पत्रकारिता जागरूकता अभियान: न्यायिक क्रियाओं की आलोचना में सावधानी
पत्रकारिता और न्यायिक क्रियाओं की आलोचना
i)सिवाय उन मामलों के जहाँ अदालत बंद कमरे में बैठे या अन्यथा निदेश दे, समाचारपत्र को लंबित न्यायिक कार्यवाही की निष्पक्ष, यथार्थ तथा न्यायसंगत विधि से रिपोर्ट करने की छूट है। किन्तु वह कोई ऐसी बात प्रकाशित नहीं करेगा:
- जिसके प्रत्यक्ष तथा तात्कालिक प्रभाव से न्याय के विधिवत् प्रशासन में गंभीर बाधा, रुकावट अथवा पूर्वाग्रह पैदा होने का काफी खतरा हो; या
- जो चालू विवरण या वाद विवाद के रूप में हो अथवा न्यायालय के विचाराधीन मुद्दों पर समाचारपत्र के अपने निष्कर्षों अटकलों, विचारों या टीका को व्यक्त करती हो जिससे ऐसा लगे कि समाचारपत्र ने न्यायालय के काम को अपने हाथ में ले लिया है; या
- जिस अभियुक्त पर कोई अपराध करने के आरोप में मुकदमा चल रहा हो, उसके निजी चरित्र के बारे में।
ii) अभियुक्त के गिरफ्तार हो जाने तथा उस पर आरोप लग जाने के बाद जब मामला अदालत में चला जाए तो, सावधानी के तौर पर, खोजी पत्रकारिता के परिणामस्वरूप संग्रहीत साक्ष्य को प्रकाशित नहीं करना चाहिए; और उस पर टीका नहीं करनी चाहिए न ही उन्हें अभियुक्त द्वारा कथित इकबाल को प्रकट करना चाहिए, उस पर टीका करनी चाहिए अथवा मूल्यांकन करना चाहिए।
iii) समाचारपत्र, जनहित में किसी न्यायिक क्रिया या किसी अदालत के निर्णय की सार्वजनिक भलाई के लिए न्यायोचित आलोचना तो कर सकते हैं किन्तु वे न्यायाधीश पर कोई अभद्र आक्षेप नहीं करेंगे और न ही अनुचित अभिप्रेरणा अथवा निजी पक्षपात का आरोप लगाएँगे। वे अदालत को या समग्र न्यायपालिका को कलंकित नहीं करेंगे और न ही किसी न्यायाधीश के विरूद्ध योग्यता की अथवा सत्यनिष्ठा की कमी के निजी आरोप लगाएंगे।
iv) सावधानी के तौर पर समाचारपत्र कोई ऐसी अनुचित या अकारण आलोचना नहीं करेंगे जिसके निहित अर्थ से किसी न्यायाधीश पर उसके न्यायिक कार्यों के सामान्य व्यवहार में की गई किसी क्रिया के लिए विषयेतर बातों को ध्यान में रखने का आरोप लगता हो, चाहे वह आलोचना वास्तव में न्यायालय का आपराधिक अवमान न बनती हो ।
अदालत की कार्यवाही से संबंधित समाचार छापना
i) अदालत की कार्यवाही के बारे में समाचार प्रकाशित करने से पहले संवाद्दाता और संपादक के लिए उचित होगा कि रिकार्डों से उसकी वास्तविकता, सत्यता तथा प्रामाणिकता सुनिश्चित कर लें ताकि अदालत की कार्यवाही के बारे में मिथ्या तथ्य तथा गलत जानकारी देने के लिए संबंधित व्यक्ति को दोषी तथा जवाबदेह ठहराया जा सके।
ii) जब अदालती कार्यवाही आम लोगों के लिये खुली हो तथा वहां समाचारपत्र के रिपोर्टर भी उपस्थित हों तो समाचारपत्र को समाचार के प्रकाशन से पूर्व आदेश की प्रमाणित प्रति लेना जरूरी नहीं है।
iii) न्यायालय में सुनवाई के समय की गई टिप्पणियां अक्सर सूचना पाने की कोशिश होती है और वह रिकार्ड किये गये आदेशों का भाग नहीं होता है। अतः, रिपोर्टर को सही समाचार देने के लिये इस अंतर को समझना जरूरी है।
iv) मिडिया को किसी मुकदमे विशेष से संबंधित न्यायाधीशों, वकीलों के नाम नहीं देने चाहिए।
v) न्यायालय के निर्णय की व्याख्या करने के विषय में, समाचारपत्र द्वारा उपयुक्त ढंग से कार्य करने और चुनिंदा उद्धरण न देने की अपेक्षा की जाती है, उनसे यह भी आशा की जाती है कि वे किये गये चयन की स्पष्ट रूप से पहचान बतायें।
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