पत्रकारिता जागरूकता अभियान :मानहानिकारक लेखों के प्रति सावधानी
मानहानिकारक लेखों के प्रति सावधानी
i) समाचारपत्र को ऐसी कोई बात प्रकाशित नहीं करनी चाहिए जो किसी व्यक्ति या संगठन के प्रति स्पष्ट रूप से मानहानिकारक अथवा अपमानजनक हो जब तक कि उचित सावधानी तथा जाँच के बाद उनके पास यह मानने के लिए पर्याप्त आधार न हो कि वह सच्ची है और उसका प्रकाशन जनता के हित में होगा।
ii) किसी निजी नागरिक के विरूद्ध अपमानजनक, भद्दी तथा मानहानिकारक सामग्री छापने के लिए, यदि कोई जनहित निहित न हो, सच्चाई को आधार नहीं बनाया जा सकता।
iii)जनहित में बिरले मामलों को छोड़कर किसी मृत व्यक्ति के विरूद्ध कोई ऐसी निजी टिप्पणी प्रकाशित न की जाए जिसे अपमानजनक समझा या माना जा सके क्योंकि मृत व्यक्ति के लिए उस टिप्पणी का खंडन करना या उससे इनकार करना संभव नहीं होगा।
iv) प्रेस का यह कर्त्तव्य, विवेक तथा अधिकार है कि संदिग्ध पूर्व वृत वाले और शंकास्पद चरित्र वाले नागरिकों की ओर पाठकों का ध्यान खींच कर जनहित की सेवा करे किन्तु उत्तरदायी पत्रकारों के रूप में उन्हें उन व्यक्तियों के लिए। "धोखेबाज" या " हत्यारे " आदि शब्दों का प्रयोग करते समय यथेष्ठ संयम तथा सावधानी बरतनी चाहिए। मूलभूत सिद्धांत यह है कि किसी व्यक्ति के दोष को आरोपित तथ्यों के प्रमाण द्वारा सिद्ध किया जाए न कि अभियुक्त के दुश्चरित्र के प्रमाण द्वारा । उद्घाटित करने के अपने जोश में प्रेस को नैतिक सावधानी तथा निष्पक्ष टीका की सीमाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
v) प्रेस किसी व्यक्ति के नए कृत्य के संदर्भ में कटु टिप्पणी करने के लिए उस नागरिक के पहले के आपत्तिजनक व्यवहार को आधार नहीं बनाएगा । यदि जनता के लिए वह संदर्भ अपेक्षित हो तो प्रेस को सबंधित अधिकारियों से प्रकाशन पूर्व पूछताछ कर लेनी चाहिए कि उन आपत्तिजनक कृत्यों के बारे में क्या अनुवर्ती कार्यवाही की गई।
vi) यदि आक्षेपित प्रकाशन स्पष्ट रूप से शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचाने वाले हों तो यह सिद्ध करने का भार प्रतिवादी पर होगा कि वे सच्चे हैं या वह टिप्पणी सदाशयता के साथ तथा जनता की भलाई के लिए की गई है।
vii) समाचारपत्र किसी व्यक्ति या निकाय को बदनाम करने के लिए इस आधार पर अपने बचाव अथवा छूट के लिए विशेषाधिकार या लाइसेंस का दावा नहीं कर सकते कि वह मद व्यंग्य के रूप में "गपशप, ” “पैरोडी” आदि विशेष स्तंभों के अंतर्गत प्रकाशित की गई है।
viii) किसी एक समाचारपत्र द्वारा कोई मानहानिकारक समाचार प्रकाशित कर दिए जाने से अन्य समाचारपत्रों को उसी के आधार पर समाचार / सूचना प्रकाशित करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता। अन्य प्रकाशन द्वारा समान रिपोर्ट के प्रकाशन की सच्चाई आरोपों पर सटीकता का नाम प्रदान नहीं करती ।
ix) यह आवश्यक है कि प्रेस नागरिक वर्ग के साथ प्रत्यक्षतया संपर्क कर पाने के कारण हासिल की गयी अद्वितीय स्थिति के कारण समाज के प्रति अपने दायित्व को समझे और अफ़वाहों और सनसनी को विश्वसनीयता प्रदान करने में लगे रहने की अपेक्षा देश की प्रगति और समाज की बेहतरी के लिए अपनी लाभदायक स्थिति का उपयोग करे। यह आवश्यक है कि प्रेस विशेष रूप से लघु स्थानीय प्रेस 'लोक हित' और 'लोक रूचि के मामलों के बीच स्पष्ट अंतर को परखना सीखे। जहाँ गप-शप और सामाजिक लेन देन व्यवहार संबंधी कार्यकलापों में लोगों की रूचि हो सकती है परंतु उनसे किसी सार्वजनिक उद्देश्य अथवा हित की पूर्ति नहीं होती और प्रेस को अतिसावधानी पूर्वक ऐसे मामलों पर अपने बहुमूल्य स्थान को बर्बाद करने से बचना चाहिए ।
X) ऐसी असंबद्ध अनावश्यक और असंगत बातों को शामिल न किया जाए जिनसे किसी व्यक्ति या संगठन के बदनाम होने की संभावना हो ।
xi) यद्यपि एक समाचारपत्र को राजनैतिक विकास की रिपोर्ट करने का अधिकार अथवा कर्त्तव्य होता है, वह रिपोर्टिंग अभद्र नहीं होनी चाहिए। प्रेस की स्वतंत्रता किसी समाचारपत्र को यह लाइसैंस नहीं देती कि वह मनगढंत और मानहानिजनक लेख प्रकाशित करके किसी राजनैतिक नेता को बदनाम करे या उनकी भावी राजनैतिक संभावनाओं को दुष्प्रभावित करे।
xii) प्रेस को यह स्मरण रहना चाहिए कि लोकतांत्रिक ढांचे में स्थापित बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जिनका प्रेस द्वारा उपयोग किया जाता है, के कारण उनकी जिम्मेदारी भी होती है। समाचारपत्रों से यह आशा नहीं की जाती है कि वे स्वयं साक्ष्य का सृजन करके और बाद में अपनी ही पत्रिका में झूठा प्रचार करने के लिए साक्ष्य का इस्तेमाल करके साधन के रूप में इसका प्रयोग करें।
xiii) प्रेस की रिपोर्टिंग पर प्रभाव डालने के लिए प्रस्तावित प्रलोभनों पर प्रकाश डालने के लिए प्रेस उपहार प्राप्त करने योग्य है और ऐसा रहस्योद्घाटन मानहानि के बराबर नहीं होगा।
xiv) अधिकारिता
व्यक्तिगत आरोप/आलोचना के मामले में केवल अधिकारिता वाला संबंधित व्यक्ति ही वाद पत्र दाखिल कर सकता है या उत्तर के अधिकार का दावा कर सकता है। तथापि किसी संगठन या संप्रदाय / वर्ग से संबंधित व्यक्तियों की प्रतिनिधि सभा की अधिकारिता होगी कि किसी नेता के आचरण की प्रत्यक्ष आलोचना करने वाले प्रकाशन के विरूद्ध शिकायत दाखिल कर सके।
XV) जनहित और सार्वजनिक निकाय
जनहित के संरक्षक के रूप में प्रेस को सार्वजनिक निकायों में भ्रष्टाचार और अनियमितता के मामले उजागर करने का अधिकार है किंतु वह सामग्री अकाट्य प्रमाणों पर आधारित हो और जाँच तथा संबंधित स्रोत से सत्यापन के बाद और जिस व्यक्ति / प्राधिकारी पर टिप्पणी की जा रही है उसकी बात सुनने के बाद प्रकाशित की जाए । समाचारपत्रों को चाहिए कि चुभने वाली, तीखी तथा कड़वी भाषा का प्रयोग न करें और व्यंग्यपूर्ण / उपहासपूर्ण टिप्पणी न करें। प्रेस का यह प्रयास होना चाहिए कि वे संस्थानों को उनके कार्य में सुधार के लिए जागरूक करें न कि उनका नाश करे अथवा कार्यबल को हतोत्साहित करें उनकी अथवा कार्य-प्रणाली में लोगों के विश्वास को खत्म करें। तदनुसार, उन्हें यह कर्त्तव्य सौंपा गया है कि वे सुनिश्चित करें कि ऐसा करते हुए वे उचित और संतुलित रिपोर्ट करें जोकि बाह्य दबावों से प्रभावित न हो। लोकहित के अभिरक्षक और इसके अधिकारों के संरक्षक के रूप में प्रेस से यह भी आशा की जाती है कि वह सही सूचना इसके नोटिस में लाये ताकि उन्हें सही तरह से परख सके जिन्हें इन्होंने देश चलाने का दायित्व सौंपा है।
xvi) मीडिया और प्राधिकारी हमारे लोकतंत्र के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं और सरकार द्वारा लोकहित में सफलतापूर्वक कार्य करने के लिए प्रेस का जिम्मेदार और जागरूक होना अनिवार्य पूर्वापेक्षा है।
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