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शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

समाचार पत्र आंतरिक विवाद: समाचार पत्रों में प्रबंधन - संपादक संबंध |Newspaper internal dispute in Hindi

समाचार पत्र आंतरिक विवाद: समाचार पत्रों में प्रबंधन - संपादक संबंध

समाचार पत्र आंतरिक विवाद: समाचार पत्रों में प्रबंधन - संपादक संबंध |Newspaper internal dispute in Hindi


 

(क) प्रबंधन - संपादक संबंध

 

i) एक ओर संपादक तथा पत्रकार और दूसरी ओर प्रबंधककार्यपालक अथवा प्रशासक के बीच एक स्पष्ट अंतर होता है चाहे किसी समाचारपत्र विशेष में उन्हें कुछ भी नाम दिया जाए। संपादक तथा प्रबंधन के कर्तव्य और उत्तरदायित्व अलग-अलग हैं और पत्र को निकालने के लिए प्रतिष्ठान के कुशल प्रबंध हेतु जो भी समन्वय अपेक्षित होदोनों के काम भिन्न भिन्न हैं और ऐसे ही रहने चाहिएँ ।

 

एक बार मालिक सामान्य मार्गदर्शन के लिए नीति तय कर दे तो उसके बाद संपादक और उसके अधीन काम करने वाले पत्रकारों के दैनंदिन कामकाज में न वह हस्तक्षेप कर सकता है न ही उसकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति ।

 

यह सर्वमान्य है कि प्रेस की स्वतंत्रता मूलतः लोगों की सभी विषयोंसमस्याओं तथा घटनाओं के बारे में सही तथा पर्याप्त जानकारी प्राप्त करने की स्वतंत्रता है। संपादकीय कार्यों के निपादन में संपादक सर्वोच्च हैमालिक से भी ऊपर।

 

समाचारपत्र की स्वतंत्रता मूलतः संपादक की सभी आंतरिक और बाह्य प्रतिबंधों से स्वतंत्रता है। जब तक संपादक को यह स्वतंत्रता नहीं होगी तब तक वह जनता के प्रति अपना प्राथमिक कर्तव्य नहीं निभा पाएगा और इस स्वतंत्रता के बिना उसे समाचारपत्र में प्रकाशित होने वाली हर बात के लिए कानून के सामने उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

 

समाचारपत्र को चलाने में समाचारपत्र के प्रबंधप्रशासन या व्यवसाय पक्ष को उसके संपादकीय पक्ष से स्वतंत्र रखा जाए और उसे संपादन विभाग में हस्तक्षेप करने या दखल देने की अनुमति न दी जाए। यदि मालिक और संपादक एक ही होतब भी यह एहतियात बरतनी होगी । मालिक को चाहिए कि अपने व्यावसायिक हितों या धारणाओं को जनता के प्रति समाचारपत्र के दायित्व पर हावी होने या हस्तक्षेप करने की अनुमित न दे।

 

इसीलिए प्रबंधन पर भी यह दायित्व आता है कि संपादक के रूप में ऐसे व्यक्ति को चुना जाए जो सक्षमईमानदार और स्वतंत्र विचारों वाला हो।

 

अंतिम विश्लेषण में किसी भी व्यवस्था का सफल संचालन प्रबंधनसंपादकसंपादकीय पत्रकारों और समाचारपत्र के प्रकाशन में निष्ठापूर्वक काम करने वाले सभी व्यक्तियों की पारस्परिक समझ बूझसहयोग और सद्भाव पर निर्भर करता है।

 

यदि विभिन्न विभागों के बीचसंपादन सहितसमन्वय स्थापित करने में प्रबंधन द्वारा संपादक की स्वतंत्रता में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न किया जाए कि किन समाचारों या विचारों को शामिल करना अथवा निकालना हैउनकी लंबाई तथा ब्यौरा और भाषा तथा स्थान जहाँ उन्हें छापा जाना है और उन्हें कितनी प्रमुखता दी जानी है तो इस प्रकार की शिकायत आने की कम संभावना है कि उस समन्वय ने संपादक की स्वतंत्रता का उल्लंघन किया है। किंतु यदि सामग्री के चयन के बारे में संपादक के

 

विवेक में किसी प्रकार का हस्तक्षेप किया जाए तो वह निश्चय ही उक्त स्वतंत्रता का अनावश्यक उल्लंघन होगा ।

 

ii) मालिक द्वारा संपादक को कभी भी उसके निजी हितों के लिए काम करने को नहीं कहा जा सकता। संपादक से मालिक के निजी हितों के लिए काम करने की अपेक्षा करना न केवल संपादक के पद के महत्व को कम करना हैबल्कि समाचारपत्र की विषयवस्तु के बारे में समाज के ट्रस्टी के रूप में उसकी प्रतिष्ठा का अतिक्रमण भी है । प्रेस की स्वच्छंदता और स्वतंत्रता का दम भरने वाले किसी भी देश में किसी भी समाचारपत्र के मालिक द्वारा अपने संपादक का प्रयोग अपने निजी हितों को साधने के लिए अपने व्यक्तिगत एजेंट के रूप में करना और उसे उसी उद्देश्य से लिखने तथा काम करने के लिए मजबूर करना आपत्तिजनक भी है और भर्त्सना योग्य भी । कोई भी संपादक या वस्तुतः कोई भी पत्रकार जो ऐसे काम करता है या करने के लिए राज़ी हो जाता है वह न केवल अपनी बल्कि पत्रकारिता के व्यवसाय की भी प्रतिष्ठा कम करता है और वह इस व्यवसाय में रहने के योग्य नहीं है। वह उस विश्वास को झुठलाता है जो निष्पक्षवस्तुनिष्ठ एवं सर्वांगीण समाचार व विचार उपलब्ध कराने के लिए समाज उसमें रखता है।

 

(ख) प्रबंधन बनाम पत्रकार : कार्यात्मक संबंध

 

समाचार प्रबंधन का रिपोर्टर को अपने पत्रकारिता संबंधी दायित्व को निभाने के अतिरिक्त दायित्व के प्रशासनिक / वाणिज्यिक पक्ष को निभाने का निदेश देना अनैतिक अभ्यास है और कार्यात्मक संबध को नष्ट करते हुए पत्रकारों की स्वतंत्रता का अतिक्रमण है।


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