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शुक्रवार, 5 मार्च 2021

Daily Current Affair 05 March 2021| Daily Current Affair in Hindi

 Daily Current Affair 05 March 2021
 Daily Current Affair in Hindi
Daily Current Affair 05 March in Hindi



सिमलीपाल बायोस्फीयर रिज़र्व: ओडिशा


ओडिशा के सिमलीपाल बायोस्फीयर रिज़र्व (Similipal Biosphere Reserve) में भीषण आग की घटना देखी गई। हालाँकि इस बायोस्फीयर का मुख्य क्षेत्र (Core Area) आग से अछूता था, फिर भी इस प्रकार की आग से इसकी समृद्ध जैव विविधता को नुकसान पहुँच रहा है।

 

सिमलीपाल बायोस्फीयर रिज़र्व के विषय में:

  •  सिमलीपल का नाम 'सिमुल' (Simul- सिल्क कॉटन) के पेड़ से लिया गया है।
  • आधिकारिक रूप से टाइगर रिज़र्व के लिये इसका चयन वर्ष 1956 में किया गया था, जिसको वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (Project Tiger) के अंतर्गत लाया गया।
  • भारत सरकार ने जून 1994 में इसे एक जैवमंडल रिज़र्व (Biosphere Reserve) क्षेत्र घोषित किया।
  • यह बायोस्फीयर रिज़र्व वर्ष 2009 से यूनेस्को के विश्व नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिज़र्व (UNESCO World Network of Biosphere Reserve) का हिस्सा है।
  • यह सिमलीपाल-कुलडीहा-हदगढ़ हाथी रिज़र्व (Similipal-Kuldiha-Hadgarh Elephant Reserve) का हिस्सा है, जिसे मयूरभंज एलीफेंट रिज़र्व (Mayurbhanj Elephant Reserve) के नाम से जाना जाता है, इसमें 3 संरक्षित क्षेत्र यानी सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व, हदगढ़ वन्यजीव अभयारण्य और कुलडीहा वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं।
  • यह ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के उत्तरी भाग में स्थित है जो  भौगोलिक रूप से पूर्वी घाट के पूर्वी छोर में स्थित है।
  • यह जीवमंडल 4,374 वर्ग किमी. में फैला हुआ है, जिसमें 845 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र (बाघ अभयारण्य), 2,129 वर्ग किमी. का बफर क्षेत्र और 1,400 वर्ग किमी. का संक्रमण क्षेत्र शामिल है।
  • सिमलीपाल में 1,076 फूलों की प्रजातियाँ और ऑर्किड की 96 प्रजातियाँ हैं। इसमें उष्णकटिबंधीय अर्द्ध-सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन, शुष्क पर्णपाती पहाड़ी वन और विशाल घास के मैदान मौज़ूद हैं।

जनजातियाँ:

 इस बायोस्फीयर रिज़र्व क्षेत्र में दो जनजातियाँ यथा- इरेंगा खारिया (Erenga Kharias) और मैनकर्डियास (Mankirdias) निवास करती हैं, जो आज भी पारंपरिक कृषि गतिविधियों (बीज और लकड़ी का संग्रह) के माध्यम से खाद्य संग्रहण करती हैं।

वन्यजीव:

सिमलीपाल बाघों और हाथियों सहित जंगली जानवरों की एक विस्तृत शृंखला का निवास स्थान है, इसके अलावा यहाँ पक्षियों की 304 प्रजातियाँ, उभयचरों की 20 प्रजातियाँ और सरीसृप की 62 प्रजातियाँ निवास करती हैं।

वनाग्नि के प्रति सुभेद्यता:

प्राकृतिक: इस क्षेत्र में प्रकाश या बढ़ते तापमान जैसे प्राकृतिक कारण वनाग्नि (forest fire) का कारण बन सकते हैं।

मानव निर्मित कारण: शिकारियों द्वारा जंगली जानवरों का शिकार करने के लिये आग का प्रयोग किया जाता है जो वनाग्नि का कारण हो सकता है।

शमन रणनीतियाँ:


इन रणनीतियों में आग की आशंका वाले दिनों की भविष्यवाणी करना, इस क्षेत्र के समुदायों के सदस्यों के साथ मिलकर आग की घटनाओं को कम करने के लिये कंट्रोल फायर लाइन का निर्माण, सूखे बायोमास को हटाना, शिकारियों पर कार्रवाई करना आदि शामिल हैं।

जंगल में कंट्रोल फायर लाइन जो कि वनस्पतियों से रहित होती हैं, आग को फैलने से रोकने में मदद कर सकती हैं।

ओडिशा के अन्य प्रमुख संरक्षित क्षेत्र

राष्ट्रीय उद्यान:

भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान: इस उद्यान में देश में लुप्तप्राय खारे पानी के मगरमच्छों का सबसे बड़ा समूह निवास करता है।


वन्यजीव अभयारण्य:

  • बदरमा वन्यजीव अभयारण्य: यह आर्द्र साल वनों की उपस्थिति के लिये जाना जाता है।
  • चिलिका (नलबण) वन्यजीव अभयारण्य: चिलिका झील एशिया की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी झील है।
  • हदगढ़ वन्यजीव अभयारण्य: सालंदी नदी इस अभयारण्य से होकर गुज़रती है।
  • बैसीपल्ली वन्यजीव अभयारण्य: यह बाघों, तेंदुओं, हाथियों और कुछ शाकाहारी जानवरों जैसे-चौसिंगा की एक महत्त्वपूर्ण संख्या के साथ बड़ी मात्रा में साल (Sal) वन से आच्छादित है।
  • कोटगढ़ वन्यजीव अभयारण्य: यहाँ घास के मैदानों के साथ घने पर्णपाती वन भी पाए जाते हैं।
  • नंदनकानन वन्यजीव अभयारण्य: यह विश्व में सफेद बाघों (White Tiger) और मैलेनिस्टिक टाइगर (Melanistic Tiger) का पहला प्रजनन केंद्र है।
  • लखारी घाटी वन्यजीव अभयारण्य: यह अभयारण्य हाथियों की बड़ी संख्या निवास स्थान है।
  • गहिरमाथा (समुद्री) वन्यजीव अभयारण्य: यह हिंद महासागर क्षेत्र में एक बड़ा सामूहिक प्रजनन केंद्र और ओडिशा का एकमात्र कछुआ अभयारण्य है। ओलिव रिडले कछुए गहिरमाथा के तट पर प्रजनन के लिये दक्षिण प्रशांत की यात्रा कर यहाँ आते हैं।


अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष: 2023

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से भारत द्वारा प्रायोजित और 70 से अधिक देशों द्वारा समर्थित प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अपना लिया है, जिसमें 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्षके रूप में घोषित करने की बात कही गई है। इस प्रस्ताव का प्राथमिक उद्देश्य बदलती जलवायु परिस्थितियों में बाजरे के स्वास्थ्य लाभ एवं खेती के लिये उसकी उपयुक्तता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। ज्ञात हो कि बाजरे की खेती ऐतिहासिक रूप से व्यापक स्तर पर कई देशों में की जाती रही है, किंतु बीते कुछ समय से कई देशों में इसके उत्पादन में कमी आ रही है। इस लिहाज से उत्पादन क्षमता, अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में उच्च निवेश किये जाने की आवश्यकता है ताकि बाजरे के पोषण एवं पारिस्थितिक लाभ से उपभोक्ताओं, उत्पादकों और निर्णय निर्माताओं को लाभान्वित किया जा सके। इस प्रस्ताव के परिणामस्वरूप बाजरे की खेती के लिये अनुसंधान एवं विकास में भी बढ़ोतरी हो सकेगी। अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्षका आयोजन करने से बाजरे के उत्पादन को लेकर और अधिक जागरूकता बढ़ाई जा सकेगी। यह खाद्य सुरक्षा, पोषण, आजीविका सुनिश्चित करने और किसानों की आय में बढ़ोतरी करने, गरीबी उन्मूलन और सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी योगदान देगा, विशेषकर उन क्षेत्रों में जो जलवायु परिवर्तन से काफी प्रभावित हैं।

 

मैरी कॉम

छह बार विश्व चैंपियन रहीं मैरी कॉम को अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज़ी संघ (AIBA) की चैंपियन एंड वेटरन्स कमेटीके अध्यक्ष के रूप में चुना गया है, इस समिति की स्थापना पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज़ी संघ द्वारा अपने सुधार कार्यक्रमों के हिस्से के रूप में की गई थी। बीते वर्ष दिसंबर माह में गठित इस समिति में विश्व भर के सबसे सम्मानित बॉक्सिंग दिग्गज और चैंपियन शामिल हैं। 1 मार्च, 1983 को जन्मी मैरी कॉम विश्व प्रसिद्ध भारतीय मुक्केबाज़ हैं, जो कि मूल रूप से मणिपुर से संबंधित हैं। मैरी कॉम ने अपने अंतर्राष्ट्रीय कॅरियर की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका में पहली AIBA महिला विश्व मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप के साथ की थी, जहाँ उन्होंने 48 किलोग्राम भार वर्ग में रजत पदक जीता था। मैरी कॉम की प्रतिभा के कारण वर्ष 2003 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें वर्ष 2006 में पद्मश्री और वर्ष 2009 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। बॉक्सिंग में उनके बेहतरीन कॅरियर को देखते हुए मणिपुर सरकार ने वर्ष 2018 में उन्हें मीथोईलीमाकी उपाधि से भी सम्मानित किया था। मैरी कॉम को अप्रैल 2016 में राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया गया था।

 

नाग नदी

हाल ही में केंद्र सरकार ने नाग नदी में सीवेज और औद्योगिक कचरे के कारण होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिये नाग नदी प्रदूषण न्यूनीकरणपरियोजना को मंज़ूरी दी है। केंद्र सरकार द्वारा नाग नदी प्रदूषण न्यूनीकरणपरियोजना के लिये तकरीबन 2,117.54 करोड़ रुपए की मंज़ूरी दी गई है। इस परियोजना को राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के तहत मंज़ूरी दी गई है और इसे राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा। इस परियोजना के कार्यान्वयन से अनुपचारित सीवेज, ठोस अपशिष्ट और नाग नदी एवं उसकी सहायक नदियों में बहने वाले अन्य प्रदूषक तत्त्वों की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी और इनके स्तर में कमी लाते हुए नदी के स्वास्थ्य एवं पारिस्थितिक तंत्र में सुधार होगा। ध्यातव्य है कि यह नदी महाराष्ट्र में नागपुर शहर से होकर गुज़रती है और महाराष्ट्र के तीसरे सबसे बड़े शहर नागपुर को यह नाम इसी नदी से प्राप्त हुआ है। नाग नदीमूल तौर पर पश्चिमी नागपुर में अंबाझरी झील से निकलती है। नाग नदी सीवेज और औद्योगिक कचरे के कारण काफी अधिक प्रदूषित है तथा बीते वर्ष बॉम्बे उच्च न्यायालय ने भी नदी के प्रदूषण की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया था।

 

प्लैटिपस के लिये विश्व का पहला अभयारण्य

ऑस्ट्रेलियाई संरक्षणवादियों ने हाल ही में प्लैटिपस के लिये विश्व का पहला अभयारण्य स्थापित करने की योजना बनाई है, ताकि प्लैटिपस के प्रजनन एवं पुनर्वास को बढ़ावा दिया जा सके, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण यह लगभग विलुप्त होने की कगार पर है। योजना के मुताबिक, वर्ष 2022 तक सिडनी से 391 किमी. (243 मील) की दूरी पर यह केंद्र स्थापित किया जाएगा, जहाँ कुल 65 प्लैटिपस मौजूद होंगे। यह केंद्र संरक्षणवादियों और वैज्ञानिकों को प्लैटिपस के बारे में और अधिक जानने में मदद करेगा। प्लैटिपस एक ज़हरीला स्तनधारी जीव है, जिसमें इलेक्ट्रोलोकेशन की शक्ति होती है, अर्थात् ये किसी जीव का शिकार उसके पेशी संकुचन द्वारा उत्पन्न विद्युत तरंगों का पता लगाकर करते हैं। ऑस्ट्रेलिया के अन्य प्रसिद्ध जानवरों जैसे- कंगारू आदि के विपरीत प्लैटिपस अपनी एकांत प्रकृति और अत्यधिक विशिष्ट निवास संबंधी आवश्यकताओं के कारण प्रायः कम ही दिखाई देते हैं। इसे IUCN की रेड लिस्ट में निकट संकटग्रस्तश्रेणी में रखा गया है।

 

भारत-जापान के लिये वेस्ट कंटेनर टर्मिनल का प्रस्ताव: श्रीलंका


हाल ही में श्रीलंका ने भारतीय और जापानी कंपनियों को वेस्ट कंटेनर टर्मिनल (West Container Terminal) देने का फैसला किया है।

यह फैसला श्रीलंका सरकार द्वारा वर्ष 2019 के त्रिपक्षीय समझौते से भारत और जापान को बाहर निकालने के एक महीने बाद आया है। इस समझौते के अंतर्गत इन दोनों भागीदारों को संयुक्त रूप से ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (East Container Terminal) को विकसित करना था।


WCT परियोजना के विषय में:

 

श्रीलंका ने भारत के अडानी पोर्ट्स, विशेष आर्थिक क्षेत्र लिमिटेड और इसके स्थानीय प्रतिनिधि को सार्वजनिक-निजी भागीदारी के अंतर्गत 35 वर्षों की अवधि के लिये निर्माण, संचालन और स्थानांतरण (Build, Operate and Transfer) के आधार पर WCT को विकसित करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है। इस परियोजना में जापान एक निवेशक के रूप में होगा।

श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी (SLPA) के पास ECT परियोजना में 51% हिस्सेदारी है, लेकिन WCT के प्रस्ताव में भारत और जापान को 85% हिस्सेदारी दी जाएगी।

यह कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल (CICT) के लिये निर्धारित शर्तों के समान है, जहाँ चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग्स कंपनी लिमिटेड की 85% हिस्सेदारी है।


महत्त्व:

 

WCT चीन द्वारा संचालित CICT से सटा हुआ है और चीन संचालित पोर्ट सिटी से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बनाया जा रहा है, जो रणनीतिक रूप से इसे भारत के लिये महत्त्वपूर्ण बनाता है।

यह परियोजना भारत को हिंद महासागर में अपनी रणनीतिक दृष्टि (SAGAR), पड़ोस पहले की नीति (Neighbourhood First Policy) और चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स (String of Pearl) रणनीति का मुकाबला करने में सहायता करेगी।

कोलंबो का प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब उसे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UN Human Right Council) के सत्र में समर्थन की आवश्यकता है, जहाँ देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर एक प्रस्ताव जल्द ही मतदान के लिये रखा जाएगा।


भारत - श्रीलंका संबंध

पृष्ठभूमि: भारत, श्रीलंका का निकटतम पड़ोसी है। दोनों देशों के बीच संबंध 2,500 साल से अधिक पुराना है और दोनों पक्षों ने बौद्धिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं भाषायी सहयोग की विरासत का निर्माण किया है।

आतंकवाद के खिलाफ समर्थन: श्रीलंका में गृहयुद्ध के दौरान भारत ने विद्रोही ताकतों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये श्रीलंकाई सरकार का समर्थन किया था।

पुनर्वास के लिये समर्थन: भारतीय आवास परियोजना (Indian Housing Project) भारत सरकार द्वारा श्रीलंका को विकासात्मक सहायता देने के लिये प्रमुख परियोजना है। इस परियोजना के तहत गृहयुद्ध से प्रभावित क्षेत्रों के लोगों तथा चाय बागान श्रमिकों के लिये 50,000 घरों का निर्माण करना है।

कोविड-19 के दौरान सहायता: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने कोविड महामारी से बुरी तरह प्रभावित श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ावा देने और उसकी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिये इसे 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मुद्रा विनिमय सुविधा प्रदान करने हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। भारत ने श्रीलंका को कोविड-19 टीके भी दिये हैं।

संयुक्त अभ्यास: भारत और श्रीलंका संयुक्त सैन्य (मित्र शक्ति) तथा नौसेना अभ्यास (SLINEX) का आयोजन करते हैं।

समूहों में भागीदारी: श्रीलंका बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation) और सार्क (SAARC) जैसे ग्रुपों का भी सदस्य है, जिनमें भारत एक अग्रणी भूमिका निभाता है।


विश्व वन्यजीव दिवस पर WWF संरक्षण अभियान

हाल ही में वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर ( Worldwide Fund for Nature- WWF) द्वारा विश्व वन्यजीव दिवस (3 मार्च) के अवसर पर यूरोप के अंतिम पुराने विकसित वनों को बचाने हेतु यूरोपीय संघ (European Union- EU) सहित कई हितधारकों से अपील की गई। 

WWF की स्थापना वर्ष 1961 में की गई थी, इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के ग्लैंड में स्थित है। इसका मिशन प्रकृति का संरक्षण करना है, साथ ही पृथ्वी पर जीवन की विविधता के संरक्षण में आने वाली बाधाओं को दूर करना है।

यूरोप के अंतिम पुराने विकसित वन (Old-Growth Forests- OGF) आदिम जंगल हैं जिनका प्राकृतिक प्रक्रियाओं (Natural Processes) में वर्चस्व है। इनमें अक्षत वन (Virgin Forest), निकटवर्ती अक्षत वन (Near-Virgin Forest) तथा मनुष्यों द्वारा लंबे समय से अछूते वन (Long-Untouched Forests) शामिल हैं, जैसे- पोलैंड में बियालोवेआ वन।

अब तक मध्य और दक्षिण-पूर्वी यूरोप में 3,50,000 हेक्टेयर क्षेत्र में पुराने-विकसित और वर्जिन वनों की पहचान की गई थी। इनमें से केवल 2,80,000 हेक्टेयर को ही कानूनी संरक्षण प्राप्त है।

 OGF और वनीय आवास का सबसे बड़ा क्षेत्र मुख्य रूप से यूरोप (रूस के बाहर) के रोमानिया, यूक्रेन, स्लोवाकिया और बुल्गारिया में पाया जाता है।


पारिस्थितिक महत्त्व:

 

  • ये यूरोप की सबसे बड़ी जीवित मांसाहारी (Large Carnivore Populations) आबादी के साथ-साथ वनस्पतियों और जीवों की हज़ारों अन्य प्रजातियों के आवास स्थल रहे है।
  • इन वनों द्वारा जलवायु को नियंत्रित करने के लिये पानी को छानने और स्वच्छ जल के भंडारण जैसी महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का प्रतिपादन किया गया, इस प्रकार ये जंगल लोगों और अर्थव्यवस्था हेतु महत्त्वपूर्ण रहे है।
  • कानूनी एवं अवैध रूप से अनिश्चित तौर पर वनों की कटाई तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण जंगलों पर दबाव बढ़ा है।
  • वनीय निवासों के विखंडन और विनाश के कारण जानवर और रोग वाहक दोनों की अनजाने में मनुष्यों के साथ लगातार संपर्क एवं संघर्ष की स्थिति बनी हुई है।


उठाए जाने वाले कदम:

 

  • धारणीय/स्थायी क्षतिपूर्ति तंत्र (Sustainable Compensation Mechanisms) को विकसित करने और बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
  • इस प्रकार के वनों के सतत् विकास का समर्थन करने हेतु वन-आधारित स्थानीय हरित व्यवसाय और निवेश योजनाओं का विकास किये जाने की आवश्यकता है।


विश्व वन्यजीव दिवस:

वर्ष 2013 से  हर वर्ष 3 मार्च को विश्व वन्यजीव दिवस का आयोजन किया जाता  है। इस दिन अर्थात् 3 मार्च, 1973 को ही वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) को अंगीकृत किया गया था।।

संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) के प्रस्ताव द्वारा  संयुक्त राष्ट्र के कैलेंडर में वन्यजीवों हेतु इस विशेष दिन के वैश्विक पालन सुनिश्चित करने हेतु  CITES सचिवालय द्वारा निर्देशित  किया जाता है।


थीम:

  • वर्ष 2021 के लिये  विश्व वन्यजीव दिवस की थीम 'वन और आजीविका: लोगों और ग्रह को बनाए रखना' (Forests and Livelihoods: Sustaining People and Planet) है। इसे संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) के साथ जोड़ा गया  है।
  • विश्व वन्यजीव दिवस के अवसर पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने घोषणा की है कि भारत में यह चीता प्रजनन हेतु समर्पित है, जो वर्ष 1952 में विलुप्त हो गया था।


केंद्रीय राजस्व नियंत्रण प्रयोगशाला को क्षेत्रीय सीमा शुल्क प्रयोगशाला के रूप में मान्यता

  •  केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Indirect Taxes & Custom) के तहत केंद्रीय राजस्व नियंत्रण प्रयोगशाला (Central Revenues Control Laboratory), नई दिल्ली को एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिये विश्व सीमा शुल्क संगठन (World Customs Organisation) की क्षेत्रीय सीमा शुल्क प्रयोगशाला (Regional Customs Laboratory) के रूप में मान्यता दी गई। 
  • RCL के रूप में मान्यता से अब CRCL जापान और कोरिया जैसे क्षेत्रों में स्थापित सीमा शुल्क प्रयोगशालाओं के चुनिंदा समूहों में शामिल हो गया है।


केंद्रीय राजस्व नियंत्रण प्रयोगशाला के विषय में:

 

  • CRCL की स्थापना वर्ष 1939 में हुई थी।
  • उपकरण आधारित परीक्षणों की शुरुआत से राजस्व प्रयोगशालाएँ अब कानून और प्रवर्तन पर कोई समझौता किये बिना तेज़ी से मंज़ूरी देने की सुविधा प्रदान कर रही हैं। इस प्रकार ये व्यापार को सुगम बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।


क्षेत्रीय सीमा शुल्क प्रयोगशाला:

 

  • इस प्रयोगशाला का काम टैरिफ वर्गीकरण और शुल्कों के स्तर तथा अन्य करों को निर्धारित करने के लिये केमिकल एनालिसिस (Chemical Analysis) करना है।
  • इसकी भूमिका व्यापार पैटर्न और तकनीकी विकास में परिवर्तन के साथ-साथ विकसित हुई है।
  • आधुनिक सीमा शुल्क प्रयोगशालाएँ अब पर्यावरण संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं (जैसे- ओज़ोन क्षरण करने वाले पदार्थों के व्यापार को नियंत्रित करना)। साथ ही लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा, कीटनाशकों (जैसे- खतरनाक सामग्री), जैविक प्रदूषक, रासायनिक हथियार आदि के व्यापार को भी नियंत्रित कर रही हैं।


विश्व सीमा शुल्क संगठन:

  • विश्व सीमा शुल्क संगठन की स्थापना वर्ष 1952 में सीमा शुल्क सहयोग परिषद (Customs Co-operation Council- CCC) के रूप में की गई। यह एक स्वतंत्र अंतर-सरकारी निकाय है, जिसका उद्देश्य सीमा शुल्क प्रशासन की प्रभावशीलता और दक्षता को बढ़ाना है।
  • WCO दुनिया भर के 183 सीमा शुल्क प्रशासनों का प्रतिनिधित्व करता है, इनके द्वारा विश्व में सामूहिक रूप से लगभग 98% व्यापार किया जाता है।
  • भारत को दो साल की अवधि के लिये (जून 2020 तक) WCO के एशिया प्रशांत क्षेत्र का उपाध्यक्ष (क्षेत्रीय प्रमुख) बनाया गया था।
  • यह सीमा शुल्क मामलों को देखने में सक्षम एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, इसलिये इसे अंतर्राष्ट्रीय सीमा शुल्क समुदाय की आवाज़ कहा जा सकता है।
  • इसका मुख्यालय ब्रसेल्स, बेल्जियम में है।

WCO के तहत कुछ महत्त्वपूर्ण सम्मेलन/तंत्र:

  • सुरक्षित और वैश्विक व्यापार को सुगम बनाने के लिये मानकों का सेफ फ्रेमवर्क (SAFE Framework)
  • हार्मोनाइज़्ड कमोडिटी विवरण (Harmonized Commodity Description) और कोडिंग सिस्टम (Coding System) पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन।
  • सीमा शुल्क प्रक्रियाओं के सरलीकरण और सामंजस्य पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (संशोधित क्योटो सम्मेलन)।

साइबर अपराध वालंटियर्स

एक डिजिटल स्वतंत्रता संगठन इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन’ (IFF) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) को लिखा है कि साइबर अपराध वालंटियर्स की अवधारणा "समाज में निगरानी और सामाजिक अविश्वास पैदा कर निरंतर संदेह की संस्कृति" को जन्म देगी।

 साइबर अपराध वालंटियर्स की अवधारणा:

  • भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) ने राष्ट्र की सेवा करने और देश में साइबर अपराध के खिलाफ लड़ाई में योगदान हेतु नागरिकों को एक ही मंच पर लाने के लिये साइबर अपराध वालंटियर्स कार्यक्रम की परिकल्पना की है।
  • अवैध/गैर-कानूनी ऑनलाइन सामग्री की पहचान, रिपोर्टिंग और उसे हटाने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सुविधा हेतु साइबर अपराध वालंटियर्स के रूप में पंजीकृत होने के लिये अच्छे नागरिकों का स्वागत किया जाता है।
  • वालंटियर्स को भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 का अध्ययन करने की सलाह दी गई है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है।
  • इसके अलावा वालंटियर्स स्वयं को सौंपे गए/किये गए कार्यों की सख्त गोपनीयता बनाए रखेगा। राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के राज्य नोडल अधिकारी कार्यक्रम के नियमों और शर्तों के उल्लंघन के मामले में वालंटियर्स के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार भी रखते हैं।
  • अवैध/गैर-कानूनी सामग्री: सामान्य तौर पर ऐसी सामग्री जो भारत में किसी कानून का उल्लंघन करती है।
इस प्रकार की सामग्री निम्नलिखित व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत आ सकती है:

  • भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ।
  • भारत की रक्षा के खिलाफ।
  • राज्य की सुरक्षा के खिलाफ।
  • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के खिलाफ।
  • लोक व्यवस्था को बिगाड़ने के उद्देश्य से सामग्री।
  • सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना।
  • बाल यौन शोषण सामग्री।


उत्पन्न चिंताएँ:

  • दुरुपयोग की संभावना: इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है कि मंत्रालय यह कैसे सुनिश्चित करेगा कि व्यक्तिगत या राजनीतिक प्रतिशोध के लिये कुछ तत्त्वों द्वारा कार्यक्रम का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • एक बार शिकायत करने के बाद उसे वापस लेने हेतु कोई प्रक्रिया नहीं है।
  • साइबर-सतर्कता: यह कार्यक्रम अनिवार्य रूप से ऐसी स्थिति को जन्म देगा जो 1950 के दशक में पूर्वी जर्मनी में था।
  • कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं: मंत्रालय गैर-कानूनी सामग्री और "राष्ट्र-विरोधी" गतिविधियों से संबंधित सामग्री को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने में विफल रहा है।
  • यह वालंटियर्स को आवश्यकता से अधिक शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति दे सकता है, वे ऐसे नागरिकों के संबंध में भी रिपोर्ट कर सकते हैं जो कि अपने अधिकारों के भीतर ऐसी सामग्री पोस्ट करते हैं जो राज्य के लिये संवेदनशील हो।
  • ऐसा कार्यक्रम श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2013) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सीधा उल्लंघन है, जो यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है कि लोकतंत्र में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक ऐसा आधारभूत मूल्य है जो हमारी संवैधानिक योजना के तहत सर्वोपरि है।


भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C):

इसकी स्थापना साइबर अपराध के खिलाफ लड़ाई में राष्ट्रीय स्तर पर एक नोडल केंद्र के रूप में कार्य करने के लिये गृह मंत्रालय के तहत की गई है।

I4C की स्थापना योजना को सभी प्रकार के साइबर अपराधों से व्यापक और समन्वित तरीके से निपटने के लिये अक्तूबर 2018 में मंज़ूरी दी गई थी।

यह अत्याधुनिक केंद्र नई दिल्ली में स्थित है।

विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित करने के लिये अपनी सहमति दी है।


योजना के सात घटक:

  • नेशनल साइबर क्राइम थ्रेट एनालिटिक्स यूनिट,
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल,
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध प्रशिक्षण केंद्र,
  • साइबर अपराध पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन इकाई,
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध अनुसंधान और नवाचार केंद्र,
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध फोरेंसिक प्रयोगशाला पारिस्थितिकी तंत्र और
  • संयुक्त साइबर अपराध जाँच दल प्लेटफॉर्म।

विशेषताएँ:

समन्वित और व्यापक तरीके से साइबर अपराधों से निपटने हेतु एक मंच प्रदान करना।

केंद्रीय गृह मंत्रालय में संबंधित नोडल प्राधिकरण के परामर्श से अन्य देशों के साथ साइबर अपराध से संबंधित पारस्परिक कानूनी सहायता संधियों (MLAT) के कार्यान्वयन से जुड़ीं सभी गतिविधियों के समन्वय के लिये इसका निर्माण किया गया है।

एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना जो साइबर अपराध की रोकथाम, पता लगाने, जाँच और अभियोजन में शिक्षा, उद्योग, जनता तथा सरकार को एक साथ लाता है।

अनुसंधान में आने वाली समस्याओं की पहचान करने और भारत तथा विदेश में अकादमिक/अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से नई प्रौद्योगिकियों व फोरेंसिक उपकरणों को विकसित करने में अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना।

चरमपंथी और आतंकवादी समूहों द्वारा साइबर-स्पेस के दुरुपयोग को रोकना।

तेज़ी से बदलती प्रौद्योगिकियों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये साइबर कानूनों में संशोधन का सुझाव देना (यदि आवश्यक हो)।

इज़रायल-फिलिस्तीन युद्ध अपराधों की जाँच

  • हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय (International Criminal Court- ICC) द्वारा  इज़रायल (वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी) के कब्ज़े वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में युद्ध अपराधों की जाँच शुरू की गई है।
  • जांँच का यह निर्णय एक हालिया फैसले के बाद लिया गया है जिसमें कहा गया कि वर्ष 1967 में हुए छ: दिवसीय अरब-इज़रायल युद्ध (Six-day Arab-Israeli War) के बाद इज़रायल के कब्ज़े वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र अदालत के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
  • इस युद्ध में इज़रायल की सेनाओं ने सीरिया से गोलान हाइट्स, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम तथा मिस्र से सिनाई प्रायद्वीप व गाजा पट्टी को अपने अधिकार में ले लिया था।
  • जांँच में वर्ष 2014 के गाजा युद्ध, वर्ष 2018 में गाजा सीमा पर झड़पों और वेस्ट बैंक में इज़रायल सेटलमेंट-बिल्डिंग को भी शामिल किये जाने की उम्मीद है।
  • जांँच में यह भी देखा जाएगा कि क्या गाजा से हमास और अन्य समूहों द्वारा युद्ध अपराधों के लिये रॉकेट फायर (Rocket Fire) का प्रयोग किया गया था।

ICC के बारे में:

  • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय विश्व का प्रथम स्थायी अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय है। इसे रोम संविधि (The Rome Statute) नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संधि द्वारा शासित किया जाता है।
  • ICC का मुख्यालय नीदरलैंड के हेग में अवस्थित है।
  • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय सामान्यतः नरसंहार, युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध और आक्रमण जैसे गंभीर अपराधों से संबंधित मामलों की जाँच करता है।
  • ICC का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के माध्यम से अपराधों के लिये ज़िम्मेदार लोगों को दंडित करना, साथ ही इन अपराधों की पुनरावृत्ति को रोकने में मदद करना है।
  • भारत, चीन एवं अमेरिका रोम संविधि के पक्षकार देश नहीं हैं।

गोलान हाइट्स:

  • गोलान हाइट्स एक चट्टानी पठार है जो दक्षिण-पश्चिमी सीरिया में इज़रायल और सीरिया की सीमा के मध्य 1,800 km² क्षेत्र में फैला है।
  • यह एक सामरिक क्षेत्र है जिसे वर्ष 1967 के युद्ध में इज़रायल ने सीरिया से अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था। वर्ष 1981 में इज़रायल ने इस क्षेत्र को ध्वस्त कर दिया।
  • हाल ही में अमेरिका द्वारा आधिकारिक तौर पर यरुशलम और गोलान हाइट्स को इज़रायल के एक हिस्से के रूप में मान्यता दी गई है।
  • श्रवण क्षमता पर WHO की पहली रिपोर्ट
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा विश्‍व श्रवण दिवस से एक दिन पहले 3 मार्च को श्रवण विकार से जुड़ी पहली वैश्विक रिपोर्ट जारी की गई है। 
  • यह रिपोर्ट कान से जुड़ी देखभाल सेवाओं तक पहुँच और इसमें निवेश बढ़ाकर श्रवण ह्रास की समस्या को रोकने के लिये तेज़ी से प्रयास करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।


रिपोर्ट में शामिल महत्त्वपूर्ण तथ्य: 


  • वर्ष 2050 तक विश्व भर में लगभग 2.5 बिलियन लोग (या प्रत्येक 4 में से 1 व्यक्ति)  कुछ हद तक श्रवण क्षमता के ह्रास का सामना कर रहे होंगे।
  • ऐसे में यदि समय रहते कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है तो इनमें से कम-से-कम 700 मिलियन लोगों को कान और श्रवण क्षमता से जुड़ी देखभाल तथा अन्य पुनर्वास सेवाओं की आवश्यकता होगी।

 

प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव:

  • अनुपचारित श्रवण क्षमता ह्रास की स्थिति लोगों की संवाद करने, अध्ययन और जीविकोपार्जन की क्षमता पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। यह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों को बनाए रखने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकती है।

निम्न-आय वाले देशों में विशेषज्ञों की कमी:

  • लगभग 78% निम्न-आय वाले देशों में एक 'कान, नाक और गला (ENT) रोग विशेषज्ञ पर एक मिलियन से अधिक आबादी का दबाव है।
  • 93% में प्रति ऑडियोलॉजिस्ट पर आबादी का अनुपात एक मिलियन से अधिक है।
  • केवल 17% में प्रति मिलियन आबादी पर एक या एक से अधिक स्पीच थेरेपिस्ट (Speech Therapist) हैं।
  •  50% में प्रति मिलियन आबादी पर श्रवण बाधित लोगों के लिये एक या एक से अधिक शिक्षक हैं।

भारत में श्रवण विकलांगता:

  • भारत में प्रतिवर्ष 27,000 से अधिक बच्चे बहरे पैदा होते हैं। श्रवण विकलांगता या ह्रास को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है क्योंकि इसके बारे में जागरूकता का भारी अभाव है और ज़्यादातर मामलों में निदान में देरी कर दी जाती है।

कारण: 

  • ऐसे कई बच्चे हैं जो उन्नत श्रवण तकनीक का लाभ उठा सकते हैं, परंतु शिशुओं की श्रवण समस्याओं के बारे में कम जागरूकता होने के कारण वे छूट जाते हैं।
  • एक प्रमुख कारण जन्म के समय नवजात बच्चों में इसके लक्षणों की जाँच से जुड़े कार्यक्रमों की अनुपलब्धता और माता-पिता में जागरूकता का अभाव है।


सरकारी पहल:

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ राष्ट्रीय बधिरता रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम (NPPCD) की शुरुआत की गई है:
  • बीमारी या चोट के कारण परिहार्य (टालने योग्य) श्रवण ह्रास को रोकना।
  • श्रवण क्षमता ह्रास और बहरेपन के लिये उत्तरदायी कान की समस्याओं की प्रारंभिक पहचान, निदान और उपचार।
  • बहरेपन से पीड़ित सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों का चिकित्सीय पुनर्वास करना।
  • बहरेपन से पीड़ित व्यक्तियों के लिये पुनर्वास कार्यक्रम की निरंतरता सुनिश्चित करने हेतु मौजूदा अंतर-क्षेत्रीय लिंक को मज़बूत करना
  • उपकरण, सामग्री और प्रशिक्षण हेतु कर्मियों को सहायता प्रदान करते हुए कान की देखभाल सेवाओं में संस्थागत क्षमता विकसित करना।


आवश्यक हस्तक्षेप:

  • जाँच कार्यक्रमों का आयोजन शुरुआती निदान में सहायक हो सकता है, जो शीघ्र उपचार को बढ़ावा देगा।
  • यूनिवर्सल न्यूबोर्न हियरिंग स्क्रीनिंग (UNHS) से जन्मजात श्रवण ह्रास के संबंध में जल्द पता लगाने में मदद मिलती है और यह परीक्षण नवजात शिशुओं में श्रवण ह्रास का पता लगाकर शुरुआती हस्तक्षेप सुनिश्चित करने के लिये अतिमहत्त्वपूर्ण है।
  • हालाँकि विकसित देशों में UNHS स्क्रीनिंग अनिवार्य है, परंतु यह जाँच केरल को छोड़कर भारत में नवजात शिशुओं के लिये अनिवार्य स्वास्थ्य जाँच प्रक्रियाओं की सूची में शामिल नहीं है।


अनुशंसित रणनीतियाँ:


  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में श्रवण देखभाल का एकीकरण: यह वर्तमान के रोगी-चिकित्सक अंतर को समाप्त कर देगा।
  • जीवन में रणनीतिक बिंदुओं पर नैदानिक स्क्रीनिंग: श्रवण क्षमता के ह्रास और कान के रोगों के किसी भी नुकसान की शीघ्र पहचान सुनिश्चित करना।
  • श्रवण सहायक प्रौद्योगिकी व सेवाओं को बढ़ावा देना: इसमें अनुशीर्षक/कैप्शनिंग और सांकेतिक भाषा में व्याख्या करने जैसे उपाय शामिल हैं जो श्रवण बाधित लोगों के लिये संचार और शिक्षा तक पहुँच में सुधार कर सकते हैं।
  • निवेश में वृद्धि: WHO द्वारा किये गए एक आकलन के अनुसार, श्रवण सहायता प्रौद्योगिकी और सेवा क्षेत्रों पर सरकारों द्वारा निवेश किये गए प्रत्येक 1 अमेरिकी डॉलर के बदले 16 अमेरिकी डॉलर के रिटर्न की उम्मीद की जा सकती है।
  • प्रतिरक्षीकरण में वृद्धि: बच्चों में होने वाली लगभग 60% श्रवण क्षमता ह्रास को विभिन्न उपायों जैसे- रूबेला और मेनिनजाइटिस की रोकथाम के लिये टीकाकरण, मातृ एवं शिशु देखभाल में सुधार तथा ओटिटिस मीडिया (मध्यकर्णशोथ) की शीघ्र पहचान कर प्रबंधन के माध्यम से रोका जा सकता है।
  • स्वच्छता बनाए रखना: ध्वनि नियंत्रण, सुरक्षित श्रवण और ओटोटॉक्सिक (कान पर एक विषैले प्रभाव वाले) दवाओं की निगरानी के साथ-साथ कान की स्वच्छता वयस्कों में श्रवण क्षमता को बेहतर बनाए रखने और श्रवण बाधिता की संभावना को कम करने में मदद कर सकती है।

फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021 रिपोर्ट

हाल ही में जारी फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021रिपोर्ट में भारत की स्थिति को स्वतंत्रसे 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' कर दिया है।

 पिछले 15 वर्षों में वैश्विक लोकतंत्र में गिरावट की ओर इशारा करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की लगभग 75 प्रतिशत आबादी ऐसे देशों में निवास करती है, जहाँ पिछले कुछ वर्षों में लोकतंत्र और स्वतंत्रता की स्थिति में गिरावट आई है।

दुनिया के सबसे मुक्त और स्वतंत्र देशों में फिनलैंड, नॉर्वे और स्वीडन शामिल हैं, जबकि तिब्बत और सीरिया ऐसे देशों में हैं।


फ्रीडम इन द वर्ल्डरिपोर्ट के बारे में


यह रिपोर्ट अमेरिका आधारित फ्रीडम हाउसनामक मानवाधिकार संस्था द्वारा जारी की जाती है। वर्ष 1941 से कार्यरत इस संस्था का वित्तपोषण अमेरिकी सरकार के अनुदान से किया जाता है।


रिपोर्ट में प्राप्त स्कोर

  • यह रिपोर्ट मुख्य तौर पर राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रताओं पर आधारित है।
  • राजनीतिक अधिकारों के तहत चुनावी प्रक्रिया, राजनीतिक बहुलवाद और भागीदारी तथा सरकारी कामकाज जैसे संकेतक शामिल हैं।
  • जबकि नागरिक स्वतंत्रता के तहत अभिव्यक्ति एवं विश्वास की स्वतंत्रता, संबद्ध एवं संगठनात्मक अधिकार, कानून के शासन और व्यक्तिगत स्वायत्तता व व्यक्तिगत अधिकारों आदि संकेतकों को शामिल किया गया है।
  • इन्हीं संकेतकों के आधार पर देशों को स्वतंत्र’, ‘आंशिक रूप से स्वतंत्रया स्वतंत्र नहींघोषित किया जाता है।


भारत की स्थिति


  • भारत को रिपोर्ट में 67/100 स्कोर प्राप्त हुआ है, जो कि बीते वर्ष के 71/100 के मुकाबले कम है, पिछले वर्ष भारत स्वतंत्रश्रेणी में शामिल था, जबकि इस वर्ष भारत की स्थिति में गिरावट करते हुए इसे आंशिक रूप स्वतंत्रश्रेणी में शामिल किया गया है।


भारत की स्थिति में गिरावट के कारण

 

मीडिया की स्वतंत्रता

  • रिपोर्ट के मुताबिक, प्रेस की स्वतंत्रता पर हमलों में नाटकीय रूप से वृद्धि दर्ज की गई है और हाल के वर्षों में रिपोर्टिंग काफी कम महत्त्वाकांक्षी बन गई है। आलोचनात्मक मीडिया की आवाज़ को दबाने के लिये सुरक्षा निकायों, मानहानि, देशद्रोह और अवमानना जैसे साधनों ​​का प्रयोग किया जा रहा है।


हिंदू राष्ट्रवादी हितों में उभार

  • रिपोर्ट की मानें तो भारत एक वैश्विक लोकतांत्रिक नेता के रूप में अपनी पहचान खोता जा रहा है और समावेशी एवं सभी के लिये समान अधिकारों जैसे बुनियादी मूल्यों की कीमत पर संकीर्ण हिंदू राष्ट्रवादी हितों में उभार देखा जा रहा है।


इंटरनेट स्वतंत्रता:

  • कश्मीर में और दिल्ली की सीमा पर इंटरनेट शटडाउन के कारण इस वर्ष इंटरनेट स्वतंत्रता का विषय काफी महत्त्वपूर्ण रहा है, इंटरनेट स्वतंत्रता के चलते भारत का स्कोर गिरकर 51 पर पहुँच गया है।


वायरस के विरुद्ध प्रतिक्रिया

  • कोरोना वायरस के विरुद्ध प्रतिक्रिया के दौरान भारत समेत वैश्विक स्तर पर कई स्थानों पर लॉकडाउन जैसे उपाय अपनाए गए, जिसके कारण भारत में व्यापक स्तर पर लाखों प्रवासी श्रमिकों को अनियोजित और खतरनाक तरीके से आंतरिक विस्थापन करना पड़ा।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में महामारी के दौरान एक विशेष समुदाय के लोगों को वायरस के प्रसार के लिये अनुचित तरीके से दोषी ठहराया गया और कई बार उन्हें अनियंत्रित भीड़ के हमलों का सामना भी करना पड़ा था।


प्रदर्शनकर्त्ताओं पर कार्यवाही

  • रिपोर्ट के अनुसार, सरकार द्वारा भेदभावपूर्ण नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर अनुचित कार्यवाही की गई और इस प्रदर्शन के विरुद्ध बोलने वाले दर्जनों पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया।
कानून
  • उत्तर प्रदेश में अंतर-विवाह के माध्यम से ज़बरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने से संबंधित कानून को भी स्वतंत्रता पर एक गंभीर खतरे के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

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