राजस्थान के इतिहास में ताम्रपत्र | Rajsthan Ke Itihaas Me Tamra Patara - Daily Hindi Paper | Online GK in Hindi | Civil Services Notes in Hindi

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मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

राजस्थान के इतिहास में ताम्रपत्र | Rajsthan Ke Itihaas Me Tamra Patara

राजस्थान के इतिहास में ताम्रपत्र | Rajsthan Ke Itihaas Me Tamra Patara


राजस्थान के इतिहास में ताम्रपत्र

 

➧ इतिहास के निर्माण में तामपत्रों का महत्वपूर्ण स्थान है। प्राय राजा या ठिकाने के सामन्तों द्वारा ताम्रपत्र दिये जाते थे । 

 ईनाम दान-पुण्यजागीर आदि अनुदानों को ताम्रपत्रों पर खुदवाकर अनुदान प्राप्तकर्ता को दे दिया जाता था जिसे वह अपने पास संभाल कर पीढ़ी-दर-पीढ़ी रख सकता था ।

➧ ताम्रपत्रों में पहले संगत भाषा का प्रयोग किया गया परन्तु बाद में स्थानीय भाषा का प्रयोग किया जाने लगा। 

➧ दानपत्र में राजा अथवा दानदाता का नाम अनुदान पाने वाले का नाम अनुदान देने का कारणअनुदान में दी गई भूमि का विवरण समय तथा अन्य जानकारी का उल्लेख किया जाता था । 

➧ इसलिए दानपत्रों से हमें कई राजनीतिक घटनाओंआर्थिक स्थितिधार्मिक विश्वासोंजातिगत स्थिति आदि के बारे में उपयोगी जानकारी मिलती है। कई बार दान पत्रों से विविध राजवंश के वंश क्रम को निर्धारित करने में सहायता मिलती है। 

➧ आहड के ताम्रपत्र (1206 ई.) में गुजरात के मूलराज से लेकर भीमदेव द्वितीय तक सोलंकी राजाओं की वंशावली दी गई है। इससे यह भी पता चलता है कि भीमदेव के समय में मेवाड़ पर गुजरात का प्रभुत्व था। 


खेरोदा के ताम्रपत्र (1437 ई.) से एकलिंगजी में महाराणा कुम्भा द्वारा दान दिये गये खेतों के आस-पास से गुजरने वाले मुख्य मार्गोउस समय में प्रचलित मुद्रा धार्मिक स्थिति आदि की जानकारी मिलती है। चौकली ताम्रपत्र (1483 ई.) से किसानों से वसूल की जाने वाली विविध लाग-बागों का पता चलता है। 


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➧ पुर के ताम्रपत्र (1535 ई.) से हाडी रानी कर्मावती द्वारा जौहर में प्रवेश करते समय दिये गये भूमि अनुदान की जानकारी मिलती है ।