Daily Current Affairs in Hindi 26 March
ट्यूलिप गार्डन
केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर
स्थित एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप गार्डन को आम जनता और पर्यटकों के लिये खोला गया
है। श्रीनगर के इस ट्यूलिप गार्डन में इस समय विभिन्न रंगों के लाखों ट्यूलिप फूल
मौजूद हैं। विश्व प्रसिद्ध डल झील के किनारों पर ज़बरवान पहाड़ियों की घाटी में
स्थित गार्डन में ट्यूलिप के रंग-बिरंगे
फूलों का इंद्रधनुष लोगों के आकर्षण का केंद्र बना है। कश्मीर के इस प्रतिष्ठित
ट्यूलिप गार्डन में 1.5 मिलियन से अधिक ट्यूलिप पौधे मौजूद हैं। ज़बरवान पहाड़ियों
की तलहटी पर स्थित यह एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन है। ट्यूलिप गार्डन में
इस वर्ष 64 से अधिक किस्में मौजूद हैं। लगभग 30 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इंदिरा
गांधी मेमोरियल ट्यूलिप गार्डन को वर्ष 2007 में कश्मीर घाटी में फूलों की खेती और
पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्थापित गया था। इस गार्डन में ट्यूलिप के
अलावा फूलों की कई अन्य प्रजातियाँ जैसे- जलकुंभी, डैफोडिल्स और रेननकुलस आदि भी मौजूद
हैं। ट्यूलिप उत्सव एक वार्षिक उत्सव है, जिसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर सरकार
द्वारा पर्यटन प्रयासों के एक हिस्से के रूप में बगीचे में फूलों की शृंखला का
प्रदर्शन करना है। यह कश्मीर घाटी में वसंत के मौसम की शुरुआत के दौरान आयोजित
किया जाता है।
यूएस-इंडिया होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग
हाल ही में भारत और अमेरिका ने साइबर सुरक्षा, आधुनिक प्रौद्योगिकी और अतिवाद जैसे मुद्दों
पर केंद्रित ‘यूएस-इंडिया
होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग’ को पुनः शुरू करने की घोषणा की है। ‘यूएस-इंडिया होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग’ ओबामा प्रशासन द्वारा शुरू की गई एक
पहल है और इस प्रकार का पहला डायलॉग मई 2011 में आयोजित किया गया था। वर्ष 2013
में आयोजित दूसरे ‘यूएस-इंडिया होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग’ के बाद से इस प्रकार के मंत्रिस्तरीय
संवाद का आयोजन नहीं किया गया है, हालाँकि संवाद के हिस्से के रूप में स्थापित कार्य समूह विभिन्न
विषयों पर कार्य कर रहे हैं। राष्ट्रपति जो बाइडेन के शासन की शुरुआत के बाद से ही
भारत और अमेरिका के संबंधों में लगातार सकारात्मक वृद्धि देखने को मिल रही है।
ज्ञात हो कि हाल ही में क्वाड देशों (अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया) के पहले शिखर
सम्मेलन का आयोजन किया गया था। उभरती हुई प्रौद्योगिकी पर चार क्वाड देशों के बीच
सहयोग में बढ़ोतरी पहले क्वाड शिखर सम्मेलन का प्राथमिक विषय रहा।
भारतीय तटरक्षक जहाज़ ‘वज्र’
भारतीय तटरक्षक जहाज़ ‘वज्र’ को चेन्नई में औपचारिक रूप से सेवा में
शामिल कर लिया गया है। यह तटरक्षक जहाज़ लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड द्वारा निर्मित
सात ऑफशोर पेट्रोल वेसल (OPV) की शृंखला में छठे स्थान पर है। 98 मीटर के इस तटरक्षक जहाज़ को
अत्याधुनिक नेविगेशन एवं संचार उपकरण, सेंसर और मशीनरी आदि से सुसज्जित किया
गया है। यह जहाज़ अत्याधुनिक सुविधा से सुसज्जित है और इसे एक ट्विन-इंजन
हेलीकॉप्टर तथा चार तीव्र गति वाली नौकाओं को ले जाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
जहाज़ का उपयोग खोज एवं बचाव, कानून प्रवर्तन और समुद्री गश्त में भी किया जा सकता है। यह जहाज़
समुद्र में तेल रिसाव की स्थिति में प्रदूषण प्रतिक्रिया उपकरण ले जाने में भी
सक्षम है। ‘वज्र’ तटरक्षक जहाज़ को मुख्य तौर पर भारतीय
तटीय क्षेत्र में अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) की निगरानी के लिये नियुक्त किया
जाएगा। विदित हो कि अनन्य आर्थिक क्षेत्र, किसी देश की बेसलाइन से 200 नॉटिकल मील
की दूरी तक फैला होता है। इसमें तटीय देशों को सभी प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन का संप्रभु अधिकार
प्राप्त होता है।
डॉ. विवेक मूर्ति
भारतीय मूल के अमेरिकी डॉक्टर विवेक मूर्ति को
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सर्जन जनरल के रूप में नियुक्त किया गया है।
विदित हो कि डॉ. विवेक मूर्ति इससे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल के
दौरान भी सर्जन जनरल का पदभार संभाल चुके हैं, हालाँकि उन्हें वर्ष 2017 में
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान पद से हटा दिया गया था। डॉ. विवेक
मूर्ति पब्लिक हेल्थ सर्विस कमीशन कोर में एक प्रतिष्ठित चिकित्सक और पूर्व वाइस
एडमिरल रह चुके हैं। सर्जन जनरल के रूप में डॉ. विवेक मूर्ति का प्राथमिक कार्य
अमेरिका में कोरोना वायरस महामारी के प्रभाव को सीमित करना होगा। 10 जुलाई, 1977 को हडर्सफील्ड (यॉर्कशायर) में
जन्मे डॉ. मूर्ति का पालन-पोषण फ्लोरिडा के मियामी में हुआ था। इससे पूर्व नवंबर
2020 में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने डॉ. विवेक मूर्ति को अपने कोविड-19 सलाहकार
बोर्ड का सह-अध्यक्ष बनाने की घोषणा की थी।
किशोर न्याय संशोधन विधेयक, 2021
हाल ही में लोकसभा में किशोर न्याय (बच्चों की
देखभाल और संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 [Juvenile Justice (Care and Protection of Children)
Amendment Bill, 2021] पारित
किया गया है जो बच्चों की सुरक्षा और उन्हें गोद लेने के प्रावधानों को मज़बूत करने
और कारगर बनाने का प्रयास करता है।
यह विधेयक किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और
संरक्षण) अधिनियम, 2015
[Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015) में संशोधन करता है। इस विधेयक में उन
बच्चों से संबंधित प्रावधान हैं जिन्होंने कानूनन कोई अपराध किया हो और जिन्हें
देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता हो। विधेयक में बाल संरक्षण को मज़बूती प्रदान करने
के उपाय किये गए हैं।
प्रमुख बिंदु:
संशोधन की आवश्यकता:
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of
Child Rights- NCPCR) द्वारा
वर्ष 2020 में बाल देखभाल संस्थानों (Child Care Institutions- CCIs) का ऑडिट किया गया जिसमें पाया गया कि
वर्ष 2015 के संशोधन के बाद भी 90% बाल देखभाल संस्थानों का संचालन NGOs द्वारा
किया जा रहा है तथा 39% CCI पंजीकृत नहीं थे।
ऑडिट में पाया गया कि लड़कियों हेतु CCI की संख्या 20% से भी कम है जिनमें , 26% बाल कल्याण अधिकारियों की अनुपस्थित
है तथा कुछ राज्यों में लड़कियों हेतु CCI स्थापित
ही नहीं किये गए हैं।
इसके अलावा ⅗ में शौचालय,
1/10 में पीने का
पानी तथा 15% में अलग बिस्तर और डाइट प्लान (Diet Plans) का अभाव पाया गया।
कुछ बाल देखभाल संस्थानों का प्राथमिक लक्ष्य
बच्चों का पुनर्वास न होकर धन प्राप्त करना है क्योंकि इस प्रकार के संस्थानों में
बच्चों को अनुदान प्राप्त करने हेतु रखा जाता है।
प्रस्तावित विधेयक में प्रमुख संशोधन:
गंभीर अपराध: गंभीर अपराधों में वे अपराध भी
शामिल होंगे जिनके लिये सात वर्ष से अधिक के कारावास का प्रावधान है तथा न्यूनतम
सज़ा निर्धारित नहीं की गई है ।
गंभीर अपराध वे हैं जिनके लिये भारतीय दंड
संहिता या किसी अन्य कानून के तहत सज़ा तथा तीन से सात वर्ष के कारावास का प्रावधान
है।
किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) उस बच्चे की छानबीन करेगा जिस पर गंभीर अपराध का आरोप है।
गैर-संज्ञेय अपराध:
एक्ट में प्रावधान है कि जिस अपराध के लिये तीन
से सात वर्ष की जेल की सज़ा हो, वह
संज्ञेय (जिसमें वॉरंट के बिना गिरफ्तारी की अनुमति होती है) और गैर जमानती होगा।
विधेयक इसमें संशोधन करता है और प्रावधान करता
है कि ऐसे अपराध गैर संज्ञेय होंगे।
गोद लेना/एडॉप्शन: एक्ट में भारत और किसी दूसरे
देश के संभावित दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता द्वारा बच्चों को गोद लेने की
प्रक्रिया निर्दिष्ट की गई है। संभावित दत्तक माता-पिता द्वारा बच्चे को स्वीकार
करने के बाद एडॉप्शन एजेंसी सिविल अदालत में एडॉप्शन के आदेश प्राप्त करने के लिये
आवेदन करती है। अदालत के आदेश से यह स्थापित होता है कि बच्चा एडॉप्टिव माता-पिता
का है। बिल में प्रावधान किया गया है कि अदालत के स्थान पर ज़िला मजिस्ट्रेट
(अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट सहित) एडॉप्शन का आदेश जारी करेगा।
अपील: विधेयक में प्रावधान किया गया है कि ज़िला
मजिस्ट्रेट द्वारा पारित गोद लेने/एडॉप्शन के आदेश से असंतुष्ट कोई भी व्यक्ति इस
तरह के आदेश के पारित होने की तारीख से 30
दिनों के भीतर संभागीय आयुक्त के समक्ष अपील दायर कर सकता है।
इस प्रकार की अपीलों को दायर करने की तारीख से
चार सप्ताह के भीतर निपटाया जाना चाहिये।
ज़िला मजिस्ट्रेट के अतिरिक्त कार्यों में शामिल
हैं: (i) ज़िला बाल संरक्षण इकाई की निगरानी
करना (ii) बाल कल्याण समिति के कामकाज की त्रैमासिक समीक्षा करना।
अधिकृत न्यायालय: इस विधेयक में प्रस्ताव किया गया है कि पहले के
अधिनियम के तहत सभी अपराधों को बाल न्यायालय के अंतर्गत शामिल किया जाए।
बाल कल्याण समितियांँ (CWCs): इस अधिनियम में प्रावधान है कि कोई
व्यक्ति CWCs का सदस्य बनने के योग्य नहीं होगा यदि:
उसका मानव अधिकारों या बाल अधिकारों के उल्लंघन
का कोई रिकॉर्ड हो।
अगर उसे नैतिक अधमता (भ्रष्टता) से जुड़े अपराध
हेतु दोषी ठहराया गया हो और उस आरोप को पलटा न गया हो।
उसे केंद्र सरकार या राज्य सरकार या सरकार के
स्वामित्व वाले किसी उपक्रम से हटाया अथवा बर्खास्त किया गया हो।
वह ज़िले के बाल देखभाल संस्थान में प्रबंधन का
एक हिस्सा हो।
सदस्यों को हटाना: समिति के किसी भी सदस्य को
राज्य सरकार की जांँच के बाद हटा दिया जाएगा यदि वह बिना किसी वैध कारण के तीन
महीने तक लगातार CWCs की कार्यवाही में भाग नहीं लेता है या
यदि एक वर्ष के भीतर संपन्न बैठकों में उसकी उपस्थिति तीन-चौथाई से कम रहती है ।
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण)
अधिनियम, 2015
यह अधिनियम किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और
संरक्षण) अधिनियम, 2000 का स्थान लेता है।
शब्दावली में परिवर्तन:
इस अधिनियम में पूर्ववर्ती अधिनियम की शब्दावली
में परिवर्तन करते हुए ‘किशोर’ शब्द को ‘बालक’ अथवा ‘ कानून से संघर्षरत बालक’ के साथ परिवर्तित कर दिया गया है। इसके
अलावा ‘किशोर’ शब्द से जुड़े नकारात्मक अर्थ को भी समाप्त कर दिया गया है।
इसमें कई नई और स्पष्ट परिभाषाएँ भी शामिल हैं
जैसे- अनाथ, परित्यक्त और आत्मसमर्पण करने वाले
बच्चे तथा बच्चों द्वारा किये गए छोटे, गंभीर
एवं जघन्य अपराध।
16-18 की
आयु वर्ग हेतु विशेष प्रावधान:
16-18
वर्ष की आयु समूह में जघन्य अपराध करने वाले बाल अपराधियों से निपटने हेतु विशेष
प्रावधानों को शामिल किया गया है।
जस्टिस बोर्ड हेतु अनिवार्य प्रावधान:
यह विधेयक प्रत्येक ज़िले में किशोर न्याय बोर्ड
और बाल कल्याण समितियों के गठन का प्रावधान करता है। दोनों (किशोर न्याय बोर्ड और
बाल कल्याण समिति) में कम-से-कम एक महिला सदस्य शामिल होनी चाहिये।
दत्तक से संबंधित खंड:
अनाथ, परित्यक्त
और आत्मसमर्पण करने वाले बच्चों हेतु दत्तक/एडॉप्शन प्रक्रियाओं को कारगर बनाने के
लिये दत्तक या प्रक्रियाओं पर एक अलग नया
अध्याय को शामिल किया गया है।
इसके अलावा केंद्रीय 'केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण' (Central Adoption Resource
Authority- CARA) को
एक वैधानिक निकाय का दर्जा प्रदान किया गया है ताकि वह अपने कार्य अधिक प्रभावी
ढंग से कर सके।
अधिनियम में कहा गया है कि बच्चे को गोद लेने
का अदालत का आदेश अंतिम होगा। वर्तमान में विभिन्न अदालतों में 629 दत्तक ग्रहण के मामले लंबित हैं।
बाल देखभाल संस्थान (CCI):
सभी बाल देखभाल संस्थान, चाहे वे राज्य सरकार अथवा स्वैच्छिक या
गैर-सरकारी संगठनों द्वारा संचालित हों, अधिनियम
के लागू होने की तारीख से 6
महीने के भीतर अधिनियम के तहत अनिवार्य
रूप से पंजीकृत होने चाहिये।
राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देख-रेख वृत्ति
आयोग विधेयक, 2020
हाल ही में ‘राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देख-रेख वृत्ति आयोग विधेयक, 2020’ को लोकसभा ने सर्वसम्मति से पारित किया
है।
इस विधेयक का उद्देश्य ‘संबद्ध और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों’ की शिक्षा और कार्यों को विनियमित और
मानकीकृत करना है।
देश में संबद्ध पेशेवरों का बड़ा समूह है और यह
विधेयक उनकी भूमिकाओं को गरिमा प्रदान करके इस क्षेत्र को विनियमित करने का प्रयास
कर रहा है।
प्रमुख बिंदु:
संबद्ध स्वास्थ्य पेशेवर:
यह विधेयक ‘संबद्ध
स्वास्थ्य पेशेवर’ को किसी भी बीमारी, चोट या हानि के निदान और उपचार करने के
लिये एक प्रशिक्षित सहयोगी,
तकनीशियन या प्रौद्योगिकीविद् के रूप
में परिभाषित करता है।
ऐसे पेशेवर के पास डिप्लोमा या डिग्री होनी
चाहिये।
डिग्री/डिप्लोमा की अवधि कम-से-कम 2,000 घंटे (दो से चार वर्ष की अवधि में)
होनी चाहिये।
स्वास्थ्य पेशेवर:
एक ‘स्वास्थ्य
पेशेवर’ की परिभाषा में एक वैज्ञानिक, चिकित्सक या अन्य पेशेवर शामिल होते
हैं, जो अध्ययन, सलाह, शोध, पर्यवेक्षण करते हैं, या निवारक, उपचारात्मक, पुनर्वास, चिकित्सकीय विज्ञापन संबंधी स्वास्थ्य
सेवाएँ प्रदान करते हैं।
ऐसे पेशेवर के पास डिप्लोमा या डिग्री होनी
चाहिये।
इस डिग्री की अवधि कम से कम 3,600 घंटे (तीन से छह वर्ष की अवधि में)
होनी चाहिये।
संबद्ध एवं स्वास्थ्य देख-रेख वृत्ति:
यह विधेयक मान्यता प्राप्त श्रेणियों के रूप
में ‘संबद्ध और स्वास्थ्य व्यवसायों’ की कुछ श्रेणियों को निर्दिष्ट करता
है।
विधेयक की अनुसूची में इसका उल्लेख किया गया
है। इन व्यवसायों में जीवन विज्ञान संबंधी पेशेवर, ट्रॉमा और बर्निंग केयर संबंधी पेशेवर, सर्जिकल और एनेस्थीसिया प्रौद्योगिकी संबंधित पेशेवर, फिज़ियोथेरेपिस्ट और पोषण विज्ञान
संबंधी पेशेवर शामिल हैं।
केंद्र सरकार ‘संबद्ध और स्वास्थ्य पेशेवरों के लिये राष्ट्रीय आयोग’ से परामर्श के बाद इस अनुसूची में
संशोधन कर सकती है।
राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देख-रेख वृत्ति
आयोग: यह विधेयक राष्ट्रीय संबद्ध और स्वास्थ्य देख-रेख वृत्ति आयोग के गठन का
प्रावधान करता है।
संरचना:
इसमें एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, केंद्र सरकार के विभिन्न
विभागों/मंत्रालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले पाँच सदस्य, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय का एक
प्रतिनिधि, विभिन्न चिकित्सा संस्थानों से तीन उप
निदेशक या चिकित्सा अधीक्षक रोटेशनल आधार पर नियुक्त होंगे और अन्य सदस्यों में
राज्य परिषदों का प्रतिनिधित्व करने वाले 12
अंशकालिक सदस्य नियुक्त होंगे।
कार्य: संबद्ध और स्वास्थ्य पेशेवरों के संबंध
में आयोग निम्नलिखित कार्य करेगा:
सभी पंजीकृत पेशेवरों का एक ऑनलाइन केंद्रीय
रजिस्टर बनाना और उसे बनाए रखना।
शिक्षा, पाठ्यक्रम, करिकुलम, स्टाफ योग्यता, परीक्षा, प्रशिक्षण, विभिन्न श्रेणियों के लिये देय अधिकतम
शुल्क के बुनियादी मानकों को तय करना।
पेशेवर परिषद:
यह आयोग संबद्ध और स्वास्थ्य व्यवसायों की हर
मान्यता प्राप्त श्रेणी के लिये एक व्यावसायिक परिषद का गठन करेगा।
व्यावसायिक परिषद में एक अध्यक्ष और चार से
लेकर 24 तक सदस्य होंगे, जो मान्यता प्राप्त श्रेणी में
प्रत्येक व्यवसाय का प्रतिनिधित्व करेंगे।
आयोग अपने किसी भी कार्य को इस परिषद को सौंप
सकता है।
राज्य परिषद:
विधेयक के पारित होने के छह महीने के भीतर
राज्य सरकारें ‘राज्य से संबद्ध स्वास्थ्य परिषद’ का गठन करेंगी।
यह राष्ट्रीय आयोग के कामकाज का पूरक होगा और
राज्य रजिस्टर को बनाए रखेगा।
संस्थानों की स्थापना के लिये अनुमति:
राज्य परिषद की पूर्व अनुमति निम्नलिखित के
लिये आवश्यक होगी:
एक नई संस्था स्थापित करने के लिये।
नए पाठ्यक्रम, प्रवेश क्षमता में वृद्धि या मौजूदा संस्थानों में छात्रों के नए बैच
के प्रवेश हेतु।
यदि अनुमति नहीं ली जाती है, तो ऐसी संस्थाओं से किसी छात्र को दी
गई कोई भी योग्यता (डिग्री,
डिप्लोमा) विधेयक के तहत मान्यता
प्राप्त नहीं होगी।
अपराध और दंड:
राज्य रजिस्टर या राष्ट्रीय रजिस्टर में
नामांकित व्यक्तियों के अलावा किसी को भी एक योग्य सहयोगी और स्वास्थ्य देखभाल
व्यवसायी के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं है।
जो भी व्यक्ति इस प्रावधान का उल्लंघन करेगा, उसे 50,000 रुपए के जुर्माने से दंडित किया जाएगा। ।
भ्रष्टाचार विरोधी रणनीतियाँ
हाल ही में भारत के लोकपाल (Lokpal of India) ने ‘ब्रिंगिंग सिनर्जीज़ इन एंटी-करप्शन स्ट्रेटजीज़’ (Bringing Synergies in
Anti-Corruption Strategy) विषय पर वेबिनार का आयोजन किया।
प्रमुख बिंदु
भ्रष्टाचार को निजी लाभ के लिये शक्ति के
दुरुपयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह देश के विकास को विभिन्न तरीकों
से प्रभावित कर सकता है।
भ्रष्टाचार का प्रभाव:
राजनीतिक लागत: इससे राजनीतिक संस्थानों के
प्रति लोगों के विश्वास और राजनीतिक भागीदारी में कमी, चुनावी प्रक्रिया में विकृति, नागरिकों के लिये उपलब्ध राजनीतिक
विकल्प सीमित हो जाते हैं तथा लोकतांत्रिक प्रणाली की वैधता को हानि होती है।
आर्थिक लागत: भ्रष्टाचार, रेंट सीकिंग (Rent Seeking) गतिविधियों के पक्ष में संसाधनों के
गलत आवंटन और सार्वजनिक लेन-देन की लागत में वृद्धि करता है, साथ ही व्यापार पर एक अतिरिक्त कर के
रूप में कार्य करता है, जिससे निवेश तथा वास्तविक व्यापार
प्रतिस्पर्द्धा में कमी लाकर अंततः आर्थिक
दक्षता को कम करता है।
रेंट सीकिंग
यह सार्वजनिक पसंद के एक सिद्धांत के साथ-साथ
अर्थशास्त्र की एक अवधारणा भी है, जिसके
अंतर्गत नए निवेश के बिना मौजूद संपत्ति को बढ़ाया जाता है।
इसके परिणामस्वरूप संसाधनों की कमी, धनार्जन में कमी, सरकारी राजस्व में कमी, आय में असमानता और संभावित आर्थिक
गिरावट के माध्यम से आर्थिक दक्षता में कमी आती है।
सामाजिक लागत: भ्रष्टाचार मूल्य प्रणालियों को
विकृत करता है और गलत तरीके से उन व्यवसायों को ऊँचा दर्जा देता है जिनके पास रेंट
सीकिंग के अवसर हैं। इससे जनता का एक कमज़ोर नागरिक समाज (Civil Society) से मोहभंग होता है, साथ ही बेईमान राजनीतिक नेता इसकी तरफ
आकर्षित होते हैं।
पर्यावरणीय लागत: पर्यावरणीय रूप से विनाशकारी
परियोजनाओं के वित्तपोषण को प्राथमिकता दी
जाती है, क्योंकि यह सार्वजनिक धन को निजी हित
में उपयोग करने का आसान तरीका है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे: सुरक्षा
एजेंसियों के भीतर भ्रष्टाचार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा बन सकता है, जिसमें धनशोधन, अयोग्य व्यक्तियों की भर्ती, देश में हथियारों और आतंकवादी तत्त्वों
की तस्करी को सुविधा प्रदान करना आदि शामिल हैं।
भ्रष्टाचार से लड़ने के लिये कानूनी ढाँचा:
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act), 1988 में लोक सेवकों द्वारा किये जाने वाले
भ्रष्टाचार के संबंध में दंड का प्रावधान है और उन लोगों के लिये भी जो भ्रष्टाचार
को बढ़ावा देने में शामिल हैं।
वर्ष 2018
में इस अधिनियम में संशोधन किया गया, जिसके
अंतर्गत रिश्वत लेने के साथ ही रिश्वत देने को भी अपराध की श्रेणी के तहत रखा गया।
धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act),
2002 का उद्देश्य
भारत में धन शोधन (Money
Laundering) के
मामलों को रोकना और आपराधिक आय के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
इसमें धन शोधन के अपराध के लिये सख्त सज़ा का प्रावधान है, जिसमें 10 साल तक की कैद और आरोपी व्यक्तियों की संपत्ति की कुर्की (यहाँ तक
कि जाँच के प्रारंभिक चरण में ही) भी शामिल है।
कंपनी अधिनियम (The Companies Act), 2013 कॉर्पोरेट क्षेत्र को स्वनियमन का
अवसर देकर इस क्षेत्र में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की रोकथाम करता है। 'धोखाधड़ी' शब्द की एक व्यापक परिभाषा है, इसे कंपनी अधिनियम के अंतर्गत एक
दंडनीय (Criminal) अपराध माना गया है।
विशेष रूप से धोखाधड़ी से जुड़े मामलों के लिये
भारत सरकार के कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (Ministry of Corporate Affair) के अंतर्गत गंभीर धोखाधड़ी जाँच
कार्यालय (Serious Frauds
Investigation Office) की
स्थापना की गई है, जो
सफेदपोश (White
Collar) और
कंपनियों में अपराधों से निपटने हेतु ज़िम्मेदार है।
SFIO कंपनी
अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत जाँच करता है।
भारतीय दंड संहिता (The Indian Penal Code- IPC), 1860 के अंतर्गत रिश्वत, धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात से
संबंधित मामलों को कवर किया गया है।
विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 व्यक्तियों, संगठनों और कंपनियों को विदेशी योगदान
की मंज़ूरी और उपयोग को विनियमित करता है।
विदेशी योगदान की प्राप्ति के लिये गृह
मंत्रालय का पूर्व अनुमोदन आवश्यक है और इस तरह के अनुमोदन की अनुपस्थिति में विदेशी
योगदान की प्राप्ति को अवैध माना जा सकता है।
नियामक ढाँचा:
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम (The Lokpal and Lokayukta Act), 2013 में केंद्र और राज्य सरकारों के लिये
एक लोकपाल की स्थापना का प्रावधान किया गया है।
इन निकायों को सरकार से स्वतंत्र रूप से कार्य
करने की आवश्यकता है जिसके लिये इसे लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की
जाँच करने का अधिकार दिया गया है, इसमें
प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्री भी शामिल हैं।
हालाँकि केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) को सरकार ने फरवरी 1964 में स्थापित किया था जिसे बाद में
संसद द्वारा अधिनियमित केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 द्वारा सांविधिक दर्जा प्रदान किया
गया।
यह योग भ्रष्टाचार या कार्यालय के दुरुपयोग से
संबंधित शिकायतें सुनता है और इस दिशा में उपयुक्त कार्रवाई की सिफारिश करता है।
लोकपाल और लोकायुक्त
लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013 ने संघ (केंद्र) के लिये लोकपाल और
राज्यों के लिये लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की है।
इस अधिनियम को वर्ष 2013 में संसद के दोनों सदनों ने पारित
किया, जो 16 जनवरी,
2014 को लागू हुआ।
ये संस्थाएँ बिना किसी संवैधानिक दर्जे वाले
वैधानिक निकाय हैं।
ये "लोकपाल" (Ombudsman) का कार्य करते हैं और कुछ निश्चित
श्रेणी के सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करते
हैं।
लोकपाल एवं लोकायुक्त शब्द प्रख्यात विधिवेत्ता
डॉ. एल.एम. सिंघवी ने पेश किया।
संरचना:
लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसका गठन एक
चेयरपर्सन और अधिकतम 8 सदस्यों से हुआ है।
आठ अधिकतम सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य
तथा न्यूनतम 50 प्रतिशत सदस्य अनु. जाति/अनु.
जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और महिला श्रेणी से होने चाहिये।
लोकपाल संस्था का चेयरपर्सन या तो भारत का
पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या असंदिग्ध
सत्यनिष्ठा व उत्कृष्ट योग्यता वाला प्रख्यात व्यक्ति होना चाहिये।
लोकपाल संस्था के चेयरपर्सन और सदस्यों का
कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक होता है।
लोकपाल के क्षेत्राधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य,
समूह ए, बी, सी और डी अधिकारी तथा केंद्र सरकार के
अधिकारी शामिल हैं।
लोकपाल का क्षेत्राधिकार प्रधानमंत्री पर केवल
भ्रष्टाचार के उन आरोपों तक सीमित रहेगा जो कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, सुरक्षा, लोक व्यवस्था,
परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबद्ध न
हों।
संसद में कही गई किसी बात या दिये गए वोट के
मामले में मंत्रियों या सांसदों पर लोकपाल का क्षेत्राधिकार नहीं होगा।
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