Daily Current Affair in Hindi 19 March 2021
भारत-कुवैत संयुक्त आयोग
- भारत और कुवैत ने हाल ही में ऊर्जा एवं रक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में अपने संबंधों को और अधिक मज़बूत करने तथा भविष्य में सहयोग बढ़ाने के लिये रुपरेखा तैयार करने हेतु संयुक्त आयोग के गठन की घोषणा की है। इस संयुक्त आयोग की सह-अध्यक्षता दोनों देशों के विदेश मंत्रियों द्वारा की जाएगी। भारत, कुवैत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है और वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान दोनों देशों के बीच कुल 10.86 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। मुख्य रूप से भारत का तेल आयात इस अवधि में 9.6 बिलियन डॉलर का था। कुवैत वर्ष 2019-20 के दौरान भारत का 10वाँ सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्त्ता था और भारत की कुल ऊर्जा ज़रूरतों का 3.8 प्रतिशत हिस्सा कुवैत पूरा करता था। कुवैत लगभग 9,00,000 भारतीय प्रवासियों का घर भी है। यह संयुक्त आयोग सभी द्विपक्षीय संस्थागत सहभागिताओं जैसे- विदेशी कार्यालय परामर्श और संयुक्त कार्य समूहों आदि के लिये एक अम्ब्रेला इंस्टीट्यूशन के रूप में कार्य करेगा। यह संयुक्त आयोग ऊर्जा, व्यापार, निवेश, कौशल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आईटी, स्वास्थ्य एवं शिक्षा आदि क्षेत्रों में संबंधों को मज़बूत करने का कार्य करेगा। इसके अलावा यह संयुक्त आयोग दोनों देशों के मौजूदा द्विपक्षीय समझौतों की भी समीक्षा करेगा और उनके कार्यान्वयन में मौजूद बाधाओं की पहचान कर समाधान खोजेगा।
क्या है - सही दिशा अभियान
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने ग्रामीण भारत में महिलाओं की आजीविका और उद्यमिता से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये 'सही दिशा' अभियान की शुरुआत की है। यह अभियान उन मुद्दों और बाधाओं को रेखांकित करता है, जो ग्रामीण भारत में महिलाओं के रोज़गार एवं आजीविका तक पहुँचने के अवसरों को प्रभावित करते हैं और बाधा उत्पन्न करते हैं। इसके तहत ऐसे उद्यम स्थापित करने पर ज़ोर दिया जाएगा, जो महिलाओं को अधिक आत्मनिर्भर बनने में मदद कर सकें। ‘सही दिशा’ अभियान संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ‘IKEA फाउंडेशन’ के बीच पाँच साल का सहयोग है और देश के पाँच राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों यथा- दिल्ली, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना में कौशल एवं परामर्श सेवाओं के माध्यम से तकरीबन दस लाख महिलाओं को रोज़गार और आजीविका के अवसरों तक पहुँच प्राप्त करने में सक्षम बनाएगा। UNDP संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक विकास का एक नेटवर्क है। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है UNDP गरीबी उन्मूलन, असमानता को कम करने हेतु लगभग 70 देशों में कार्य करता है।
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन
- हाल ही में इटली, संशोधित आईएसए फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर कर अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का हिस्सा बन गया है। ज्ञात हो कि आईएसए के फ्रेमवर्क समझौते में किये गए हालिया संशोधन के लागू होने के बाद अब संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं। ISA भारत के प्रधानमंत्री और फ्राँस के राष्ट्रपति द्वारा 30 नवंबर, 2015 को फ्राँस की राजधानी पेरिस में आयोजित कोप-21 (COP21) के दौरान शुरू की गई पहल है। ISA का उद्देश्य सदस्य देशों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख चुनौतियों का साथ मिलकर समाधान निकालना है। ISA को वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में कार्य करने वाला एक प्रमुख संगठन माना जाता है। इसका मुख्यालय गुरुग्राम (हरियाणा) में स्थित है। सौर ऊर्जा की वैश्विक मांग को समेकित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, सौर क्षमता से समृद्ध देशों को एक साथ लाता है।
डिजिटल ग्रीन सर्टिफिकेट क्या है
- हाल ही में यूरोपीय आयोग ने कोरोना वायरस महामारी के बीच यूरोपीय संघ (EU) के भीतर नागरिकों के सुरक्षित एवं मुक्त आवागमन के लिये एक डिजिटल ग्रीन सर्टिफिकेट का प्रस्ताव रखा है। डिजिटल ग्रीन सर्टिफिकेट इस तथ्य का प्रमाण होगा कि व्यक्ति को या तो कोरोना वायरस वैक्सीन लगाई जा चुकी है, या उसकी परीक्षण रिपोर्ट नकारात्मक है या वह कोरोना वायरस से रिकवरी कर चुका है। इस सर्टिफिकेट की मुख्य विशेषता यह है कि यह सर्टिफिकेट पूर्णतः डिजिटल रूप में होगा और इसे निःशुल्क प्राप्त किया जा सकेगा। यह सर्टिफिकेट अस्पतालों, परीक्षण केंद्रों और स्वास्थ्य अधिकारियों समेत सभी सक्षम प्राधिकारियों द्वारा जारी किया जा सकेगा। यूरोपीय संघ के सभी नागरिक और किसी अन्य देश के नागरिक जो कानूनी रूप से यूरोपीय संघ में रह रहे हैं, इस डिजिटल सर्टिफिकेट का उपयोग करने में सक्षम होंगे तथा उन्हें स्वतंत्र आवागमन से संबंधित प्रतिबंधों में छूट मिल सकेगी।
ब्रह्मोस मिसाइल का निर्यात
- हाल ही में भारत और फिलीपींस के मध्य ‘रक्षा सामग्री और उपकरणों की खरीद’ हेतु ‘क्रियान्वयन समझौते’ (Implementing Arrangement) पर हस्ताक्षर किये गए हैं। यह समझौता दोनों देशों के मध्य ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल के भावी निर्यात हेतु आवश्यक आधार प्रदान करता है।
- इसके अलावा भारत द्वारा कई देशों जैसे- वियतनाम, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका आदि के साथ ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली की बिक्री हेतु उच्च स्तरीय वार्ता की जा रही है।
- भारत द्वारा विश्व के अन्य देशों को ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली का निर्यात किया जाना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह वैश्विक स्तर पर रक्षा निर्यातक के रूप में भारत की विश्वसनीयता को बढ़ाएगा तथा वर्ष 2025 तक रक्षा निर्यात में 5 बिलियन डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा। इसके अलावा एक क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में यह भारत की स्थिति को और मज़बूत करेगा। हालाँकि, इस प्रणाली के निर्यात में कई प्रकार की चुनौतियाँ भी मौजूद हैं।
ब्रह्मोस मिसाइल के बारे में:
- 1990 के दशक के अंत में ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल प्रणाली का अनुसंधान और विकास का कार्य शुरू हुआ।
- इसे ब्रह्मोस एयरोस्पेस लिमिटेड (BrahMos Aerospace Limited) द्वारा रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation) तथा रूस के सैन्य औद्योगिक कंसोर्टियम एनपीओ मशिनोस्ट्रोयेनिया के संयुक्त उद्यम के रूप में विकसित किया गया है ।
- यह सेना में शामिल होने वाली पहली सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है।
- इसकी गति 2.8 मैक (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) तथा इसकी रेंज 290 किमी. है (इसके नए संस्करण की रेंज 400 किमी. तक है) अर्थात् यह 290 किमी. की दूरी तक लक्ष्य भेदने में सक्षम है।
- ब्रह्मोस की तीव्र गति के कारण सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों द्वारा इसे बाधित करना वायु रक्षा प्रणालियों के लिये मुश्किल होगा।
- ब्रह्मोस के नौसैनिक और भूमि संस्करण को क्रमशः वर्ष 2005 में भारतीय नौसेना और वर्ष 2007 में भारतीय सेना द्वारा सेवा में शामिल किया जा चुका है।
- इसी क्रम में भारतीय वायु सेना द्वारा नवंबर 2017 में अपने सुखोई-30 एमकेआई फाइटर जेट से इस मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया, जिससे तीनों क्षेत्रों (जल, थल, वायु) में इस मिसाइल ने अपने प्रभावशालिता साबित कर दिया ली है।
- इसके अलावा इस मिसाइल की गति और रेंज को बढ़ाने का प्रयास चल रहा है, जिसमें इसकी गति को हाइपरसोनिक गति (मैक 5 या उससे ऊपर) और 1,500 किमी. की अधिकतम रेंज को प्राप्त करने का लक्ष्य है।
- ब्रह्मोस की यह उन्नत और शक्तिशाली क्षमता न केवल भारतीय सेना की क्षमता में वृद्धि करेगी, बल्कि अन्य देशों के लिये भी इसे खरीदने हेतु एक उच्च वांछनीय उत्पाद बनाती है।
ब्रह्मोस के निर्यात का महत्त्व:
- इसके अलावा भारत द्वारा चीन को प्रतिसंतुलित करने हेतु अमेरिका, जापान और आसियान देशों के साथ अपने रक्षा संबंधों को मज़बूत बनाया गया है।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में मज़बूत उपस्थिति: इसका अर्थ है कि फिलीपींस, ब्रह्मोस का आयात करने वाला पहला देश बन जाएगा, जो इंडो-पैसिफिक में व्यापक और परिणामी साबित होगा।
- चीन की सैन्य हठधर्मिता से निपटना: फिलीपींस और वियतनाम जैसे आसियान देशों को ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली बेचने का भारत का निर्णय उसके पड़ोस में चीन की बढ़ती सैन्य मुखरता के बारे में चिंताओं को दर्शाता है।
- इसके अलावा भारत, चीन को उसी की भाषा में जवाब देने की कोशिश करता है, क्योंकि चीन भारत के कट्टर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को सैन्य सहायता प्रदान करता है।
- भारत की भू-राजनीतिक सीमा का विस्तार: ब्रह्मोस का निर्यात भारत की अर्थव्यस्था को मज़बूती प्रदान करेगा, यह भारत को एक कठोर एवं मज़बूत शक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक होगा तथा इंडो-पैसिफिक देशों के मध्य एक मज़बूत आधार प्रदान करेगा जिस पर वे अपनी संप्रभुता और क्षेत्र की रक्षा करने हेतु विश्वास कर सकते हैं।
- आयातक से निर्यातक में परिवर्तित: सुपरसोनिक ब्रह्मोस मिसाइल बेचने से भारत की स्थिति में बदलाव आएगा कि जो अब तक विश्व के सबसे बड़े हथियार आयातक देशों में शामिल था, खुद एक प्रमुख रक्षा निर्यातक देश के रूप में स्थापित होगा।
- इसके अलावा यह देश को रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में 'आत्मनिर्भर' बनाने में मदद करेगा, साझेदारों को मज़बूती प्रदान करेगा तथा राजस्व प्राप्ति के लक्ष्य को बढ़ाएगा।
- वर्तमान परिदृश्य में वर्ष 2016-20 के दौरान वैश्विक स्तर पर हथियारों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 0.2% थी, जो वैश्विक स्तर पर भारत को प्रमुख हथियारों के मामले में 24वाँ सबसे बड़ा निर्यातक देश बनाता है।
ब्रह्मोस के निर्यात से संबंधित चुनौतियाँ:
- CAATSA: ब्रह्मोस का निर्यात अमेरिका द्वारा प्रतिद्वंद्वियों के विरोध हेतु बनाए गए दंडात्मक अधिनियम (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act-CAATSA) के प्रावधानों के अधीन है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका जो कि भारत का एक प्रमुख रक्षा भागीदार है, ने इस बात पर अस्पष्टता बनाए रखी है कि क्या CAATSA के प्रावधान भारत द्वारा एस-400 के अधिग्रहण, एके-203 असॉल्ट राइफल के अधिकृत उत्पादन और ब्रह्मोस के निर्यात पर लागू होंगे अथवा नहीं।
- अब तक तुर्की और चीन को रूस से एस-400 ट्रायम्फ नामक वायु रक्षा प्रणाली खरीदने के लिये CAATSA के तहत दंडित किया जा चुका है।
- एनपीओ मशिनोस्ट्रोएनिया सूचीबद्ध रूसी संस्थाओं में से एक है जिसके द्वारा ब्रह्मोस में प्रयुक्त होने वाले 65% घटक, जिसमें रैमजेट इंजन और रडार आदि शामिल हैं।
- इस तरह यदि भारत ब्रह्मोस का निर्यात करता है तो प्रतिबंध लगाए जाने की प्रबल संभावना है।
- रूस-चीन रक्षा सहयोग: क्रीमिया के अधिग्रहण के बाद रूस द्वारा चीन के साथ संबंध सुधारने की काफी कोशिश की गई है।
- रूस वर्तमान में चीन को सामरिक महत्त्व की अन्य संयुक्त परियोजनाओं के साथ एक मिसाइल अटैक वार्निंग सिस्टम (Missile-Attack Warning System) के विकास में मदद कर रहा है जो केवल रूस और अमेरिका के पास है।
- इस प्रकार रूस-चीन रणनीतिक संबंध ब्रह्मोस मिसाइल के निर्यात में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं।
- वित्तपोषण: कोविड-19 महामारी से प्रभावित कई देश जो ब्रह्मोस में रुचि रखते हैं, उनके लिये इसकी खरीद करना मुश्किल होगा।
एडी
विनियोग विधेयक क्या है
- विनियोग विधेयक सरकार को किसी वित्तीय वर्ष के दौरान व्यय की पूर्ति के लिये भारत की संचित निधि से धनराशि निकालने की शक्ति देता है।
- संविधान के अनुच्छेद-114 के अनुसार, सरकार संसद से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ही संचित निधि से धन निकाल सकती है।
- निकाली गई धनराशि का उपयोग वित्तीय वर्ष के दौरान खर्च को पूरा करने के लिये किया जाता है।
अनुसरित प्रक्रिया:
- विनियोग विधेयक लोकसभा में बजट प्रस्तावों और अनुदानों की मांगों पर चर्चा के बाद पेश किया जाता है।
- संसदीय वोटिंग में विनियोग विधेयक के पारित न होने से सरकार को इस्तीफा देना होगा तथा आम चुनाव कराना होगा।
- एक बार जब यह लोकसभा द्वारा पारित हो जाता है, तो इसे राज्यसभा में भेज दिया जाता है।
राज्यसभा की शक्तियाँ:
- राज्यसभा को इस विधेयक में संशोधन की सिफारिश करने की शक्ति प्राप्त है। हालाँकि राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार करना या अस्वीकार करना लोकसभा का विशेषाधिकार है।
- राष्ट्रपति से विधेयक को स्वीकृति मिलने के बाद यह विनियोग अधिनियम बन जाता है।
- विनियोग विधेयक की अनूठी विशेषता इसका स्वत: निरसन है, जिससे यह अधिनियम अपने वैधानिक उद्देश्य को पूरा करने के बाद अपने आप निरस्त हो जाता है।
- सरकार विनियोग विधेयक के अधिनियमित होने तक भारत की संचित निधि से धनराशि नहीं निकाल सकती है। हालाँकि इसमें समय लगता है और सरकार को अपनी सामान्य गतिविधियों के संचालन के लिये धन की आवश्यकता होती है। अतः अपने तत्काल व्ययों को पूरा करने के लिये संविधान ने लोकसभा को वित्तीय वर्ष के एक भाग के लिये अग्रिम रूप से अनुदान प्रदान करने हेतु अधिकृत किया है। इस प्रावधान को 'लेखानुदान' के रूप में जाना जाता है।
लेखानुदान:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 116 के अनुसार, लेखानुदान केंद्र सरकार के लिये अग्रिम अनुदान के रूप में है, इसे भारत की संचित निधि से अल्पकालिक व्यय की आवश्यकता को पूरा करने के लिये प्रदान किया जाता है और आमतौर पर नए वित्तीय वर्ष के कुछ शुरुआती महीनों के लिये जारी किया जाता है।
आवश्यकता:
- एक चुनावी वर्ष के दौरान सरकार या तो अंतरिम बजट ’या ‘लेखानुदान’ को ही जारी करती है क्योंकि चुनाव के बाद नई सरकार पुरानी सरकार की नीतियों को बदल सकती है।
संशोधन:
- किसी विनियोग विधेयक की राशि में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने अथवा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की राशि में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, संसद के सदन में प्रख्यापित नहीं किया जा सकता है और ऐसे संशोधन की स्वीकार्यता के संबंध में लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है।
विनियोग विधेयक बनाम वित्त विधेयक:
- वित्त विधेयक में सरकार के व्यय के वित्तपोषण संबंधी प्रावधान हैं, जबकि एक विनियोग विधेयक में धन निकासी की मात्रा और उद्देश्य को निर्दिष्ट किया गया है।
- विनियोग और वित्त विधेयक दोनों को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसे राज्यसभा की स्पष्ट सहमति की आवश्यकता नहीं होती है। राज्यसभा इस पर केवल चर्चा करके इसे लौटा देती है।
धन विधेयक क्या है
- एक विधेयक को उस स्थिति में धन विधेयक कहा जाता है यदि इसमें केवल कराधान, सरकार द्वारा धन उधार लेने, भारत की संचित निधि से धनराशि प्राप्त करने से संबंधित प्रावधान हैं।
- वे विधेयक जिनमें केवल ऐसे प्रावधान हैं जो उपर्युक्त मामलों से संबंधित हैं, उन्हें ही धन विधेयक माना जाएगा।
भारत की संचित निधि:
इसकी स्थापना भारत के संविधान के अनुच्छेद 266 (1) के तहत की गई थी।
इसमें समाहित हैं:
- करों के माध्यम से केंद्र को प्राप्त सभी राजस्व (आयकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और अन्य प्राप्तियाँ) तथा सभी गैर-कर राजस्व।
- सार्वजनिक अधिसूचना, ट्रेज़री बिल (आंतरिक ऋण) और विदेशी सरकारों तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों (बाहरी ऋण) के माध्यम से केंद्र द्वारा लिये गए सभी ऋण।
- सभी सरकारी व्यय इसी निधि से पूरे किये जाते हैं (असाधारण मदों को छोड़कर जो लोक लेखा निधि या सार्वजनिक निधि से संबंधित हैं) और संसद के प्राधिकरण के बिना निधि से कोई राशि नहीं निकाली जा सकती।
- भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) इस निधि का लेखा परीक्षण करते हैं।
संसद में बजट की विभिन्न अवस्थाएँ:
अनुदान की मांगों पर मतदान।
विनियोग विधेयक पारित करना।
वित्त विधेयक पारित करना।
विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट- 2020
- हाल ही में स्विस संगठन IQAir द्वारा तैयार की गई विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट (World Air Quality Report) में उल्लेख किया गया है कि विश्व के शीर्ष 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में हैं।
- इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिये 106 देशों से PM2.5 डेटा एकत्र किया।
PM2.5
- PM2.5, 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास का एक वायुमंडलीय कण होता है, जो कि मानव बाल के व्यास का लगभग 3% होता है।
- यह श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है और हमारे देखने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। साथ ही यह डायबिटीज़ का भी एक कारण होता है।
- यह इतना छोटा होता है कि इसे केवल इलेक्ट्रॉन को माइक्रोस्कोप की मदद से ही देखा जा सकता है।
- यह कण निर्माण स्थल, कच्ची सड़कें, खेत आदि जैसे कुछ स्रोतों से सीधे उत्सर्जित होते हैं।
- अधिकांश कण वातावरण में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप बनते हैं, जो बिजली संयंत्रों, उद्योगों और ऑटोमोबाइल से निकलने वाले प्रदूषक हैं।
प्रमुख बिंदु
देशों की राजधानियों की रैंकिंग:
दिल्ली को विश्व का सबसे प्रदूषित राजधानी शहर
के रूप में स्थान दिया गया है, इसके
बाद क्रमशः ढाका (बांग्लादेश), उलानबटार, (मंगोलिया), काबुल (अफगानिस्तान) और दोहा (कतर) का
स्थान है।
देशों की रैंकिंग:
बांग्लादेश को पाकिस्तान और भारत के बाद सबसे
प्रदूषित देश का दर्जा दिया गया है।
सबसे कम प्रदूषित देश प्यूर्टो रिको है, उसके बाद क्रमशः न्यू कैलेडोनिया और
अमेरिकी वर्जिन आइलैंड हैं।
विश्व के शहरों की रैंकिंग:
चीन का होटन (Hotan) शहर विश्व का सबसे प्रदूषित (110.2 µg/m³) शहर है, उसके बाद उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद
ज़िला (106 µg/m³) है।
भारतीय परिदृश्य:
- दिल्ली की वायु गुणवत्ता में वर्ष 2019-2020 के दौरान लगभग 15% की वृद्धि हुई है।
- दिल्ली को 10वें सबसे प्रदूषित शहर और विश्व के शीर्ष प्रदूषित राजधानी शहर के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- गाजियाबाद विश्व का दूसरा और भारत का पहला सबसे प्रदूषित शहर है, इसके बाद बुलंदशहर, बिसरख जलालपुर, भिवाड़ी, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, कानपुर और लखनऊ का स्थान है।
- वर्ष 2020 के अधिकांश दिनों में उत्तर भारतीय शहरों की तुलना में दक्कन के शहरों में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की दैनिक सीमा 25 µg/m3 से अपेक्षाकृत बेहतर वायु गुणवत्ता दर्ज की गई है।
- हालाँकि भारत के प्रत्येक शहर में वर्ष 2018 और इसके पहले की तुलना में वायु गुणवत्ता में सुधार देखा गया, जबकि 63% शहरों में वर्ष 2019 की तुलना में प्रत्यक्ष सुधार देखा गया।
- भारत में वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में परिवहन, खाना पकाने के लिये बायोमास जलाना, बिजली उत्पादन, उद्योग, निर्माण, कृषि अपशिष्ट जलाना आदि शामिल हैं।
- वर्ष 2020 में बड़े पैमाने पर कृषि अपशिष्ट जलाए गए, इसके अंतर्गत किसानों द्वारा फसल की कटाई के बाद बचे फसल अवशेषों में आग लगा दी जाती है। पंजाब में इस प्रकार की घटना वर्ष 2019 में 46.5% तक बढ़ गई।
कोविड और इसका प्रभाव:
- वर्ष 2020 में कण-प्रदूषण के संपर्क में आने से कोविड-19 के प्रसार ने नई चिंताओं को जन्म दिया, जो वायरस के प्रति संवेदनशीलता और स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को बढ़ाता है।
- प्रारंभिक रिपोर्टों से पता चला है कि कोविड-19 से और वायु प्रदूषण जोखिम के कारण मृत्यु का अनुपात 7% से 33% तक है।
दिल्ली में वायु प्रदूषण
- दिल्ली-एनसीआर और गंगा के मैदानों में वायु प्रदूषण एक जटिल घटना है जो कई कारकों पर निर्भर है।
पवन की दिशा में परिवर्तन:
- उत्तर-पश्चिम भारत में अक्तूबर माह में मानसून (Monsoon) की वापसी शुरू हो जाती है और हवाओं की दिशा उत्तर-पूर्व की तरफ होती है।
- ये हवाएँ अपने साथ उत्तरी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से धूल लेकर आती हैं।
हवा की गति में कमी:
- उच्च गति वाली हवाएँ प्रदूषकों को हटाने में बहुत प्रभावी होती हैं, लेकिन सर्दियों में ग्रीष्मकाल की तुलना में हवा की गति में गिरावट आ जाती है जिससे यह क्षेत्र प्रदूषण का शिकार हो जाता है।
- दिल्ली चारों तरफ से भू-भाग से घिरा है और इसे देश के पूर्वी, पश्चिमी या दक्षिणी हिस्से के खुले मौसम का लाभ नहीं मिल पाता है।
पराली दहन:
- पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में जलने वाले कृषि अपशिष्ट को सर्दियों के दौरान दिल्ली में धुंध का एक प्रमुख कारण माना जाता है।
- इससे वायुमंडल में बड़ी मात्रा में ज़हरीले प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है, जिनमें मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें शामिल हैं।
- वर्षों से धान के ठूँठ/कृषि अपशिष्ट को खेत से हटाने या साफ करने के लिये उसमें आग लगाने की विधि को अन्य निपटान के तरीकों से आसान और सस्ता माना जाता रहा है।
वाहन प्रदूषण:
- वाहन दिल्ली की हवा की गुणवत्ता को सर्दियों में खराब करने वाला सबसे बड़े कारण हैं, ये इस क्षेत्र में कुल PM2.5 कणों के लगभग 20% उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
धूल के तूफान:
- खाड़ी देशों से आने वाले धूल के तूफान यहाँ की पहले से ही खराब स्थिति को और बढ़ा देते हैं। बारिश के दिनों में विशेषकर अक्तूबर और जून के बीच नहीं दिखने वाला धूल का प्रकोप शुष्क ठंडे मौसम में प्रभावी हो जाता है।
- धूल प्रदूषण, PM10 और PM2.5 कणों के लिये लगभग 56% तक ज़िम्मेदार है।
तापमान में कमी:
- वायु की दिशा में परिवर्तन के साथ-साथ तापमान में गिरावट भी प्रदूषण के बढ़ते स्तर का एक प्रमुख कारक है। जैसे ही तापमान बढ़ता है, प्रतिलोम ऊँचाई (वह परत जिसके ऊपर प्रदूषक वायुमंडल में फैल नहीं सकते) कम हो जाती है और ऐसा होने पर हवा में प्रदूषकों की सांद्रता बढ़ जाती है।
पटाखे:
- पटाखों के बिक्री पर प्रतिबंध के बावजूद इनका इस्तेमाल दिवाली पर होना एक आम बात है। हालाँकि यह वायु प्रदूषण का प्रमुख कारक नहीं है, लेकिन इसे बढ़ाने में निश्चित रूप से योगदान करता है।
निर्माण गतिविधियाँ और खुले में अपशिष्ट को
जलाना:
- दिल्ली-एनसीआर में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हवा में धूल और प्रदूषण बढ़ने का एक अन्य प्रमुख कारण है। दिल्ली में कचरे के लैंडफिल साइटों में कचरे को जलाना भी वायु प्रदूषण को बढ़ता है।
उठाए गए प्रमुख कदम
टर्बो हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-
- यह ट्रैक्टर के साथ लगाई जाने वाली एक प्रकार की मशीन होती है जो फसल के अवशेषों को उनकी जड़ समेत उखाड़ फेंकती है) खरीदने के लिये किसानों को सब्सिडी दी गई।
- वाहनों से होने वाले प्रदूषण कम करने के लिये BS-VI वाहनों की शुरुआत करना, इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा, एक आपातकालीन उपाय के रूप में ऑड-ईवन का प्रयोग, पूर्वी एवं पश्चिमी परिधीय एक्सप्रेस-वे का निर्माण आदि।
- राजधानी में बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिये ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (Graded Response Action Plan) का कार्यान्वयन। इसमें थर्मल पावर प्लांट बंद करने और निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने जैसे उपाय शामिल हैं।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) के तत्त्वावधान में सार्वजनिक सूचना के लिये राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (NAQI) का विकास। इस सूचकांक के अंतर्गत 8 वायु प्रदूषकों (PM2.5, PM10, अमोनिया, लेड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओज़ोन और कार्बन मोनोऑक्साइड) को शामिल किया गया है।
उड़ान 4.1 क्या है
आज़ादी का अमृत महोत्सव’ (भारत@75) की शुरुआत के अवसर पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) ने उड़ान 4.1 योजना के तहत लगभग 392 मार्गों को प्रस्तावित किया है।
उड़ान 4.1 के बारे में जानकारी
- उड़ान 4.1 मुख्यतः छोटे हवाई अड्डों, विशेष तौर पर हेलीकॉप्टर और सी-प्लेन मार्गों को जोड़ने पर केंद्रित है।
- सागरमाला विमान सेवा के तहत कुछ नए मार्ग प्रस्तावित किये गए हैं।
- सागरमाला सी-प्लेन सेवा संभावित एयरलाइन ऑपरेटरों के साथ पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के तहत एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसे अक्तूबर 2020 में शुरू किया गया था।
उड़ान योजना क्या है
- ‘उड़े देश का आम नागरिक’ (उड़ान) योजना को वर्ष 2016 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत एक क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना के रूप में लॉन्च किया गया था।
- उड़ान योजना देश में क्षेत्रीय विमानन बाज़ार विकसित करने की दिशा में एक नवोन्मेषी कदम है।
- इस योजना का उद्देश्य क्षेत्रीय मार्गों पर किफायती तथा आर्थिक रूप से व्यवहार्य और लाभदायक उड़ानों की शुरुआत करना है, ताकि छोटे शहरों में भी आम आदमी के लिये सस्ती उड़ानें शुरू की जा सकें।
- यह योजना मौजूदा हवाई-पट्टी और हवाई अड्डों के पुनरुद्धार के माध्यम से देश के गैर-सेवारत और कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डों को कनेक्टिविटी प्रदान करने की परिकल्पना करती है। यह योजना 10 वर्षों की अवधि के लिये संचालित की जाएगी।
- कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डे वे हैं, जहाँ एक दिन में एक से अधिक उड़ान नहीं भरी जाती, जबकि गैर-सेवारत हवाई अड्डे वे हैं जहाँ से कोई भी उड़ान नहीं भारी जाती है।
- चयनित एयरलाइन्स को केंद्र, राज्य सरकारों और हवाई अड्डा संचालकों द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है, ताकि वे गैर-सेवारत और कम उपयोग होने वाले हवाई अड्डों पर सस्ती उड़ानें उपलब्ध करा सकें।
- अब तक उड़ान योजना के तहत 5 हेलीपोर्ट्स और 2 वाटर एयरोड्रोम सहित 325 मार्गों एवं 56 हवाई अड्डों का परिचालन सुनिश्चित किया गया है।
उड़ान 1.0 क्या है
- इस चरण के तहत 5 एयरलाइन कंपनियों को 70 हवाई अड्डों (36 नए बनाए गए परिचालन हवाई अड्डों सहित) के लिये 128 उड़ान मार्ग प्रदान किये गए।
उड़ान 2.0
- वर्ष 2018 में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने 73 ऐसे हवाई अड्डों की घोषणा की, जहाँ कोई सेवा नहीं प्रदान की गई थी या उनके द्वारा की गई सेवा बहुत कम थी।
- उड़ान योजना के दूसरे चरण के तहत पहली बार हेलीपैड भी योजना से जोड़े गए थे।
उड़ान 3.0
- पर्यटन मंत्रालय के समन्वय से उड़ान 3.0 के तहत पर्यटन मार्गों का समावेश।
- जलीय हवाई-अड्डे को जोड़ने के लिये जल विमान का समावेश।
- उड़ान के दायरे में पूर्वोत्तर क्षेत्र के कई मार्गों को लाना।
उड़ान 4.0
- वर्ष 2020 में देश के दूरस्थ क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना ‘उड़े देश का आम नागरिक’ (उड़ान) के चौथे संस्करण के तहत 78 नए मार्गों के लिये मंज़ूरी दी गई थी।
- लक्षद्वीप के मिनिकॉय, कवरत्ती और अगत्ती द्वीपों को उड़ान 4.0 के तहत नए मार्गों से जोड़ने की योजना बनाई गई है।
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