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सोमवार, 22 मार्च 2021

Daily Current Affairs in Hindi 22 March

Daily Current Affairs in Hindi 22 March 

Daily Current Affairs in Hindi 22 March


अंतर्राष्‍ट्रीय वन दिवस कब मनाया जाता है 

  • 21 मार्च, 2021 को वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस का आयोजन किया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2012 में 21 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस (IDF) के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी। इस दिवस का उद्देश्य वनों के महत्त्व और योगदान के बारे में विभिन्न समुदायों में जन-जागरूकता पैदा करना है। इस दिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष सरकारी तंत्र और निजी संगठन मिलकर लोगों को वनों के महत्त्व और पर्यावरण तथा अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका के बारे में जागरूक करते हैं। इस दिवस का आयोजन संयुक्त राष्ट्र वन फोरम (UNFF) और संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (UNFAO) द्वारा किया जाता है। वर्ष 2021 के लिये इस दिवस की थीम है- वन रेस्टोरेशन: ए पाथ टू रिकवरी एंड वेल-बीइंग। इस वर्ष की थीम इस बात पर ज़ोर देती है कि वनों की बहाली और सतत् प्रबंधन किस प्रकार जलवायु परिवर्तन एवं जैव विविधता के संकट से मुकाबला करने में मददगार साबित हो सकते हैं। स्वतंत्रता के बाद से भारत की आबादी में तीन गुना वृद्धि दर्ज की गई है, हालाँकि इसके बावजूद भारत के कुल भूमि क्षेत्र के पाँचवें हिस्से पर वन मौजूद हैं। वन स्थिति रिपोर्ट, 2019 की मानें तो वर्ष 2017 से वर्ष 2019 के बीच भारत के वन आवरण क्षेत्र में 3,976 वर्ग किमी. अथवा 0.56 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है।

 

उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां के बारे में जानकारी 

  • 21 मार्च, 2021 को विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां को उनकी जयंती पर याद किया गया। 21 मार्च, 1916 को बिहार में संगीतकारों के परिवार में जन्मे उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा अली बख्श 'विलायती' से प्राप्त की थी। शहनाई को विश्व पटल पर ले जाने में बिस्मिल्‍लाह खां का अतुलनीय योगदान माना जाता है। उन्हें शहनाई की लय साधने के लिये जाना जाता है। बिस्मिल्‍लाह खां ने सर्वप्रथम वर्ष 1938 में लखनऊ के ऑल इंडिया रेडियो पर शहनाई वादन किया था। बिस्मिल्‍लाह खां को संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण जैसे राष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों से नवाज़ा गया है। वर्ष 2001 में उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां को राष्‍ट्र का सर्वोच्‍च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न प्रदान किया गया था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले पर शहनाई वादन के लिये उन्हें आमंत्रित किया गया था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय वाराणसी में व्यतीत किया और सात दशकों से अधिक समय तक संगीत की सेवा करने के बाद 21 अगस्त, 2006 को वाराणसी में अंतिम साँस ली।

 

ग्राम उजालायोजना

  • केंद्रीय राज्य मंत्री आर.के. सिंह ने हाल ही में एक वर्चुअल समारोह में ग्राम उजालाकार्यक्रम की शुरुआत की है। इस योजना के पहले चरण के तहत कन्वर्जेंस एनर्जी सर्विसेज़ लिमिटेड (CESL) द्वारा पुराने कार्यशील तापदीप्त बल्बों के बदले प्रत्येक ग्रामीण परिवार को केवल 10 रुपए में LED बल्ब प्रदान किये जाएंगे। योजना के तहत प्रत्येक परिवार को अधिकतम पाँच LED बल्ब ही मिलेंगे। ग्राम उजालाकार्यक्रम का भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन की दिशा में किये जा रहे प्रयासों पर एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। अनुमान के अनुसार, यदि भारत में सभी 30 करोड़ बल्बों को बदल दिया जाए तो प्रत्येक वर्ष 40,743 मिलियन किलोवाट ऊर्जा की बचत होगी। इससे कार्बन डाइऑक्साइड में कटौती करने में भी मदद मिलेगी। ग्राम उजालायोजना न केवल ऊर्जा दक्षता को बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई को गति देगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों के नागरिकों के लिये जीवन के बेहतर मानक, वित्तीय बचत और बेहतर सुरक्षा भी प्रदान करेगी। इस कार्यक्रम के पहले चरण में आरा (बिहार), वाराणसी (उत्तर प्रदेश), विजयवाड़ा (आंध्र प्रदेश), नागपुर (महाराष्ट्र) और पश्चिमी गुजरात के गाँवों में 1.5 करोड़ LED बल्बों का वितरण किया जाएगा।

 

विश्व गौरैया दिवस  कब मनाया जाता है 

  • 20 मार्च, 2021 को दुनिया भर में विश्व गौरैया दिवस (World Sparrow Day) मनाया गया। इस दिवस का आयोजन आम लोगों में गौरैया के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है। इसके अलावा शहरी वातावरण में रहने वाले आम पक्षियों के प्रति जागरूकता बढ़ाना भी इस दिवस को मनाने का एक उद्देश्य है। गौरैया की लगातार कम होती जा रही तादाद के मद्देनज़र वर्ष 2010 में पहली बार यह दिवस मनाया गया था। 2012 में दिल्ली सरकार ने गौरैया को दिल्ली का राजकीय पक्षी घोषित किया था। ब्रिटेन की 'रॉयल सोसायटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स' ने भारत से लेकर विश्व के विभिन्न हिस्सों में अनुसंधानकर्त्ताओं द्वारा किये गए अध्ययनों के आधार पर गौरैया को 'रेड लिस्ट' में शामिल किया है। गौरैया की संख्या में यह कमी शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में देखी गई है। गौरैया 'पासेराडेई' परिवार की सदस्य है। दुनिया भर में गौरैया की 26 प्रजातियाँ हैं, जिसमें से 5 भारत में पाई जाती हैं।


 

चंबल नदी के बारे में जानकारी 

  • यह भारत की सबसे कम प्रदूषित नदियों में से एक है।
  • इसका उद्गम स्थल विंध्य पर्वत (इंदौर, मध्य प्रदेश) के उत्तरी ढलान पर स्थित सिंगार चौरी (Singar Chouri) चोटी है। यहाँ से यह लगभग 346 किमी. तक मध्य प्रदेश में उत्तर दिशा की ओर बहती हुई राजस्थान में प्रवेश करती है। राजस्थान में इस नदी की कुल लंबाई 225 किमी. है जो इस राज्य के उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है।
  • उत्तर प्रदेश में इस नदी की कुल लंबाई लगभग 32 किमी. है जो इटावा में यमुना नदी में मिल जाती है।
  • यह एक वर्षा आधारित नदी है, जिसका बेसिन विंध्य पर्वत शृंखलाओं और अरावली से घिरा हुआ है। चंबल और उसकी सहायक नदियाँ उत्तर-पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में बहती हैं।
  • राजस्थान में हाडौती/हाड़ौती का पठार (Hadauti Plateau) चंबल नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र मेवाड़ मैदान के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
  • सहायक नदियाँ: बनास, काली सिंध, क्षिप्रा, पार्वती आदि।
  • चंबल नदी की मुख्य बिजली परियोजनाएँ/बाँध: गांधी सागर बाँध, राणा प्रताप सागर बाँध, जवाहर सागर बाँध और कोटा बैराज।
  • राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (National Chambal Sanctuary) उत्तर भारत में गंभीर रूप से लुप्तप्रायघड़ियाल, रेड क्राउन्ड रूफ कछुए (Red-Crowned Roof Turtle) और लुप्तप्राय गंगा डॉल्फिन (राष्ट्रीय जलीय पशु) के संरक्षण के लिये चंबल नदी बेसिन के क्षेत्र में 5,400 वर्ग किमी. में फैला त्रिकोणीय राज्य (राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश) संरक्षित क्षेत्र है।

 

लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984

इस अधिनियम के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को दुर्भावनापूर्ण कृत्य द्वारा नुकसान पहुँचाता है तो उसे पाँच साल तक की जेल अथवा जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है। अधिनियम के प्रावधान को भारतीय दंड संहिता में भी शामिल किया जा सकता है।

इस अधिनियम के अनुसार, लोक संपत्तियों में निम्नलिखित को शामिल किया गया है-

कोई ऐसा भवन या संपत्ति जिसका प्रयोग जल, प्रकाश, शक्ति या उर्जा के उत्पादन और वितरण में किया जाता है।

तेल प्रतिष्ठान।

खान या कारखाना।

सीवेज स्थल।

लोक परिवहन या दूर-संचार का कोई साधन या इस संबंध में उपयोग किया जाने वाला कोई भवन, प्रतिष्ठान और संपत्ति।

थॉमस समिति:

  • के.टी. थॉमस समिति ने सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान से जुड़े मामलों में आरोप सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी की स्थिति को बदलने की सिफारिश की। न्यायालय को यह अनुमान लगाने का अधिकार देने के लिये कानून में संशोधन किया जाना चाहिये कि अभियुक्त सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का दोषी है।
  • दायित्व की स्थिति में बदलाव से संबंधित यह सिद्धांतयौन अपराधों तथा इस तरह के अन्य अपराधों पर लागू होता है।
  • सामान्यतः कानून यह मानता है कि अभियुक्त तब तक निर्दोष है जब तक कि अभियोजन पक्ष इसे साबित नहीं करता।
  • न्यायालय द्वारा इस सुझाव को स्वीकार कर लिया गया।

नरीमन समिति :

  • इस समिति की सिफारशें सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति से संबंधित थीं।
  • सिफारिशों को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्रदर्शनकारियों पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का आरोप तय करते हुए संपत्ति में आई विकृति में सुधार करने के लिये क्षतिपूर्ति शुल्क लिया जाएगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को भी ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेने के दिशा-निर्देश जारी किये तथा सार्वजनिक संपत्ति के विनाश के कारणों को जानने तथा क्षतिपूर्ति की जाँच के लिये एक तंत्र की स्थापना करने को कहा।

 

एमएमडीआर संशोधन विधेयक, 2021

हाल ही में कोयला और खान मंत्री ने लोकसभा में खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) संशोधन विधेयक, 2021 पेश किया। 

इस विधेयक द्वारा खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 जो कि भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करता है, में संशोधन किया गया है।


प्रस्तावित परिवर्तन:

 

खनिजों के अंतिम उपयोग पर लगे प्रतिबंध को हटाना:

  • वर्ष 1957 का एक्ट केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह नीलामी प्रक्रिया के ज़रिये किसी खान (कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिज को छोड़कर) को लीज़ पर देते समय उसे किसी खास अंतिम उपयोग के लिये (जैसे- लौह अयस्क की खान को स्टील प्लांट के लिये रिज़र्व करना) रिज़र्व कर सकती है। ऐसी खानों को कैप्टिव खान (Captive Mine) कहा जाता है।
  • नया विधेयक प्रावधान करता है कि कोई भी खान किसी खास अंतिम उपयोग के लिये आरक्षित नहीं होगी।


कैप्टिव खानों द्वारा खनिजों की बिक्री:

  • इस बिल में प्रावधान किया गया है कि कैप्टिव खानें (परमाणु खनिजों को छोड़कर) अपनी ज़रूरत को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक उत्पादन का 50% हिस्सा खुले बाज़ार में बेच सकती हैं।
  • केंद्र सरकार अधिसूचना के ज़रिये इस सीमा में वृद्धि कर सकती है।
  • पट्टेदार को खुले बाज़ार में बेचे गए खनिजों के लिये अतिरिक्त शुल्क चुकाना होगा।

कुछ मामलों में केंद्र सरकार द्वारा नीलामी:

  • यह विधेयक केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह राज्य सरकार की सलाह से नीलामी प्रक्रिया के पूरे होने की एक समय-सीमा निर्दिष्ट करे।
  • यदि राज्य सरकार इस निर्दिष्ट अवधि में नीलामी प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाती है तो केंद्र सरकार यह नीलामी कर सकती है।


वैधानिक मंज़ूरियों का हस्तांतरण:

  • यह प्रावधान करता है कि हस्तांतरित मंज़ूरियाँ नए पट्टेदार की पूरी लीज़ अवधि के दौरान वैध रहेंगी।
  • नए पट्टेदार को खानों की लीज़ दो वर्ष की अवधि के लिये दी जाती है। इन दो वर्षों के दौरान नए पट्टेदार को नई मंज़ूरियाँ हासिल करनी होती हैं।
  • लीज़ अवधि खत्म होने वाली खानों का आवंटन:
  • विधेयक में कहा गया है कि जिन खानों की लीज़ की अवधि खत्म हो गई है, उन खानों को कुछ मामलों में सरकारी कंपनियों को आवंटित किया जा सकता है।
  • यह प्रावधान तब लागू होगा, जब नई लीज़ देने के लिये नीलामी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है या नीलामी के एक साल के अंदर ही नई लीज़ अवधि खत्म हो गई है।
  • राज्य सरकार ऐसी खान को अधिकतम 10 वर्ष के लिये या जब तक नए पट्टेदार का चयन नहीं हो जाता, तब तक के लिये (इनमें से जो भी पहले हो) सरकारी कंपनी को दे सकती है।


सरकारी कंपनियों की लीज़ अवधि बढ़ाना:

  • इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार सरकारी कंपनियों की खनन लीज़ की अवधि निर्धारित करेगी और सरकारी कंपनियों की लीज़ की अवधि अतिरिक्त राशि चुकाने पर बढ़ाई जा सकती है।


खनन लीज़ अवधि खत्म होने की शर्तें:

  • यदि पट्टेदार लीज़ मिलने के दो वर्ष के भीतर खनन कार्य शुरू नहीं कर पाता है।
  • यदि दो वर्षों तक उसका खनन का काम बंद रहता है।
  • अगर पट्टेदार के पुनः आवेदन करने के बाद राज्य सरकार ने उसे छूट दे दी है तो इस अवधि के खत्म होने के बाद उसकी लीज़ खत्म नहीं होगी।
  • इस विधेयक में कहा गया है कि लीज़ की अवधि खत्म होने के बाद राज्य सरकार सिर्फ एक बार और एक वर्ष तक के लिये इसकी अवधि बढ़ा सकती है।


नॉन-एक्सक्लूसिव रिकोनिसेंस परमिट:

  • यह अधिनियम नॉन-एक्सक्लूसिव रिकोनिसेंस परमिट (Non-Exclusive Reconnaissance Permit- कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिजों के अतिरिक्त दूसरे खनिजों के लिये) का प्रावधान करता है।
  • रिकोनिसेंस का अर्थ है, कुछ सर्वेक्षणों के ज़रिये खनिजों का शुरुआती पूर्वेक्षण (Prospecting)। यह विधेयक इस परमिट के प्रावधान को हटाता है।

महत्त्व: 

पारदर्शिता:

  • इस अधिनियम से नीलामी प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता आएगी क्योंकि ऐसी धारणा है कि राज्य सरकारें कुछ मामलों में उनके पसंदीदा बोलीदाताओं को प्राथमिकता देती हैं तथा उन्हें लीज़ नहीं मिलने पर नीलामी प्रक्रिया रद्द करने का प्रयास करती हैं।

उत्पादन बढ़ाना:

  • खनिकों (Miner) के लिये लचीलेपन में वृद्धि के कारण कैप्टिव खानों से अधिक-से-अधिक उत्पादन करने की अनुमति मिलेगी क्योंकि वे अब अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादन को बेचने में सक्षम होंगे।

ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस:

  • यह ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) को बढ़ाएगा, प्रक्रिया का सरलीकरण करेगा और उन सभी प्रभावित पक्षों को लाभान्वित करेगा जहाँ खनिज मौजूद हैं।
  • यह परियोजनाओं के कार्यान्वयन की प्रक्रिया को भी तेज़ कर देगा।

कुशल ऊर्जा बाज़ार:

  • यह एक कुशल ऊर्जा बाज़ार का निर्माण करेगा और कोयला आयात को कम करके अधिक प्रतिस्पर्द्धा लाएगा।


उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी तक पहुँच:

  • यह भारत को विश्व भर में खनिकों द्वारा भूमिगत खनन के लिये उपयोग किये जाने वाले उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्रदान करने में भी मदद करेगा।


गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन (संशोधन) विधेयक, 2021


गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन (संशोधन) विधेयक, 2021

हाल ही में राज्यसभा ने गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन (संशोधन) विधेयक [Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill], 2021 पारित किया। इस विधेयक को मार्च 2020 में लोकसभा में पारित किया गया था। 

विधेयक का उद्देश्य गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन अधिनियम, 1971 में संशोधन करना है।


गर्भनिरोधक विधि या डिवाइस की विफलता:

 

  • अधिनियम के तहत गर्भनिरोधक विधि या उपकरण की विफलता के मामले में एक विवाहित महिला द्वारा 20 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त किया जा सकता है। यह विधेयक अविवाहित महिलाओं को भी गर्भनिरोधक विधि या डिवाइस की विफलता के कारण गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता है।


गर्भ की समाप्ति के लिये चिकित्सकों से राय लेना आवश्यक:

 

  • गर्भधारण से 20 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिये एक पंजीकृत चिकित्सक की राय की आवश्यकता होगी।
  • गर्भावधि/गर्भकाल का आशय गर्भधारण के समय से जन्म तक भ्रूण के विकास काल से है।
  • गर्भधारण के 20-24 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिये दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय आवश्यक होगी।
  • भ्रूण से संबंधित गंभीर असामान्यता के मामले में 24 सप्ताह के बाद गर्भ की समाप्ति के लिये राज्य-स्तरीय मेडिकल बोर्ड की राय लेना आवश्यक होगा।


मेडिकल बोर्ड:

 

  • प्रत्येक राज्य सरकार को एक मेडिकल बोर्ड का गठन करना आवश्यक होगा।


इस मेडिकल बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे:


  • स्त्री रोग विशेषज्ञ
  • बाल रोग विशेषज्ञ
  • रेडियोलॉजिस्ट या सोनोलॉजिस्ट और
  • राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य कोई सदस्य।
  • विशेष श्रेणियों के लिये अधिकतम गर्भावधि सीमा

 

  • इस विधेयक में महिलाओं की विशेष श्रेणियों के लिये गर्भकाल/गर्भावधि की सीमा को 20 से 24 सप्ताह करने का प्रावधान किया गया है, विशेष श्रेणी को MTP नियमों में संशोधन के तहत परिभाषित किया जाएगा और इसमें दुष्कर्म तथा अनाचार से पीड़ित महिलाओं तथा अन्य कमज़ोर महिलाओं (जैसे दिव्यांग महिलाएँ और नाबालिग) आदि को शामिल किया जाएगा।


गोपनीयता:

 

गर्भ को समाप्त करने वाली किसी महिला का नाम और अन्य विवरण, कानून में अधिकृत व्यक्ति को छोड़कर, किसी के भी समक्ष प्रकट नहीं किया जाएगा।

वर्ष 1971 से पूर्व भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312 के तहत गर्भपात को अपराध के रूप में जाना जाता था, इसे जान-बूझकर किये जाने वाले 'गर्भपातके रूप में परिभाषित किया गया था।


लाभ

विसंगति के मामले में गर्भावस्था की समाप्ति: 


प्रायः कई मामलों में भ्रूण की असामान्यताओं का पता 20वें सप्ताह के बाद लगता है, जिसके कारण वांछित गर्भावस्था, अवांछित गर्भावस्था में बदल जाती है।


विशेष श्रेणी की महिलाओं की सहायता:

 

यह विधेयक दुष्कर्म पीड़ितों, बीमार एवं कम आयु की महिलाओं के अवांछित गर्भ को कानूनी रूप से समाप्त करने में मदद करेगा।


अविवाहित महिलाओं के लिये सहायक:

 

यह विधेयक अविवाहित महिलाओं पर भी लागू होता है और इस प्रकार 1971 के अधिनियम की प्रतिगामी धाराओं में से एक के संबंध में राहत प्रदान करता है। इसमें कहा गया था कि "एकल महिला गर्भपात के लिये गर्भनिरोधक की विफलता का हवाला नहीं दे सकती है"।

अविवाहित महिलाओं को गर्भ के चिकित्सकीय समापन की अनुमति देने और गर्भपात की मांग करने वाले व्यक्ति की गोपनीयता बनाए रखने का प्रावधान महिलाओं को प्रजनन अधिकार (Reproductive Rights) प्रदान करेगा।


चुनौतियाँ

भ्रूण की व्यवहार्यता:

 

  • भ्रूण की 'व्यवहार्यता' (Viability of the Foetus) हमेशा से गर्भपात को नियंत्रित करने वाली वैधता का एक प्रमुख पहलू रही है।
  • व्यवहार्यता का तात्पर्य उस अवधि से है जिसमें भ्रूण, गर्भाशय से बाहर जीवित रहने में सक्षम होता है।
  • जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी में सुधार होगा अवसंरचना के अपग्रेडेशन और चिकित्सा सुविधा प्रदान करने वाले कुशल पेशेवरों की मदद से इस व्यवहार्यता में प्राकृतिक रूप से सुधार होगा।
  • वर्तमान में व्यवहार्यता की स्थिति आमतौर पर लगभग सात महीने (28 सप्ताह) पर शुरू होती है, लेकिन यह इससे पूर्व यहाँ तक कि 24 सप्ताह में भी शुरू हो सकती है।
  • इस प्रकार गर्भ के देर से समापन के समय ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है कि भ्रूण ने व्यवहार्यता की स्थिति प्राप्त कर ली हो।


बालकों को वरीयता:

 

  • परिवार में पुत्र को वरीयता दिये जाने के कारण लिंग निर्धारण केंद्रों का व्यापार अवैध होने के बावजूद चलता रहता है। ऐसे में गर्भपात कानून को और अधिक उदार बनाए जाने से इस प्रकार के मामलों में वृद्धि हो सकती है।


विकल्पों में परिवर्तन

 

  • वर्तमान विधेयक में व्यक्तिगत पसंद, परिस्थितियों में अचानक परिवर्तन (साथी से अलग होने या मृत्यु के कारण) तथा घरेलू हिंसा जैसे घटकों पर विचार नहीं किया गया है।


चिकित्सा बोर्ड

 

  • वर्तमान में स्वास्थ्य देखभाल हेतु आवंटित बजट में देश भर में एक बोर्ड का गठन करना आर्थिक और व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।
  • राज्य के दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं के लिये बोर्ड तक पहुँच पाना भी चिंता का विषय है।
  • अनुरोधों/याचिकाओं का जवाब देने के लिये कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
  • बोर्ड महिला को गर्भ के समापन की अनुमति देने से पहले विभिन्न प्रकार के परीक्षण कराएगा जो कि निजता के अधिकार और सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन है।


  • यद्यपि गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) विधेयक, 2021 सही दिशा में उठाया गया एक कदम है फिर भी गर्भपात को सुविधाजनक बनाने के लिये सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि देश भर के स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में नैदानिक प्रक्रियाओं से संबंधित सभी मानदंडों और मानकीकृत प्रोटोकॉल का पालन किया जाए।
  • इसके साथ ही मानव अधिकारों, ठोस वैज्ञानिक सिद्धांतों और प्रौद्योगिकी में उन्नति के अनुरूप गर्भपात के मामले पर फैसला लिया जाना चाहिये।

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