Daily Current Affair 26 Feb 2021 - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

Daily Current Affair 26 Feb 2021

Daily Current Affair 26 Feb 2021

Daily Current Affair 26 Feb 2021

 मन्नथु पद्मनाभन

 25 फरवरी, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाज सुधारक और भारत केसरी मन्नथु पद्मनाभन को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित की। मन्नथु पद्मनाभन का जन्‍म 02 जनवरी, 1878 को केरल के पेरुन्ना (कोट्टायम ज़िले) में हुआ था। उन्होंने अपने संपूर्ण जीवनकाल में सामाजिक अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाई और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। नायर समुदाय के उत्थान के लिये उन्‍होंने 31 अक्‍तूबर, 1914 को नायर सेवा समाज (NSS) की स्‍थापना की। वर्ष 1924 में पिछड़े समुदायों को प्रसिद्ध वाईकॉम महादेव मंदिर से सटे रास्तों का उपयोग करने की अनुमति देने के लिये उन्होंने सक्रिय रूप से वायकोम सत्याग्रह में हिस्सा लिया। वर्ष 1949 में मन्नथु पद्मनाभन, त्रावणकोर विधानसभा के सदस्य बने। वर्ष 1959 में उन्हें भारत केसरीका खिताब दिया गया था। वहीं वर्ष 1966 में उन्‍हें पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उनका निधन 25 फरवरी, 1970 को हुआ था।


राष्ट्रीय युद्ध स्मारक


25 फरवरी, 2021 को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की दूसरी वर्षगाँठ मनाई गई। दो वर्ष पूर्व 25 फरवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 1947, वर्ष 1965 और वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्धों, वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध, वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध और श्रीलंकाई गृहयुद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की याद में नई दिल्ली में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन किया था। स्वतंत्र भारत में सीमा संघर्ष के दौरान सर्वोच्च बलिदान देने वाले 25,942 सशस्त्र बल के जवानों के नाम स्वर्णाक्षरों में स्मारक की दीवारों पर अंकित किये गए हैं। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का प्रस्ताव सर्वप्रथम वर्ष 1960 में रखा गया था। वर्ष 2015 में कैबिनेट ने इंडिया गेट कॉम्प्लेक्स, नई दिल्ली में युद्ध स्मारक के निर्माण के लिये सैद्धांतिक मंज़ूरी दी और वर्ष 2016 में स्मारक का डिज़ाइन तैयार करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा के बाद वर्ष 2017 में स्मारक निर्माण का कार्य शुरू हो गया।


कोवैक्स (COVAX) कार्यक्रम

 

घाना, कोवैक्स (COVAX) कार्यक्रम के तहत कोरोना वायरस टीके का शिपमेंट प्राप्त करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। कार्यक्रम के तहत पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) द्वारा निर्मित ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की लगभग 600,000 खुराक घाना भेजी गई है। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन (जिसे भारत में कोविशील्ड के नाम से जाना जाता है) को इसी माह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा सीमित उपयोग हेतु आपातकालीन मंज़ूरी दी गई थी। कोवैक्स कार्यक्रम के तहत वर्ष 2021 के अंत तक कोरोना वायरस टीकों की 2 बिलियन से अधिक खुराक वितरित किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। कोवैक्स, ‘एक्सेस टू कोविड-19 टूल्स (Access to COVID-19 Tools- ACT) एक्सेलरेटरके तीन स्तंभों में से एक है। इसकी शुरुआत कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिये अप्रैल 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूरोपीय आयोग और फ्राँस के सहयोग से की गई थी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य महामारी से निपटने के लिये वैश्विक स्तर पर टीकों का समान वितरण सुनिश्चित करना है।


वीर सावरकर

 

26 फरवरी, 2021 को वीर दामोदर सावरकर की 54वीं पुण्यतिथि मनाई गई। वीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकरथा। इनका जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के भागुर ग्राम में हुआ था। वीर सावरकर एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, वकील, लेखक, समाज सुधारक और हिंदुत्व दर्शन के सूत्रधार थे। सावरकर द्वारा वर्ष 1909 में लिखी गई पुस्तक द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस, 1857में उन्होंने यह विचार किया कि वर्ष 1857 का भारतीय विद्रोह ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ पहला भारतीय जन विद्रोह था। वर्ष 1910 में सावरकर को क्रांतिकारी समूह इंडिया हाउस के साथ संबंधों के चलते गिरफ्तार किया गया था। सावरकर ने भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस (INC) और महात्मा गांधी की तीखी आलोचना की, उन्होंने 'भारत छोड़ो आंदोलन' का विरोध किया और बाद में भारत के विभाजन को लेकर काॅन्ग्रेस की स्वीकृति पर आपत्ति जताई। 26 फरवरी, 1966 को सावरकर का निधन हो गया।

 

प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना

हाल ही में प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्य मुद्दों को समग्र रूप से संबोधित करने और स्वस्थ भारत के लिये एक चार-स्तरीय रणनीति को अपनाने की आवश्यकता के बारे में बात की, जिसमें प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना को लागू करना शामिल है।


स्वस्थ भारत के लिये चार-स्तरीय रणनीति:

स्वच्छ भारत अभियान, योग, गर्भवती महिलाओं बच्चों की समय पर देखभाल एवं उपचार जैसे उपायों सहित बीमारी की रोकथाम व स्वास्थ्य कल्याण को बढ़ावा देना।

समाज के वंचित वर्ग के लोगों को सस्ता और प्रभावी इलाज मुहैया कराना।

स्वास्थ्य अवसंरचना और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की गुणवत्ता को बढ़ाना।

बाधाओं को दूर करने के लिये एक मिशन मोड पर काम करना, जैसे-मिशन इंद्रधनुष, जिसे देश के जनजातीय और दूरदराज़ के क्षेत्रों तक बढ़ाया गया है।


प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना:

संक्षिप्त परिचय:

इस योजना की घोषणा केंद्रीय बजट 2021-22 में की गई थी। 

इस योजना का उद्देश्य देश के सुदूर हिस्सों (अंतिम मील तक) में प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक देखभाल स्वास्थ्य प्रणालियों की क्षमता विकसित करना है।

देश में ही अनुसंधान, परीक्षण और उपचार के लिये एक आधुनिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना।

 

फंडिंग:

यह योजना केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित है और इसके लिये लगभग 64,180 करोड़ रुपए का परिव्यय निर्धारित किया गया है।

अवधि: 6 वर्ष।

लक्ष्य:

17,788 ग्रामीण तथा 11,024 शहरी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के विकास के लिये समर्थन प्रदान करना तथा सभी ज़िलों में एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं की स्थापना एवं 11 राज्यों में 3,382 ब्लॉक सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों की स्थापना करना।

602 ज़िलों और 12 केंद्रीय संस्थानों में क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल ब्लॉकस्थापित करने में सहांयता करना। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) तथा इसकी 5 क्षेत्रीय शाखाओं एवं 20 महानगरीय स्वास्थ्य निगरानी इकाइयों को मज़बूत करना।

सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं को जोड़ने के लिये सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों तक एकीकृत स्वास्थ्य सूचना पोर्टल का विस्तार करना।

COVID-19 टीकाकरण कार्यक्रम के साथ-साथ वितरण प्रणाली को मज़बूत करने और भविष्य की किसी भी महामारी से निपटने के लिये बेहतर क्षमता और योग्यता केनिर्माण में सहायता करना।

स्वास्थ्य क्षेत्र में अन्य पहलें:

आयुष्मान भारत कार्यक्रम।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन।

जन-औषधि योजना।


राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन

केंद्रीय बजट 2021-22 के तहत एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (National Hydrogen Energy Mission-NHM) की घोषणा की गई है, जो हाइड्रोजन को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करने के लिये एक रोडमैप तैयार करेगा। इस पहल में परिवहन क्षेत्र में बदलाव लाने की क्षमता है।

 

NHM पहल के तहत स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन विकल्प के लिये पृथ्वी पर सबसे प्रचुर तत्त्वों में से एक (हाइड्रोजन) का लाभ उठाया जाएगा।

 

राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन:

हरित ऊर्जा संसाधनों से हाइड्रोजन उत्पादन पर ज़ोर।

भारत की बढ़ती अक्षय ऊर्जा क्षमता को हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ना।

वर्ष 2022 तक भारत के 175 GW के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को केंद्रीय बजट 2021-22 से प्रोत्साहन मिला है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा विकास और NHM के लिये 1500 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।

हाइड्रोजन का उपयोग न केवल भारत को पेरिस समझौते के तहत अपने उत्सर्जन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करेगा, बल्कि यह जीवाश्म ईंधन के आयात पर भारत की निर्भरता को भी कम करेगा।

हाइड्रोजन:

आवर्त सारणी पर हाइड्रोजन पहला और सबसे हल्का तत्त्व है। चूँकि हाइड्रोजन का वज़न हवा से भी कम होता है, अतः यह वायुमंडल में ऊपर की ओर उठती है और इसलिये यह शुद्ध रूप में बहुत कम ही पाई जाती है।

मानक तापमान और दबाव पर हाइड्रोजन एक गैर-विषाक्त, अधातु, गंधहीन, स्वादहीन, रंगहीन और अत्यधिक ज्वलनशील द्विपरमाणुक गैस है।

हाइड्रोजन ईंधन एक शून्य-उत्सर्जन ईंधन है (ऑक्सीजन के साथ दहन के दौरान)। इसका उपयोग फ्यूल सेल या आंतरिक दहन इंजन में किया जा सकता है। यह अंतरिक्षयान प्रणोदन के लिये ईंधन के रूप में भी उपयोग किया जाता है।

हाइड्रोजन के प्रकार:

ग्रे हाइड्रोजन:

भारत में होने वाले हाइड्रोजन उत्पादन में सबसे अधिक ग्रे हाइड्रोजन का उत्पादन होता है।

इसे हाइड्रोकार्बन (जीवाश्म ईंधन, प्राकृतिक गैस) से निकाला जाता है।

उपोत्पाद: CO2

ब्लू हाइड्रोजन:

जीवाश्म ईंधन से प्राप्त होता है।

इसके उत्पादन में उपोत्पाद को सुरक्षित रूप से संग्रहीत कर लिया जाता है अतः यह ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में बेहतर होता है।

उपोत्पाद: CO, CO2

हरित हाइड्रोजन:

इसके उत्पादन में अक्षय ऊर्जा (जैसे- सौर या पवन) का उपयोग किया जाता है।

इसके तहत विद्युत द्वारा जल (H2O) को हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O2) में विभाजित किया जाता है।

उपोत्पाद: जल, जलवाष्प।

एशिया-प्रशांत का रुख:

एशिया-प्रशांत उप-महाद्वीप में जापान और दक्षिण कोरिया हाइड्रोजन नीति बनाने के मामले में पहले पायदान पर हैं।

वर्ष 2017 में जापान ने बुनियादी हाइड्रोजन रणनीति तैयार की, जो इस दिशा में वर्ष 2030 तक देश की कार्ययोजना निर्धारित करती है और जिसके तहत एक अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला की स्थापना भी शामिल है।

दक्षिण कोरिया अपनी हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था विकास और हाइड्रोजन का सुरक्षित प्रबंधन अधिनियम, 2020’ के तत्त्वावधान में हाइड्रोजन परियोजनाओं तथा हाइड्रोजन फ्यूल सेल (Hydrogen Fuel Cell) उत्पादन इकाइयों का संचालन कर रहा है।

दक्षिण कोरिया ने हाइड्रोजन का आर्थिक संवर्द्धन और सुरक्षा नियंत्रण अधिनियमभी पारित किया है, जो तीन प्रमुख क्षेत्रों - हाइड्रोजन वाहन, चार्जिंग स्टेशन और फ्यूल सेल से संबंधित है। इस कानून का उद्देश्य देश के हाइड्रोजन मूल्य निर्धारण प्रणाली में पारदर्शिता लाना है।

भारतीय संदर्भ:

भारत को अपनी अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियों और प्रचुर प्राकृतिक तत्त्वों की उपस्थिति के कारण हरित हाइड्रोजन उत्पादन में भारी बढ़त प्राप्त है।

सरकार ने पूरे देश में गैस पाइपलाइन के बुनियादी ढाँचे को बढ़ाने में प्रोत्साहन दिया है और स्मार्ट ग्रिड की शुरुआत सहित पावर ग्रिड के सुधार हेतु प्रस्ताव पेश किया है। वर्तमान ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा को प्रभावी ढंग से एकीकृत करने के लिये इस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं।

अक्षय ऊर्जा उत्पादन, भंडारण और संचरण के माध्यम से भारत में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन लागत प्रभावी हो सकता है, जो न केवल ऊर्जा सुरक्षा की गारंटी देगा, बल्कि देश को ऊर्जा के मामले में धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनाने में भी सहायता करेगा।

नीतिगत चुनौतियाँ:

उद्योगों द्वारा व्यावसायिक रूप से हाइड्रोजन का उपयोग करने में हरित या ब्लू हाइड्रोजन के निष्कर्षण की आर्थिक वहनीयता सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।

हाइड्रोजन के उत्पादन और दोहन में उपयोग की जाने वाली तकनीकें जैसे-कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) तथा हाइड्रोजन फ्यूल सेल प्रौद्योगिकी आदि अभी प्रारंभिक अवस्था में हैं एवं ये महँगी भी हैं। जो हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को बढ़ाती हैं।

एक संयंत्र के पूरा होने के बाद फ्यूल सेल के रखरखाव की लागत काफी अधिक हो सकती है।

ईंधन के रूप में और उद्योगों में हाइड्रोजन के व्यावसायिक उपयोग के लिये अनुसंधान व विकास , भंडारण, परिवहन एवं मांग निर्माण हेतु हाइड्रोजन के उत्पादन से जुड़ी प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे में काफी अधिक निवेश करने की आवश्यकता होगी।

 

वर्तमान में भारत एक समायोजित दृष्टिकोण के साथ अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाने, क्षमता निर्माण, संगत कानून तथा अपनी विशाल आबादी के बीच मांग उत्पन्न कर इस अवसर का लाभ उठाने के लिये एक विशिष्ट स्थान बना सकता है। इस तरह की पहल भारत को उसके पड़ोसियों और उससे भी परे हाइड्रोजन निर्यात करके सबसे पसंदीदा राष्ट्र बनने की दिशा में प्रेरित कर सकती है।


भारत और मॉरीशस के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग तथा साझेदारी समझौता

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत और मॉरीशस के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग तथा भागीदारी समझौते (Comprehensive Economic Cooperation and Partnership Agreement- CECPA) पर हस्ताक्षर करने हेतु मंज़ूरी दी है। 

CECPA पहला व्यापार समझौता है, जो अफ्रीका के किसी देश के साथ किया जा रहा है।

 

CECPA के विषय में:

यह एक तरह का मुक्त व्यापार समझौता है जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच व्यापार को प्रोत्साहित करने और बेहतर बनाने के लिये एक संस्थागत तंत्र प्रदान करना है।

CECPA समझौते के अंतर्गत संबंधित देशों के उत्पादों पर शुल्कों (Duties) को कम या समाप्त कर दिया जाता है और ये देश सेवा व्यापार को बढ़ावा देने के लिये निर्धारित मानदंडों में छूट भी देते हैं।

 

व्यापार समझौतों के प्रकार

 

मुक्त व्यापार समझौता (FTA):

FTA के तहत दो देशों के बीच आयात-निर्यात के तहत उत्पादों पर सीमा शुल्क, नियामक कानून, सब्सिडी और कोटा आदि को सरल बनाया जाता है।

भारत ने कई देशों, जैसे- श्रीलंका के साथ-साथ विभिन्न व्यापारिक समूहों यथा- आसियान (ASEAN) से FTA पर बातचीत की है।


अधिमान्य व्यापार समझौता:

इस प्रकार के समझौते में दो या दो से अधिक भागीदार कुछ उत्पादों के आयात को प्राथमिकता देते हैं। इसे निर्धारित तटकर पर शुल्कों को कम करके किया जाता है।

अधिमान्य व्यापार समझौते में भी कुछ उत्पादों पर शुल्क घटाकर शून्य किया जा सकता है। भारत ने अफगानिस्तान के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता:

यह समझौता एफटीए से अधिक व्यापक है।

इस समझौते के अंतर्गत सेवाओं, निवेश और आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों में व्यापार को कवर किया जाता है।

भारत ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता पर हस्ताक्षर किये हैं।


व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता:

यह समझौता आमतौर पर व्यापार प्रशुल्क और TRQ (टैरिफ दर कोटा) दरों को कवर करता है। यह व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता की तरह व्यापक नहीं है। भारत ने मलेशिया के साथ व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता पर हस्ताक्षर किये हैं।

 

भारत-मॉरीशस और CECPA:

इस समझौते के विषय में:

यह एक सीमित समझौता है जो वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार, व्यापार में तकनीकी बाधाओं, विवाद निपटान, नागरिकों के आवागमन, दूरसंचार, वित्तीय सेवाओं, सीमा शुल्क जैसे चुनिंदा क्षेत्रों को कवर करेगा।

भारत को लाभ:

मॉरीशस के बाज़ार में भारत के कृषि, कपड़ा, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे 300 से अधिक घरेलू सामानों को रियायती सीमा शुल्क पर पहुँच मिलेगी।

भारतीय सेवा प्रदाताओं को 11 व्यापक सेवा क्षेत्रों जैसे- पेशेवर सेवाओं, कंप्यूटर से संबंधित सेवाओं, दूरसंचार, निर्माण, वितरण, शिक्षा, पर्यावरण, वित्तीय, मनोरंजन, योग आदि के अंतर्गत लगभग 115 उप-क्षेत्रों तक पहुँच प्राप्त होगी।

मॉरीशस को लाभ:

मॉरीशस को विशेष प्रकार की चीनी, बिस्कुट, ताजे फल, जूस, मिनरल वाटर, बीयर, मादक पेय, साबुन, बैग, चिकित्सा और शल्य-चिकित्सा उपकरण तथा परिधान सहित अपने 615 उत्पादों के लिये भारतीय बाज़ार में पहुँच से लाभ मिलेगा।

भारत ने 11 व्यापक सेवा क्षेत्रों के अंतर्गत लगभग 95 उप-क्षेत्रों की पेशकश की है, जिनमें पेशेवर सेवाएँ, आर एंड डी, अन्य व्यावसायिक सेवाएँ, दूरसंचार, उच्च शिक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य, मनोरंजन सेवाएँ आदि शामिल हैं।


स्वचालित ट्रिगर सुरक्षा तंत्र पर बातचीत:

भारत और मॉरीशस ने समझौते पर हस्ताक्षर करने के दो साल के भीतर कुछ अति संवेदनशील उत्पादों के लिये एक स्वचालित ट्रिगर सुरक्षा तंत्र (Automatic Trigger Safeguard Mechanism) पर बातचीत करने पर भी सहमति व्यक्त की है।

ATSM किसी देश को उसके आयात में होने वाली अचानक वृद्धि से बचाता है।

इस तंत्र के अंतर्गत भारत, मॉरीशस से किसी उत्पाद का आयात अत्यधिक बढ़ने पर उस पर एक निश्चित सीमा के बाद आयात शुल्क लगा सकता है। मॉरीशस भी भारत से आयातित वस्तुओं पर ऐसा प्रावधान लागू कर सकता है।


भारत-मॉरीशस आर्थिक संबंध:

भारत ने वर्ष 2016 में मॉरीशस को 353 मिलियन अमेरिकी डॉलर का 'विशेष आर्थिक पैकेज' दिया था। इस पैकेज के अंतर्गत लागू की गई परियोजनाओं में से एक है- न्यू मॉरीशस सुप्रीम कोर्ट बिल्डिंग प्रोजेक्ट। इसका उद्घाटन वर्ष 2020 में दोनों देशों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।

भारत और मॉरीशस ने संयुक्त रूप से विशेष आर्थिक पैकेज के तहत मॉरीशस में निर्मित मेट्रो एक्सप्रेस परियोजना, चरण -I तथा 100-बेड वाले अत्याधुनिक ईएनटी अस्पताल का उद्घाटन किया था।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र (International Trade Centre) के अनुसार, वर्ष 2019 में मॉरीशस के मुख्य आयात भागीदार थे- भारत (13.85%), चीन (16.69%), दक्षिण अफ्रीका (8.07%) और यूएई (7.28%)

भारत और मॉरीशस के बीच द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2005-06 के 206.76 मिलियन डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2019-20 में 690.02 मिलियन डॉलर (233% की वृद्धि) हो गया है।

मॉरीशस वर्ष 2019-20 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का दूसरा शीर्ष स्रोत था।

हाल के अन्य घटनाक्रम:

भारत और मॉरीशस के बीच 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का रक्षा समझौता हुआ है।

मॉरीशस को एक डोर्नियर विमान और एक उन्नत लाइट हेलीकाप्टर ध्रुव पट्टे पर मिलेगा जो उसकी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं में वृद्धि करेगा।

दोनों पक्षों द्वारा चागोस द्वीपसमूह (Chagos Archipelago) विवाद पर भी चर्चा की गई जो संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) के समक्ष संप्रभुता और सतत् विकास का मुद्दा था।

 

भारत ने वर्ष 2019 में इस मुद्दे पर मॉरीशस के समर्थन में संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान किया। भारत उन 116 देशों में से एक था, जिसने इस द्वीपसमूह पर ब्रिटेन के "औपनिवेशिक प्रशासन" को समाप्त करने के लिये वोटिंग की मांग की थी।

भारत द्वारा मॉरीशस को 1,00,000 कोविशील्ड के टीके प्रदान किये गए हैं।

हिंद महासागर (Indian Ocean) के उभरते भू-राजनीतिक परिदृश्य ने इस महासागर और सीमावर्ती देशों के लिये नई चुनौतियों के साथ-साथ अवसर को जन्म दिया है। मॉरीशस, भारत के अन्य छोटे द्वीपीय पड़ोसियों के साथ अपनी समुद्री पहचान और भू-स्थानिक मूल्य के विषय में गहराई से जानता है। ये पड़ोसी भली-भाँति समझते हैं कि एक बड़े पड़ोसी देश के रूप में भारत उनके लिये क्या मायने रखता है।

भारत का रुझान मॉरीशस की तरफ तेज़ी से बढ़ रहा है जैसा कि मिशन सागर (Mission Sagar) के अंतर्गत भारत की पहल को हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को कोविड-19 से संबंधित सहायता प्रदान करने में देखा जा सकता है। भारत को इस जुड़ाव को आगे भी बनाए रखने के लिये मॉरीशस, कोमोरोस, मेडागास्कर, सेशेल्स, मालदीव और श्रीलंका जैसे समान विचारधारा वाले साझेदारों के साथ सक्रिय रहने की आवश्यकता है।

 

ब्लैंक-चेक कंपनी

हाल ही में अक्षय ऊर्जा उत्पादक रिन्यू पावरने आरएमजी एक्विज़िशन कारपोरेशन II नामक एक ब्लैंक-चेक कंपनी (Blank-Cheque Company) या विशेष प्रयोजन अधिग्रहण कंपनी (Special Purpose Acquisition Company- SPAC) के साथ विलय के लिये एक समझौते की घोषणा की।

 

ब्लैंक-चेक कंपनी के बारे में:

SPAC या ब्लैंक-चेक कंपनी, विशेष रूप से किसी विशिष्ट क्षेत्र में एक फर्म के अधिग्रहण के उद्देश्य से स्थापित की गई इकाई होती है।

SPAC का उद्देश्य एक इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (Initial Public Offering- IPO) के माध्यम से धन जुटाना होता है लेकिन उसके पास कोई संचालन या राजस्व नहीं होता है।

इसके अंतर्गत निवेशकों से धन लेकर उसे एस्क्रो अकाउंट (Escrow Account) में रखा जाता है, जिसका उपयोग अधिग्रहण करने में किया जाता है।

अगर IPO के दो वर्ष के भीतर अधिग्रहण नहीं किया जाता है, तो SPAC को हटा दिया जाता है और धन को निवेशकों को लौटा दिया जाता है।

महत्त्व:

ये अनिवार्य रूप से शेल कंप नियाँ होती हैं जिनकी प्रायोजक ब्लैंक-चेक कंपनियाँ हैं, ये शेल कंपनियाँ होने के बावजूद निवेशकों के लिये आकर्षक है।

वर्तमान में यह विचारणीय है कि एक महँगी IPO की संरचना किस प्रकार की जाती है और इससे बाहर कैसे निकला जाए। इस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले किसी व्यक्ति द्वारा निवेशकों से धन लिया जाता है और उस धन से परिसंपत्तियों का निर्माण किया जाता है।


एस्क्रो अकाउंट (Escrow Account)

एस्क्रो अकाउंट एक वित्तीय साधन है, जिसके तहत किसी संपत्ति या धन को दो अन्य पक्षों के मध्य लेन-देन की प्रक्रिया पूर्ण होने तक तीसरे पक्ष के पास रखा जाता है।

दोनों पक्षों द्वारा अपनी अनुबंध संबंधी आवश्यकताओं को पूरा न किये जाने तक धन तीसरे पक्ष के पास ही रहता है।

सामान्यतः एस्क्रो अकाउंट रियल एस्टेट लेन-देन से संबंधित होता है लेकिन धन के एक पक्ष से दूसरे पक्ष में स्थानांतरण के लिये इसका प्रयोग किया जा सकता है।

 

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग

हाल ही में विजय सांपला (Vijay Sampla) को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Castes- NCSC) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।


राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के बारे में:

NCSC एक संवैधानिक निकाय है जो भारत में अनुसूचित जातियों (SC) के हितों की रक्षा हेतु कार्य करता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 338 इस आयोग से संबंधित है।

यह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति हेतु कर्तव्यों के निर्वहन के साथ एक राष्ट्रीय आयोग के गठन का प्रावधान करता है जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से संबंधित सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जांँच और निगरानी कर सकता है, अनुसूचित जाति एवं जनजाति से संबंधित विशिष्ट शिकायतों के मामले में पूछताछ कर सकता है तथा उनकी सामाजिक-आर्थिक विकास योजना प्रक्रिया में भाग लेने के साथ सलाह देना का अधिकार रखता है।


विशेष अधिकारी:

प्रारंभ में संविधान के अनुच्छेद 338 के तहत एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान किया गया था।

इस विशेष अधिकारी को आयुक्त (Commissioner) के रूप में नामित किया गया।

65वांँ संविधान संशोधन अधिनियम 1990:

65वांँ संशोधन, 1990 द्वारा एक सदस्यीय प्रणाली को बहु-सदस्यीय राष्ट्रीय अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) आयोग के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।

संविधान के 65वें संशोधन अधिनियम,1990 द्वारा अनुच्छेद 338 में संशोधन किया गया।

89वांँ संविधान संशोधन अधिनियम 2003:

इस संशोधन द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति हेतु गठित पूर्ववर्ती राष्ट्रीय आयोग को वर्ष 2004 में दो अलग-अलग आयोगों में बदल दिया गया। इसके तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ( National Commission for Scheduled Tribes- NCSC) और अनुच्छेद 338-A के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) का गठन किया गया।

संरचना:

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की संरचना इस प्रकार है:

अध्यक्ष।

उपाध्यक्ष।

तीन अन्य सदस्य।

इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एक सीलबंद आदेश द्वारा की जाती है।

कार्य:

संविधान के तहत SCs को प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों के संबंध में सभी मुद्दों की निगरानी और जांँच करना।

SCs को उनके अधिकार और सुरक्षा उपायों से वंचित करने से संबंधित शिकायतों के मामले में पूछताछ करना।

अनुसूचित जातियों से संबंधित सामाजिक-आर्थिक विकास योजनाओं पर केंद्र या राज्य सरकारों को सलाह देना।

इन सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन हेतु राष्ट्रपति को नियमित तौर पर रिपोर्ट प्रस्तुत करना।

SCs के सामाजिक-आर्थिक विकास और अन्य कल्याणकारी गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु उठाए जाने वाले कदमों की सिफारिश करना।

SC समुदाय के कल्याण, सुरक्षा, विकास और उन्नति के संबंध में कई अन्य कार्य करना।

आयोग द्वारा अन्य पिछड़े वर्गों (Other Backward Classes-OBCs) और एंग्लो-इंडियन समुदाय के संबंध में भी अपने कार्यों का निर्वहन उसी प्रकार किये जाने की आवश्यकता है जिस प्रकार वह SCs समुदाय के संबंध में करता है।

वर्ष 2018 तक आयोग को अन्य पिछड़े वर्गों के संबंध में भी इसी प्रकार के कार्यों का निर्वहन करने का अधिकार था। वर्ष 2018 में 102वें संशोधन अधिनियम द्वारा आयोग को इस ज़िम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया।

 

अनुसूचित जाति के उत्थान हेतु अन्य संवैधानिक प्रावधान:

 

अनुच्छेद 15 (4) अनुसूचित जाति की उन्नति हेतु विशेष प्रावधानों को संदर्भित करता है।

अनुच्छेद 16 (4 अ) यदि राज्य के तहत प्रदत्त सेवाओं में अनुसूचित जाति का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है, तो पदोन्नति के मामले में यह किसी भी वर्ग या पदों हेतु आरक्षण का प्रावधान करता है।

अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है।

अनुच्छेद 46 अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा समाज के कमज़ोर वर्गों के शैक्षणिक व आर्थिक हितों को प्रोत्साहन और सामाजिक अन्याय एवं शोषण से सुरक्षा प्रदान करता है।

अनुच्छेद 335 यह प्रावधान करता है कि संघ और राज्यों के मामलों में सेवाओं और पदों पर नियुक्तियों हेतु अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावे को लगातार प्रशासनिक दक्षता के साथ ध्यान में रखा जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद

 

330 और अनुच्छेद 332 क्रमशः लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में सीटों को आरक्षित करते हैं।

पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX और नगर पालिकाओं से संबंधित भाग IXA में SC तथा ST के सदस्यों हेतु आरक्षण की परिकल्पना की गई है जो कि SC और ST को प्राप्त है।

 

शीतकालीन प्रदूषण पर रिपोर्ट: CSE

हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट’ (Centre for Science and Environment- CSE) ने एक रिपोर्ट में बताया कि 99 में से 43 शहरों में PM2.5 का स्तर बहुत खराब पाया गया है, इस रिपोर्ट में वर्ष 2019 और 2020 की शीतकालीन वायु गुणवत्ता में तुलना की गई थी। 

PM2.5 का आशय 2.5 माइक्रोमीटर व्यास से छोटे सूक्ष्म पदार्थों से है, यह श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बनता है और दृश्यता को भी कम करता है। यह एक अंतःस्रावी व्यवधान है जो इंसुलिन स्राव और इंसुलिन संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकता है, इस कारण यह मधुमेह का कारण बन सकता है।

CSE नई दिल्ली स्थित एक सार्वजनिक हित अनुसंधान संगठन है। यह ऐसे विषयों पर शोध करता है, जिनके लिये स्थायी और न्यायसंगत दोनों तरह के विकास की तात्कालिक आवश्यकता होती है।


निष्कर्ष:

सबसे खराब प्रदर्शन:

वर्ष 2019 की तुलना में वर्ष 2020 में सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गुरुग्राम, लखनऊ, जयपुर, विशाखापत्तनम, आगरा, नवी मुंबई और जोधपुर शामिल हैं।

अगर शहरों को रैंक प्रदान की जाए तो सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 23 शहर उत्तर भारत के हैं।

उत्तरी क्षेत्र में गाजियाबाद सबसे प्रदूषित शहर है।

सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन:

केवल 19 पंजीकृत शहरों के PM2.5 स्तर में पर्याप्त सुधार देखा गया। इनमें से एक चेन्नई है।

केवल चार शहर (सतना, मैसूर, विजयपुरा और चिक्कमंगलूरु) ऐसे हैं जो शीतकालीन मौसम के दौरान नेशनल 24 ऑवर स्टैंडर्ड’ (60 μg/m3) से मेल खाते हैं।

मध्य प्रदेश में सतना और मैहर एवं कर्नाटक में मैसूर देश के सर्वाधिक स्वच्छ शहर हैं।

चरम मौसमी स्तर:

37 ऐसे शहर हैं जिनमें प्रदूषण का मौसमी औसत स्तर स्थिर या गिरता हुआ देखा गया, सर्दियों के दौरान उनके प्रदूषण स्तर में काफी वृद्धि हुई है।

इनमें औरंगाबाद, इंदौर, नासिक, जबलपुर, रूपनगर, भोपाल, देवास, कोच्चि, और कोझीकोड शामिल हैं।

उत्तर भारत में दिल्ली सहित अन्य शहरों ने विपरीत स्थिति का अनुभव किया है, अर्थात् मौसमी औसत स्तर में तो वृद्धि हुई लेकिन चरम मौसमी स्तर में गिरावट आई।

शीतकालीन प्रदूषण में परिवर्तन का कारण:

लॉकडाउन और अन्य क्षेत्रीय कारक: लॉकडाउन के बाद कई शहरों में प्रदूषण के स्तर में सुधार देखा गया लेकिन सर्दियों में जब लॉकडाउन में काफी ढील दी गई, प्रदूषण का स्तर पूर्व कोविड-19 के स्तर पर वापस आ गया।

यह शहरों के प्रदूषण स्तर में स्थानीय और क्षेत्रीय कारकों के महत्त्वपूर्ण योगदान को रेखांकित करता है।

शांत मौसम: उत्तर भारतीय शहरों के इंडो गंगेटिक प्लेन में स्थित होने के कारण सर्दियों के दौरान यहाँ के शांत और स्थिर मौसम से दैनिक प्रदूषण में वृद्धि होती है।

वर्ष 2020 में गर्मियों और मानसून के महीनों के दौरान PM 2.5 का औसत स्तर लॉकडाउन के कारण पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम था।

हालाँकि विभिन्न क्षेत्रों के कई शहरों में वर्ष 2019 की सर्दियों की तुलना में शीतकाल में PM2.5 की सांद्रता बढ़ी है।

विश्लेषण का आधार:

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का विश्लेषण: यह विश्लेषण CSE की वायु प्रदूषण ट्रैकर पहल का एक हिस्सा है। यह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध वास्तविक समय आधारित आँकड़ों पर आधारित है।

CAAQMS के आँकड़े: यह डेटा 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 115 शहरों में विस्तृत निरंतर परिवेश वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली’ (CAAQMS) के तहत 248 आधिकारिक स्टेशनों से प्राप्त किया गया है।

CAAQMS वायु प्रदूषण की वास्तविक समय निगरानी सुविधा प्रदान करता है, जिसमें पार्टिकुलेट मैटर भी शामिल है, यह वर्ष भर कार्य करता है।

यह हवा की गति, दिशा, परिवेश का तापमान, सापेक्षिक आर्द्रता, सौर विकिरण, बैरोमीटर का दबाव और वर्षा गेज को शामिल करते हुए डिजिटल रूप से मौसम के अन्य आँकड़ों को भी प्रदर्शित करता है।

महत्त्व:

इस रिपोर्ट में ज़ोर दिया गया कि बड़े शहरों के बजाय छोटे और तीव्रता से विकास कर रहे शहर प्रदूषण के केंद्र के रूप में उभरे हैं।

इस रिपोर्ट में प्रदूषण के प्रमुख क्षेत्रों- वाहन, उद्योग, बिजली संयंत्रों और अपशिष्ट प्रबंधन में त्वरित सुधार और शीतकालीन प्रदूषण को नियंत्रित करने तथा वार्षिक वायु प्रदूषण को कम करने की सलाह दी गई है।

वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिये विभिन्न पहलें:

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) और आसपास के क्षेत्रों हेतु वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग।

भारत स्टेज (BS) VI मानक।

वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिये डैशबोर्ड।

राष्ट्रीय

 स्वच्छ वायु कार्यक्रम।

राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI)

वायु (रोकथाम और प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1981

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY)


राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन

आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEITY) द्वारा संयुक्त रूप से राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन (NUDM) लॉन्च किया गया है।

 

इसके अतिरिक्त आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय की कई अन्य पहलों को भी लॉन्च किया गया है, जिसमें इंडिया अर्बन डेटा एक्सचेंज (IUDX), स्मार्टकोड, स्मार्ट सिटी 2.0 वेबसाइट और भू-स्थानिक प्रबंधन सूचना प्रणाली या जियोस्स्पेशियल मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम’ (GMIS) आदि शामिल हैं।

 

ये सभी पहलें डिजिटल इंडियाऔर आत्मनिर्भर भारतके दृष्टिकोण को साकार करने हेतु किये जा रहे प्रयासों में वृद्धि करेंगी।

 

राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन (NUDM)

राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन (NUDM) शहरों और नगरों को समग्र समर्थन प्रदान करने के लिये पीपुल्स, प्रोसेस और प्लेटफॉर्मजैसे तीन स्तंभों पर कार्य करते हुए शहरी भारत के लिये एक साझा डिजिटल बुनियादी ढाँचा विकसित करेगा।

यह मिशन वर्ष 2022 तक 2022 शहरों और वर्ष 2024 तक भारत के सभी शहरों तथा नगरों में शहरी शासन एवं सेवा वितरण के लिये एक नागरिक-केंद्रित और इकोसिस्टम द्वारा संचालित दृष्टिकोण को साकार करने का काम करेगा।

महत्त्व

राष्ट्रीय शहरी डिजिटल मिशन एक साझा डिजिटल बुनियादी ढाँचा विकसित करेगा, जहाँ आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय की विभिन्न डिजिटल पहलों को समाहित कर इनका लाभ लिया जा सकेगा, जिससे शहरों और नगरों की ज़रूरतों एवं

स्थानीय चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए भारत के शहर तथा नगर इस पहल की सहायता से लाभान्वित होंगे।

इस मिशन में गवर्निंग सिद्धांतों के एक समूह को समाहित किया गया है और नेशनल अर्बन इनोवेशन स्टैक (NUIS) की रणनीति तथा दृष्टिकोण पर आधारित प्रौद्योगिकी डिज़ाइन सिद्धांतों का अनुसरण किया गया है।

ये सिद्धांत पीपुल्स, प्रोसेस और प्लेटफाॅर्मोंके तीन स्तंभों में मानकों, विनिर्देशों और प्रमाणन को बढ़ावा देते हैं।

यह मिशन शहरी डेटा की पूर्ण क्षमता का उपयोग करके जटिल समस्याओं को हल करने हेतु शहरी पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता को और मज़बूत करेगा।

इंडिया अर्बन डेटा एक्सचेंज (IUDX)

इंडिया अर्बन डेटा एक्सचेंज को स्मार्ट सिटी मिशन और भारतीय विज्ञान संस्थान-बंगलूरू द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।

यह शहरी स्थानीय निकायों (ULB) समेत सभी डेटा प्रदाताओं और प्रयोगकर्त्ताओं को डेटा साझा करने, अनुरोध करने और डेटा तक पहुँच प्रदान करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण इंटरफेस प्रदान करता है।

यह एक ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म है, जो विभिन्न डेटा प्लेटफॉर्म, थर्ड पार्टी प्रमाणन एवं अधिकृत एप्लीकेशन्स और अन्य स्रोतों के बीच डेटा के सुरक्षित, प्रमाणित व व्यवस्थित आदान-प्रदान की सुविधा देता है।


स्मार्टकोड प्लेटफॉर्म

स्मार्टकोड एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जो शहरी शासन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से सभी इकोसिस्टम हितधारकों को विभिन्न समाधानों और एप्लीकेशन्स के लिये ओपन-सोर्स कोड के भंडार में योगदान देने हेतु सक्षम बनाता है।

इसे उन चुनौतियों का समाधान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिनका सामना शहरी स्थानीय निकायों (ULB) द्वारा डिजिटल एप्लीकेशन्स को विकसित करने और इन्हें लागू करने के दौरान किया जाता है।

जियोस्पेशियल मैनेजमेंट इंफॉर्मेशन सिस्टम (GMIS)

GMIS एक वेब-आधारित, स्थानिक रूप से सक्षम प्रबंधन उपकरण है, जो किसी भी सूचना का वन-स्टॉप एक्सेस प्रदान करता है।

GMIS कई स्रोतों से जानकारी को एकीकृत करता है और विषय एवं भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर खोज विकल्प प्रस्तुत करता है। 

आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय की अन्य योजनाएँ और कार्यक्रम


द अर्बन लर्निंग इंटर्नशिप प्रोग्राम-ट्यूलिप (TULIP)

साइकिल-फॉर-चेंज चैलेंज (Cycles4Change) और नर्चरिंग नेबरहुड चैलेंज

क्लाइमेट स्मार्ट सिटीज़ असेसमेंट फ्रेमवर्क (CSCAF)

ईज़ ऑफ लिविंग इंडेक्स और म्युनिसिपल परफॉर्मेंस इंडेक्स


अमृत मिशन (AMRUT)

स्वच्छ भारत मिशन- शहरी

प्रधानमंत्री आवास योजना

दीनदयाल अंत्योदय राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन

 

मान्यता प्राप्त निवेशक


हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने भारतीय प्रतिभूति बाज़ार में 'मान्यता प्राप्त निवेशक' (Accredited Investor) की अवधारणा पेश करने के प्रस्ताव पर संबंधित पक्षों की राय मांगी है। 

सेबी, सेबी अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार स्थापित एक वैधानिक निकाय है। इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है। इसका एक कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना, प्रतिभूति बाज़ार को बढ़ावा देना तथा उनका विनियमन करना है।

वर्तमान में भारतीय बाज़ारों में योग्य संस्थागत खरीदारों (Qualified Institutional Buyer) की अवधारणा मौजूद है, इसमें म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियाँ या अन्य पोर्टफोलियो निवेशक शामिल होते हैं। इन निवेशकों को बाज़ार में अधिक पहुँच प्राप्त है।

हालाँकि एक व्यक्तिगत निवेशक QIB का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकता है। मान्यता प्राप्त निवेशक की अवधारणा व्यक्तिगत निवेशकों को QIB जैसी स्थिति प्रदान करेगी।

योग्य संस्थागत खरीदार: ये संस्थागत निवेशक होते हैं। इनको पूंजी बाज़ार में निवेश और मूल्यांकन करने में विशेषज्ञता प्राप्त होती है।

मान्यता प्राप्त निवेशक के विषय में:

मान्यता प्राप्त निवेशकों को योग्य निवेशक या पेशेवर निवेशक भी कहा जाता है जो विभिन्न वित्तीय उत्पादों और उनसे जुड़े जोखिम तथा रिटर्न को समझते हैं।

ऐसे निवेशक अपने निवेश के विषय में सोच-समझकर निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। इनको विश्व स्तर पर कई प्रतिभूति तथा वित्तीय बाज़ार नियामकों द्वारा मान्यता दी जाती है।

इनको प्रतिभूतियों का व्यापार करने की अनुमति होती है, लेकिन ये प्रतिभूतियाँ वित्तीय प्राधिकरण के साथ पंजीकृत नहीं हो सकती हैं।

वे अपनी आय, निवल मूल्य, संपत्ति का आकार आदि के विषय में संतोषजनक ढंग से ज़रूरतों को पूरा करके इस विशेषाधिकार तक पहुँच के हकदार हैं

सेबी की योजना:

सेबी ने भारतीयों, अनिवासी भारतीयों और विदेशी संस्थाओं के लिये पात्रता मानदंड निर्धारित किये हैं।

इनकी मान्यता की वैधता एक वर्ष (सेबी से मान्यता प्राप्त करने के दिन से) की होगी।

इस तरह की मान्यता को 'प्रत्यायन एजेंसियों' (Accreditation Agency) के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिये, जो बाज़ार की बुनियादी ढाँचा संस्थाएँ या उनकी सहायक कंपनियाँ हो सकती हैं।

महत्त्व:

मान्यता प्राप्त निवेशक की अवधारणा निवेशकों और वित्तीय उत्पाद/सेवा प्रदाताओं को लाभ प्रदान कर सकती है, जैसे:

न्यूनतम निवेश राशि में लचीलापन।

विनियामक आवश्यकताओं में लचीलापन और विश्राम।

मान्यता प्राप्त निवेशकों को विशेष रूप से पेश किये गए उत्पादों/सेवाओं तक पहुँच।


सेनकाकू द्वीप विवाद

अमेरिका द्वारा जापान के दावाकृत क्षेत्र में चीन की उपस्थिति की आलोचना किये जाने के बाद चीन ने अमेरिका-जापान की आपसी सुरक्षा संधि को शीत युद्ध का एक परिणाम बताया है।

प्रमुख बिंदु

 

पृष्ठभूमि

वर्ष 1960 में जापान और अमेरिका के बीच हुई पारस्परिक सहयोग एवं सुरक्षा संधि के तहत यह आश्वासन दिया गया है कि अमेरिका, जापानी बलों या क्षेत्र पर किसी बाहरी शक्ति द्वारा किये गए हमले की स्थिति में जापान की सहायता करेगा।

हाल ही में अमेरिका ने जापान के दावाकृत क्षेत्र में चीन की उपस्थिति की आलोचना की थी, क्योंकि चीन के जहाज़ बार-बार सेनकाकू द्वीप के आसपास के जापानी क्षेत्रीय जल में अनधिकार प्रवेश कर रहे थे।

चीन लंबे समय से अमेरिका पर शीत युद्ध की मानसिकताबनाए रखने का आरोप लगाता रहा है, चीन का मानना है कि इसी मानसिकता के कारण अमेरिका, जापान को चीन के खिलाफ अपने गुट में शामिल करने की कोशिश करता है।

 

सेनकाकू द्वीप विवाद:

 

परिचय

सेनकाकू द्वीप विवाद आठ निर्जन द्वीपों संबंधी एक क्षेत्रीय विवाद है, इस द्वीपसमूह को जापान में सेनकाकू द्वीपसमूह, चीन में दियाओयू द्वीपसमूह और हॉन्गकॉन्ग में तियायुतई द्वीपसमूह के नाम से जाना जाता है।

जापान और चीन दोनों इन द्वीपों पर स्वामित्व का दावा करते हैं।

अवस्थिति

ये आठ निर्जन द्वीप पूर्वी चीन सागर में स्थित हैं। इनका कुल क्षेत्रफल लगभग 7 वर्ग किलोमीटर है और ये ताइवान के उत्तर-पूर्व में स्थित हैं।

सामरिक महत्त्व

ये द्वीप रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण शिपिंग लेनों के काफी करीब हैं, साथ ही मत्स्य पालन की दृष्टि से भी ये द्वीप काफी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं, इसके अलावा एक अनुमान के मुताबिक, यहाँ तेल का काफी समृद्ध भंडार मौजूद है।

जापान का दावा

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने सैन फ्रांसिस्को की वर्ष 1951 की संधि में ताइवान सहित कई क्षेत्रों और द्वीपों पर अपने दावों को त्याग दिया था।

इस संधि के तहत नानसेई शोटो द्वीप, संयुक्त राज्य अमेरिका के अधीन आ गया और फिर वर्ष 1971 में यह जापान को वापस लौटा दिया गया।

जापान का कहना है कि सेनकाकू द्वीप, नानसेई शोटो द्वीप का हिस्सा है और इसलिये इस पर जापान का स्वामित्व है।

हाल ही में दक्षिण जापान की एक स्थानीय परिषद ने सेनकाकू द्वीपसमूह वाले क्षेत्र का नाम टोंकशीरो से टोंकशीरो सेनकाकू में बदलने से संबंधित एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी।

इस के अलावा चीन ने सैन फ्रांसिस्को संधि पर कोई आपत्ति नहीं जताई थी। चीन और ताइवान का दावा 1970 के दशक में तब आया जब क्षेत्र में तेल संसाधनों के भंडार की खोज की गई।

चीन का दावा

चीन का मत है कि यह द्वीप प्राचीन काल से उसके क्षेत्र का हिस्सा रहा है और इसे ताइवान प्रांत द्वारा प्रशासित किया जाता था।

जब सैन फ्रांसिस्को की संधि में चीन को ताइवान वापस लौटा दिया गया था, तो इस द्वीप को भी वापस लौटा दिया जाना चाहिये।

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