समाचार पत्रों में संपादक की भूमिका और जिम्मेदारी
समाचार पत्रों में संपादक की भूमिका और जिम्मेदारी
i) संपादकीय लिखने के मामले में संपादक को काफ़ी छूट दी गई है और वह अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है। विषय का चुनाव वही करता है और ऐसी भाषा का प्रयोग करता है जो वह उचित समझे, बशर्ते कि संपादकीय लिखते समय वह कानून की सीमा से बाहर न जाए और पत्रकारिता के मानकों का उल्लंघन न करे। समाचारपत्र में प्रकाशित संपादकीय टिप्पणी सौम्य एवं शिष्ट भाषा में होनी चाहिए।
ii) रिपोर्टों / लेखों / पत्रों के रूप में प्रकाशन के लिए सामग्री का चुनाव संपादक के विवेकाधिकार में है, अतः यह देखना उसका कर्तव्य है कि जनहित के किसी विवादास्पद मुद्दे पर सभी विचारों को बराबर प्रमुखता दी जाए ताकि जनता उस मामले में अपनी स्वतंत्र राय बना सके ।
iii) संपादक को चाहिए कि वह समाचार रिपोर्ट / लेख प्रकाशित न करे जिसकी सच्चाई के बारे में उसे शंका हो । यदि समाचार रिपोर्ट / लेख के किसी अंश की सच्चाई संदेहास्पद हो तो वह अंश निकाल कर शेष प्रकाशित कर दिया जाए बशर्ते कि संपादक संतुष्ट हो कि शेष अंश काफ़ी सही है और उसके प्रकाशन से जनता को लाभ होगा।
iv) संपादक को यह निर्णय लेने का विशेषाधिकार होता है कि समाचार पत्र में किन समाचारों को प्रमुखता प्रदान की जाए।
v) 'समाचार रिपोर्ट' और 'ओपीनियन लेख' के बीच स्पष्ट अंतर को ध्यान में रखते हुए. संपादक को लेख का संपादन करने की छूट होती है किंतु यह छूट इतनी नहीं हो सकती कि लेखक से अनुमति लिये बिना ही लेख के महत्वपूर्ण भाग को ही काट दिया जाए या उसका भाव बदल दिया जाए जिससे लेख प्रकाशित करने का भाव, प्रयोजन व अर्थ ही विकृत हो जाए ।
vi)शीर्षकों का निर्धारण पाठकों पर पड़ने वाले तात्कालिक प्रभाव को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक करना चाहिए।
vii) अखबार / अखबारों में छपे सभी तथ्यों के लिए संपादक जिम्मेदार है।
viii) नौकरी/ रोजगार संबंधी विज्ञापन को अपर्याप्त विवरण के साथ प्रकाशित करते समय समाचारपत्र को समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि इससे मानव सौदेबाज़ी की जा सकती है और इसे समुचित जांच के बाद ही प्रकाशित किया जाए।
ix) संपादकीय, संपादकों के दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है जोकि भारत के संविधान के तहत प्रत्याभूत है और इसकी पवित्रता इससे सहमत अथवा असहमत किसी व्यक्ति पर निर्भर नहीं है।
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