिकी के त्वरित वाणिज्यिक विकास हेतु टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेशन, प्रौद्योगिकी प्रदर्शन और पायलट संयंत्र अध्ययन के लिये वैज्ञानिकों तथा 'लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों' (SMEs) को सुविधाएँ प्रदान करते हैं।
  • राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति मसौदा 2020-24:

संक्षिप्त परिचय:

इसके तहत वर्ष 2025 तक जैव प्रौद्योगिकी उद्योग को 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाने के लिये स्टार्टअप के साथ अधिक जुड़ाव और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल का लाभ उठाने पर ज़ोर दिया गया है।

लक्ष्य:

शिक्षा और उद्योग को जोड़ते हुए एक जीवंत स्टार्टअप, उद्यमी और औद्योगिक आधार का निर्माण तथा विकास करना।

फोकस:

स्टार्टअप्स, लघु उद्योग और बड़े उद्योगों के पूर्ण जुड़ाव के साथ अनुसंधान संस्थानों एवं प्रयोगशालाओं (सार्वजनिक और निजी दोनों) में एक मज़बूत बुनियादी अनुसंधान एवं नवाचार संचालित पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण तथा इसका विकास करना।

 

स्वच्छता सारथी फेलोशिप: वेस्ट टू वेल्थ मिशन


हाल ही में भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय ने अपने "वेस्ट टू वेल्थ" (Waste to Wealth) मिशन के अंतर्गत स्वच्छता सारथी फेलोशिप" (Swachhta Saarthi Fellowship) की शुरुआत की है।

 

स्वच्छता सारथी फेलोशिप के विषय में:

उद्देश्य: इस फेलोशिप का उद्देश्य उन छात्रों, स्वयं सहायता समूहों, सफाई कर्मचारियों आदि को प्रोत्साहन प्रदान करना है जो निरंतर अपने प्रयासों से शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में कचरे को कम करने में लगे हुए हैं।

इस फेलोशिप के अंतर्गत प्रोत्साहन पुरस्कार को तीन अलग-अलग श्रेणियों में बाँटा गया है:

श्रेणी-ए: यह श्रेणी उन स्कूली विद्यार्थियों के लिये है जो 9वीं कक्षा से 12वीं कक्षा तक के हैं और सामुदायिक स्तर पर कचरा प्रबंधन के कार्यों में लगे हुए हैं।

श्रेणी-बी: इसके अंतर्गत कॉलेज के उन छात्रों को प्रोत्साहन मिलेगा जो स्नातक, परास्नातक तथा शोध छात्र हैं और सामुदायिक स्तर पर कचरा प्रबंधन में लगे हुए हैं।

श्रेणी-सी: इसके अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से समुदाय में कार्य कर रहे उन नागरिकों, नगर निगम कर्मियों और स्वच्छता कर्मियों को प्रोत्साहन मिलेगा जो अपने उत्तरदायित्व से आगे बढ़कर कार्य कर रहे हैं।

वेस्ट टू वेल्थ मिशन:

  • यह मिशन अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पन्न करने, बेकार सामग्री के पुनर्चक्रण आदि के लिये प्रौद्योगिकियों की पहचान करने के साथ ही उनके विकास और उपलब्धता सुनिश्चित करेगा।
  • द वेस्ट टू वेल्थमिशन प्रधानमंत्री की विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PM-STIAC) के नौ राष्ट्रीय मिशनों में से एक है।
  • यह मिशन स्वच्छ भारत और स्मार्ट शहर जैसी परियोजनाओं में मदद करेगा, साथ ही एक ऐसा वृहद् आर्थिक मॉडल तैयार करेगा जो देश में अपशिष्ट प्रबंधन को कारगर बनाने के साथ-साथ उसे आर्थिक रूप से व्यवहार्य भी बनाएगा।


ई-वेस्ट टू वेल्थ: नई प्रौद्योगिकी (आईआईटी दिल्ली)

  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली ने धन के लिये ई-कचरे का प्रबंधन और पुनर्चक्रण करने हेतु एक शून्य-उत्सर्जन तकनीक विकसित की है।
  • ई-कचरे की नई कार्यप्रणाली मेटल रिकवरी और एनर्जी प्रोडक्शन के लिये "शहरी खदानों" (Urban Mine) का उपयोग करेगी।
  • ई-कचरे से तरल और गैसीय ईंधन प्राप्त करने के लिये इसे पायरोलाइसिस (Pyrolysis) किया जाता है। यह ई-कचरे को गर्म करके अलग-अलग पदार्थों में विभक्त करने की प्रक्रिया है।
  • इन अलग हुए ठोस अवशेषों में 90-95% शुद्ध धातु मिश्रण और कुछ कार्बनयुक्त पदार्थ होते हैं।
  • कार्बनयुक्त पदार्थ को एयरोजेल (Aerogel) में बदला जाता है, जिसका उपयोग तेल रिसाव की सफाई, डाई हटाने, कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने आदि में किया जाता है।
  • यह तकनीक स्मार्ट सिटी मिशन, स्वच्छ भारत अभियान और आत्मनिर्भर भारत जैसी पहलों की ज़रूरतों को पूरा करेगी।

 

मैरीटाइम इंडिया समिट 2021

जहाज़रानी मंत्रालय ( Ministry of Ports, Shipping and Waterways) द्वारा मैरीटाइम इंडिया समिट 2021’ का आयोजन किया जा रहा है।


फोकस एरिया:

  • 7,516 किलोमीटर लंबी समुद्र तटरेखा के साथ बंदरगाह के विकास को आगे बढ़ाना।
  • भारत द्वारा वर्ष 2035 तक (सागरमाला कार्यक्रम के तहत) बंदरगाह परियोजनाओं में 82 बिलियन अमेरीकी डाॅलर का निवेश किया जाएगा, समुद्री क्षेत्र में स्वच्छ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी को बढ़ावा दिया जाएगा, जलमार्गों को विकसित करने तथा प्रकाश-स्तंभों के आसपास पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 23 जलमार्गों का परिचालन करना है।
  • भारत का उद्देश्य बुनियादी ढाँचे के उन्नयन पर ध्यान केंद्रित कर आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) के दृष्टिकोण को मज़बूत करना है।
  • भारतीय बंदरगाहों की वर्तमान स्थिति:
  • भारत के पश्चिम और पूर्वी तट पर 12 प्रमुख बंदरगाह और कई अन्य छोटे बंदरगाह स्थित हैं।
  • प्रमुख बंदरगाहों की क्षमता वर्ष 2014 में 870 मिलियन टन थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर 1550 मिलियन टन हो गई है।
  • वर्तमान में भारतीय बंदरगाहों में डेटा के आसान प्रवाह हेतु डायरेक्ट पोर्ट डिलीवरी, डायरेक्ट पोर्ट एंट्री और अपग्रेडेड पोर्ट कम्युनिटी सिस्टम (PCS) उपाय शामिल हैं जो बंदरगाहों पर मालवाहक जहाज़ों के प्रवेश तथा निकासी में लगने वाले समय को कम करने में सहायक हैं।

महत्त्व:

  • यह समुद्री क्षेत्र के विकास में मदद करेगा और भारत को विश्व में अग्रणी नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के रूप में बढ़ावा देगा।
  • मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा।

बंदरगाह विकास हेतु अन्य पहलें:


सागर-मंथन: मैरीटाइम इंडिया समिट 2021’ के अवसर पर मर्केंटाइल मरीन डोमेन अवेयरनेस सेंटर की भी शुरुआत की गई।

यह समुद्री सुरक्षा, खोज और बचाव क्षमताओं तथा सुरक्षा व समुद्री पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु एक सूचना प्रणाली है।

वर्ष 2022 तक दोनों तटों पर जहाज़ों की मरम्मत करने वाले क्लस्टरों को विकसित किया जाएगा।

'वेल्थ फ्रॉम वेस्ट' (Wealth from Waste) के सृजन हेतु घरेलू जहाज़ रिसाइक्लिंग उद्योग (Ship Recycling Industry) को भी बढ़ावा दिया जाएगा।

भारत ने जहाज़ रिसाइक्लिंग अधिनियम, 2019 (Recycling of Ships Act, 2019) को लागू किया है और हॉन्गकॉन्ग अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के प्रति सहमति व्यक्त की है।

भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सभी भारतीय बंदरगाहों पर तीन चरणों में कुल ऊर्जा में 60 प्रतिशत से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना है।

सागरमाला कार्यक्रम:

  • सागरमाला कार्यक्रम का अनुमोदन वर्ष 2015 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा किया गया था, इसका उद्देश्य आधुनिकीकरण, मशीनीकरण और कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से 7,516 किलोमीटर लंबी समुद्री तट रेखा के आस-पास बंदरगाहों के इर्द-गिर्द प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विकास को बढ़ावा देना है।
  • इस बंदरगाह-नेतृत्व विकास ढाँचे के तहत सरकार द्वारा कार्गो यातायात को तीन गुना तक बढ़ाए जाने की उम्मीद है।
  • इसमें बंदरगाह टर्मिनलों के साथ रेल/सड़क संपर्क की सुविधा सुनिश्चित करना भी शामिल है, जैसे- बंदरगाहों को अंतिम-मील कनेक्टिविटी प्रदान करना, नए क्षेत्रों में संपर्क बढ़ाना, रेल, अंतर्देशीय जलमार्गों, तटीय एवं सड़क सेवाओं सहित मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी में वृद्धि करना।

कर्नाटक की इंजीनियरिंग अनुसंधान और विकास नीति


नीति के तहत केंद्रीय क्षेत्र:

नई नीति में एयरोस्पेस और रक्षा; ऑटो, ऑटो घटक और इलेक्ट्रिक वाहन; जैव प्रौद्योगिकी, फार्मा और चिकित्सा उपकरण; अर्द्धचालक, दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिज़ाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग (ESDM) और सॉफ्टवेयर उत्पाद जैसे पाँच प्रमुख केंद्रीय क्षेत्रों की पहचान की गई है।


कौशल निर्माण:

सरकार कौशल निर्माण में निवेश करेगी, अकादमिक और उद्योग सहयोग में सुधार करेगी और स्थानीय स्तर पर बौद्धिक संपदाओं के निर्माण को भी प्रोत्साहित करेगी।

सब्सिडी:

इस नीति के तहत बंगलूरू नगरीय ज़िले के अलावा मल्टी-नेशनल कॉर्पोरेशन’ (MNC) संस्थाओं को 2 करोड़ रुपए तक के किराए की 50% प्रतिपूर्ति की पेशकश की जाएगी।

इस नीति के तहत बंगलूरू के अतिरिक्त राज्य में निवेश के लिये 20% तक (2 करोड़ रुपए) की सब्सिडी भी प्रदान की जाएगी।

इस सब्सिडी का आकलन केस-टू-केसआधार पर कंपनियों द्वारा किये जा रहे निवेश और उनके द्वारा उत्पन्न रोज़गार के आधार पर किया जाएगा ।

नवाचार:

नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सरकार विभिन्न परियोजनाओं हेतु कॉलेजों को धन मुहैया कराएगी और कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में उद्योग-उन्मुख पाठ्यक्रम विकसित करने की लागत भी वहन करेगी।

लक्ष्य:

इस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले अवसरों का उपयोग करने के लिये राज्य को तैयार करना।

कर्नाटक को स्किल्ड नॉलेज कैपिटलबनाने के लिये इसका योगदान बढ़ाना, अधिक बौद्धिक संपदा विकसित करना।

बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने के लिये राज्य में नए ER & D केंद्र स्थापित करना या सब्सिडी के माध्यम से अपनी मौजूदा सुविधाओं का विस्तार करना तथा वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बाज़ार में लाकर इंजीनियरिंग प्रतिभाओं और अवसरों के बीच व्याप्त अंतराल को समाप्त करना।

आवश्यकता:

ER & D क्षेत्र देश में 12.8% की एक चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ सबसे तेज़ी से वृद्धि करने वाला उद्योग है।

चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) एक वर्ष से अधिक समय की निर्दिष्ट अवधि में निवेश की औसत वार्षिक वृद्धि दर है। CAGR निवेशक को बताता है कि इस अवधि के दौरान हर वर्ष आपको कितना रिटर्न मिलता है। सामान्य शब्दों में कहें तो यह एक कंपनी की वृद्धि दर है जो वार्षिक आधार पर व्यक्त की जाती है। CAGR की गणना में कंपाउडिंग के प्रभाव को भी ध्यान में रखा जाता है।

वैश्विक इंजीनियरिंग अनुसंधान और विकास उद्योग के वर्ष 2025 तक 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।

भारत में ER & D के लिये लगभग 900 वैश्विक क्षमता केंद्र हैं और कर्नाटक का उनमें एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

राज्य सरकार ने अनुमान लगाया है कि नीति में ER & D क्षेत्र में पाँच वर्षों में 50,000 से अधिक नौकरियाँ सृजित करने की क्षमता है।

शीर्ष उद्योग निकाय नैसकॉमके अनुसार, ER & D क्षेत्र में अगले पाँच वर्षों में देश में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उद्योग बनने की क्षमता है।

डिजिटल इंजीनियरिंग और उद्योग 4.0 के बीच संबंध निम्न रूप में परिलक्षित होता है:

प्रक्रियाओं और आपूर्ति श्रंखलाओं में डिजिटल विनिर्माण संचालन एवं स्वचालन;

उत्पाद के रूप में एक सेवा व्यवसाय मॉडल, ग्राहकों को वांछित परिणाम के लिये भुगतान करने की अनुमति देता है ( उपकरणों के बजाय);

एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग, जो जटिल कार्यों में लगी उत्पादन प्रक्रियाओं को फिर से संगठित कर सकता है और उनके कार्यात्मक प्रदर्शन को बढ़ा सकता है।


मर्चेंट डिजिटाइज़ेशन सम्मेलन- 2021


हाल ही में भारत सरकार, फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) और संयुक्त राष्ट्र संघ के बेटर दैन कैश अलायंस’ (UN-based Better Than Cash Alliance) द्वारा संयुक्त रूप से मर्चेंट डिजिटाइज़ेशन सम्मेलन 2021: आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ना’ (Merchant Digitization Summit 2021: Towards Atmanirbhar (Self Reliance) Bharat) की मेज़बानी की गई।

 

इस सम्मेलन से सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के अग्रणी लोगों को साथ आने का मौका मिला है जो पूर्वोत्तर क्षेत्र, हिमालय क्षेत्र और आकांक्षी ज़िलों के कारोबारियों को जवाबदेह डिजटलीकरण (Responsible Digitization) को बढ़ावा देने हेतु प्रेरित करेगा।


हाईलाइट्स :

 

  • उन महिला व्यापारियों को सशक्त बनाना जो अपने समुदायों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, डिजिटल इंडिया मिशन को प्राप्त करने में मदद करना इसकी प्राथमिकताओं में से एक है।
  • राष्ट्रीय भाषा अनुवाद अभियान (National Language Translation Mission) के तहत इसके प्रति विश्वास बढ़ाने हेतु डिजिटल भुगतान सूचनाओं के प्रसार और निजता नियमों आदि को स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जा सकता है।
  • अंतिम पायदान पर मौजूद व्यापारियों हेतु कनेक्टिविटी, स्मार्टफोन तक उनकी पहुंँच और डिज़िटल साक्षरता की चुनौतियों को दूर करने पर भी सम्मेलन में सहमति व्यक्त की गई। 
  • आत्मनिर्भर भारत योजना के माध्यम से मेक इन इंडियापर अधिक ध्यान केंद्रित करते हुए जवाबदेह डिजिटलीकरण द्वारा ग्रामीण नेटवर्क में स्व-सहायता समूह और समुदाय के स्तर पर लोगों को शामिल करना।
  • इससे लाखों व्यापारियों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल करने हेतु  स्थानीय स्तर पर डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सकेगा  ताकि वे आसानी से कर्ज़ लेकर अपने व्यापार का विस्तार कर सकें।
  • भारत ने प्रतिमाह औसतन 2-3 बिलियन डिजिटल लेन-देन करने के बाद अब प्रतिदिन 1 बिलियन डिजिटल लेने-देन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • इसके तहत ग्राहक और कारोबारी के बीच हर माह 10-12 अरब डिजिटल लेन-देन का हस्तांतरण भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में योगदान देगा।

हाल की पहलें:

  •  डिजिटल भुगतान सूचकांक।
  • 'भुगतान अवसंरचना विकास कोष' योजना।
  • मर्चेंट डिस्काउंट रेट में छूट।


बेटर दैन कैश अलायंस (BTCA):

 

BTCA के बारे में: BTCA सरकारों, कंपनियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच एक साझेदारी है जिसके तहत सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु डिजिटल भुगतानों को तीव्रता के साथ किया जाता है।

स्थापना: इसे यूनाइटेड नेशंस कैपिटल डेवलपमेंट फंड, यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, सिटी ग्रुप, फोर्ड फाउंडेशन, ओमिडयार नेटवर्क तथा  वीज़ा इंक द्वारा लॉन्च किया गया था।

इसकी मेज़बानी संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास कोष (UNCDF) के न्यूयॉर्क, बोगोटा, डकार, ढाका, किगाली, लंदन, मनीला और नई दिल्ली कार्यालयों द्वारा की जाती है।

इसका गठन वर्ष 2012 में किया गया था।

सदस्य: इस एलायंस में 75 सदस्य हैं जो दक्षता, पारदर्शिता, महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भुगतानों को डिजिटल बनाने हेतु प्रतिबद्ध हैं तथा उन अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण में मदद करते हैं जो डिजिटल और समावेशी हैं।

इसके सदस्य नकदी के भौतिक लेन-देन को समाप्त नहीं करना चाहते हैं, बल्कि एक ज़िम्मेदार डिजिटल भुगतान विकल्प प्रदान करना चाहते हैं जो नकदी से बेहतरहै।

वित्तीय समावेशन हेतु भुगतान को डिजिटाइज़ करने तथा विश्व के सबसे बड़े वित्तीय समावेशन कार्यक्रम, प्रधानमंत्री जन धन योजना की सफलता की कहानियों को साझा करने के उद्देश्य से भारत वर्ष 2015 में बेटर दैन कैश अलायंस का सदस्य बन गया।


भारतीय वाणिज्य और उद्योग महासंघ (फिक्की)

 

  • फिक्की एक गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1927 में की गई थी।
  • यह भारत का सबसे बड़ा और सबसे पुराना शीर्ष व्यापारिक संगठन है जिसका इतिहास भारत के स्वतंत्रता संग्राम से निकटता से जुड़ा है, इसका औद्योगीकरण तथा  उद्भव सर्वाधिक तीव्र गति से वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।

 

ऑपरेशन ग्रीन एंड फ्लड

  • हाल ही में भारत सरकार ने केंद्रीय बजट 2021 पेश करते हुए घोषणा की कि ऑपरेशन ग्रीन (Operation Green) के अंतर्गत टमाटर, प्याज तथा आलू (TOP) के अलावा जल्दी खराब होने वाले 22 और कृषि उत्पादों को शामिल किया जाएगा। 
  • ऑपरेशन ग्रीन को वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था। योजना के अंतर्गत इस बात पर विचार किया गया था कि "ऑपरेशन फ्लड" (Operation Flood- AMUL मॉडल) की तर्ज पर TOP मामले में भी एक वैल्यू चेन का निर्माण किया जाएगा, जिससे उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर कृषि उत्पाद और किसानों को फसल का एक स्थिर मूल्य प्राप्त होता रहेगा। 
  • शुरुआती समय में OG के तीन प्रमुख उद्देश्य थे- कुशल मूल्य शृंखला का निर्माण, व्यापक मूल्य अस्थिरता और फसल बाद के नुकसान को कम करना। 
  • इस योजना के विश्लेषण से पता चला है कि यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में बहुत पीछे है, इसलिये श्वेत क्रांति की सफलता की कहानी को दोहराने के लिये ऑपरेशन फ्लड से बहुत कुछ सीखना होगा।

 

ऑपरेशन ग्रीन का उद्देश्य

  • मूल्य अस्थिरता: इसमें भारत की तीन सबसे प्रमुख सब्जियों (TOP) के मामले में व्यापक मूल्य अस्थिरता शामिल होनी चाहिये।
  • टमाटर-प्याज-आलू (Tomatoes-Onions-Potato) तीन बुनियादी सब्जियाँ हैं जो अत्यधिक मूल्य अस्थिरता की स्थिति का सामना करती हैं और सरकार अक्सर किसानों के लिये पारिश्रमिक मूल्य तथा उपभोक्ताओं हेतु सस्ती कीमतों को सुनिश्चित करने के अपने दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने में खुद को लाचार पाती है।
  • जब कृषि उत्पादों की भरमार के कारण कीमतें अनियंत्रित हो जाती हैं, तो NAFED को मूल्य स्थिरीकरण के लिये बाज़ार में हस्तक्षेप करना पड़ता है। ऐसे में कृषि उत्पाद अधिशेष क्षेत्रों से कुछ अतिरिक्त आवक की खरीद करके उन्हें प्रमुख खपत केंद्रों में संग्रहीत किया जाता है।
  • कुशल मूल्य शृंखला: यह उपभोक्ताओं से प्राप्त धन का एक बड़ा हिस्सा किसानों को देने के उद्देश्य से नए मूल्य-वर्द्धित उत्पादों के लिये कुशल मूल्य शृंखला बनाने की परिकल्पना करता है।
  • इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये किसान उत्पादक संगठन (Farmer Producer Organisation- FPO) को सब्सिडी प्रदान करने का प्रावधान है।
  • फसल की कटाई के बाद के नुकसान को कम करना: इसमें आधुनिक वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज और खाद्य प्रसंस्करण समूहों की स्थापना कर फसल के नुकसान को कम किया जाना चाहिये।


ऑपरेशन ग्रीन बनाम ऑपरेशन फ्लड


विजातीय TOP: OG के अंतर्गत प्रत्येक वस्तु का दूध की एकरूपता के विपरीत अपनी अलग विशिष्टता, उत्पादन और खपत चक्र है।

TOP सब्जियों की कई किस्में हैं जो विभिन्न जलवायु परिस्थितियों और विभिन्न मौसमों में उगाई जाती हैं, जिससे विपणन हस्तक्षेप (प्रसंस्करण और भंडारण) अधिक जटिल हो जाता है।

APMC बैरियर: दूध किसी APMC बैरियर से नहीं गुज़रता है और न ही इसमें कोई कमीशन शामिल होता है, जिससे किसानों को उपभोक्ता के रुपए का 75-80% हिस्सा मिलता है।

TOP का ज़्यादातर कारोबार APMC बाज़ारों में होता है, जहाँ इन पर मंडी शुल्क और कमीशन लगाया जाता है, जिससे किसानों को उपभोक्ता के रुपए का एक-तिहाई से भी कम मिल पाता है।


बागवानी क्षेत्र की विपरीत स्थिति दुग्ध क्षेत्र में देखने को मिलती है। ऑपरेशन फ्लड ने भारत के दूध क्षेत्र को बदल दिया और भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बन गया। इस ऑपरेशन की सफलता को दोहराने के लिये निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

 

अलग नियमन निकाय: दूध के लिये राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (National Dairy Development Board) की तर्ज पर एक अलग बोर्ड होना चाहिये।

नियोजित रणनीति: पहला और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ये परिणाम तीन से चार वर्षों में नहीं प्राप्त होते हैं। ऑपरेशन फ्लड लगभग 20 साल तक चला, इससे पहले दूध की मूल्य शृंखला को दक्षता और समावेशिता के ट्रैक पर रखा गया था।

इस प्रकार इस योजना को कम-से-कम पाँच साल का समय दिया जाना चाहिये और पर्याप्त परिणाम प्राप्त करने के लिये इसको जवाबदेह बनाया जाना चाहिये।

उच्च प्रसंस्करण द्वारा उत्पादन हिस्सेदारी को बढ़ाना: उत्पादन की तुलना में प्रसंस्करण की उच्च हिस्सेदारी के चलते दुग्ध क्षेत्र सबसे कम अस्थिरता वाले क्षेत्रों में शामिल है।

AMUL मॉडल किसान सहकारी समितियों से दूध की बड़ी मात्रा में खरीद और प्रसंस्करण, फ्लश सीजन (Flush Season) के दौरान मिल्क पाउडर के रूप में अतिरिक्त दूध का भंडारण तथा लीन सीजन (Lean Season) के दौरान इसका उपयोग करने एवं एक संगठित खुदरा नेटवर्क के माध्यम से दूध के वितरण पर आधारित है।

इस प्रकार सरकार को बागवानी क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड के साथ अतिरिक्त 10,000 FPO बनाने के लिये बजट में की गई घोषणा एक सराहनीय कदम है लेकिन इसे तेज़ी से लागू करने की आवश्यकता है।

सरकार को शहरी और थोक उपभोक्ताओं के बीच प्रसंस्कृत उत्पादों (टमाटर प्यूरी, प्याज के गुच्छे, पाउडर) के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये उद्योग संगठनों के साथ मिलकर अभियान चलाना चाहिये जैसा कि अंडे के लिये किया गया था।

बाज़ार सुधार की आवश्यकता: ऑपरेशन फ्लड की सफलता यह दर्शाती है कि APMC में मौजूदा APMC मंडियों के अनुबंध आदि के बुनियादी ढाँचे का जीर्णोद्धार करने के लिये बाज़ार में सुधार की आवश्यकता है।

नए कृषि कानून बाज़ार सुधारों को पूरा करने का इरादा रखते हैं। हालाँकि इसके लिये नीति निर्माण प्रक्रिया में सबसे महत्त्वपूर्ण हितधारकों यानी किसानों को ध्यान में रखना होगा।

 

ईरान परमाणु समझौते की बहाली


हाल ही में जो बाइडन’ (Joe Biden) को संयुक्त राज्य अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित किया गया है। विदेश नीति के मोर्चे पर बाइडन ने शीघ्र ही ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते में पुनः शामिल होने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है, ध्यातव्य है कि इस समझौते को संयुक्त व्यापक कार्य योजना (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA) के रूप में भी जाना जाता है।

 

JCPOA पर वर्ष 2015 में हस्ताक्षर किये गए थे, परंतु पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इसे वर्ष 2018 में वापस ले लिया और ईरान को बातचीत की मेज पर वापस लाने के लिये 'अधिकतम दबाव' की नीति अपनाई।

 

अधिकतम दबाव के इस अभियान ने ईरान की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया परंतु यह नीति ईरान को वार्ता की मेज पर वापस लाने या इराक, सीरिया अथवा लेबनान में अपने हस्तक्षेप को कम करने के लिये विवश करने में विफल रही।

 

जो बाइडन ने JCPOA में वापसी की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है, बशर्ते ईरान द्वारा इस समझौते के प्रावधानों का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित किया जाए। JCPOA में अमेरिका की वापसी मध्यपूर्व की क्षेत्रीय शांति की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है। हालाँकि अमेरिका और ईरान के वार्ता की मेज पर लौटने के मार्ग में अभी भी कई चुनौतियाँ हैं।

 

ईरान परमाणु समझौता: घटनाक्रम और पृष्ठभूमि


  • JCPOA ईरान और P5+1 देशों (चीन, फ्राँस, जर्मनी, रूस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ, या EU) के बीच वर्ष 2013 एवं वर्ष 2015 के बीच चली लंबी बातचीत का परिणाम था।
  • यह ओमान की मध्यस्थता के साथ अमेरिका (अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा) और ईरान के बीच आयोजित गुप्त बैक चैनल वार्ताओं के कारण संभव हो सका, ये वार्ताएँ वर्ष 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद उत्पन्न स्थिति में पुनः विश्वास बहाली के प्रयासों का हिस्सा थी।
  • JCPOA ने ईरान को उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को आंशिक रूप से हटाने के बदले में एक अंतर्वेधी निरीक्षण प्रणाली की निगरानी में अपने परमाणु संवर्द्धन कार्यक्रम को सीमित करने के लिये बाध्य किया।
  • हालाँकि एक आक्रामक रिपब्लिकन सीनेट के साथ राष्ट्रपति ओबामा इस परमाणु समझौते पर सीनेट से मंज़ूरी प्रदान कराने में असमर्थ रहे थे, परंतु ईरान पर लगे प्रतिबंधों में छूट के लिये इसे आवधिक कार्यकारी आदेशों के आधार पर लागू किया गया। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद वे इस समझौते से पीछे हट गए और उन्होंने इसे एक "बहुत ही खराब, एकतरफा सौदा बताया, जिसे कभी नहीं लागू किया जाना चाहिये था।
  • अमेरिका के इस समझौते से अलग होने के निर्णय की JCPOA में शामिल अन्य सदस्यों (यूरोपीय सहयोगियों सहित) ने आलोचना की क्योंकि उस समय तक ईरान इस समझौते के तहत अपने दायित्वों का अनुपालन कर रहा था और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) द्वारा इसे प्रमाणित भी किया गया था।
  • ईरान पर अमेरिका के एकतरफा प्रतिबंधों की सख्ती के साथ दोनों देशों के बीच तनाव भी बढ़ गया, अमेरिकी प्रतिबंधों के विस्तार के साथ वैश्विक वित्तीय प्रणाली से जुड़े लगभग सभी ईरानी बैंक, धातु, ऊर्जा, और शिपिंग से संबंधित उद्योग, रक्षा, खुफिया तथा परमाणु प्रतिष्ठानों से संबंधित लोग आदि सभी इसके दायरे में आ गए थे।
  • अमेरिका के इस समझौते से पीछे हटने के पहले वर्ष में ईरान की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं देखने को मिली क्योंकि इस दौरान E-3 देशों (फ्राँस, जर्मनी, यू.के.) और यूरोपीय संघ ने अमेरिकी फैसले के प्रभावों को कम करने हेतु समाधान खोजने का वादा किया था।
  • E-3 देशों ने इंसटेक्स’ (Instrument in Support of Trade Exchanges- INSTEX) के माध्यम से कुछ राहत प्रदान करने का वादा किया, ध्यातव्य है कि इंसटेक्स की स्थापना वर्ष 2019 में ईरान के साथ सीमित व्यापार की सुविधा के लिये की गई थी।
  • हालाँकि मई 2019 तक ईरान का यह रणनीतिक धैर्य समाप्त हो गया क्योंकि वह E-3 द्वारा अपेक्षित आर्थिक राहत पाने में विफल रहा। ऐसे में जब ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव तीव्रता से होने लगा तो ईरान अधिकतम प्रतिरोधकी रणनीति की तरफ स्थानांतरित हो गया।


'अधिकतम प्रतिरोध' की ईरानी नीति:

  • मई 2019 से ईरान ने स्वयं को JCPOA की बाध्यताओं से लगातार दूर करना शुरू कर दिया, इसके तहत ईरान ने निम्न संवर्द्धित यूरेनियम पर 300 किलोग्राम और भारी जल पर 130 मीट्रिक टन की सीमा को पार करने के साथ संवर्द्धन स्तर को 3.67% से बढ़ाकर 4.5% कर दिया। इसके अतिरिक्त उन्नत सेंट्रीफ्यूज पर अनुसंधान और विकास को आगे बढ़ाने के साथ फोरदो परमाणु केंद्र में यूरेनियम संवर्द्धन का कार्य पुनः शुरू कर दिया गया तथा उपयोग में लाए जाने वाले अधिकतम सेंट्रीफ्यूज की संख्या पर लगी सीमा का भी उल्लंघन किया गया।
  • जनवरी 2020 में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी पर ड्रोन हमले के बाद ईरान ने घोषणा की कि वह अब JCPOA की बाध्यताओं का पालन नहीं करेगा।


समझौते की पुनर्बहाली से जुड़ी चुनौतियाँ:

ईरान और सऊदी अरब के बीच क्षेत्रीय शीत युद्ध: सऊदी अरब, अमेरिका की मध्य-पूर्व नीति की आधारशिला है। अमेरिका ने सऊदी-अरब के साथ अपने संबंधों को इसलिये भी मज़बूत किया है, ताकि वह इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बनाए रखने के लिये ईरान के खिलाफ एक काउंटर बैलेंस के रूप में काम कर सके।

हालाँकि ईरान और सऊदी अरब के बीच पारंपरिक शिया बनाम सुन्नी संघर्ष एक क्षेत्रीय शीत युद्ध में बदल गया।

ऐसे में JCPOA को बहाल करने हेतु अमेरिका के लिये एक बड़ी चुनौती इन दो क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के बीच शांति बनाए रखना है।

ईरान की आक्रामकता: वर्तमान परिस्थिति में JCPOA को पुनः शुरू करने की चुनौती यह है कि ईरान अब भी इस समझौते की कई महत्त्वपूर्ण प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन कर रहा है, जैसे-समृद्ध यूरेनियम के भंडार की सीमा आदि।

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (International Atomic Energy Agency-IAEA) के अनुसार, नवंबर 2020 तक ईरान के पास उपलब्ध निम्न संवर्द्धित यूरेनियम लगभग 2,440 किलोग्राम से अधिक था, जो कि वर्ष 2015 के परमाणु समझौते के तहत निर्धारित सीमा से आठ गुना अधिक है।

इसके अतिरिक्त ईरान को हुए अरबों डॉलर के आर्थिक नुकसान के लिये उसने अमेरिका से क्षतिपूर्ति की मांग की है, जिसका सामना ईरान को तब करना पड़ा जब वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्वयं को JCPOA से अलग करते हुए उस पर पर पुनः प्रतिबंध लागू कर दिये थे।

JCPOA की पुनर्बहाली का भारत पर प्रभाव:

JCPOA की बहाली से ईरान पर कई प्रतिबंधों में कटौती हो सकती है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भारत की मदद कर सकता है। इसे निम्नलिखित उदाहरणों के आधार पर समझा जा सकता है:

 

क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा: ईरान पर लगे प्रतिबंधों के हटने से चाबहार, बंदर अब्बास बंदरगाह, और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी से संबंधित अन्य योजनाओं में भारत की हितों को संरक्षण प्रदान किया जा सकेगा।

यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी उपस्थिति को बेअसर करने में भारत की मदद करेगा।

चाबहार के अलावा ईरान से होकर गुज़रने वाले अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण पारगमन गलियारे’ (INSTC) से भारत के हितों को भी बढ़ावा मिल सकता है। गौरतलब है कि INSTC के माध्यम से पाँच मध्य एशियाई देशों के साथ कनेक्टिविटी में सुधार होगा।

ऊर्जा सुरक्षा: अमेरिका की आपत्तियों और CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के दबाव के कारण भारत को ईरान से आने वाले तेल के आयात को शून्य करना है।

अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों की बहाली से भारत को ईरान से सस्ते तेल की खरीद करने और अपनी ऊर्जा सुरक्षा को समर्थन प्रदान करने में सहायता मिलेगी।


ईरान परमाणु समझौता कई देशों का संयुक्त प्रयास है। हालाँकि ट्रंप के इस समझौते से अलग होने के निर्णय ने इसे पूरी तरह से समाप्त तो नहीं किया परंतु JCPOA को गंभीर क्षति पहुँचाई है। ट्रंप की तरह जो बाइडन भी इस संधि को मध्य-पूर्व में अपने प्रशासन के दृष्टिकोण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहेंगे, परंतु इस समझौते को सफलतापूर्वक पुनः लागू करना कहीं अधिक कठिन हो सकता है।


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