चाणक्य नीति के अनुसार ऐसे मित्र का त्याग कर देना चाहिए
Chankya Niti Ke Anusar Aise Mitra Ka Tyag kar Dena Chahiye
|| चाणक्य नीति ||
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम् ।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ॥
चाणक्य नीति के अनुसार ऐसे मित्र का त्याग कर देना चाहिए
जो पीठ-पीछे कार्य को बिगाड़े और सम्मुख, सामने मीठी-मीठी बातें बनाये ऐसे मित्र को मुख पर दूध लगे हुए परन्तु भीतर विषभरे हुए घड़े के समान त्याग देना चाहिए।
भावार्थ-
जो मुख पर तो चिकनी-चुपड़ी बातें बनाये और पीठ पीछे कार्य को बिगाड़ दे, ऐसे मित्र को त्याग देना चाहिए, क्योंकि वह तो उस घड़े के समान है जिसके ऊपर तो दूध लगा हो और भीतर विष भरा हो ।
परामर्श - धूर्त व्यक्ति पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।
चाणक्य नीति संस्कृत दोहे और उनके हिन्दी अर्थ और व्याख्या सहित
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चाणक्य नीति के अनुसार ऐसे मित्र का त्याग कर देना चाहिए
चाणक्यनीति के अनुसार स्त्री, मित्र, नौकर से ऐसा व्यवहार करना चाहिए है.
आचार्य चाणक्य के अनुसार ऐसे स्थान पर नहीं जाना चाहिए.